March 3, 2016 No.6
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153318656636922
बॉलीवुड का नया कायदा यह है कि --- जो जितना ज्यादा हिन्दू विरोधी होगा वह उतना ही राष्ट्रवादी कहलायेगा। हिन्दुओ के विरोधी परेश ख़िलजी (इन्हे परेश रावल की नाम से भी जाना जाता है) , अक्षय कुमार और अजय देवगन आदि इस सिद्धांत में मानते है। और सोनिया-मोदी-केजरीवाल और कोंग्रस-बीजेपी-आम पार्टी के कार्यकर्ता इस सिद्धांत के अनुमोदक है।
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बॉलीवुड आजकल ऐसे नायको को रच रहा है, जो परदे पर राष्ट्रवादी और हिन्दू विरोधी किरदार निभाते है। और असल जिंदगी में और भी ज्यादा हिन्दू विरोधी है लेकिन छद्म राष्ट्रवादी है, और इसीलिए उनके राष्ट्रवाद और छद्म राष्ट्रवाद में अंतर करना काफी मुश्किल प्रतीत होता है। इस श्रेणी में उदाहरण परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार, अजय देवगन आदि का लिया जा सकता है। (बख्तियार ख़िलजी का नाम भारत और पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मूर्तियां तोड़ने और हिन्दू परम्पराओ को ख़त्म करने में सबसे ऊपर आता है। इसी बख्तियार ख़िलजी के जींस परेश रावल में है, अत: परेश रावल ने भी 'ओह माय गॉड', 'धर्म संकट में' आदि फिल्मों में मूर्ती भंजक की भूमिकाएं की और असल जिंदगी में भी मंदिरो पर लानत भेजी। इसीलिए परेश रावल का को उनके सही नाम परेश ख़िलजी के नाम से ही पुकारा जाना चाहिए) । अक्षय कुमार भी परदे पर भयंकर वाली राष्ट्रवादी भूमिकाएं करते है, लेकिन साथ ही हिन्दू विरोधी किरदार भी निभाते है। इसीलिए उन्होंने ओह माय गॉड जैसे गलीज़ फिल्म में मुख्य भूमिका स्वीकार की। और उनकी फिल्मो में बहुधा ऐसा किरदार रहता है, जो तिलक आदि लगाता है तथा इस किरदार को बहुधा मूर्ख या उचक्का जैसा दिखाया जाता है।
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और अपनी असली जिंदगी में ये सभी 'हीरो' हिन्दू विरोधी है। उदाहरण के लिए परेश ख़िलजी असल जिंदगी में भी मूर्ती पूजा का विरोध करते है और उन्होंने कई बार यह कहा कि 'हिन्दू मंदिर दुनिया में सबसे गंदे पूजा स्थल है'। अप्रत्यक्ष रूप से वे यह कह रहे है कि चर्च और मस्जिदें ज्यादा 'साफ़ सुथरी' है !!!
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ठीक यही प्रवृति दक्षिण कोरिया में देखने को मिली थी। 1970 के दशक में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने दक्षिण कोरिया की फिल्म इंडस्ट्री पर पकड़ बना ली थी, और 1980 के दशक में ऐसा दौर चलन में आया जिनमे अभिनेता परदे पर बहुधा राष्ट्रवादी भूमिकाएं निभाते थे लेकिन अधार्मिकता के निर्वहन का भी प्रदर्शन करते थे। बाद में 'हीरो' राष्ट्रवादी और बौद्ध धर्म के विरोधी होने लगे। फिर ये 'हीरो' राष्ट्रवादी और बेहद धार्मिक हो गए लेकिन बौद्ध विरोधी बने रहे, लेकिन साथ ही खलनायकों को बुद्ध पूजक के रूप में दिखाया जाने लगा। और फिल्मो का अंत इस तरह से दिखाया जाने लगा जिसमे अ-बौद्ध नायक खलनायक को बुरी तरह से पीटता है, और उसके अड्डे में बुद्ध की मूर्ती निकलती है !!! तो दर्शक तालियां बजाते है, क्योंकि नायक हमेशा राष्ट्रवादी होता है। तो दक्षिण कोरिया में यह माहौल खड़ा किया गया कि , 'आप बुद्ध के खिलाफ होकर भी राष्ट्रवादी हो सकते है'। और बाद में दक्षिण कोरिया में इस आशय की फिल्मे दिखाई जाने लगी जिनका सार यह निकलकर आता था कि 'यह बुद्ध धर्म है जिसकी वजह से दक्षिण कोरिया पिछड़ गया है, और इसीलिए असली राष्ट्रवादी निश्चय ही बुद्ध विरोधी होना चाहिए'।
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परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार और अजय देवगन आदि भारत में बिलकुल इसी सीन को दोहराते दिख रहे है। उनके अनुसार --- 'एक राष्ट्रवादी हिन्दू विरोधी और विदेशी धर्म के समर्थक हो सकता है'.... और जल्दी ही बॉलीवुड इस सिद्धांत को स्थापित करता नजर आएगा कि, 'देश के पिछड़ेपन के लिए हिंदुत्व दोषी है, और इसीलिए आपको सच्चा राष्ट्रवादी बनने के लिए हिन्दू-विरोधी अवश्य होना ही चाहिए !!!
