May 12, 2016 No.3
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153479879236922
(1) महात्मा सुभाष बोस, त्रिलोकीनाथ चक्रवर्ती और सावरकर ने 1939-40 में ब्रिटिश राज के खिलाफ सैन्य विद्रोह में संघ से मदद मांगी थी। लेकिन डॉ हेडगेवार ने कोई रुचि नहीं दिखाई !!
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(2) श्यामा प्रसाद मुकर्जी बंगाल में हिन्दुओ का सशस्त्र संगठन खड़ा करना चाहते थे, लेकिन डॉ हेडगेवार ने मुकर्जी को समझाया कि हिन्दुओ के सशस्त्रीकरण की जगह उन्हें 'जगाने और संगठित' करने पर ध्यान देना चाहिए !!
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(3) दादा साहेब करिंदकर ने स्वयंसेवकों को तीर कमान सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान भेजा था। लेकिन डॉ हेडगेवार हिन्दुओ को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण देने के खिलाफ थे !!
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(4) हिन्दू महासभा अध्यक्ष डॉ मुंजे हिन्दुओ के सैन्यकरण के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोल रहे थे। लेकिन डॉ हेडगेवार ने उन्हें 'अहिंसा परमो धर्म' का उपदेश देकर इस मॉडल को संघ में लागू करने से इंकार कर दिया !!
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(5) जब महादुरात्मा गांधी ने 1934 में संघ के शिविर का दौरा किया तो वे डॉ हेडगेवार के कार्यकलापों से खुश थे, और उन्होंने संघ को सफलता की शुभकामनाएं दी।
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(1)
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"1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के पास स्वतंत्र होने का सुनहरा मौका था। सावरकर जेल से रिहा होकर महासभा के अध्यक्ष बन चुके थे और हिन्दुओ के सैन्यकरण की योजना बना रहे थे। उन्होंने एक सशस्त्र हिन्दू सेना बनाने का फैसला किया। इसी समय सुभाष बाबू भी ब्रिटिश के खिलाफ बाहरी आक्रमण द्वारा विद्रोह की योजना बना रहे थे। इसमें कोई आष्चर्य नहीं था कि हेडगेवार जी की सांगठनिक क्षमता और समूह को देखते हुए दोनों ने ही अपनी योजना को सफल बनाने के लिए डॉ हेडगेवार से सहयोग लेने की जरुरत महसूस की।
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बालाजी हुद्दार और डॉक्टर वी आर संजगिरी सुभाष बाबू का सन्देश लेकर डॉ हेडगेवार के पास पहुंचे। उन्होंने डॉ हेडगेवार को सुभाष बाबू का सन्देश दिया। सुभाष बाबू की योजना थी कि ब्रिटिश के खिलाफ एक देशव्यापी विद्रोह किया जाए तथा उन देशो का भी बाहरी आक्रमण में सहयोग लिया जाए जो ब्रिटिश के खिलाफ है।
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डॉ हेडगेवार ने जवाब दिया कि, 'यह बात सही है कि देश में विद्रोह होने के हालात है। पर सबसे बड़ा सवाल है कि, आपकी तैयारी कितनी है ? इस योजना पर अमल शुरू करने के लिए हमें कम से कम 50% तैयारी की जरुरत है। इस समय सुभाष बाबू की कमांड में कितने लोग है ? जब तक हम खुद तैयार नहीं होते तब तक अन्य देशो से सहायता लेने से कोई लाभ नहीं होगा'।
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तय यह पाया था कि सुभाष बाबू स्वयं हेडगेवार जी मिलेंगे। कुछ दिनों बाद डॉ संजगिरी द्वारा हेडगेवार को बॉम्बे आने को कहा गया जहां सुभाष बाबू से उनकी मुलाकात होनी थी। किन्तु गिरे हुए स्वास्थ्य के चलते हेडगेवार बॉम्बे नहीं जा सके। साल भर बाद जब सुभाष बाबू डॉ हेडगेवार से मिलने नागपुर आये तो अगले दिन डॉ हेडगेवार का अवसान हो चुका था।
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अनुशीलन समिती के उग्र नेता त्रिलोकीनाथ चक्रवर्ती भी ब्रिटिश राज के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विद्रोह की तैयारी कर रहे थे। एक बार चक्रवर्ती खुद नागपुर आये और विद्रोह की योजना के बारे में डॉ हेडगेवार से मिले। लेकिन डॉ हेडगेवार का साफ़ तौर पर मानना था कि लोगो को जगाना और संगठन को मजबूत बनाये बिना सफलता सम्भव नहीं है और इसके लिए अभी और तैयारी करने की जरुरत थी"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 76, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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(2)
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"श्यामा प्रसाद मुकर्जी सीधे बंगाल से आये थे, और उनके पास बंगाल में हिन्दुओ की दुर्दशा से सम्बंधित बुरी खबरे थी। हिन्दुओ की सम्पत्ति को लूटा गया था और उनकी स्त्रियों के साथ मुस्लिम आतताई ज्यादती कर रहे थे। हिन्दू विधवाओं की दशा और भी बदतर थी। मुकर्जी की आवाज में गहरी पीड़ा और गुस्सा भरा हुआ था। उनका कहना था कि बंगाल में हिन्दुओ के एक सशस्त्र दस्ते (मार्शल ग्रुप) को संगठित करने की तत्काल जरुरत है, वरना बंगाल में हिन्दू नहीं बचेंगे। मुकर्जी यह कह रहे थे तो उनकी आवाज भर्रायी हुयी थी।
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यह सुनकर डॉ हेडगेवार गहराई से विचार करने लगे। तब उन्होंने कहा की, 'हमें नहीं भूलना चाहिए कि वहाँ एक मुस्लिम सरकार है। वे हिन्दूओ के सशस्त्र दस्ते को वहां टिकने नहीं देंगे। और ब्रिटिश भी उनका ही समर्थन कर रहे है। उनके लिए हिंदुत्व का उत्कर्ष एक बुरे सपने की तरह है। तब वे तुम्हारी योजना को कैसे सफल होने देंगे' ? यह सुनकर मुकर्जी ने कहा कि, फिर आपके हिसाब से हिन्दुओ कौनसा रास्ता बचा है ?
