Saturday, March 12, 2016

राजनैतिक दृष्टी से हिन्दुओ में विभाजन, इससे होने वाला नुकसान और समाधान। (6-Mar-2016) No.1

March 6, 2016 No.1

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राजनैतिक दृष्टी से हिन्दुओ में विभाजन, इससे होने वाला नुकसान और समाधान।
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क्यों हिन्दू धर्म इस्लाम और ईसाई धर्म की तुलना में लगातार कमजोर हो रहा है ?
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आदि और उत्तर काल
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१) मंदिरो में उत्तराधिकार व्यवस्था के कारण धन संग्रहण की पृवति बढ़ी --- हिन्दू धर्म पिछले 1000 वर्षो से लगातार सिकुड़ रहा है। यह एक सच्चाई है। कारण यह है कि हिन्दू धर्म का प्रशासन कमजोर है। आदिकाल में हिन्दु धर्म में आश्रम आधारित व्यवस्था थी जिसका संचालन ऋषि मुनियो द्वारा किया जाता था। दान से प्राप्त संपत्ति का उपयोग छात्रों को शिक्षा देने, हथियारों का प्रशिक्षण देने और परोपकार के कार्यो में किया जाता था। संपत्ति के संग्रहण परम्परा नहीं थी अत: समुदाय द्वारा दिया गया दान फिर से समाज को समृद्ध करने पर खर्च होता था । किन्तु उत्तर आधुनिक काल में आश्रमों की जगह मंदिरो ने ले ली और संपत्ति संग्रहण की प्रवृति बढ़ने लगी। उल्लेखनीय है कि पूर्वकाल में ऋषि-मुनि आश्रमों में स्थायी निवास नहीं करते थे और एक आश्रम से दूसरे आश्रम में विचरण करते रहते थे, अत: आश्रम सामुदायिक संपत्ति बने रहे। धीरे धीरे आश्रमों की जगह मंदिरो ने ले ली। कालान्तर में मंदिर प्रमुख मंदिरो में स्थायी रूप से जम गए, और मंदिर का स्वामित्व उत्तराधिकार प्रथा के अनुसार स्थानांतरित होने लगा। उत्तराधिकार परंपरा के कारण संग्रहण की प्रवृति बढ़ी और मंदिर प्रमुख दान से प्राप्त संपत्ति का इस्तेमाल भूमि बैंक और स्वर्ण कोष बनाने में करने लगे जिससे परोपकार के कार्यो में कमी आयी।
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२) उत्तराधिकार और गुरु शिष्य परम्परा के कारण मंदिरो/मठो में भ्रष्टाचार पनपा --- उत्तराधिकार परम्परा के कारण समुदाय के श्रधालुओ का मंदिर प्रमुखों पर कोई नियंत्रण नही रह गया था, जिससे मंदिर प्रमुख अनियंत्रित हो गए। न तो समुदाय के श्रधालुओ के पास उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया थी न ही वे उन्हें बदल सकते थे। मंदिरो के प्रमुख आजीवन अपने पद पर बने रहते थे और समुदाय द्वारा दिए गए दान का अपने विवेक से उपयोग करते थे। इससे उनमे अपने मठो की शक्ति और धन सम्पदा बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा पनपी, और समुदाय की भूमिका सिर्फ दान देने तक ही सीमित रह गयी। निरंकुश मंदिर प्रमुखो ने मंदिरो में प्रवेश और संचालन के अपने नियम बना लिए, जिससे समुदाय के विभिन्न वर्गो में वर्ण आधारित वैमनस्य बढ़ा।
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३) मंदिर प्रमुख को बदलने की प्रक्रिया न होने से धूर्त और अयोग्य असंतो का बोलबाला बढ़ा --- चूंकि मंदिर/मठो के प्रमुख विरासत या गुरु शिष्य परम्परा से आते थे और उन्हें बदलने की कोई प्रक्रिया धर्मावलबियों के पास नही थी अत: अयोग्य होने के बावजूद प्रमुख अपने पदो पर बने रहते थे। दान से धन की अच्छी खासी राशि प्राप्त होने के अवसर होने के कारण कई ढोंगी और असंत साधू अपने अपने देव स्थानो की स्थापना करने लगे, और संत समाज में साधू-असाधू का भेद मिट गया। धर्म के को समृद्ध करने वाले संतो ने धर्म को पोषित किया किन्तु छद्म धर्मगुरुओ नियंत्रित करने और देव स्थानो के प्रबंधन के कोई नियम-विनियम न होने से पोंगापंथीयों की संख्या बढ़ती चली गयी।
