December 28, 2015 No.3
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153203571356922
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कौशल प्रदाय शिक्षा बनाम नैतिक शिक्षा ------ शिक्षक और विद्यालय छात्रों में सिर्फ कौशल का विकास कर सकते है ; नैतिक मूल्यों की स्थापना करना 'सिर्फ ईमानदार अदालतो' के ही बस की बात है।
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ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों के आचरण को नैतिक बनाने और अनैतिक कार्यों जैसे -- मादक पदार्थो का सेवन, विवाहपूर्व लैंगिक सम्बन्ध तथा हिंसक व्यवहार से हतोत्साहित करने के लिए स्कूलों एवं मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों की और दौड़ लगाते है। अव्वल तो इस मुगालते में सभी अभिभावक स्वंय को ही मूर्ख बना रहे है , तथा ऐसे विद्यालय, गुरुकुल और विशेषज्ञ भी इन अभिभावकों को यह कह कर लूट रहे है कि 'आप हमें पैसा दीजिये, और हम आपके बच्चों में उच्च नैतिक मूल्यों की स्थापना कर देंगे'।
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जबकि यह सामान्य समझ का विषय है कि , शिक्षक कौशल का विकास करने के लिए उन्हें सिर्फ सूचनाएं प्रदान कर सकते है , लेकिन अनैतिक आचरण करने पर दंड भोगने का भय सिर्फ तब ही घर करेगा जब अदालते त्वरित गति से निष्पक्ष फैसले सुनाये।
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उदाहरण के लिए ; मान लीजिये कि मैं एक शिक्षक हूँ तो मैं छात्र को सिर्फ कार चलाना ही सिखा सकता हूँ, किन्तु जब तक अदालतों में बैठे जज घूस खाकर भाईजान उर्फ़ सलमान खान को बाईज्जत बरी करते रहेंगे, मैं उन्हें यह कभी नही समझा पाउँगा कि, शराब पीकर तेज रफ़्तार में गाड़ी दौड़ाने से वह मुश्किल में पड़ सकता है। मेरी बात तो छोड़ दीजिये, अगर सरस्वती देवी भी धरती पर आकर 10 जनम तक भी छात्रों को शिक्षा दे तब भी छात्रों के मन में यह बात नही बैठ पाएगी कि उन्हें अंधाधुंध रफ़्तार पर गाड़ी नही दौड़ानी चाहिए। लेकिन यदि अदालत ने शराब पीकर अनियंत्रित गति से गाड़ी चलाकर 4 लोगो को कुचल दिए जाने के दोषी भाईजान को अगले 3 महीनो के भीतर हवालात में पहुंचा दिया होता तो बिना किसी प्रवचन और उपदेशो के व्यक्ति को यह बात पल भर में समझ आ जाती कि, उल जलूल ढंग से गाडी चलाने से बचना ही समझदारी है।
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एक बाल मनोविज्ञानी का मशहूर कथन है कि 'यदि आपके बच्चे आपकी बात नही सुनते है तो परवाह मत करो , लेकिन जब वो आपको कुछ "करते हुए" देखते है तो परवाह अवश्य करो'। शब्द छलावा है। उनके उच्चारण का कोई भौतिक महत्त्व नहीं। और यह बात बच्चा भी समझता है। बच्चा भी यह बात समझता है कि किसी बात पर अमल करने और किसी बात पर जानबूझकर अमल न करने के ही वास्तविक मायने होते है। इसीलिए बच्चे अपने माता-पिता ही नहीं अपने आस पास और समाज के सभी व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे व्यवहार का अवलोकन करते है। यह एक भयावह सच्चाई है कि गैर वाजिब तरीको से पैसा कमाए हुए कई अपराधी आज राजनीति, समाज और यहां तक कि अदालतों में भी सम्मान पाते है। यह भी एक तथ्य है कि, संपादक और पत्रकार जो कि पैसा लेकर सच्ची खबरों को जनता से छुपाते है, को समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति की तरह स्वीकार किया जाता है। इसलिए मेरे विचार में, नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए महज उपदेशात्मक प्रवचन देना समय, ऊर्जा और पैसे की बर्बादी के सिवा कुछ नही है। जाहिर है कि, सभी विद्यालय, गुरुकुल और सामाजिक मनोविज्ञानी जिनका दावा है कि 'हमें पैसा दो, और हम तुम्हारे बच्चों को नैतिक बना देंगे', चौर्य कर्म में लिप्त है, जो कि अभिभावकों का धन दिन दहाड़े चुरा रहे है।
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इस नरक के बावजूद यदि कोई बच्चा मजबूत नैतिक चरित्र का स्वामी है तो निश्चित ही इस उपलब्धि के श्रेय का अधिकारी वह स्वयं है, न कि वे गुरुकुल और विशेषज्ञ जो नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए जबानी जमा खर्च कर रहे है।
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समाधान ?