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तब डॉ हेडगेवार ने अपनी गहरी सोच को प्रकट करते हुए बड़े ही सधे हुए अंदाज में कहा कि, 'बात चाहे पंजाब की हो या बंगाल की, हिन्दुओ की दुर्दशा का कारण है कि वे संगठित नहीं है। जब तक हिन्दू संगठित नहीं होते तब तक उनकी दशा ऐसी ही रहेगी। हमें सभी हिन्दुओ को राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत करना होगा। हमें उन्हें एक दूसरे से प्यार करना सिखाना होगा ताकि वे एक दूसरे से संयुक्त होकर पूरे देश को उठ खड़े होने में मदद करे। सिर्फ और सिर्फ इसी तरीके से हिन्दू एक राष्ट्र के रूप में फिर से उठ खड़े हो सकेंगे। और संघ बिलकुल इसी नीति पर काम कर रहा है'
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डॉ मुकर्जी हेडगेवार जी के इन अद्भुत विचारों से बेहद प्रभावित हुए और जल्दी ही बंगाल में उन्होंने शाखा लगानी शुरू कर दी"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 78, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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(3)
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"सतारा के ख्यात न्यायविद दादा साहेब करिंदर की मृत्यु के बाद उनके पुत्र विट्ठलराव करिंदर ने डॉ हेडगेवार जी को 100 रूपये के साथ यह सन्देश भेजा था कि दादा साहेब की इच्छा थी कि इन रुपयों से एक शील्ड खरीदकर उस स्वयसेवक को इनाम के रूप में दी जाए जो तीरंदाजी में सबसे कुशल हो। डॉ साहेब ने जवाब भेजा कि, 'संघ में तीरंदाजी नहीं सिखायी जाती। हमने इसके प्रशिक्षण के बारे में विचार किया था लेकिन इसे लागू करना संभव नहीं हो सका। ऐसी स्थिति में आपकी राशि का इस्तेमाल अमुक मद में नहीं किया जा सकता। यह राशि यहां हमारे पास जमा रहेगी। आगे हम इसका उपयोग आपकी सलाह के अनुसार करेंगे'।
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बाद में विट्ठल राव के निर्देशानुसार इस राशि का उपयोग सांगली में संघ कार्यालय के लिए भूमि खरीदने के लिए किया गया था"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 66, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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(4)
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"युवाओं को मिलिट्री ट्रेनिंग देने के उद्देश्य से डॉ मुंजे ने एक सैनिक स्कूल स्थापित करने का फैसला किया। 1936 में बॉम्बे में इस कमिटी की बैठक हुई थी और डॉ हेडगेवार ने इसकी संयोजक कमिटी में भाग लिया था। बाद में डॉ हेडगेवार इसकी कार्यकारी संस्था के सदस्य भी रहे। डॉ हेडगेवार स्वयंसेवकों और देश के अन्य हिन्दु युवाओं को अहिंसा का महत्त्व बताने का मौका कभी नहीं चूकते थे।
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1936 में नागपुर में अपनी सार्वजनिक सभा में कहा था कि, 'हमें इस बात को दिमाग में अच्छी तरह से बिठा लेना चाहिए कि अहिंसा आत्महिंसा नहीं है। तथा 'अहिंसा परमो धर्म' हिन्दू धर्म की बुनियाद है। हमें यह पाठ अन्य समुदायो के लोगो को भी समझाना है। लेकिन वे हमारी बात तब ही सुनेंगे जब हिन्दू धर्म ताकतवर होगा। दुर्भाग्य से इस समय हम कमजोर है और कमजोर की बात नहीं सुनी जाती है। इसीलिए हमें पहले अपने आप को मजबूत बनाना होगा। और हमें यह याद रखना चाहिए कि यह मजबूती सिर्फ संगठन से ही आती है। प्रत्येक हिन्दू का यह कर्तव्य है कि उसे हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए प्रयास करना चाहिए। संघ इसी महान कार्य को कर रहा है"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 66, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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(5)
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"जब 1934 में महादुरात्मा गांधी ने संघ के एक शिविर का दौरा किया तो उन्होंने डॉ हेडगेवार से पूछा कि आप पहले संघ में थे, अत: ये काम तो आप कांग्रेस में रह कर भी कर सकते थे, फिर आपने कांग्रेस को क्यों छोड़ा ? डॉ हेडगेवार का कहना था कि कांग्रेस एक राजनैतिक संगठन है इसीलिए ऐसा करना वहाँ संभव नहीं था। जब गांधी को संघ की विचारधारा और सिद्धांतो की जानकारी हुयी तो वे काफी हर्षित हुए और उन्होंने संतोष व्यक्त किया"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 64, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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पांचो घटनाएं संघ द्वारा प्रकाशित डॉ हेडगेवार की अधिकृत बायोग्राफी से ली गयी है। पांचो घटनाओं का अवलोकन करने से पता चलता है कि डॉ हेडगेवार की रुचि हिन्दुओ को संगठित और सक्रीय करने में नहीं थी बल्कि उन्हें निष्क्रिय बनाकर असंगठित बनाए रखने की थी, ताकि ब्रिटिश राज की कृपा दृष्टी बनी रहे। कैसे ?
