December 20, 2015 No.2
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153186062381922
एक बार की बात है जब अरुण जेटली ने 1999 में भारत सरकार का उपक्रम 'मॉडर्न फ़ूड' विदेशी कंपनी हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड को सिर्फ 150 करोड़ रूपये में बेच दिया था। उस समय भी मॉडर्न फ़ूड के पास सिर्फ दिल्ली में जो जमीन थी, उसकी कीमत 1000 करोड़ के आसपास थी !!!
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इसी तरह से अरुण शौरी ने वीएसएनएल टाटा को 9000 करोड़ में बेच दी थी। हालांकी उस समय वीएसएनएल के पास लगभग 40,000 करोड़ की जमीन थी और 2000 करोड़ तो नकद खाते में ही था !!!
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दोनों बुद्धिजीवियों ने कहा कि उन्होंने जमीन के दाम दस्तावेजो के आधार पर आकलित किये थे !! मतलब उन जमीनो में से ज्यादातर का अधिग्रहण 1960 में किया गया था, अत: उन्होंने 1960 में दर्ज कीमत को ही प्रभावी कीमत मान लिया था !!!
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सोनिया गांधी भी नेशनल हेराल्ड की सम्पत्तियों का मूल्य इसी तरीके से लगाती है, जिस तरीके से बीजेपी के ये बुद्धिजीवी लगाते है। सरकार से यह जमीन 1950 में ली गयी थी। शौरी और जेटली के फार्मूले के अनुसार भाजपाइयों इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हेराल्ड की सम्पत्तियों की कीमत कुछ लाख में ही होगी। हालांकि आज की तारीख में उनका बाजार मूल्य 2000 करोड़ है।
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कहानी का सबक यह यह है कि घोटालो की गुंजाइश बनाये रखने के लिए बीजेपी-कांग्रेस जमीनो को अंडरवैल्यू करने के एक ही नुस्खे का इस्तेमाल करते है। और केजरीवाल महोदय भी इसी नुस्खे के समर्थक है।
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समाधान
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१. देश की सभी जमीनो के स्वामित्व के अभिलेख और उनकी प्रचलित दरें इंटरनेट पर रख कर सार्वजनिक की जाए।
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२. सभी सरकारी उपक्रमों से उनके द्वारा इस्तेमाल की जा रही भूमि का किराया वसूल कर नागरिको के खाते में भेजा जाए और खाली पड़ी जमीन को किराए पर उठाया जाए।
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लेकिन सोनिया-मोदी-केजरीवाल-भागवत और सुब्रह्मनियम स्वामी भू-स्वामित्व के रिकॉर्ड को नेट पर रखने का विरोध कर रहे है। मोदी साहेब ने तो इस प्रस्ताव को गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए 13 बार खारिज कर दिया था। प्रधानमन्त्री बनने के बाद भी वह अपने रुख पर कायम है और देश के नागरिको को यह जानकारी हासिल करने से रोक रहे है कि देश में कितने हेराल्ड और दबे पड़े है। केजरीवाल ने भी साफ़ कह दिया है कि वे अगले चार साल तक दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहने के बावजूद दिल्ली के भू-स्वामियों के आंकड़े नेट पर नही रखने वाले है। मैडम सोनिया तो खुद एक नामचीन भू माफिया है, अत: उनसे ऐसी अपेक्षा रखना भी बेवकूफी है। हालांकि बीजेपी-कांग्रेस और आम आदम्मी पार्टी के 90% नेता भी किसी भी तरह से भू-माफिया से कम नहीं है, अत: वे भी इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे है।
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चूंकि सोनिया-मोदी-केजरीवाल इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे है, अत: अब उनके अंधभक्तो के पास भी स्वत: ही इस प्रस्ताव का विरोध करने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है !!!
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फिर कैसे हम देश की जमीनो के मालिको और इनकी वास्तविक कीमतों के आंकड़े सार्वजनिक करवा सकते है ?