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लेकिन परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार और अजय देवगन आदि जिस हिन्दू विरोध को बढ़ावा दे रहे है , वह नास्तिकता नही है। उन्होंने कभी भी इस आशय को प्रोत्साहित नही किया कि 'सभी धर्म गलत है'। असल में ये सभी मिशनरीज के एजेंडे पर कार्य कर रहे है।
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इस पूरे प्रकरण के लिए बॉलीवुड और मल्टीप्लेक्स में विदेशी निवेश तथा आय के लिए बॉलीवुड की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिको पर बढ़ती निर्भरता जिम्मेदार है। और सोनिया-मोदी-केजरीवाल पेड मिडिया और बॉलीवुड में विदेशी निवेश को बढ़ावा देकर हालात को और भी बदतर बना रहे है।
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भयावह स्थिति यह है कि, अब सोनिया-मोदी-केजरीवाल अब इस थीम को खुले आम प्रोत्साहित कर रहे है कि -- 'आप हिन्दू विरोधी होकर भी राष्ट्रवादी हो सकते है'। और परेश ख़िलजी खुले तौर पर यह कहते हुए घूम रहे है कि, 'आप मूर्ती भंजक होकर भी राष्ट्रवादी हो सकते है'। सोनिया-केजरीवाल घोषित रूप से हिन्दू विरोधी है और वे इस बात को छुपाते भी नही है। और मोदी साहेब ने अपने चारो और हिन्दूवादी होने की रहस्यमयी छवि रच रखी है, लेकिन वे अयोध्या में राम, मथुरा में कृष्ण और काशी में विश्वनाथ देवालय निर्माण का विरोध करते है, और साथ ही परेश ख़िलजी जैसे मूर्ती भंजको और हिन्दू विरोध को प्रोत्साहित करने वाले अक्षय कुमार, अजय देवकरण जैसे अभिनेताओं को बढ़ावा देते है। तो इस बात में तो कोई किन्तु परन्तु ही नही है कि, संघ के अंध सेवक, मोदी साहेब के अंध भगत, भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के कार्यकर्ता और बीजेपी के सभी समर्थक भी इस सिद्धांत का पूरा जोर लगाकर समर्थन करते है कि -- 'कोई भी व्यक्ति हिन्दू विरोधी होने के बावजूद राष्ट्रवादी हो सकता है' !!!
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समाधान ?
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मेरा प्रस्ताव है कि, जो भी नागरिक/कार्यकर्ता हिन्दू धर्म को मिशनरीज के आक्रमण से बचाना चाहते है उन्हें सबसे पहले काम के रूप में उन लोगो को अलविदा कह देना चाहिए जो परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार और अजय देवकरण जैसे अभिनेताओं का समर्थन करते है। मतलब यह कि, यदि आप हिन्दू धर्म को बचाना चाहते है तो सबसे पहले आपको सोनिया-मोदी-केजरीवाल-भागवत, कांग्रेस-बीजेपी-आम आदमी पार्टी- भारत स्वाभिमान ट्रस्ट और इनके कार्यकर्ताओ से किनारा कर लेना चाहिए।
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मेरे विचार में उन्हें उन कानून ड्राफ्ट्स का प्रचार करना चाहिए जिनसे पेड मिडिया, बॉलीवुड में एफडीआई की कमी लायी जा सके और मंदिरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाया जा सके। यहां यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि संघ मंदिरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के बिलकुल खिलाफ है, और वे बस इतना परिवर्तन चाहते है कि मंदिरो का नियंत्रण कांग्रेस की जगह संघ और बीजेपी के नेताओ के हाथो में रहे।
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कैसे हम एफडीआई पर अपनी निर्भरता को कम कर सकते है ?
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कौनसे कानूनो की सहायता से मंदिरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके उनके प्रशासन को ताकतवर बनाया जा सकता है ?