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क्या सुभाष बाबू, त्रिलोकीनाथ, मुंजे और सावरकर हिन्दू नहीं थे ? जब ये सेनानी ब्रिटिश को भगाने के लिए संघ की मदद मांगने आये तो डॉ हेडगेवार ने इन्हे दार्शनिक उपदेश देकर भेज दिया। यदि हेडगेवार इनका सहयोग करते तो हिन्दू असंगठित कैसे हो जाते ? इससे तो हिन्दुओ की ताकत बढ़ती थी।
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लेकिन समस्या यह थी कि अव्वल तो डॉ हेडगेवार ब्रिटिश राज से किसी भी प्रकार का टकराव मोल नहीं लेना चाहते थे और दूसरे वे चाहते थे कि हिन्दू सिर्फ उनके यानि कि संघ के झंडे तले ही संगठित हो।
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उन्होंने उन हिन्दू युवाओं को एकत्रित किया जो राजनैतिक रूप से सक्रीय थे और ब्रिटिश राज के खिलाफ आंदोलन में 'अपने अपने तरीके' से शामिल हो सकते थे। संघ ने इस युवा शक्ति को इकट्ठा किया और गीत गाने और व्यायाम करने जैसे अनुपयोगी कार्यो में लगा दिया। लेकिन इतना अवश्य ध्यान रखा कि भले ही स्वयसेवको को खाकी गणवेश पहनकर परेड कराई जाए और व्यायाम कराया जाए लेकिन उन्हें अस्त्र शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। इसीलिए ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ने से हतोत्साहित करने के लिए डॉ हेडगेवार ने उन्हें राजनीति से दूरी बनाये रखने का उपदेश दिया।
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महादुरात्मा गांधी और डॉ हेडगेवार की इस 'हिन्दुओ के निशस्त्रीकरण की नीति' का परिणाम यह हुआ कि विभाजन के दौरान 20 लाख हथियार विहीन हिन्दुओ को गले कटाने पड़े। जब मुकर्जी हेडगेवार से यह कह रहे थे कि हमें बंगाल में हिन्दुओ की सश्त्रीकरण की आवश्यकता है तो डॉ हेडगेवार को इसका हल दर्शन शास्त्र में नजर आया। बच्चा भी बता देगा कि किसी हथियार विहीन व्यक्ति को कोई भी हथियार बंद व्यक्ति आसानी से लूट लेगा। कोई भी औसत बुद्धि वाला व्यक्ति इस बात को आसानी से समझ सकता था कि यदि बंगाल का यही मंजर यदि कल पूरे देश में घटित हो गया तो हिन्दुओ की हालत क्या होगी। लेकिन डॉ साहेब सामान्य व्यक्ति नहीं थे। असल में वे आला दर्जे के दार्शनिक थे। या फिर दार्शनिक बनने में उन्हें सुविधा थी।
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असल में अंग्रेजो को खतरा उन युवाओं से था जो क्रांतिकारियों की राह पर चलते हुए सशस्त्र विद्रोह करने के मंसूबे बना रहे थे। और इसीलिए वे चाहते थे कि युवा महादुरात्मा गांधी और हेडगेवार के आदर्शो का अनुसरण करे न कि महात्मा भगत सिंह और महात्मा सुभाष बाबू का। इस तरह डॉ हेडगेवार वायसराय का वही काम कर रहे थे जो महादुरात्मा गांधी कर रहे थे। सक्रीय युवाओं को इकट्ठा करो और उन्हें अराजनैतिक गतिविधियों में उलझा दो। और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए एक 'ऊँचे आदर्श' के दर्शन का इस्तेमाल करो। एक चरखे चलाकर भूखे रहने की प्रेरणा दे रहा था जबकि दूसरे के हिसाब से राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए ऊँची आवाज में गीत गाकर शंख बजाये जाने चाहिए।
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इसीलिए संघ ने क्रांतिकारियों को 'अंध राष्ट्रवादी' और भटके हुए नौजवानों की संज्ञा दी। संघ युवाओं को समझा रहा था कि भगत सिंह जी, महात्मा आजाद और उधम सिंह जी 'भटक' गए है।
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तब डॉ हेडगेवार ने स्वयंसेवकों को दिए अपने एक व्याख्यान में कहा था कि भारत को आजाद कराने के लिए हमें कम से कम 4% स्वयं सेवको की आवश्यकता है !! तब भारत की जनसँख्या 40 करोड़ थी। इस हिसाब से उन्हें अंग्रेजो से लड़ने के लिए डेढ़ करोड़ स्वयसेवक चाहिए थे। जबकि सच्चाई यह है कि तब अंग्रेजो की संख्या सिर्फ 1 लाख थी। और यदि सिर्फ 4 लाख तीरंदाजों का दस्ता भी होता तो अंग्रेजो को जान बचाकर भागना पड़ता।
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1947 में स्वयसेवको की संख्या 8 लाख थी। यदि सभी लाठी लेकर मुकाबला करते तो वे 1 लाख बन्दुक धारी अंग्रेजो से निपट नहीं पाते। लेकिन धनुष का प्रयोग करने पर 4 तीरंदाज आसानी से 1 बन्दुक धारी को टक्कर दे सकते थे। तीर कमान बनाने की तकनीक तब भारत में प्रचलित थी और इसका प्रशिक्षण भी छोटी अवधि में पूरा हो जाता है। और इसीलिए डॉ साहेब ने संघ के स्वयं सेवको को तीरंदाजी का प्रशिक्षण देने से इंकार कर दिया। असल में उनकी रुचि सिर्फ अपने समूह की संख्या बढ़ाने में थी।
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हालांकि आज भी संघ के स्वयंसेवकों की संख्या 70 लाख से अधिक नहीं है। मतलब डॉ साहेब के फार्मूले के अनुसार 2016 तक भी भारत के आजाद होने का वक्त नहीं आया है। आज भारत की जनसंख्या के हिसाब से डॉ साहेब को 4 करोड़ स्वयसेवको की आवश्यकता होती। मतलब उनका विचार भारत को 2025 में आजाद करवाने का था !!!
