Thursday, April 7, 2016

"छूटती नही है काफिर... मुहँ से लगी हुयी...." (6-Apr-2016) No.2

April 6, 2016 No.2

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"छूटती नही है काफिर... मुहँ से लगी हुयी...."
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वैधानिक चेतावनी : 'महंगी शराब' पीना स्वास्थय के लिए ज्यादा हानिकारक है ।
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कैसे सरकारे शराब/अफीम पीने वालो का शोषण कर रही है.. ?
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यह भ्रम नेताओं, कुबुद्धि जीवियो, पेड स्तंभकारो, धनिको , पेड सामाजिक समूहों , शराब माफियाओ और दवा कम्पनियों द्वारा फैलाया गया है कि गरीबी, चोरी और अन्य सामाजिक अपराधो के लिए शराब और अफीम जिम्मेदार है ।
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तथ्य
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1. सीमित मात्रा में शराब/अफीम का सेवन शरीर पर कोई स्थायी दुष्प्रभाव नही डालता है ।
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2. लम्बे समय से शराब/अफीम आदि का सेवन करने वाला व्यक्ति यदि अचानक शराब/अफीम लेना बंद कर देता है , तो मानव शरीर सिर्फ 24 से 48 घंटे सरदर्द या बदन दर्द की मामूली प्रतिक्रिया दिखाता है ।
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3. शराब के अत्यधिक सेवन का लीवर पर दुष्प्रभाव अनिवार्य लक्षण नही है । यह लक्षण उसी प्रकार से प्रकट होता है जिस प्रकार अत्यधिक सिगरेट सेवन से फेफड़ो और तम्बाकू चबाने से मुहं के केंसर के प्रकट होने की संभावना होती है ।
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4. शारीरिक एवं चिकित्सकीय दृष्टिकोण से एल्कोहल, निकोटिन, कैफीन , टेनिन आदि एक ही श्रेणी की उद्दीपक सूची में रखे जाते है ।
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5. शराब पीने के दौरान व्यक्ति में उत्तेजना और कामेच्छा हावी हो जाती है , और उसकी मत्त चित्तता आस पास के माहौल को विचलित और दूषित करती है ।
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6. अफीम के सेवन से उत्तेजना और कामेच्छा में वृद्धी नही होती और अफीमची अपेक्षाकृत शांत बना रहता है ।
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7. धार्मिक दृष्टिकोण से सुरापान को निंदनीय कहा है किन्तु पापकर्म नही बताया गया है । मनु स्मृति में कहा है कि शराब सेवन पाप नही है परन्तु इसका प्रभाव सेवन करने वाले के वर्तन पर निर्भर करता है ।
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औद्योगिक स्तर पर एल्कोहल का उत्पादन 40 रु प्रति लीटर है और बीयर में 10% एल्कोहल होता है। शराब कम्पनियो की लागत एक बीयर केन पर बमुश्किल 8 रु है , और शराब की एक लीटर बोतल की लागत 50 रु से अधिक नही आती ।
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अफीम की लागत 2 रू प्रति ग्राम है , तथा एक अफीमची को आधा ग्राम अफीम प्रति दिन काफी होती है ।
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तो सरकारे 50 रूपये की बोतल के 500 रु , और 10 रु की बीयर केन के 100 रु क्यों वसूल रही है ???
लागत पर दस गुना टेक्स क्यों..??
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यदि एल्कोहल शरीर के लिए इतना हानिकारक है तो सरकार को पूरे भारत में एल्कोहल को बेन क्यों नही कर देना चाहिए ? ताकि न व्यक्ति इसे पिये न ही इसके आदि बने ।
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क्योकिं 10 गुना टेक्स लगा कर सरकार ने यदि शराब की बिक्री को कम करने की धारणा बनायी है तो फिर हर वर्ष शराब की खपत क्यों बढ़ रही है ?