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नागरिको को अपने विधायक को एसएमएस भेज कर उन्हें आदेश करना चाहिए कि राईट टू रिकॉल रेवेन्यू मिनिस्टर के कानूनी ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाए। प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट यहां देखे -- https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/853974814720756
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एसएमएस का नमूना ---
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माननीय विधायक, मैं आपको आदेश करता हूँ कि दिए गए ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाए ---https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/853974814720756
मतदाता संख्या : #####
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153186062381922
एक बार की बात है जब अरुण जेटली ने 1999 में भारत सरकार का उपक्रम 'मॉडर्न फ़ूड' विदेशी कंपनी हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड को सिर्फ 150 करोड़ रूपये में बेच दिया था। उस समय भी मॉडर्न फ़ूड के पास सिर्फ दिल्ली में जो जमीन थी, उसकी कीमत 1000 करोड़ के आसपास थी !!!
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इसी तरह से अरुण शौरी ने वीएसएनएल टाटा को 9000 करोड़ में बेच दी थी। हालांकी उस समय वीएसएनएल के पास लगभग 40,000 करोड़ की जमीन थी और 2000 करोड़ तो नकद खाते में ही था !!!
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दोनों बुद्धिजीवियों ने कहा कि उन्होंने जमीन के दाम दस्तावेजो के आधार पर आकलित किये थे !! मतलब उन जमीनो में से ज्यादातर का अधिग्रहण 1960 में किया गया था, अत: उन्होंने 1960 में दर्ज कीमत को ही प्रभावी कीमत मान लिया था !!!
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सोनिया गांधी भी नेशनल हेराल्ड की सम्पत्तियों का मूल्य इसी तरीके से लगाती है, जिस तरीके से बीजेपी के ये बुद्धिजीवी लगाते है। सरकार से यह जमीन 1950 में ली गयी थी। शौरी और जेटली के फार्मूले के अनुसार भाजपाइयों इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हेराल्ड की सम्पत्तियों की कीमत कुछ लाख में ही होगी। हालांकि आज की तारीख में उनका बाजार मूल्य 2000 करोड़ है।
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कहानी का सबक यह यह है कि घोटालो की गुंजाइश बनाये रखने के लिए बीजेपी-कांग्रेस जमीनो को अंडरवैल्यू करने के एक ही नुस्खे का इस्तेमाल करते है। और केजरीवाल महोदय भी इसी नुस्खे के समर्थक है।
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समाधान
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१. देश की सभी जमीनो के स्वामित्व के अभिलेख और उनकी प्रचलित दरें इंटरनेट पर रख कर सार्वजनिक की जाए।
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२. सभी सरकारी उपक्रमों से उनके द्वारा इस्तेमाल की जा रही भूमि का किराया वसूल कर नागरिको के खाते में भेजा जाए और खाली पड़ी जमीन को किराए पर उठाया जाए।
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लेकिन सोनिया-मोदी-केजरीवाल-भागवत और सुब्रह्मनियम स्वामी भू-स्वामित्व के रिकॉर्ड को नेट पर रखने का विरोध कर रहे है। मोदी साहेब ने तो इस प्रस्ताव को गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए 13 बार खारिज कर दिया था। प्रधानमन्त्री बनने के बाद भी वह अपने रुख पर कायम है और देश के नागरिको को यह जानकारी हासिल करने से रोक रहे है कि देश में कितने हेराल्ड और दबे पड़े है। केजरीवाल ने भी साफ़ कह दिया है कि वे अगले चार साल तक दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहने के बावजूद दिल्ली के भू-स्वामियों के आंकड़े नेट पर नही रखने वाले है। मैडम सोनिया तो खुद एक नामचीन भू माफिया है, अत: उनसे ऐसी अपेक्षा रखना भी बेवकूफी है। हालांकि बीजेपी-कांग्रेस और आम आदम्मी पार्टी के 90% नेता भी किसी भी तरह से भू-माफिया से कम नहीं है, अत: वे भी इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे है।
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चूंकि सोनिया-मोदी-केजरीवाल इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे है, अत: अब उनके अंधभक्तो के पास भी स्वत: ही इस प्रस्ताव का विरोध करने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है !!!
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फिर कैसे हम देश की जमीनो के मालिको और इनकी वास्तविक कीमतों के आंकड़े सार्वजनिक करवा सकते है ?
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नागरिको को अपने विधायक को एसएमएस भेज कर उन्हें आदेश करना चाहिए कि राईट टू रिकॉल रेवेन्यू मिनिस्टर के कानूनी ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाए। प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट यहां देखे -- https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/853974814720756
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एसएमएस का नमूना ---
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माननीय विधायक, मैं आपको आदेश करता हूँ कि दिए गए ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाए ---https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/853974814720756
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