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युवाओं को अनुपयोगी कार्यो में खपाये रखने की संघ की नीति में आज भी जस की तस है। राष्ट्रवादी युवाओं को खींचकर उनसे पौने पांच साल तक 'भारत माता की जय', वन्दे मातरम, हिन्दू राष्ट्र, के नारे लगवाओ, उन्हें सुबह शाम बुलवाकर परेड करवाओ, साल में 4 बार उन्हें चिंतन शिविरों में बुलाकर उपदेश दो, छह महीने में 3 बार उन्हें गाजे बाजे के साथ पथ संचलन निकालने को कहो, और जब चुनाव आये तो उन्हें बीजेपी के खाते में वोट गिरवाने के काम पर लगा दो। इसमें एक विचलन यह आता है कि जब भारत में कहीं आंधी पानी आदि प्राकृतिक आपदाएं आती है तो स्वयसेवक उनमे अपनी सेवाएं देते है।
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यही सब संघ करता आया है, और आगे भी करता रहे। जब तक यह संघ का सहायक एजेंडा है कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन बात तब बिगड़ जाती है जब एक तरफ तो संघ इन गतिविधियों को ही अपना मुख्य एजेंडा बना लेता है और अपने स्वयसेवको को उन सभी कानूनों का विरोध करने के लिए भी कहता है जिससे देश की समस्याओं का समाधान किया जा सके। तो इस प्रकार संघ के स्वयसेवक पिछले 90 साल से इसी एजेंडे पर काम कर रहे है। वे 'हिन्दुओ को संगठित करने और जगाने' के लिए नारे लगाते है, रेलिया करते है और बीजेपी के लिए वोट इकट्ठे करते है।
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उल्लेखनीय है कि अमेरिका में आपदा प्रबंधन भारत से हजारो गुना बेहतर स्थिति में है। और वहां संघ जैसा कोई समूह नहीं है। फिर वहाँ आपदा प्रबंधन कैसे होता है। क्योंकि वहाँ पर अच्छी क़ानून प्रक्रियाओं ने प्रशासन में सुधार लाकर उन्हें आपदा प्रबंधन में सक्षम बना दिया है। संघ पिछले 90 साल से आपदा प्रबंधन में सेवाएं दे रहा है - जो कि अच्छी बात है - लेकिन संघ उन सभी कानून प्रक्रियाओं का विरोध करता है जिससे भारत के प्रशासन में सुधार आये और हमारी आपदा प्रबंधन की क्षमता बढे।
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भारत में प्राकृतिक आपदा से ज्यादा मौते गरीबी और भुखमरी से होती है, और हमारी व्यवस्था भ्रष्टाचार में कंठ तक डूबी हुयी है । लेकिन संघ ने आज तक गरीबी और भ्र्ष्टाचार मिटाने के लिए कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट नहीं दिया। और साथ ही अपने सभी स्वयसेवको को यह भी निर्देश दिए कि गरीबी और भ्र्ष्टाचार के निवारण के लिए आवश्यक एमआरसीएम और राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओं को विरोध करो। क्या भुखमरी से मरने वालो में हिन्दू शामिल नहीं है ?
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संघ हिन्दूओ संगठित करने और हिन्दू धर्म के उत्कर्ष की बात करता है लेकिन हिन्दु धर्म के कमजोर प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए तमाम कानूनों का विरोध करता है। संघ में आज 70 लाख स्वयंसेवक है। क्या संघ में 7 करोड़ स्वयसेवक होने से हिन्दू धर्म का प्रशासन अपने आप बेहतर हो जाएगा, या गौ हत्या अपने आप रूक जायेगी ? नहीं होगा। इसके लिए हमें आवश्यक कानूनों को देश में लागू करना होगा। लेकिन व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक कानूनों की बात करने मात्र से ही संघियो के बदन पर चींटिया रेंगने लगती है।
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कुल मिलाकर एक तरफ तो संघ लाखों कार्यकर्ताओ को अनुपयोगी कार्यो में खपाये रखता है और दूसरी तरफ अपने स्वयसेवको को उन सभी कानूनों का विरोध करने के लिए भी कहता है जिससे हिन्दू धर्म को मजबूत बनाया जा सके और देश की समस्याओं का समाधान हो।
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समाधान ?
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हमारा आग्रह है कि यदि कार्यकर्ता हिन्दू धर्म को मजबूत और संगठित बनाना चाहते है तो उन्हें उन कानूनों की मांग करनी चाहिए जिनसे हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाया जा सके और देश में व्याप्त अन्य समस्याओं जैसे गरीबी, भ्र्ष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि का निवारण किया जा सके। इसके लिए हमारे द्वारा प्रस्तावित राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, एमआरसीएम, वेल्थ टैक्स, टीसीपी, राष्ट्रिय हिन्दू देवालय ट्रस्ट आदि कानूनों के प्रस्तावित ड्राफ्ट निचे दिए गए लिंक पर देखे जा सकते है।
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यदि आप बेहतर देश चाहते है तो बेहतर क़ानून प्रक्रियाओं का समर्थन करे और अपने क्षेत्र के सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे कि इन कानूनों क गैजेट में प्रकाशित किया जाए। और यदि आप संघ के स्वयसेवक है तो उनसे समस्याओं के समाधान के लिए कानूनी ड्राफ्ट मांगे। यदि वे क़ानून ड्राफ्ट देने से इंकार करते है तो देश हित में बेहतर होगा कि आप अपना समय और ऊर्जा संघ के साथ लगकर जाया न करे। क्योंकि संघ का एजेंडा हिन्दु धर्म और देश को नहीं बल्कि खुद को मजबूत बनाना है।
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प्रस्तावित कानूनों के ड्राफ्ट यहां देखे जा सकते है ---https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/563544197157112
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(1) महात्मा सुभाष बोस, त्रिलोकीनाथ चक्रवर्ती और सावरकर ने 1939-40 में ब्रिटिश राज के खिलाफ सैन्य विद्रोह में संघ से मदद मांगी थी। लेकिन डॉ हेडगेवार ने कोई रुचि नहीं दिखाई !!
