Saturday, January 16, 2016

सोनिया-मोदी और केजरीवाल की एफडीआई नीति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम ------ इससे भारतवासियों में कौशल विकास के अवसर सिकुड़ गए है। (16-Jan-2016) No.2

January 16, 2016 No.2

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सोनिया-मोदी और केजरीवाल की एफडीआई नीति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम ------ इससे भारतवासियों में कौशल विकास के अवसर सिकुड़ गए है। 

एक कक्षा के 100 छात्रों को कुछ प्रायोगिक प्रश्न हल करने के लिए दिए गए। कुछ 'होशियार', 'नवाचारी' और 'व्यवहारिक' छात्रों ने एक परामर्शदात्री संस्था को पैसा चुकाया और प्रश्नो के जवाब हासिल कर लिए। जबकि कुछ 'हठी', 'अनुदार' और 'खड़ूस' छात्रों ने अपने बूते पर सभी प्रश्नो के जवाब खोजने का फैसला किया। 'होशियार' छात्रों ने 100 में से 100 अंक पाये जबकि ज्यादातर 'खड़ूस' छात्र फ़ैल हो गए। 

सोनिया+मोदी+केजरीवाल = सोमोके की नीति एफडीआई के मामले में समान है, अत: ये तीनो ही 'होशियार', 'नवाचारी' और 'व्यवहारिक' छात्रों की तरह व्यवहार करते है। इनके पास सभी समस्याओं के बेहतरीन समाधान है ? तेज ट्रेन चाहिए ? सोमोके जापानियों को बुलाएंगे !! सस्ते फोन चाहिए ? सोमोके चीनियो को बुला लेंगे !! हथियार चाहिए ? सोमोके अमेरिकी, ब्रिटिश और फ्रेंच कंपनियों को आने के लिए कहेंगे !! सस्ते साबुन के लिए वे युनिलीवर को भारत में आकर हिन्दुस्तान लिवर के नाम से साबुन बनाने को कहेंगे !! अच्छी सिगरेट चाहिए ? सोमोके ब्रिटेन की इम्पीरियल टोबाको कम्पनी को भारत में भारत टोबाको कंपनी खोलने के लिए बुला लेंगे !! ऑनलाइन शॉपिंग करनी है ? तो वे अमेजन को बुला देंगे !! और यदि आपको सोशल मिडिया नेटवर्क चाहिए, तो सोमोके जुकेरबर्ग को भारत में आकर फ्री बेसिक्स योजना के तहत मुफ्त कनेक्शन बांटने आमंत्रित करेंगे !!!

और प्रत्येक मोदी-अंधभगत, प्रत्येक कांग्रेस कार्यकर्ता, संघ का प्रत्येक अंधसेवक, प्रत्येक आम पार्टी का कार्यकर्ता और प्रत्येक भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का कार्यकर्ता सोमोके के इस एफडीआई मन्त्र का समर्थन कर रहा है। 

लेकिन हम राईट टू रिकॉल ग्रुप में कार्यकर्ता 'खड़ूस' छात्रों की तरह है, और हमारे प्रस्ताव भी अनुदार और परम्परावादी है। लेकिन हम हठधर्मियों का मानना यह है कि हमें विदेशी कम्पनियो पर आश्रित होने की जगह खुद अपने कारखाने लगाने चाहिए ताकी भारत 'मेड इन इण्डिया मेड बाई इंडियन' परियोजना के तहत तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाए। 

उदाहरण के लिए पिछले 10 सालो में हम लगभग 100 करोड़ मोबाईल फ़ोन आयात कर चुके है। इससे हमने क्या खोया ? हमने सिर्फ विदेशी मुद्रा ही नहीं गवाईं , बल्कि हम ने सबसे बड़ा अवसर 100 करोड़ मोबाइल फोन को बनाने का गवां दिया। यदि हम इनका उत्पादन देश में करते तो, कल्पना की जा सकती है कि हमारे देश में इंजीनियरिंग का कितना विकास होता। 

अब सोमोके चीनियो को भारत में आमंत्रित करेंगे ताकि वे भारत में फैक्ट्रियां लगा कर 100 करोड़ मोबाईल फोन का निर्माण और कर सके। क्योंकि अगले 3-4 साल में वर्तमान फोन आउटडेटेड होकर कबाड़ की हवाले हो जाएंगे। तो हम क्या खोने वाले है ? हम सिर्फ 100 करोड़ मोबाइल बेच कर कमाए जाने वाले मुनाफे के बदले सिर्फ डॉलर ही नहीं गवाने वाले है , बल्कि हम वो क्षमता गवां देंगे जो 100 करोड़ मोबाईल फोन बनाने के लिए आवश्यक फैक्ट्रियों को स्थापित करने और फोन निर्माण से अर्जित की जाने वाली है। 

इसी तरह से सोमोके भारत में अहमदाबाद-मुंबई, हैदराबाद-चैन्नई आदि रूट्स पर ट्रेन चलाने के लिए जापानियों को बुला रहे है। इससे हम क्या खोएंगे ? हम द्रुत गति की ट्रेन और उसमे इस्तेमाल में आने वाली पटरियों को बिछाने का कौशल कभी भी नहीं सीख सकेंगे, जो इनके निर्माण से सीखा जा सकता था। 

