April 10, 2016 No.3
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153417476326922
कैसे पानी के मीटर अनिवार्य रूप से लगाने के क़ानून के अभाव, मांस के उत्पादन/निर्यात को प्रोत्साहन और बाजरा/ज्वार आदि फसलो की तुलना में गेंहू/चावल आदि फसलों को प्रोत्साहन देने की निति ने 1970-1990 में खालिस्तान आन्दोलन को खड़ा करने की जमीन तैयार की, और आज भी इन नीतियों के जारी रहने से पंजाब और गुजरात में हालात बदतर होते जा रहे है ?
.
अमेरिका जैसे देशो के उलट, जहां बारह महीने बहने वाली सैकड़ो नदियाँ है, जिनमे उत्तरी छोर से बर्फ के निरंतर पिघलने से पानी की आवक बनी रहती है, भारत एक सूखा प्रदेश है. क्योंकि भारत में 90% पानी बारिश से आता है, और इसमे से ज्यादातर पानी बहकर फिर से समुद्र में पहुँच जाता है.
.
इस तथ्य के बावजूद कोंग्रेस, जनसंघ (अब बीजेपी), सीपीएम, आम आदमी पार्टी आदि दलों के नेता हमेशा से भारत में जल वितरण पर पानी के मीटर अनिवार्य रूप से लगाने के क़ानून का विरोध, मांस के उत्पादन/निर्यात को प्रोत्साहन तथा ज्वार/बाजरा की जगह गेहूं/चावल जैसे फसलो को प्रोत्साहित करते रहे है !!! एक किलो मांस के उत्पादन में एक किलो ज्वार/बाजरे की तुलना में 50-100 गुना ज्यादा पानी की जरुरत होती है. जबकि एक किलो गेहू के लिए बाजरे/ज्वार कि तुलना में 3 गुना और 1 किलो चावल के लिए बाजरे/ज्वार की तुलना में 8 गुना पानी की आवश्यकता होती है. और इस प्रकार मांस/गेहूं/चावल आदि कि खपत बढ़ने से पानी की बेतहाशा खपत होती है.
.
इन्ही नीतियों के चलते पानी के उपभोग/बर्बादी में बेतहाशा वृद्धि हुयी, अत: 1950 से ही भारत और पंजाब समेत विभिन्न राज्यों में जल संकट खड़ा हो गया !! हरियाणा पहले पंजाब का ही हिस्सा था. लेकिन 1956 में हरियाणा और पंजाब को दो अलग राज्यों में बाँट दिया गया, और समझौते के तहत हरियाणा को पंजाब के 40% पानी में हिस्सा मिला.
.
तो जब पंजाब में पानी की कमी आई तो पंजाब के कुछ लोगो ने सोचा कि ---‘यदि पंजाब भारत से अलग होकर खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर देता है तो हरियाणा और पंजाब के बीच तय हुआ जल विभाजन का समझौता रद्द हो जाएगा, और अलग देश हो जाने के बाद पंजाब पर जल विवादों के निर्धारण के लिए अन्तराष्ट्रीय जल निति लागू होगी. तथा अन्तराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार किसी देश का उन जल संसाधनों और और नदियों पर पूर्ण अधिकार होगा जो नदियाँ अमुक देश में बहती है. इस तरह पंजाब को अपनी जमीन पर बहने वाली नदियों में से हरियाणा को 40% पानी नही देना पड़ेगा. और अमेरिका/ब्रिटेन ने तब के अकाली नेताओं के एक वर्ग को इस आन्दोलन को भड़काने के लिए पर्याप्त रूप से मदद भेजकर उकसाया था. स्थिति को और भी बदतर बनाने के लिए देवी इंदिरा अम्मा ने इस समस्या के निराकरण के लिए ज्यूरी सिस्टम प्रक्रियाओं को लागू करने की जगह पुलिस बल के प्रयोग का फैसला लिया. पुलिस की शक्तियों में वृद्धि के कारण पुलिस विभाग में भारी भ्रष्टाचार फैला और अहिंसक कार्यकर्ताओं पर उत्पीडन के कारण कई अहिंसक कार्यकर्ता हिंसा पर उतारू हो गए. इससे इनकार नही किया जा सकता कि खालिस्तान आन्दोलन के पीछे पानी के अलावा भी कई कारण जिम्मेदार थे, लेकिन पानी मुख्य आर्थिक कारण था जिसने आन्दोलन को तेजी से आगे बढाया. पर मूल कारण पानी नही, बल्कि --- पानी के मीटरो का अभाव था !!!