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(2) श्यामा प्रसाद मुकर्जी बंगाल में हिन्दुओ का सशस्त्र संगठन खड़ा करना चाहते थे, लेकिन डॉ हेडगेवार ने मुकर्जी को समझाया कि हिन्दुओ के सशस्त्रीकरण की जगह उन्हें 'जगाने और संगठित' करने पर ध्यान देना चाहिए !!
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(3) दादा साहेब करिंदकर ने स्वयंसेवकों को तीर कमान सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान भेजा था। लेकिन डॉ हेडगेवार हिन्दुओ को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण देने के खिलाफ थे !!
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(4) हिन्दू महासभा अध्यक्ष डॉ मुंजे हिन्दुओ के सैन्यकरण के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोल रहे थे। लेकिन डॉ हेडगेवार ने उन्हें 'अहिंसा परमो धर्म' का उपदेश देकर इस मॉडल को संघ में लागू करने से इंकार कर दिया !!
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(5) जब महादुरात्मा गांधी ने 1934 में संघ के शिविर का दौरा किया तो वे डॉ हेडगेवार के कार्यकलापों से खुश थे, और उन्होंने संघ को सफलता की शुभकामनाएं दी।
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"1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के पास स्वतंत्र होने का सुनहरा मौका था। सावरकर जेल से रिहा होकर महासभा के अध्यक्ष बन चुके थे और हिन्दुओ के सैन्यकरण की योजना बना रहे थे। उन्होंने एक सशस्त्र हिन्दू सेना बनाने का फैसला किया। इसी समय सुभाष बाबू भी ब्रिटिश के खिलाफ बाहरी आक्रमण द्वारा विद्रोह की योजना बना रहे थे। इसमें कोई आष्चर्य नहीं था कि हेडगेवार जी की सांगठनिक क्षमता और समूह को देखते हुए दोनों ने ही अपनी योजना को सफल बनाने के लिए डॉ हेडगेवार से सहयोग लेने की जरुरत महसूस की।
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बालाजी हुद्दार और डॉक्टर वी आर संजगिरी सुभाष बाबू का सन्देश लेकर डॉ हेडगेवार के पास पहुंचे। उन्होंने डॉ हेडगेवार को सुभाष बाबू का सन्देश दिया। सुभाष बाबू की योजना थी कि ब्रिटिश के खिलाफ एक देशव्यापी विद्रोह किया जाए तथा उन देशो का भी बाहरी आक्रमण में सहयोग लिया जाए जो ब्रिटिश के खिलाफ है।
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डॉ हेडगेवार ने जवाब दिया कि, 'यह बात सही है कि देश में विद्रोह होने के हालात है। पर सबसे बड़ा सवाल है कि, आपकी तैयारी कितनी है ? इस योजना पर अमल शुरू करने के लिए हमें कम से कम 50% तैयारी की जरुरत है। इस समय सुभाष बाबू की कमांड में कितने लोग है ? जब तक हम खुद तैयार नहीं होते तब तक अन्य देशो से सहायता लेने से कोई लाभ नहीं होगा'।
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तय यह पाया था कि सुभाष बाबू स्वयं हेडगेवार जी मिलेंगे। कुछ दिनों बाद डॉ संजगिरी द्वारा हेडगेवार को बॉम्बे आने को कहा गया जहां सुभाष बाबू से उनकी मुलाकात होनी थी। किन्तु गिरे हुए स्वास्थ्य के चलते हेडगेवार बॉम्बे नहीं जा सके। साल भर बाद जब सुभाष बाबू डॉ हेडगेवार से मिलने नागपुर आये तो अगले दिन डॉ हेडगेवार का अवसान हो चुका था।
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अनुशीलन समिती के उग्र नेता त्रिलोकीनाथ चक्रवर्ती भी ब्रिटिश राज के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विद्रोह की तैयारी कर रहे थे। एक बार चक्रवर्ती खुद नागपुर आये और विद्रोह की योजना के बारे में डॉ हेडगेवार से मिले। लेकिन डॉ हेडगेवार का साफ़ तौर पर मानना था कि लोगो को जगाना और संगठन को मजबूत बनाये बिना सफलता सम्भव नहीं है और इसके लिए अभी और तैयारी करने की जरुरत थी"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 76, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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"श्यामा प्रसाद मुकर्जी सीधे बंगाल से आये थे, और उनके पास बंगाल में हिन्दुओ की दुर्दशा से सम्बंधित बुरी खबरे थी। हिन्दुओ की सम्पत्ति को लूटा गया था और उनकी स्त्रियों के साथ मुस्लिम आतताई ज्यादती कर रहे थे। हिन्दू विधवाओं की दशा और भी बदतर थी। मुकर्जी की आवाज में गहरी पीड़ा और गुस्सा भरा हुआ था। उनका कहना था कि बंगाल में हिन्दुओ के एक सशस्त्र दस्ते (मार्शल ग्रुप) को संगठित करने की तत्काल जरुरत है, वरना बंगाल में हिन्दू नहीं बचेंगे। मुकर्जी यह कह रहे थे तो उनकी आवाज भर्रायी हुयी थी।
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यह सुनकर डॉ हेडगेवार गहराई से विचार करने लगे। तब उन्होंने कहा की, 'हमें नहीं भूलना चाहिए कि वहाँ एक मुस्लिम सरकार है। वे हिन्दूओ के सशस्त्र दस्ते को वहां टिकने नहीं देंगे। और ब्रिटिश भी उनका ही समर्थन कर रहे है। उनके लिए हिंदुत्व का उत्कर्ष एक बुरे सपने की तरह है। तब वे तुम्हारी योजना को कैसे सफल होने देंगे' ? यह सुनकर मुकर्जी ने कहा कि, फिर आपके हिसाब से हिन्दुओ कौनसा रास्ता बचा है ?