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सिक्ख, ईसाई और इस्लाम की प्रशासनिक व्यवस्था
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सिक्ख धर्म सबसे मजबूती से इसीलिए टिका रहा क्योंकि उन्होंने गुरुद्वारा प्रमुखों और स्वर्ण मंदिर के ग्रंथियों को ईमानदार और धर्ममुखी बनाएँ रखने के लिए क़ानून प्रक्रियाएं लागू की। सिक्ख धर्मावलम्बियों द्वारा ही गुरुद्वारा प्रमुखों को चुना जाता था तथा भ्रष्ट आचरण करने पर साधारण सिक्ख नागरिको द्वारा मतदान करके नौकरी से निकाल दिया जाता था। इस व्यवस्था के कारण सिक्ख 'धार्मिक रूप से' एक जुट बने रहे और धर्म निरंतर मजबूत होता चला गया। आज भी सिक्ख धर्म एसजीपीसी अधिनियम 1925 द्वारा शासित है किन्तु अब यह कमजोर हो रहा है।
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ईसाई धर्म में पादरियों/बिशप आदि के कदाचार करने पर उन्हें दंड देने की शक्ति नागरिको के पास थी। इस ज्यूरी प्रणाली ने चर्च में पाखंड पनपने पर रोक लगाई। इस्लाम ने मस्जिदो के प्रबंधन के लिए सप्ताह में किसी एक दिन धर्म स्थान पर 'नागरिको के एकत्रीकरण' द्वारा अपने इमामों और मौलवियो को नियंत्रित किया। इसके अलावा इस्लाम ने मौलवियों के लिए धर्म शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए आवश्यक प्रक्रियाएं आरम्भ की, इससे पोंगापंथ में कमी आयी। इस्लाम में यह परम्परा आज भी जारी है। यही कारण है कि मस्जिदो, चर्चो और गुरुद्वारों ने प्राप्त किये गए दान का इस्तेमाल धर्म के प्रचार प्रसार में खर्च किया।
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यह प्रशासनिक व्यवस्था थी जिसकी वजह से पिछले 1000 वर्ष में ईसाई और इस्लाम ने लगातार विस्तार किया और संख्या के आधार पर सबसे कमजोर होने के बावजूद प्रशासनिक गुणवत्ता के कारण सिक्ख धर्म सबसे मजबूत ढंग से उभरा और टिका रहा। लेकिन कमजोर प्रशासन के कारण हिन्दू धर्म लगातार सिकुड़ा।
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आधुनिक काल
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असल में यह सामान्य समझ का विषय है कि, हर उस पद पर पाखण्ड और भ्रष्टाचार चला आएगा जिस पद को धारण करने वाले व्यक्ति के पास अधिकार एवं शक्तियां हो किन्तु उस पर अंकुश न हो, और हर वो संगठन निरंतर कमजोर होता चला जाएगा जिस संगठन को संचालित करने के लिए कोई प्रशासनिक व्यवस्था न हो। हिन्दू धर्म आज भी कमजोर प्रशासनिक व्यवस्था से जूझ रहा है, अत: निरंतर कमजोर हो रहा है। समाधान के लिए हमें उन कानूनो की आवश्यकता है जो हिन्दू धर्म को सिक्ख धर्म की तरह मजबूत बना सके।
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धर्म के दो आयाम है --- १) मीमांसा २) प्रशासन। यदि हम हिन्दू धर्म का उत्कर्ष चाहते है तो ग्रंथो की व्याख्या और मीमांसा पर शक्ति लगाने की जगह धर्म के आधारभूत स्तम्भो जैसे मंदिर, मठ, आश्रम आदि के प्रशासन को सुगठित करने के लिए आवश्यक कानूनो को लागू करने पर शक्ति लगानी होगी।
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क्या कारण है कि कुल जनसँख्या का सिर्फ 2% प्रतिशत होने के बावजूद सिक्खो ने ब्रिटिश शासन को 1925 में एसजीपीसी एक्ट पारित करने के लिए मजबूर कर दिया था जबकि हिन्दू आबादी का 80% होने के बावजूद कार्यकर्ता हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कानूनो को पास करवाने के लिए वांछित दबाव नही बना पा रहे है ?
