November 18, 2015 No.3
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153135273151922
महात्मा अरविन्द गांधी और उनके अनुयायियों द्वारा निजी स्कूलों को पीड़ित और नियंत्रित करने के लिए क़ानून थोपे जा रहे है, जो कि एक गलत फैसला है। सरकारो को सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने और निजी स्कूलों पर टैक्स (प्रति छात्र की दर से छूट देते हुए) लागू करने की दिशा में काम करना चाहिए। निजी स्कूलों को कानूनी चक्रव्यूह में फंसाने की जगह उन्हें प्राइवेट कम्पनियो की श्रेणी में शामिल कर देना बेहतर विकल्प है।
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http://www.india.com/…/arvind-kejriwal-launches-crusade-ag…/
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अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में मोटी फ़ीस चुकाने के लिए इसीलिए मजबूर है क्योंकि सरकारी स्कूल तबाह हो चुके है। अब चूंकि अभिभावकों द्वारा लगातार महंगी होती शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है, अत: महात्मा अरविन्द सुधारो का चूपा देने के लिए निजी स्कूलों पर कठोर नियंत्रण लाद रहे है। शिक्षा क्षेत्र के ज्यादातर कार्यकर्ता भी कम नहीं है, वे सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने की मांग करने की जगह निजी स्कूलों के नियमन पर ही अपना दिमाग खपाने में व्यस्त बने रहते है।
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प्राइवेट स्कूलों पर किसी प्रकार के कठोर नियंत्रण और उल जलूल कानूनो का अंतिम परिणाम यह होगा कि कमोबेश सभी स्कूल नियमों का उल्लंघन करते हुए स्कूलों का संचालन करेंगे, जिससे जिला शिक्षा अधिकारी और शिक्षा मंत्री के लिए उन्हें पीड़ित करके घूस खाने के अवसर बढ़ जाएंगे, और अंततोगत्वा फ़ीस वृद्धि का भार अभिभावकों की जेब पर पड़ेगा। सरकारी स्कूलों का स्तर नही सुधरने से अभिभावक मोटी फ़ीस चुकाने के लिए निजी स्कूलों पर, और निजी स्कूल शिक्षा अधिकारी को घूस देकर उन पर निर्भर बने रहेंगे।
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हमारा प्रस्ताव है कि सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के लिए राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के कानूनी ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाना चाहिए।
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इसके अलावा निजी स्कूलों को निजी कम्पनियों की श्रेणी में रखते हुए उन पर संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए। इस कर में से स्कूलों को उनके द्वारा पढ़ाये जा रहे छात्रों के हिसाब से प्रति छात्र छूट दी जानी चाहिए। संपत्ति कर के साथ साथ निजी स्कूलों को आय एवं सेवा कर भी चुकाने होंगे। एक अन्य प्रस्ताव में हमने जीएसटी और सेवा कर को 'पूरी तरह से ख़त्म' करने का भी सुझाव दिया है। लेकिन जब तक सेवा कर जारी रहता है तब तक सभी निजी शिक्षण संस्थानों पर निजी कम्पनियो की तरह ही सभी कर लागू किये जाने चाहिए। इस कर में से निजी स्कूलों को 12000 प्रति छात्र की दर से छूट दी जा सकती है।
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सोनिया-मोदी-केजरीवाल और उनके अंधभगत राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के क़ानून का विरोध कर रहे है। उन्हें पता है कि इस क़ानून के देश सभी सरकारी स्कूलों का ढांचा सुधर जाएगा और अभिभावकों को निजी स्कूलों में मोटी फ़ीस चुकाने से निजात मिलेगी। लेकिन उन्हें भय है कि राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून का समर्थन करने से सोनिया-मोदी और केजरीवाल को बुरा लगेगा।
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सोनिया-मोदी-केजरीवाल आदि इसलिए राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के क़ानून का विरोध कर रहे है क्योंकि इससे भारत की गणित-विज्ञान की शिक्षा का आधार मजबूत होगा, स्वदेशी तकनीक का विकास होगा, मिशनरीज द्वारा किये जा रहे धर्मांतरण में कमी आएगी तथा ऐसा होने से मिशनरीज़ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिक बुरा मान जाएंगे।
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सभी कार्यकर्ताओ से मेरा आग्रह है कि 'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत उन्हें सोनिया-मोदी और केजरीवाल की शिक्षा-नीति को कूड़ेदान के हवाले कर देना चाहिए और राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के क़ानून को गैजेट में प्रकाशित करने की मांग करनी चाहिए।
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अपने विधायक/सांसद को एसएमएस द्वारा यह आदेश भेजे ------www.facebook.com/pawan.jury/posts/810067079111530