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यह विवरण इस लिंक पर देखा जा सकता है --https://web.facebook.com/notes/809761655808739
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153318656636922
बॉलीवुड का नया कायदा यह है कि --- जो जितना ज्यादा हिन्दू विरोधी होगा वह उतना ही राष्ट्रवादी कहलायेगा। हिन्दुओ के विरोधी परेश ख़िलजी (इन्हे परेश रावल की नाम से भी जाना जाता है) , अक्षय कुमार और अजय देवगन आदि इस सिद्धांत में मानते है। और सोनिया-मोदी-केजरीवाल और कोंग्रस-बीजेपी-आम पार्टी के कार्यकर्ता इस सिद्धांत के अनुमोदक है।
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बॉलीवुड आजकल ऐसे नायको को रच रहा है, जो परदे पर राष्ट्रवादी और हिन्दू विरोधी किरदार निभाते है। और असल जिंदगी में और भी ज्यादा हिन्दू विरोधी है लेकिन छद्म राष्ट्रवादी है, और इसीलिए उनके राष्ट्रवाद और छद्म राष्ट्रवाद में अंतर करना काफी मुश्किल प्रतीत होता है। इस श्रेणी में उदाहरण परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार, अजय देवगन आदि का लिया जा सकता है। (बख्तियार ख़िलजी का नाम भारत और पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मूर्तियां तोड़ने और हिन्दू परम्पराओ को ख़त्म करने में सबसे ऊपर आता है। इसी बख्तियार ख़िलजी के जींस परेश रावल में है, अत: परेश रावल ने भी 'ओह माय गॉड', 'धर्म संकट में' आदि फिल्मों में मूर्ती भंजक की भूमिकाएं की और असल जिंदगी में भी मंदिरो पर लानत भेजी। इसीलिए परेश रावल का को उनके सही नाम परेश ख़िलजी के नाम से ही पुकारा जाना चाहिए) । अक्षय कुमार भी परदे पर भयंकर वाली राष्ट्रवादी भूमिकाएं करते है, लेकिन साथ ही हिन्दू विरोधी किरदार भी निभाते है। इसीलिए उन्होंने ओह माय गॉड जैसे गलीज़ फिल्म में मुख्य भूमिका स्वीकार की। और उनकी फिल्मो में बहुधा ऐसा किरदार रहता है, जो तिलक आदि लगाता है तथा इस किरदार को बहुधा मूर्ख या उचक्का जैसा दिखाया जाता है।
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और अपनी असली जिंदगी में ये सभी 'हीरो' हिन्दू विरोधी है। उदाहरण के लिए परेश ख़िलजी असल जिंदगी में भी मूर्ती पूजा का विरोध करते है और उन्होंने कई बार यह कहा कि 'हिन्दू मंदिर दुनिया में सबसे गंदे पूजा स्थल है'। अप्रत्यक्ष रूप से वे यह कह रहे है कि चर्च और मस्जिदें ज्यादा 'साफ़ सुथरी' है !!!
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ठीक यही प्रवृति दक्षिण कोरिया में देखने को मिली थी। 1970 के दशक में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने दक्षिण कोरिया की फिल्म इंडस्ट्री पर पकड़ बना ली थी, और 1980 के दशक में ऐसा दौर चलन में आया जिनमे अभिनेता परदे पर बहुधा राष्ट्रवादी भूमिकाएं निभाते थे लेकिन अधार्मिकता के निर्वहन का भी प्रदर्शन करते थे। बाद में 'हीरो' राष्ट्रवादी और बौद्ध धर्म के विरोधी होने लगे। फिर ये 'हीरो' राष्ट्रवादी और बेहद धार्मिक हो गए लेकिन बौद्ध विरोधी बने रहे, लेकिन साथ ही खलनायकों को बुद्ध पूजक के रूप में दिखाया जाने लगा। और फिल्मो का अंत इस तरह से दिखाया जाने लगा जिसमे अ-बौद्ध नायक खलनायक को बुरी तरह से पीटता है, और उसके अड्डे में बुद्ध की मूर्ती निकलती है !!! तो दर्शक तालियां बजाते है, क्योंकि नायक हमेशा राष्ट्रवादी होता है। तो दक्षिण कोरिया में यह माहौल खड़ा किया गया कि , 'आप बुद्ध के खिलाफ होकर भी राष्ट्रवादी हो सकते है'। और बाद में दक्षिण कोरिया में इस आशय की फिल्मे दिखाई जाने लगी जिनका सार यह निकलकर आता था कि 'यह बुद्ध धर्म है जिसकी वजह से दक्षिण कोरिया पिछड़ गया है, और इसीलिए असली राष्ट्रवादी निश्चय ही बुद्ध विरोधी होना चाहिए'।
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परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार और अजय देवगन आदि भारत में बिलकुल इसी सीन को दोहराते दिख रहे है। उनके अनुसार --- 'एक राष्ट्रवादी हिन्दू विरोधी और विदेशी धर्म के समर्थक हो सकता है'.... और जल्दी ही बॉलीवुड इस सिद्धांत को स्थापित करता नजर आएगा कि, 'देश के पिछड़ेपन के लिए हिंदुत्व दोषी है, और इसीलिए आपको सच्चा राष्ट्रवादी बनने के लिए हिन्दू-विरोधी अवश्य होना ही चाहिए !!!