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नागरिको में बढ़ते उग्र व्यवहार को संयमित करने, अनावश्यक अभद्रता और अनैतिकता में कमी लाने का समाधान यह है कि अदालतों में व्याप्त बेईमानी में कमी लाई जाए। इसके अलावा हमारे पास अन्य कोई शार्ट कट नही है। कैसे भारतीय अदालतों में व्याप्त बेईमानी में कमी लायी जा सकती है ? नागरिको को प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री पर दबाव बनाना चाहिए कि वे ज्यूरी सिस्टम, राईट टू रिकॉल जज तथा जजो की नियुक्ति सिर्फ लिखित परीक्षा के माध्यम से, की क़ानून प्रक्रियाओं को गैजेट में प्रकाशित करें।
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कैसे आप प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री पर इन क़ानून प्रक्रियाओं को गैजेट में प्रकाशित करने का दबाव बना सकते है ?
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कृपया अपने सांसद को निम्नलिखित आदेश भेजें ---
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ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों के आचरण को नैतिक बनाने और अनैतिक कार्यों जैसे -- मादक पदार्थो का सेवन, विवाहपूर्व लैंगिक सम्बन्ध तथा हिंसक व्यवहार से हतोत्साहित करने के लिए स्कूलों एवं मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों की और दौड़ लगाते है। अव्वल तो इस मुगालते में सभी अभिभावक स्वंय को ही मूर्ख बना रहे है , तथा ऐसे विद्यालय, गुरुकुल और विशेषज्ञ भी इन अभिभावकों को यह कह कर लूट रहे है कि 'आप हमें पैसा दीजिये, और हम आपके बच्चों में उच्च नैतिक मूल्यों की स्थापना कर देंगे'।
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जबकि यह सामान्य समझ का विषय है कि , शिक्षक कौशल का विकास करने के लिए उन्हें सिर्फ सूचनाएं प्रदान कर सकते है , लेकिन अनैतिक आचरण करने पर दंड भोगने का भय सिर्फ तब ही घर करेगा जब अदालते त्वरित गति से निष्पक्ष फैसले सुनाये।
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उदाहरण के लिए ; मान लीजिये कि मैं एक शिक्षक हूँ तो मैं छात्र को सिर्फ कार चलाना ही सिखा सकता हूँ, किन्तु जब तक अदालतों में बैठे जज घूस खाकर भाईजान उर्फ़ सलमान खान को बाईज्जत बरी करते रहेंगे, मैं उन्हें यह कभी नही समझा पाउँगा कि, शराब पीकर तेज रफ़्तार में गाड़ी दौड़ाने से वह मुश्किल में पड़ सकता है। मेरी बात तो छोड़ दीजिये, अगर सरस्वती देवी भी धरती पर आकर 10 जनम तक भी छात्रों को शिक्षा दे तब भी छात्रों के मन में यह बात नही बैठ पाएगी कि उन्हें अंधाधुंध रफ़्तार पर गाड़ी नही दौड़ानी चाहिए। लेकिन यदि अदालत ने शराब पीकर अनियंत्रित गति से गाड़ी चलाकर 4 लोगो को कुचल दिए जाने के दोषी भाईजान को अगले 3 महीनो के भीतर हवालात में पहुंचा दिया होता तो बिना किसी प्रवचन और उपदेशो के व्यक्ति को यह बात पल भर में समझ आ जाती कि, उल जलूल ढंग से गाडी चलाने से बचना ही समझदारी है।
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एक बाल मनोविज्ञानी का मशहूर कथन है कि 'यदि आपके बच्चे आपकी बात नही सुनते है तो परवाह मत करो , लेकिन जब वो आपको कुछ "करते हुए" देखते है तो परवाह अवश्य करो'। शब्द छलावा है। उनके उच्चारण का कोई भौतिक महत्त्व नहीं। और यह बात बच्चा भी समझता है। बच्चा भी यह बात समझता है कि किसी बात पर अमल करने और किसी बात पर जानबूझकर अमल न करने के ही वास्तविक मायने होते है। इसीलिए बच्चे अपने माता-पिता ही नहीं अपने आस पास और समाज के सभी व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे व्यवहार का अवलोकन करते है। यह एक भयावह सच्चाई है कि गैर वाजिब तरीको से पैसा कमाए हुए कई अपराधी आज राजनीति, समाज और यहां तक कि अदालतों में भी सम्मान पाते है। यह भी एक तथ्य है कि, संपादक और पत्रकार जो कि पैसा लेकर सच्ची खबरों को जनता से छुपाते है, को समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति की तरह स्वीकार किया जाता है। इसलिए मेरे विचार में, नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए महज उपदेशात्मक प्रवचन देना समय, ऊर्जा और पैसे की बर्बादी के सिवा कुछ नही है। जाहिर है कि, सभी विद्यालय, गुरुकुल और सामाजिक मनोविज्ञानी जिनका दावा है कि 'हमें पैसा दो, और हम तुम्हारे बच्चों को नैतिक बना देंगे', चौर्य कर्म में लिप्त है, जो कि अभिभावकों का धन दिन दहाड़े चुरा रहे है।