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तब डॉ हेडगेवार ने अपनी गहरी सोच को प्रकट करते हुए बड़े ही सधे हुए अंदाज में कहा कि, 'बात चाहे पंजाब की हो या बंगाल की, हिन्दुओ की दुर्दशा का कारण है कि वे संगठित नहीं है। जब तक हिन्दू संगठित नहीं होते तब तक उनकी दशा ऐसी ही रहेगी। हमें सभी हिन्दुओ को राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत करना होगा। हमें उन्हें एक दूसरे से प्यार करना सिखाना होगा ताकि वे एक दूसरे से संयुक्त होकर पूरे देश को उठ खड़े होने में मदद करे। सिर्फ और सिर्फ इसी तरीके से हिन्दू एक राष्ट्र के रूप में फिर से उठ खड़े हो सकेंगे। और संघ बिलकुल इसी नीति पर काम कर रहा है'
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डॉ मुकर्जी हेडगेवार जी के इन अद्भुत विचारों से बेहद प्रभावित हुए और जल्दी ही बंगाल में उन्होंने शाखा लगानी शुरू कर दी"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 78, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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"सतारा के ख्यात न्यायविद दादा साहेब करिंदर की मृत्यु के बाद उनके पुत्र विट्ठलराव करिंदर ने डॉ हेडगेवार जी को 100 रूपये के साथ यह सन्देश भेजा था कि दादा साहेब की इच्छा थी कि इन रुपयों से एक शील्ड खरीदकर उस स्वयसेवक को इनाम के रूप में दी जाए जो तीरंदाजी में सबसे कुशल हो। डॉ साहेब ने जवाब भेजा कि, 'संघ में तीरंदाजी नहीं सिखायी जाती। हमने इसके प्रशिक्षण के बारे में विचार किया था लेकिन इसे लागू करना संभव नहीं हो सका। ऐसी स्थिति में आपकी राशि का इस्तेमाल अमुक मद में नहीं किया जा सकता। यह राशि यहां हमारे पास जमा रहेगी। आगे हम इसका उपयोग आपकी सलाह के अनुसार करेंगे'।
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बाद में विट्ठल राव के निर्देशानुसार इस राशि का उपयोग सांगली में संघ कार्यालय के लिए भूमि खरीदने के लिए किया गया था"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 66, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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"युवाओं को मिलिट्री ट्रेनिंग देने के उद्देश्य से डॉ मुंजे ने एक सैनिक स्कूल स्थापित करने का फैसला किया। 1936 में बॉम्बे में इस कमिटी की बैठक हुई थी और डॉ हेडगेवार ने इसकी संयोजक कमिटी में भाग लिया था। बाद में डॉ हेडगेवार इसकी कार्यकारी संस्था के सदस्य भी रहे। डॉ हेडगेवार स्वयंसेवकों और देश के अन्य हिन्दु युवाओं को अहिंसा का महत्त्व बताने का मौका कभी नहीं चूकते थे।
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1936 में नागपुर में अपनी सार्वजनिक सभा में कहा था कि, 'हमें इस बात को दिमाग में अच्छी तरह से बिठा लेना चाहिए कि अहिंसा आत्महिंसा नहीं है। तथा 'अहिंसा परमो धर्म' हिन्दू धर्म की बुनियाद है। हमें यह पाठ अन्य समुदायो के लोगो को भी समझाना है। लेकिन वे हमारी बात तब ही सुनेंगे जब हिन्दू धर्म ताकतवर होगा। दुर्भाग्य से इस समय हम कमजोर है और कमजोर की बात नहीं सुनी जाती है। इसीलिए हमें पहले अपने आप को मजबूत बनाना होगा। और हमें यह याद रखना चाहिए कि यह मजबूती सिर्फ संगठन से ही आती है। प्रत्येक हिन्दू का यह कर्तव्य है कि उसे हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए प्रयास करना चाहिए। संघ इसी महान कार्य को कर रहा है"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 66, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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"जब 1934 में महादुरात्मा गांधी ने संघ के एक शिविर का दौरा किया तो उन्होंने डॉ हेडगेवार से पूछा कि आप पहले संघ में थे, अत: ये काम तो आप कांग्रेस में रह कर भी कर सकते थे, फिर आपने कांग्रेस को क्यों छोड़ा ? डॉ हेडगेवार का कहना था कि कांग्रेस एक राजनैतिक संगठन है इसीलिए ऐसा करना वहाँ संभव नहीं था। जब गांधी को संघ की विचारधारा और सिद्धांतो की जानकारी हुयी तो वे काफी हर्षित हुए और उन्होंने संतोष व्यक्त किया"।
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(संदर्भ : Dr Hedgewar : The Epoch Maker, A biography. page : 64, Publisher : RSS, लिंक -- http://goo.gl/LA1RSC )
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पांचो घटनाएं संघ द्वारा प्रकाशित डॉ हेडगेवार की अधिकृत बायोग्राफी से ली गयी है। पांचो घटनाओं का अवलोकन करने से पता चलता है कि डॉ हेडगेवार की रुचि हिन्दुओ को संगठित और सक्रीय करने में नहीं थी बल्कि उन्हें निष्क्रिय बनाकर असंगठित बनाए रखने की थी, ताकि ब्रिटिश राज की कृपा दृष्टी बनी रहे। कैसे ?