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सच्चाई यह है कि सरकार की नीति पहले व्यक्ति को शराब का आदी बनाती है , और फिर उसका आर्थिक शोषण करती है। और जब नशेडी को महंगी शराब/अफीम जुटाने के लिए पैसे नही होते तो वो अपराध करता है ।
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मिसाल के लिए एक श्रमिक X को लीजिये । जो कि सुबह से शाम तक कठोर शारीरिक श्रम करता है , और बदले में 100 से 200 रु प्रतिदिन कमाता है । और चूंकि वो शराब पीने का आदी है इसलिए 100/50 रू शराब पर खर्च करता है , तथा कभी कभी बचे पैसे इस उम्मीद में अपने पास रख लेता है कि यदि कल काम नही मिला तो शराब की पूर्ती इस राशि से की जायेगी ।
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इस प्रकार करोड़ो X अपनी आय का अधिकाँश शराब पर व्यय कर रहे है । और इस टेक्स की मार श्रमिक के परिवार पर पड़ रही है। ये शराब छोड़ने को राजी नही, और शराब को पूर्ण प्रतिबंधित करने पर सरकार राजी नही ।
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इन करोड़ो श्रमिको के घरो में झगड़ा शराब पीने के कारण नही है , झगड़ा महंगी शराब पीने से है । क्योकि अपनी आय का 50 से 75% हिस्सा शराब पर खर्च हो रहा है , और परिवार को खाने को कुछ बच नही रहा ।
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तो जिन रुपयों की रोज़ रोटिया खरीदी जानी थी उन रुपयों को सरकार हडप ले रही है 10 गुना टेक्स लगा कर । इसी X को यदि दो चार दिन काम नही मिलेगा तो बीवी को पीट कर उस से रुपया लेगा, और नही मिलने पर चोरी और लूट करेगा ।
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लेकिन यदि शराब पर टेक्स न हो तो इसे शराब पर सिर्फ 10 रूपये खर्चने पड़ेंगे और बाकी पैसा इसके परिवार तक पहुंचेगा। अमीर लोग पर इस टेक्स की मार नही है , क्योकि उनके पास चुकाने का पैसा है । सारी मार निम्न वर्ग पर ही पड़ रही है । और लाखो परिवार इस को भुगत रहे है ।
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जब X शराब नही पायेगा तो अवैध रूप से निर्मित सस्ती और जहरीली कच्ची शराब पिएगा और अपनी अंतड़िया जलाएगा । ठीक यही स्थिति अफीम को लेकर समझी जा सकती है ।
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इस सम्बन्ध में नीति बनाने के लिए जब जनमत संग्रह करवाए गए तो कई देशो में इस प्रकार के नतीजे प्राप्त हुए :
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1. दुसरे और तीसरे जनमत संग्रह में जनता ने शराब/अफीम पर भारी टेक्स और कड़े प्रतिबन्ध लगाने की मांग की ।
प्रतिबन्ध कड़े होने से शराब/अफीम की खपत में कोई कमी नही आई बल्कि निम्न वर्ग टेक्स के बोझ से कुचला गया । नशा आधारित अपराधो में वृद्धी हुयी ।
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2. तीसरे या उसके बाद के जनमत संग्रह में जनता ने टेक्स और प्रतिबन्ध हटाने की मांग की ।
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हम प्रस्ताव करते है कि इस सम्बन्ध में देश में TCP के माध्यम से जनमत संग्रह करवाया जाए ।
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जनमत संग्रह तहसील, जिला तथा राज्य स्तर पर करवाए जाए , तथा जो भी जनादेश प्राप्त हो उस को ध्यान में रखते हुए सरकार शराब/अफीम के लिए नीति बना सकती है ।
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बिना जनता की राय लिए इस प्रकार के शोषक कानूनों को थोपना लोकतंत्र के हित में नही है ।
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समाधान :
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हम प्रस्ताव करते है कि निम्नलिखित कानूनों के सम्बन्ध में TCP के माध्यम से जनमत संग्रह करवाया जाए ।
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1. शराब/अफीम पर से कर हटा लिए जाए तथा इसके निर्माण को लाइसेंस मुक्त किया जाए ।
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2. सार्वजनिक स्थलों, पब, बार आदि में शराब सेवन प्रतिबंधित हो ।
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3. शराब/अफीम का सेवन सिर्फ बंद कमरों जैसे होटल या घर पर ही करने की अनुमति हो ।
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4. जिला आबकारी अधिकारी, जिला पुलिस प्रमुख तथा पब्लिक प्रोसिक्यूटर को प्रजा अधीन किया जाए ।