और यह सारा कौशल अंततोगत्वा हथियारों के निर्माण का कौशल पैदा करता है। 

मैं यह फिर से दोहराता हूँ --- यह सभी कौशल हमें हथियारों के निर्माण की आधारशिला प्रदान करता है। अगर हम मोबाईल, माइक्रोवेव, और ट्रेन बनाना नहीं सीखेंगे तो हम कभी भी आधुनिक हथियारों के निर्माण की कला नही सीख पाएंगे। नतीजे के रूप में हम हमेशा हथियारों के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर बने रहेंगे, और जो हथियार हम बनाएंगे उनके आंतरिक जटिल पुर्जो के लिए भी हमें आयात पर आश्रित रहना होगा। उदाहरण के लिए हमारे टेंक मेड इन रशिया है, लड़ाकू विमान और युद्धपोत मेड इन अमेरिका, मेड इन ब्रिटेन और मेड इन फ्रांस है, बरह्मोस मिसाइल के मुख्य पुर्जे रशिया के है, तेजस के इंजन और प्रोपेलर ब्रिटेन-फ़्रांस के है, और रडार के पुर्जे इस्राएल से आयातित है। और जब हमें युद्ध का समान करना पड़ेगा तो इन आयातित पुर्जो के दाम 10 से 100 गुना तक महंगे हो जाएंगे, अत: विदेशी मुद्रा के अभाव में हम इन्हे आयात नहीं कर सकेंगे, फलस्वरूप हमें अपने सारे प्राकृतिक संसाधनो का समर्पण करना पड़ेगा। 

इसलिए, "मेक इन इण्डिया मेड बाई इंडियन" ही इस समस्या से बचने का एक मात्र समाधान है, न कि "मेक इन इण्डिया मेड बाई फोरीनर्स"। लेकिन दुःख की बात यह है कि सोनिया-मोदी और केजरीवाल 'मेक इन इण्डिया मेड बाई इंडियन' की जगह 'मेक इन इण्डिया मेड बाई फोरीनर्स' की नीति को तरजीह देते है। 

लेकिन यह भी एक तथ्य है कि भारत के कारखाने और तकनीशियन अमेरिका, ब्रिटेन और चीन से कुशलता में मीलो पीछे है , क्योंकि ---- 

१) अमेरिका में कारखाने मालिको और श्रमिको के पास राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, जनमत संग्रह और मल्टी-इलेक्शन जैसी कानूनी प्रक्रियाएं है। 

२) व्यवहारिक रूप से ब्रिटिश नागरिको की पहुँच भी राईट टू रिकॉल क़ानून प्रक्रियाओ तक है। 

३) चीन के फैक्ट्री मालिको और श्रमिको के पास सस्ती जमीन उपलब्ध है, क्योंकि चीन में सभी जमीनो की मालिक चीन की सरकार है। इसके अलावा चीनी प्रशासन में भारत की तुलना में कहीं ज्यादा योग्य अधिकारी और जज है, क्योंकि चीन में इनकी नियुक्ति 'सिर्फ लिखित परीक्षा' के माध्यम से होती है। इससे योग्य व्यक्तियों को प्रशासन में आने का मौका मिलता है और भाई-भतीजा वाद के अवसर समाप्त हो जाते है। 

इसलिए हमारे विचार में, इन कानूनी प्रक्रियाओ को लागू करके भारत को भी अमेरिका, ब्रिटेन और चीन की तरह तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। और इसके लिए हमें एक डॉलर की भी एफडीआई नही चाहिए। सिर्फ इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करके भारत को तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इससे भारत को सबसे बड़ा फायदा यह नहीं होगा कि, हम विदेशी निवेश के बदले डॉलर चुकाने से बच जाएंगे, बल्कि सबसे बड़ा फायदा हमें यह होगा कि भारत के इंजीनियर्स आधुनिक तकनीकी उपकरण बनाने में कुशल हो जाएंगे। 

लेकिन सोनिया-मोदी और केजरीवाल अपनी अनन्त बुद्धिमता का प्रदर्शन करते हुए राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, मल्टी-इलेक्शन और जनमत प्रक्रियाओ का विरोध कर रहे है, अत: इनके करोड़ो अंधभगत भी इन कानूनो को भारत में लागू करवाने का विरोध कर रहे है। इन कानूनो के अभाव में भारत की फैक्ट्रियो की गिरी हुयी तकनिकी कुशलता लगातार और भी गिरती जा रही है, और हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर होकर उन्हें भारत में फैक्ट्रियां लगाने के लिए आमंत्रित कर रहे है। 

कुल मिलाकर सोमोके और उनके अंधभगत 'होशियार' छात्रों का दस्ता है, जो किसी समस्या समाधान खोजने की दिक़्कत से पेश नही आना चाहता। वे आराम करते है, और समस्या के निराकरण के लिए विदेशियों को पैसा देते है, ताकि विदेशी भारत में आकर उन्हें समाधान मुहैया करा दें। जबकि हम राईट टू रिकॉल ग्रुप वाले 'दुराग्रही' है, और भारत की समस्याओ को भारतीयों द्वारा ही हल करने के उपाय पर जोर देते है, ताकी भारतवासियों में अपने दम पर समस्याओ से निपटने की योग्यता विकसित हो। 

अब यह आप कार्यकर्ताओ को तय करना है कि, आप भारत में ऐसी क़ानून प्रक्रियाएं चाहते है जिनसे भारत तकनीक में आत्मनिर्भर हो , या आप सोमोके की अंधभगती करते हुए नारे लगाने, जुलुस निकालने, रैलियों में इकट्ठे होकर भीड़ बढ़ाने जैसे अनुत्पादक कार्यों से खुश है। 

यदि आप भारत को तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, टीसीपी आदि कानूनो का समर्थन करते है कृपया नीचे लिंक में दिए गए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट्स को डाउनलोड करे। तथा अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे कि इन कानूनी प्रक्रियाओ को गैजेट में प्रकाशित किया जाए। 

डाउनलोड संस्करण ---
https://www.facebook.com/groups/righttorecallparty/10152114637883103/ 

महत्त्वपूर्ण आदेशो की सूची जो मैंने अपने सांसद को भेजे है --
https://web.facebook.com/notes/pawan-kumar-jury/809761655808739

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