.
कार्यकर्ताओं को इस बात पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए कि आज भी सोनिया-मोदी-केजरीवाल भारत में पानी के मीटर अनिवार्य रूप से लगाने के लिए आवश्यक क़ानून का विरोध कर रहे है. साथ ही वे मांस के उत्पादन/निर्यात को प्रोत्साहित करने और ज्वार/बाजरे कि तुलना में गेहूं/चावल कि फसलो को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों का भी समर्थन करते है. सिर्फ राईट टू रिकाल ग्रुप ही एक मात्र समूह है जो भारत में अनिवार्य रूप से पानी के मीटर लगाने के क़ानून का समर्थन कर रहा है. तथा हम मांस के निर्यात को प्रतिबंधित किये जाने, मांस के उत्पादन को हतोत्साहित करने (पानी के उपभोग के आधार पर मूल्य निर्धारण कि निति द्वारा न कि दंड कि निति द्वारा), गेंहू/चावल कि तुलना में बाजरा/ज्वार आदि फसलों को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक कानूनों का भी समर्थन/प्रस्ताव कर रहे है.
.
इसीलिए कार्यकर्ताओं से हमारा आग्रह है कि वे यदि भारत में जल संकट की समस्या का समाधान चाहते है तो सोनिया-मोदी-केजरीवाल और उनके अंध भगतो में अपना समय बर्बाद करने की जगह राईट टू रिकॉल ग्रुप के कार्यकर्ताओं के साथ काम करके उन कानूनों का प्रचार करें जिनको लागू करवाकर इस समस्या को हल किया जा सकता है.
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153417476326922
कैसे पानी के मीटर अनिवार्य रूप से लगाने के क़ानून के अभाव, मांस के उत्पादन/निर्यात को प्रोत्साहन और बाजरा/ज्वार आदि फसलो की तुलना में गेंहू/चावल आदि फसलों को प्रोत्साहन देने की निति ने 1970-1990 में खालिस्तान आन्दोलन को खड़ा करने की जमीन तैयार की, और आज भी इन नीतियों के जारी रहने से पंजाब और गुजरात में हालात बदतर होते जा रहे है ?
.
अमेरिका जैसे देशो के उलट, जहां बारह महीने बहने वाली सैकड़ो नदियाँ है, जिनमे उत्तरी छोर से बर्फ के निरंतर पिघलने से पानी की आवक बनी रहती है, भारत एक सूखा प्रदेश है. क्योंकि भारत में 90% पानी बारिश से आता है, और इसमे से ज्यादातर पानी बहकर फिर से समुद्र में पहुँच जाता है.
.
इस तथ्य के बावजूद कोंग्रेस, जनसंघ (अब बीजेपी), सीपीएम, आम आदमी पार्टी आदि दलों के नेता हमेशा से भारत में जल वितरण पर पानी के मीटर अनिवार्य रूप से लगाने के क़ानून का विरोध, मांस के उत्पादन/निर्यात को प्रोत्साहन तथा ज्वार/बाजरा की जगह गेहूं/चावल जैसे फसलो को प्रोत्साहित करते रहे है !!! एक किलो मांस के उत्पादन में एक किलो ज्वार/बाजरे की तुलना में 50-100 गुना ज्यादा पानी की जरुरत होती है. जबकि एक किलो गेहू के लिए बाजरे/ज्वार कि तुलना में 3 गुना और 1 किलो चावल के लिए बाजरे/ज्वार की तुलना में 8 गुना पानी की आवश्यकता होती है. और इस प्रकार मांस/गेहूं/चावल आदि कि खपत बढ़ने से पानी की बेतहाशा खपत होती है.