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5. शराब पीकर उत्पात मचाने या सामाजिक प्रदुषण फैलाने वालो के खिलाफ कठोर क़ानून बने ।
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6. नशा आधारित इन मुकदमो की सुनवाई नागरिको की ज्यूरी प्रणाली से हो । ताकि फैसला 10-15 दिनों में आ जाए तथा फैसलों में पक्षपात न हो ।
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नशा और राजनीति :
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पंजाब की राजनीति पूरी तरह से शराब/अफीम/ड्रग माफियाओ के कब्ज़े में है और किसी भी पार्टी की रुचि इसके हल में नही है ।
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अकाली, बीजेपी और कोंग्रेस के नेता गले गले तक इस धंधे में डूबे हुए है , और जनता इनसे उम्मीद छोड़ चुकी है ।
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अब जनता केजरीवाल से उम्मीद लगाएगी लेकिन सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी इस धंधे पर कब्ज़ा कर लेगी ।
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केजरीवाल Pro MNCs है और सत्ता में आने के बाद पंजाब में हालात और बदतर होंगे । क्योंकि नशे का व्यापार धर्मांतरण की अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करता है, और निम्न वर्ग में बड़े पैमाने पर कनवर्ज़न शुरू हो सकते है ।
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इसलिए बेहतर होगा कि किसी राजनेतिक पार्टी से उम्मीद करने की जगह इस विषय पर जनता फैसला करे और नीति निर्धारित करे ।
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नशे के व्यापार में अच्छा ख़ासा मुनाफा है, तथा लाइसेंसी करण और प्रतिबंधो से मुनाफा कमाने के अवसर कई गुना बढ़ जाते है ।
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आज करोडो निम्न वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के व्यक्ति सरकारों, दवा कम्पनियों और शराब माफियाओं को अपनी पसीने की कमाई लुटाने के लिए मजबूर है । और पहले से आर्थिक बदहाली झेल रहे नशेड़ी दस गुना कीमते चुका कर और भी तंगहाल हो रहे है । इस से अवैध कारोबार को बढ़ावा मिलता है , जो कि नेताओं के सरंक्षण में फलता फूलता है ।
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बस इसी कारण से नेता और नशा माफिया इस धंधे को नियंत्रण में रखना चाहता है । ताकि उनकी करोडो की अवैध कमाई जारी रहे ।
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आखिर क्यों गुजरात में शराब बंदी होने के बावजूद धडल्ले से शराब की इतनी खपत होती है ।
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ये शोषण करने का लोकतंत्र का सर्वव्यापी सिद्धांत है , कि ऐसे क़ानून बनाओ जिन्हें जनता तोड़े, ताकि वे अपराधी की श्रेणी में आ जाए और शोषण में आसानी हो ।
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शराब और अफीम माफिया नेताओं से गठजोड़ बना कर इस मुनाफे पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहता है । तो हम चाहते है कि वे ऐसा जनता की अनुमति लेकर करे ।
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यदि सुधारवादियो को लगता है कि हम शैतान है और देश में शराब/अफीम की नदियाँ बहाना चाहते है । तो हम उनसे कहेंगे कि हमारा प्रस्ताव सिर्फ इस विषय पर जनमत संग्रह करवाने का है ।
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यदि जनता को लगता है कि टेक्स 10 गुना से बढ़ाकर बीस गुना किया जाना चाहिए तो बीस गुना करने की नीति बनायी जा सकती है ।
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यदि बहुमत चाहता है कि टेक्स हटा कर प्रतिबन्ध कमजोर किये जाए, तो वेसी नीति बनायी जा सकती है ।
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*यदि कोई नेता या नागरिक इन प्रस्तावों पर जनमत संग्रह करवाने का विरोध करता है तो ये स्वयं सिद्ध है कि वह अमुक नेता या नागरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के खिलाफ है ,और जनमत का सम्मान नही करता है ।
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प्रजा अधीन राजा @ pk

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