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मेरे अनुमान में, इसके दो प्रमुख कारण है।
१) ज्यादातर हिंदूवादी कार्यकर्ता और आम हिन्दू नागरिक इस तथ्य से अनभिज्ञ है कि धर्म को मजबूत बनाने के लिए एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता है।
२) जिन गिने चुने कार्यकर्ताओ को यह जानकारी है, वे यह जानकारी अन्य कार्यकर्ताओ तक नही पहुंचा पा रहे है, क्योंकि उनका राजनैतिक करण हो जाने के कारण वे धर्म को मजबूत बनाने की अपेक्षा अपनी पार्टियों/नेताओं के एजेंडे को वरीयता देते है, जिससे आवश्यक कानूनो को लागू करने के लिए मांग खड़ी नही हो पाती।
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चूंकि मौजूदा सभी राजनैतिक पार्टियां और संगठन हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के कानूनो का विरोध कर रहे है अत: हिन्दुओ का यह राजनैतिक करण हिन्दू धर्म को नुकसान पहुंचा रहा है।
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मौजूदा हालात में राजनैतिक दृष्टी से हिन्दूओ के चार प्रकार चलन में है : (१) अराजनैतिक हिन्दू (२) सेकुलर हिन्दू (३) राजनैतिक हिन्दूवादी कार्यकर्ता (४) हिन्दूवादी कार्यकर्ता
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इनमे विभेद करने लिए निचे कुछ प्रश्न दिए गए है। जिन्हें पूछने से इनकी पहचान की जा सकती है।
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(१) अराजनैतिक हिन्दू : आम हिन्दू नागरिक। मंदिर जाते है, भगवान के दर्शन करते है। हिन्दू परम्पराओ का निर्वाह करते है। लेकिन इनकी कोई विशेष राजनैतिक विचारधारा नही होती। जब जिसकी आंधी होती है, या जिस पर इनका भरोसा बनता है उसे वोट कर देते है।
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सवाल - क्या आप अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाने के "क़ानूनो" का समर्थन करते है ? क्या आप गौ-हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने वाले "क़ानून" का समर्थन करते है ?
जवाब - हाँ
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सवाल - क्या आप अपने सांसद को एसएमएस भेज कर इन "कानूनो" की मांग कर सकते है ?
जवाब - बिलकुल कर सकते है।
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सवाल - लेकिन, अगर प्रधानमंत्री इन "कानूनो" का विरोध कर रहे है और आपने उन्हें वोट किया है, तो क्या आप प्रधानमंत्री के इस फैसले का समर्थन करेंगे ?
जवाब - देखिये, अगर प्रधानमंत्री हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक "कानूनो" का विरोध कर रहे है, तो हम उनका समर्थन नही बल्कि विरोध करेंगे।
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सबसे बड़ी तादाद में ये ही है। ये लोग बहुधा अपने हिन्दू होने का या खुद को हिन्दू 'साबित' करने का कोई प्रदर्शन भी नही करते। लेकिन जब भी आप इनसे धर्म विषयक कोई सहयोग मांगेंगे तो यथा संभव सहयोग करते है, और वास्तविक रूप से धर्म के प्रति सचेत रहते है। इसी श्रेणी के जो लोग हिन्दू धर्म के प्रसार वगैरह लिए यदि कोई गतिविधियाँ करते है, तो उन गतिविधियों के प्रति भी इनकी निष्ठा सच्ची होती है।
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(२) सेकुलर हिन्दू : बहुधा ये ज्यादा पढ़े लिखे होते है, या इन्हें लगता है कि ये इतना ज्यादा पढ़ गए है कि अपनी विशिष्टता बनाये रखने के लिए हर परम्परा का विरोध करना, या उसमे एक नया पहलू निकालना निहायत ही जरुरी है। ये लोग ज्यादातर भारत को लानत भेज कर अपनी विद्वता का प्रदर्शन करते है, और धर्म में मानवता, व्यवहारवाद और उपयोगिता के सिद्धांतो के घाल मेल से एक नए प्रकार के दर्शन की ईजाद कर लेते है। इनकी संख्या कम है लेकिन उपस्थिति दर्ज कराने में ये काफी आगे है। मतलब ये लोग माहौल को तेज बना देते है। ज्यादातर वामपंथ में मानते है, और वाम या वैसी ही पार्टियों को वोट करते है।
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सवाल - क्या आप अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाने के "क़ानूनो" का समर्थन करते है ?