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लेकिन परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार और अजय देवगन आदि जिस हिन्दू विरोध को बढ़ावा दे रहे है , वह नास्तिकता नही है। उन्होंने कभी भी इस आशय को प्रोत्साहित नही किया कि 'सभी धर्म गलत है'। असल में ये सभी मिशनरीज के एजेंडे पर कार्य कर रहे है।
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इस पूरे प्रकरण के लिए बॉलीवुड और मल्टीप्लेक्स में विदेशी निवेश तथा आय के लिए बॉलीवुड की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिको पर बढ़ती निर्भरता जिम्मेदार है। और सोनिया-मोदी-केजरीवाल पेड मिडिया और बॉलीवुड में विदेशी निवेश को बढ़ावा देकर हालात को और भी बदतर बना रहे है।
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भयावह स्थिति यह है कि, अब सोनिया-मोदी-केजरीवाल अब इस थीम को खुले आम प्रोत्साहित कर रहे है कि -- 'आप हिन्दू विरोधी होकर भी राष्ट्रवादी हो सकते है'। और परेश ख़िलजी खुले तौर पर यह कहते हुए घूम रहे है कि, 'आप मूर्ती भंजक होकर भी राष्ट्रवादी हो सकते है'। सोनिया-केजरीवाल घोषित रूप से हिन्दू विरोधी है और वे इस बात को छुपाते भी नही है। और मोदी साहेब ने अपने चारो और हिन्दूवादी होने की रहस्यमयी छवि रच रखी है, लेकिन वे अयोध्या में राम, मथुरा में कृष्ण और काशी में विश्वनाथ देवालय निर्माण का विरोध करते है, और साथ ही परेश ख़िलजी जैसे मूर्ती भंजको और हिन्दू विरोध को प्रोत्साहित करने वाले अक्षय कुमार, अजय देवकरण जैसे अभिनेताओं को बढ़ावा देते है। तो इस बात में तो कोई किन्तु परन्तु ही नही है कि, संघ के अंध सेवक, मोदी साहेब के अंध भगत, भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के कार्यकर्ता और बीजेपी के सभी समर्थक भी इस सिद्धांत का पूरा जोर लगाकर समर्थन करते है कि -- 'कोई भी व्यक्ति हिन्दू विरोधी होने के बावजूद राष्ट्रवादी हो सकता है' !!!
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समाधान ?
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मेरा प्रस्ताव है कि, जो भी नागरिक/कार्यकर्ता हिन्दू धर्म को मिशनरीज के आक्रमण से बचाना चाहते है उन्हें सबसे पहले काम के रूप में उन लोगो को अलविदा कह देना चाहिए जो परेश ख़िलजी, अक्षय कुमार और अजय देवकरण जैसे अभिनेताओं का समर्थन करते है। मतलब यह कि, यदि आप हिन्दू धर्म को बचाना चाहते है तो सबसे पहले आपको सोनिया-मोदी-केजरीवाल-भागवत, कांग्रेस-बीजेपी-आम आदमी पार्टी- भारत स्वाभिमान ट्रस्ट और इनके कार्यकर्ताओ से किनारा कर लेना चाहिए।
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मेरे विचार में उन्हें उन कानून ड्राफ्ट्स का प्रचार करना चाहिए जिनसे पेड मिडिया, बॉलीवुड में एफडीआई की कमी लायी जा सके और मंदिरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाया जा सके। यहां यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि संघ मंदिरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के बिलकुल खिलाफ है, और वे बस इतना परिवर्तन चाहते है कि मंदिरो का नियंत्रण कांग्रेस की जगह संघ और बीजेपी के नेताओ के हाथो में रहे।
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कैसे हम एफडीआई पर अपनी निर्भरता को कम कर सकते है ?
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कौनसे कानूनो की सहायता से मंदिरो को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके उनके प्रशासन को ताकतवर बनाया जा सकता है ?
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यह विवरण इस लिंक पर देखा जा सकता है --https://web.facebook.com/notes/809761655808739
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