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इस नरक के बावजूद यदि कोई बच्चा मजबूत नैतिक चरित्र का स्वामी है तो निश्चित ही इस उपलब्धि के श्रेय का अधिकारी वह स्वयं है, न कि वे गुरुकुल और विशेषज्ञ जो नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए जबानी जमा खर्च कर रहे है।
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समाधान ?
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नागरिको में बढ़ते उग्र व्यवहार को संयमित करने, अनावश्यक अभद्रता और अनैतिकता में कमी लाने का समाधान यह है कि अदालतों में व्याप्त बेईमानी में कमी लाई जाए। इसके अलावा हमारे पास अन्य कोई शार्ट कट नही है। कैसे भारतीय अदालतों में व्याप्त बेईमानी में कमी लायी जा सकती है ? नागरिको को प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री पर दबाव बनाना चाहिए कि वे ज्यूरी सिस्टम, राईट टू रिकॉल जज तथा जजो की नियुक्ति सिर्फ लिखित परीक्षा के माध्यम से, की क़ानून प्रक्रियाओं को गैजेट में प्रकाशित करें।
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कैसे आप प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री पर इन क़ानून प्रक्रियाओं को गैजेट में प्रकाशित करने का दबाव बना सकते है ?
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कृपया अपने सांसद को निम्नलिखित आदेश भेजें ---
ज्यूरी सिस्टम के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809746209143617
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809746209143617
राइट-टू-रिकॉल जिला प्रधान जज के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/826540930797478
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/826540930797478
पारदर्शी शिकायत प्रणाली के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186
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नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए विद्यालयों, गुरुकुलों और मनोवैज्ञानिक सलाहकारों की तुलना में ये क़ानून कहीं ज्यादा लाभकारी सिद्ध होंगे।
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बिना त्वरित और निष्पक्ष अदालतों के नैतिक मूल्यों का जुबानी काढ़ा पिलाना बिलकुल ही बकवास और व्यर्थ कवायद है, इस बात को सोनिया-मोदी-केजरीवाल और नैतिक मूल्यों के सबसे बड़े प्रचार समूह आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व अच्छी तरह से समझता है, और इसीलिए वे देश की अदालतों को सुधारने के लिए आवश्यक राईट टू रिकॉल जज, ज्यूरी सिस्टम का विरोध करते है और नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए मौखिक जमा खर्च पर जोर देते है।
www.facebook.com/pawan.jury/posts/809753852476186
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नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए विद्यालयों, गुरुकुलों और मनोवैज्ञानिक सलाहकारों की तुलना में ये क़ानून कहीं ज्यादा लाभकारी सिद्ध होंगे।
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बिना त्वरित और निष्पक्ष अदालतों के नैतिक मूल्यों का जुबानी काढ़ा पिलाना बिलकुल ही बकवास और व्यर्थ कवायद है, इस बात को सोनिया-मोदी-केजरीवाल और नैतिक मूल्यों के सबसे बड़े प्रचार समूह आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व अच्छी तरह से समझता है, और इसीलिए वे देश की अदालतों को सुधारने के लिए आवश्यक राईट टू रिकॉल जज, ज्यूरी सिस्टम का विरोध करते है और नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए मौखिक जमा खर्च पर जोर देते है।
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