जवाब - मंदिर बनाने से देश का क्या भला होगा ? मेरी राय में वहाँ अस्पताल बना देना चाहिए, ताकि मानव मात्र का कल्याण हो !
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यानी कि आपको पहली बार में ही समझ आ जाता है कि , बंदा तालीम और विद्वता में इतना ऊँचा निकल गया है कि आगे धर्म विषयक बात करने से कोई फायदा नही है। इनसे यदि आप इनका धर्म पूछेंगे तो ये ध्यानस्थ होकर सोचने लगते है कि मेरा धर्म मानवता बताऊँ या इंसानियत !! और जब आप इनसे पूछते है कि क्या आप हिन्दू नहीं है ? तो ये हें हें हें करने लगते है। धार्मिक प्रशासन को सुधारने की बात आते ही ये विषय को दार्शनिक उपदेश की और मोड़ कर मूल विषय को किनारे कर देते है।
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(३) राजनैतिक हिन्दूवादी कार्यकर्ता : इनमें दो प्रकार है --- (A) दक्षिणपंथी (B) उदारपंथी
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(A) दक्षिणपंथी राजनैतिक हिन्दूवादी कार्यकर्ता : ये सबसे दिलचस्प श्रेणी है। ये अपनी आधी ऊर्जा यह प्रोपोगेंडा बनाने में खर्च कर देते है कि वे हिन्दू है। दरअसल इन्हें यदि हिन्दू कहा जाए तो इन्हें महसूस होता है कि इनका अपमान किया जा रहा है। इसीलिए ये ज्यादातर खुद को कट्टर हिन्दू कहलाना पसंद करते है। इनसे वही सवाल पूछने पर आपको निम्नलिखित जवाब मिलेंगे :
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सवाल - क्या आप अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाने के क़ानूनो का समर्थन करते है ? क्या आप गौ-हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने वाले "क़ानून" का समर्थन करते है ?
जवाब - मंदिर तो बन कर रहेगा। और हिन्दू धर्म को आप क्या कमजोर समझते है जो मजबूत बनाने की बात कर रहे है ?
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सवाल - वही हम कह रहे है कि अमुक "क़ानून" बनाकर हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाया जा सकता है।
जवाब - तब ठीक है। ऐसा क़ानून जरूर बनना चाहिए जिससे हिन्दू धर्म मजबूत हो।
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सवाल - पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन क़ानूनो को लागू करने से मना कर रहे है।
जवाब - तब हमें इस क़ानून में कोई रुचि नही है। और अगर मोदी साहेब इन कानूनो का विरोध कर रहे है तो हम भी इस क़ानून का विरोध करेंगे।
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सवाल - एक बार आप खुद इन प्रस्तावित कानूनो को पढ़िए, तब फैसला लीजिये।
जवाब - फैसला हो चुका। हम बिना पढ़े ही सब समझ गए है। अब और डिटेल में जाने की जरुरत नही है हमें ।
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कुल मिलाकर 'दक्षिणपंथी राजनैतिक हिन्दूवादी कार्यकर्ता' की पहचान यह है कि यदि आप उनके सामने हिन्दू धर्म और बीजेपी/संघ में से किसी एक को चुनने को कहेंगे तो बिना आगा पीछा सोचे और बिना किसी डिटेल में जाये वे हिन्दू धर्म तजकर बीजेपी/संघ को ही चुनेंगे। और फिर कहेंगे कि आप भी हिंदूवादी एजेंडे को छोड़कर बीजेपी का समर्थन करो। यदि आप ऐसा नही करते, तो वे आपको हिन्दू विरोधी भी कह सकते है। इनका मूल उद्गम स्थल संघ है। असल में ये लोग उसे ही हिन्दू मानने को तैयार होते है, जो हिन्दू धर्म का चाहे विरोध कर दें पर बीजेपी/संघ/मोदी साहेब का कभी विरोध न करें।
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(B) उदारवादी राजनैतिक हिन्दूवादी कार्यकर्ता -- ज्यादातर इनकी श्रद्धा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियों में ज्यादा होती है। इनका कहना होता है कि राजनीति को धर्म से अलग रखा जाना चाहिये। पर असल में इनका मतलब यह होता है कि 'हिन्दू धर्म' को राजनैतिक दृष्टि से अलग रखा जाना चाहिये, और अन्य धर्मो के वोट बैंक बनाने के लिए तुष्टिकरण की नीति पर कार्य करना चाहिए ! दरअसल ये भी अपनी पार्टियों के एजेंडे और अपने नेताओ से बंधे होने के कारण हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने वाले कानूनो का विरोध करने के लिए बाध्य है।
सवाल -- क्या आप अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के क़ानून का समर्थन करते है ?