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क्या सुभाष बाबू, त्रिलोकीनाथ, मुंजे और सावरकर हिन्दू नहीं थे ? जब ये सेनानी ब्रिटिश को भगाने के लिए संघ की मदद मांगने आये तो डॉ हेडगेवार ने इन्हे दार्शनिक उपदेश देकर भेज दिया। यदि हेडगेवार इनका सहयोग करते तो हिन्दू असंगठित कैसे हो जाते ? इससे तो हिन्दुओ की ताकत बढ़ती थी।
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लेकिन समस्या यह थी कि अव्वल तो डॉ हेडगेवार ब्रिटिश राज से किसी भी प्रकार का टकराव मोल नहीं लेना चाहते थे और दूसरे वे चाहते थे कि हिन्दू सिर्फ उनके यानि कि संघ के झंडे तले ही संगठित हो।
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उन्होंने उन हिन्दू युवाओं को एकत्रित किया जो राजनैतिक रूप से सक्रीय थे और ब्रिटिश राज के खिलाफ आंदोलन में 'अपने अपने तरीके' से शामिल हो सकते थे। संघ ने इस युवा शक्ति को इकट्ठा किया और गीत गाने और व्यायाम करने जैसे अनुपयोगी कार्यो में लगा दिया। लेकिन इतना अवश्य ध्यान रखा कि भले ही स्वयसेवको को खाकी गणवेश पहनकर परेड कराई जाए और व्यायाम कराया जाए लेकिन उन्हें अस्त्र शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। इसीलिए ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ने से हतोत्साहित करने के लिए डॉ हेडगेवार ने उन्हें राजनीति से दूरी बनाये रखने का उपदेश दिया।
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महादुरात्मा गांधी और डॉ हेडगेवार की इस 'हिन्दुओ के निशस्त्रीकरण की नीति' का परिणाम यह हुआ कि विभाजन के दौरान 20 लाख हथियार विहीन हिन्दुओ को गले कटाने पड़े। जब मुकर्जी हेडगेवार से यह कह रहे थे कि हमें बंगाल में हिन्दुओ की सश्त्रीकरण की आवश्यकता है तो डॉ हेडगेवार को इसका हल दर्शन शास्त्र में नजर आया। बच्चा भी बता देगा कि किसी हथियार विहीन व्यक्ति को कोई भी हथियार बंद व्यक्ति आसानी से लूट लेगा। कोई भी औसत बुद्धि वाला व्यक्ति इस बात को आसानी से समझ सकता था कि यदि बंगाल का यही मंजर यदि कल पूरे देश में घटित हो गया तो हिन्दुओ की हालत क्या होगी। लेकिन डॉ साहेब सामान्य व्यक्ति नहीं थे। असल में वे आला दर्जे के दार्शनिक थे। या फिर दार्शनिक बनने में उन्हें सुविधा थी।
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असल में अंग्रेजो को खतरा उन युवाओं से था जो क्रांतिकारियों की राह पर चलते हुए सशस्त्र विद्रोह करने के मंसूबे बना रहे थे। और इसीलिए वे चाहते थे कि युवा महादुरात्मा गांधी और हेडगेवार के आदर्शो का अनुसरण करे न कि महात्मा भगत सिंह और महात्मा सुभाष बाबू का। इस तरह डॉ हेडगेवार वायसराय का वही काम कर रहे थे जो महादुरात्मा गांधी कर रहे थे। सक्रीय युवाओं को इकट्ठा करो और उन्हें अराजनैतिक गतिविधियों में उलझा दो। और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए एक 'ऊँचे आदर्श' के दर्शन का इस्तेमाल करो। एक चरखे चलाकर भूखे रहने की प्रेरणा दे रहा था जबकि दूसरे के हिसाब से राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए ऊँची आवाज में गीत गाकर शंख बजाये जाने चाहिए।
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इसीलिए संघ ने क्रांतिकारियों को 'अंध राष्ट्रवादी' और भटके हुए नौजवानों की संज्ञा दी। संघ युवाओं को समझा रहा था कि भगत सिंह जी, महात्मा आजाद और उधम सिंह जी 'भटक' गए है।
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तब डॉ हेडगेवार ने स्वयंसेवकों को दिए अपने एक व्याख्यान में कहा था कि भारत को आजाद कराने के लिए हमें कम से कम 4% स्वयं सेवको की आवश्यकता है !! तब भारत की जनसँख्या 40 करोड़ थी। इस हिसाब से उन्हें अंग्रेजो से लड़ने के लिए डेढ़ करोड़ स्वयसेवक चाहिए थे। जबकि सच्चाई यह है कि तब अंग्रेजो की संख्या सिर्फ 1 लाख थी। और यदि सिर्फ 4 लाख तीरंदाजों का दस्ता भी होता तो अंग्रेजो को जान बचाकर भागना पड़ता।
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1947 में स्वयसेवको की संख्या 8 लाख थी। यदि सभी लाठी लेकर मुकाबला करते तो वे 1 लाख बन्दुक धारी अंग्रेजो से निपट नहीं पाते। लेकिन धनुष का प्रयोग करने पर 4 तीरंदाज आसानी से 1 बन्दुक धारी को टक्कर दे सकते थे। तीर कमान बनाने की तकनीक तब भारत में प्रचलित थी और इसका प्रशिक्षण भी छोटी अवधि में पूरा हो जाता है। और इसीलिए डॉ साहेब ने संघ के स्वयं सेवको को तीरंदाजी का प्रशिक्षण देने से इंकार कर दिया। असल में उनकी रुचि सिर्फ अपने समूह की संख्या बढ़ाने में थी।
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हालांकि आज भी संघ के स्वयंसेवकों की संख्या 70 लाख से अधिक नहीं है। मतलब डॉ साहेब के फार्मूले के अनुसार 2016 तक भी भारत के आजाद होने का वक्त नहीं आया है। आज भारत की जनसंख्या के हिसाब से डॉ साहेब को 4 करोड़ स्वयसेवको की आवश्यकता होती। मतलब उनका विचार भारत को 2025 में आजाद करवाने का था !!!