.
इन्ही नीतियों के चलते पानी के उपभोग/बर्बादी में बेतहाशा वृद्धि हुयी, अत: 1950 से ही भारत और पंजाब समेत विभिन्न राज्यों में जल संकट खड़ा हो गया !! हरियाणा पहले पंजाब का ही हिस्सा था. लेकिन 1956 में हरियाणा और पंजाब को दो अलग राज्यों में बाँट दिया गया, और समझौते के तहत हरियाणा को पंजाब के 40% पानी में हिस्सा मिला.
.
तो जब पंजाब में पानी की कमी आई तो पंजाब के कुछ लोगो ने सोचा कि ---‘यदि पंजाब भारत से अलग होकर खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर देता है तो हरियाणा और पंजाब के बीच तय हुआ जल विभाजन का समझौता रद्द हो जाएगा, और अलग देश हो जाने के बाद पंजाब पर जल विवादों के निर्धारण के लिए अन्तराष्ट्रीय जल निति लागू होगी. तथा अन्तराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार किसी देश का उन जल संसाधनों और और नदियों पर पूर्ण अधिकार होगा जो नदियाँ अमुक देश में बहती है. इस तरह पंजाब को अपनी जमीन पर बहने वाली नदियों में से हरियाणा को 40% पानी नही देना पड़ेगा. और अमेरिका/ब्रिटेन ने तब के अकाली नेताओं के एक वर्ग को इस आन्दोलन को भड़काने के लिए पर्याप्त रूप से मदद भेजकर उकसाया था. स्थिति को और भी बदतर बनाने के लिए देवी इंदिरा अम्मा ने इस समस्या के निराकरण के लिए ज्यूरी सिस्टम प्रक्रियाओं को लागू करने की जगह पुलिस बल के प्रयोग का फैसला लिया. पुलिस की शक्तियों में वृद्धि के कारण पुलिस विभाग में भारी भ्रष्टाचार फैला और अहिंसक कार्यकर्ताओं पर उत्पीडन के कारण कई अहिंसक कार्यकर्ता हिंसा पर उतारू हो गए. इससे इनकार नही किया जा सकता कि खालिस्तान आन्दोलन के पीछे पानी के अलावा भी कई कारण जिम्मेदार थे, लेकिन पानी मुख्य आर्थिक कारण था जिसने आन्दोलन को तेजी से आगे बढाया. पर मूल कारण पानी नही, बल्कि --- पानी के मीटरो का अभाव था !!!
.
कार्यकर्ताओं को इस बात पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए कि आज भी सोनिया-मोदी-केजरीवाल भारत में पानी के मीटर अनिवार्य रूप से लगाने के लिए आवश्यक क़ानून का विरोध कर रहे है. साथ ही वे मांस के उत्पादन/निर्यात को प्रोत्साहित करने और ज्वार/बाजरे कि तुलना में गेहूं/चावल कि फसलो को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों का भी समर्थन करते है. सिर्फ राईट टू रिकाल ग्रुप ही एक मात्र समूह है जो भारत में अनिवार्य रूप से पानी के मीटर लगाने के क़ानून का समर्थन कर रहा है. तथा हम मांस के निर्यात को प्रतिबंधित किये जाने, मांस के उत्पादन को हतोत्साहित करने (पानी के उपभोग के आधार पर मूल्य निर्धारण कि निति द्वारा न कि दंड कि निति द्वारा), गेंहू/चावल कि तुलना में बाजरा/ज्वार आदि फसलों को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक कानूनों का भी समर्थन/प्रस्ताव कर रहे है.
.
इसीलिए कार्यकर्ताओं से हमारा आग्रह है कि वे यदि भारत में जल संकट की समस्या का समाधान चाहते है तो सोनिया-मोदी-केजरीवाल और उनके अंध भगतो में अपना समय बर्बाद करने की जगह राईट टू रिकॉल ग्रुप के कार्यकर्ताओं के साथ काम करके उन कानूनों का प्रचार करें जिनको लागू करवाकर इस समस्या को हल किया जा सकता है.
No comments:
Post a Comment