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153135273151922
महात्मा अरविन्द गांधी और उनके अनुयायियों द्वारा निजी स्कूलों को पीड़ित और नियंत्रित करने के लिए क़ानून थोपे जा रहे है, जो कि एक गलत फैसला है। सरकारो को सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने और निजी स्कूलों पर टैक्स (प्रति छात्र की दर से छूट देते हुए) लागू करने की दिशा में काम करना चाहिए। निजी स्कूलों को कानूनी चक्रव्यूह में फंसाने की जगह उन्हें प्राइवेट कम्पनियो की श्रेणी में शामिल कर देना बेहतर विकल्प है।
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http://www.india.com/…/arvind-kejriwal-launches-crusade-ag…/
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अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में मोटी फ़ीस चुकाने के लिए इसीलिए मजबूर है क्योंकि सरकारी स्कूल तबाह हो चुके है। अब चूंकि अभिभावकों द्वारा लगातार महंगी होती शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है, अत: महात्मा अरविन्द सुधारो का चूपा देने के लिए निजी स्कूलों पर कठोर नियंत्रण लाद रहे है। शिक्षा क्षेत्र के ज्यादातर कार्यकर्ता भी कम नहीं है, वे सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने की मांग करने की जगह निजी स्कूलों के नियमन पर ही अपना दिमाग खपाने में व्यस्त बने रहते है।
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प्राइवेट स्कूलों पर किसी प्रकार के कठोर नियंत्रण और उल जलूल कानूनो का अंतिम परिणाम यह होगा कि कमोबेश सभी स्कूल नियमों का उल्लंघन करते हुए स्कूलों का संचालन करेंगे, जिससे जिला शिक्षा अधिकारी और शिक्षा मंत्री के लिए उन्हें पीड़ित करके घूस खाने के अवसर बढ़ जाएंगे, और अंततोगत्वा फ़ीस वृद्धि का भार अभिभावकों की जेब पर पड़ेगा। सरकारी स्कूलों का स्तर नही सुधरने से अभिभावक मोटी फ़ीस चुकाने के लिए निजी स्कूलों पर, और निजी स्कूल शिक्षा अधिकारी को घूस देकर उन पर निर्भर बने रहेंगे।
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हमारा प्रस्ताव है कि सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के लिए राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के कानूनी ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाना चाहिए।
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इसके अलावा निजी स्कूलों को निजी कम्पनियों की श्रेणी में रखते हुए उन पर संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए। इस कर में से स्कूलों को उनके द्वारा पढ़ाये जा रहे छात्रों के हिसाब से प्रति छात्र छूट दी जानी चाहिए। संपत्ति कर के साथ साथ निजी स्कूलों को आय एवं सेवा कर भी चुकाने होंगे। एक अन्य प्रस्ताव में हमने जीएसटी और सेवा कर को 'पूरी तरह से ख़त्म' करने का भी सुझाव दिया है। लेकिन जब तक सेवा कर जारी रहता है तब तक सभी निजी शिक्षण संस्थानों पर निजी कम्पनियो की तरह ही सभी कर लागू किये जाने चाहिए। इस कर में से निजी स्कूलों को 12000 प्रति छात्र की दर से छूट दी जा सकती है।
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सोनिया-मोदी-केजरीवाल और उनके अंधभगत राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के क़ानून का विरोध कर रहे है। उन्हें पता है कि इस क़ानून के देश सभी सरकारी स्कूलों का ढांचा सुधर जाएगा और अभिभावकों को निजी स्कूलों में मोटी फ़ीस चुकाने से निजात मिलेगी। लेकिन उन्हें भय है कि राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून का समर्थन करने से सोनिया-मोदी और केजरीवाल को बुरा लगेगा।
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सोनिया-मोदी-केजरीवाल आदि इसलिए राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के क़ानून का विरोध कर रहे है क्योंकि इससे भारत की गणित-विज्ञान की शिक्षा का आधार मजबूत होगा, स्वदेशी तकनीक का विकास होगा, मिशनरीज द्वारा किये जा रहे धर्मांतरण में कमी आएगी तथा ऐसा होने से मिशनरीज़ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिक बुरा मान जाएंगे।
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सभी कार्यकर्ताओ से मेरा आग्रह है कि 'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत उन्हें सोनिया-मोदी और केजरीवाल की शिक्षा-नीति को कूड़ेदान के हवाले कर देना चाहिए और राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के क़ानून को गैजेट में प्रकाशित करने की मांग करनी चाहिए।
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अपने विधायक/सांसद को एसएमएस द्वारा यह आदेश भेजे ------www.facebook.com/pawan.jury/posts/810067079111530
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