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युवाओं को अनुपयोगी कार्यो में खपाये रखने की संघ की नीति में आज भी जस की तस है। राष्ट्रवादी युवाओं को खींचकर उनसे पौने पांच साल तक 'भारत माता की जय', वन्दे मातरम, हिन्दू राष्ट्र, के नारे लगवाओ, उन्हें सुबह शाम बुलवाकर परेड करवाओ, साल में 4 बार उन्हें चिंतन शिविरों में बुलाकर उपदेश दो, छह महीने में 3 बार उन्हें गाजे बाजे के साथ पथ संचलन निकालने को कहो, और जब चुनाव आये तो उन्हें बीजेपी के खाते में वोट गिरवाने के काम पर लगा दो। इसमें एक विचलन यह आता है कि जब भारत में कहीं आंधी पानी आदि प्राकृतिक आपदाएं आती है तो स्वयसेवक उनमे अपनी सेवाएं देते है।
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यही सब संघ करता आया है, और आगे भी करता रहे। जब तक यह संघ का सहायक एजेंडा है कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन बात तब बिगड़ जाती है जब एक तरफ तो संघ इन गतिविधियों को ही अपना मुख्य एजेंडा बना लेता है और अपने स्वयसेवको को उन सभी कानूनों का विरोध करने के लिए भी कहता है जिससे देश की समस्याओं का समाधान किया जा सके। तो इस प्रकार संघ के स्वयसेवक पिछले 90 साल से इसी एजेंडे पर काम कर रहे है। वे 'हिन्दुओ को संगठित करने और जगाने' के लिए नारे लगाते है, रेलिया करते है और बीजेपी के लिए वोट इकट्ठे करते है।
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उल्लेखनीय है कि अमेरिका में आपदा प्रबंधन भारत से हजारो गुना बेहतर स्थिति में है। और वहां संघ जैसा कोई समूह नहीं है। फिर वहाँ आपदा प्रबंधन कैसे होता है। क्योंकि वहाँ पर अच्छी क़ानून प्रक्रियाओं ने प्रशासन में सुधार लाकर उन्हें आपदा प्रबंधन में सक्षम बना दिया है। संघ पिछले 90 साल से आपदा प्रबंधन में सेवाएं दे रहा है - जो कि अच्छी बात है - लेकिन संघ उन सभी कानून प्रक्रियाओं का विरोध करता है जिससे भारत के प्रशासन में सुधार आये और हमारी आपदा प्रबंधन की क्षमता बढे।
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भारत में प्राकृतिक आपदा से ज्यादा मौते गरीबी और भुखमरी से होती है, और हमारी व्यवस्था भ्रष्टाचार में कंठ तक डूबी हुयी है । लेकिन संघ ने आज तक गरीबी और भ्र्ष्टाचार मिटाने के लिए कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट नहीं दिया। और साथ ही अपने सभी स्वयसेवको को यह भी निर्देश दिए कि गरीबी और भ्र्ष्टाचार के निवारण के लिए आवश्यक एमआरसीएम और राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओं को विरोध करो। क्या भुखमरी से मरने वालो में हिन्दू शामिल नहीं है ?
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संघ हिन्दूओ संगठित करने और हिन्दू धर्म के उत्कर्ष की बात करता है लेकिन हिन्दु धर्म के कमजोर प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए तमाम कानूनों का विरोध करता है। संघ में आज 70 लाख स्वयंसेवक है। क्या संघ में 7 करोड़ स्वयसेवक होने से हिन्दू धर्म का प्रशासन अपने आप बेहतर हो जाएगा, या गौ हत्या अपने आप रूक जायेगी ? नहीं होगा। इसके लिए हमें आवश्यक कानूनों को देश में लागू करना होगा। लेकिन व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक कानूनों की बात करने मात्र से ही संघियो के बदन पर चींटिया रेंगने लगती है।
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कुल मिलाकर एक तरफ तो संघ लाखों कार्यकर्ताओ को अनुपयोगी कार्यो में खपाये रखता है और दूसरी तरफ अपने स्वयसेवको को उन सभी कानूनों का विरोध करने के लिए भी कहता है जिससे हिन्दू धर्म को मजबूत बनाया जा सके और देश की समस्याओं का समाधान हो।
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समाधान ?
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हमारा आग्रह है कि यदि कार्यकर्ता हिन्दू धर्म को मजबूत और संगठित बनाना चाहते है तो उन्हें उन कानूनों की मांग करनी चाहिए जिनसे हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाया जा सके और देश में व्याप्त अन्य समस्याओं जैसे गरीबी, भ्र्ष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि का निवारण किया जा सके। इसके लिए हमारे द्वारा प्रस्तावित राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, एमआरसीएम, वेल्थ टैक्स, टीसीपी, राष्ट्रिय हिन्दू देवालय ट्रस्ट आदि कानूनों के प्रस्तावित ड्राफ्ट निचे दिए गए लिंक पर देखे जा सकते है।
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यदि आप बेहतर देश चाहते है तो बेहतर क़ानून प्रक्रियाओं का समर्थन करे और अपने क्षेत्र के सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे कि इन कानूनों क गैजेट में प्रकाशित किया जाए। और यदि आप संघ के स्वयसेवक है तो उनसे समस्याओं के समाधान के लिए कानूनी ड्राफ्ट मांगे। यदि वे क़ानून ड्राफ्ट देने से इंकार करते है तो देश हित में बेहतर होगा कि आप अपना समय और ऊर्जा संघ के साथ लगकर जाया न करे। क्योंकि संघ का एजेंडा हिन्दु धर्म और देश को नहीं बल्कि खुद को मजबूत बनाना है।
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प्रस्तावित कानूनों के ड्राफ्ट यहां देखे जा सकते है ---https://web.facebook.com/ProposedLawsHindi/posts/563544197157112
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