जवाब -- एक काम कीजिये। विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्से कीजिये और वहां एक मंदिर, एक मस्जिद और एक चर्च बना दीजिये !
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(४) अराजनैतिक हिन्दूवादी कार्यकर्ता -- राम-कृष्ण-विश्वनाथ देवालय निर्माण, गौ हत्या निषेध, अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ, बढ़ता धार्मिक असंतुलन, हिन्दू धर्म का कमजोर प्रशासन आदि समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक "कानूनो" का प्रचार और समर्थन करते है, ताकि हिन्दू धर्म तथा राष्ट्र को मजबूत बनाया जा सके। इनकी कोई विशिष्ट राजनैतिक विचारधारा हो सकती है, या ये किसी राजनैतिक पार्टी के सदस्य भी हो सकते है। किन्तु ये हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कानूनो का तब भी समर्थन करते है, जबकि इनकी राजनैतिक पार्टी या नेता उन कानूनो का विरोध करे। असल में ये नेता या संगठन की जगह मुद्दे को ज्यादा महत्त्व देते है।
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सवाल - आप कौनसी पार्टी से है ?
जवाब - मेरी वरीयता समस्याओं का समाधान है, न कि किसी पार्टी विशेष की विचारधारा। मैं मतदान के दिन कांग्रेस, बीजेपी या आम आदमी पार्टी का मतदाता हो सकता हूँ। लेकिन मतदान के बाद मैं एक हिन्दूवादी राष्ट्रवादी कार्यकर्ता हूँ, अत: मतदान दिवस के अलावा शेष 5 वर्ष के दौरान मैं हिन्दू धर्म तथा देश को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कानूनो की मांग करता हूँ।
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सारांश यह है कि, हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कानून इसीलिए लागू नही हो पा रहे है क्योंकि हिंदूवादी कार्यकर्ताओ को विभिन्न पार्टियों ने राजनैतिक हिन्दू बना दिया है, और ये कार्यकर्ता अपनी पार्टी तथा नेताओ के प्रति निष्ठा बनाये रखने के लिए इन कानूनो का विरोध कर रहे है। इससे इन कानूनो की जानकारी आम हिन्दू नागरिको तक नहीं पहुँच पा रही। मेरा आग्रह यह है कि हिंदूवादी कार्यकर्ताओ को किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े होने के बावजूद अपने सांसदों से उन कानूनो की मांग करनी चाहिए तथा नागरिको में इनका प्रचार करना चाहिए, जिन कानूनो की सहायता से हिन्दू धर्म के प्रशासन को मजबूत बनाया जा सके।
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नीचे उन कानूनो के प्रस्तावित ड्राफ्ट्स के लिंक दर्ज किये गए है , जिनके लागू होने से हिन्दू धर्म के प्रशासन को सिक्ख धर्म की तरह मजबूत बनाया जा सकता है। सभी नागरिको से आग्रह है कि, यदि आप इन कानूनो का समर्थन करते है तो अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे कि इन क़ानूनो को गैजेट में प्रकाशित किया जाए। जब करोड़ो नागरिक अपनी राजनैतिक विचारधारा से ऊपर उठकर इन क़ानूनो की मांग करेंगे तो लोकतंत्र का सम्मान करते हुए प्रधानमंत्री इन पर हस्ताक्षर कर देंगे। एसएमएस भेजने के साथ ही नागरिक इन क़ानून ड्राफ्ट्स को अपने फेसबुक के नोट्स सेक्शन में भी रखें ताकि ज्यादा से ज्यादा नागरिको तक यह जानकारी पहुँच सके।
राष्ट्रीय हिन्दू देवालय प्रबंधक ट्रस्ट' के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/834842886633949
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भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट' के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
https://web.facebook.com/pawan.jury/posts/834846793300225
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गोहत्या कम करने के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट :
www.facebook.com/pawan.jury/posts/822256167892621

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