March 7, 2016 No.4
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153326078786922
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राईट टू रिकॉल कानूनो को जन आंदोलन के माध्यम से लागू करवाने के लिए आवश्यक चरणों का विवरण।
राईट टू रिकॉल ग्रुप के सभी कार्यकर्ताओं ---- भारत को अमेरिका जितना शक्तिशाली बनाने के लिए हमें कौनसे कार्यो को सफलता पूर्वक करना होगा , और इन कार्यो को पूरा करने के दौरान हमें किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा ? और किस तरह से हम रिकालिस्ट्स इन विहंगम कार्यो को पूरा करने के लिए पर्याप्त नागरिक/कार्यकर्ता/इंजीनियर्स और पर्याप्त धन जुटा सकते है ?
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(इस स्तम्भ का मूल अंग्रेजी संस्करण इस लिंक पर देखा जा सकता है -- https://web.facebook.com/notes/896009957183908)
अध्याय, और किये जाने वाले कार्यो कि सूची :
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0. परिचय
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1. पहला काम --- कम से कम 543 रिकालिस्ट्स को लोकसभा, 5000 रिकालिस्ट्स को विधानसभा और लगभग 200,000 रिकालिस्ट्स को स्थानीय निकायो के चुनाव लड़ने के लिए तैयार करना।
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2. दूसरा काम --- 75 करोड़ नागरिको को टीसीपी , राईट टू रिकॉल , ज्यूरी सिस्टम आदि क़ानून ड्राफ्ट के बारे में ‘सूचित’ करना ; यह जानकारी अनिवार्य रूप से कार्यकर्ताओं द्वारा ही पहुंचाई जानी चाहिए, पेड मिडिया द्वारा नही ।
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3. तीसरा काम --- 45 करोड़ नागरिको को अपने सांसदों को sms द्वारा आदेश भेजने के लिए राजी करना ।
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4. चौथा काम --- 45 करोड़ नागरिको के संज्ञान में यह बात लेकर आना कि (a) 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को sms द्वारा आदेश भेज चुके है ; (b) तथा 45 करोड़ नागरिकों को यह भी जानकारी होना कि 45 करोड़ नागरिको द्वारा sms द्वारा आदेश भेजे जा चुके है । (c) दुसरे शब्दों में राईट टू रिकॉल कानूनों और sms भेजे जाने कि जानकारी कॉमन नॉलेज में लेकर आना !!
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5. पांचवा काम --- ( पहले से चौथे तक चरण पूरे होने के बावजूद यदि सांसद और प्रधानमंत्री राईट टू रिकॉल कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने से मना कर दे तो) -- 45 करोड़ नागरिको को तैयार करना कि वे अपने सांसदों को इस्तीफा देने के लिए आदेश भेजे।
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6. छठा काम --- 45 करोड़ नागरिको को राईट टू रिकॉल पार्टी के उम्मीदवारों को वोट देने के लिए तैयार करना।
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7. सातवाँ काम --- उस परिस्थिति का सामना करना जब राइट टू रिकॉल पार्टी के कार्यकर्ता राईट टू रिकॉल कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने से मना कर दे।
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8. आठवां काम --- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश द्वारा इन कानूनो को खारिज कर दिए जाने के हालात का सामना करना।
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9. नवां काम --- उस स्थिति से निपटना, जब प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी , रिजर्व बैंक अधिकारी, सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारी आदि राइट टू रिकॉल कानूनो का विरोध करें और इन्हे रोकने के लिए लिए गड़बड़ी फैलाये।
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10. और दसंवा अतिरिक्त काम --- अमेरिका/चीन द्वारा खुले/छिपे हुए सशस्त्र हमलो, आर्थिक और मौद्रिक प्रतिरोधों का सामना करना।
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11. ग्यारवाँ काम --- इन कार्यों को पूरा करने के लिए किस तरह हम लाखों-करोड़ो कार्यकर्ता, नागरिक, इंजीनियर्स और जरुरी कौशल, प्रशिक्षण और योग्यता जुटा सकते है ? और किस तरह हम इन कार्यो को पूरा करने के लिए धन जुटा सकते है।
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12. क्यों मेरे विचार में जहां तक हो सके इनमे से ज्यादातर कार्यो को समानांतर रूप से एक साथ किया जाना चाहिए न कि क्रमिक रूप से।
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13. क्या भारत को ताकतवर बनाने का अन्य कोई शार्ट कट है ? जिससे इस भारी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया से बचा जान सके ?
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14. सारांश
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0. परिचय
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कई कार्यकर्ता मुझसे पूछते है की --- भारत को अमेरिका जितना ताकतवर बनाने के लिए हमें कौन से कार्य करने होंगे ? इस लेख में मैंने उन सभी कार्यो और चरणो को सूचीबद्ध किया है।
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1. पहला काम --- कम से कम 543 रिकालिस्ट्स को लोकसभा, 5000 रिकालिस्ट्स को विधानसभा और लगभग 200,000 रिकालिस्ट्स को स्थानीय निकायो के चुनाव लड़ने के लिए तैयार करना।
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हम एक जन आंदोलन खड़ा करने पर काम कर रहे है , ताकि वर्तमान या नए सांसदों को राईट टू रिकॉल कानूनो को लागू करने के लिए बाध्य किया जा सके। इसीलिए मेरे विचार में हमें 543 लोकसभा और 5000 विधानसभा उम्मीदवारों की आवश्यकता होगी, जो चुनावो में भाग ले सके। तो चुनाव लड़ना क्यों जरुरी है ? आखिर क्यों रिकालिस्ट्स चुनावो में भाग लिए बिना इन कानूनो को लागू करवाने में असफल रहेंगे ?
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(a) मान लीजिये कि हम रिकालिस्ट्स देश के सभी कार्यकर्ताओ को इन कानूनो के बारे में जानकारियाँ देते है और 2 लाख कार्यकर्ताओ को रिकालिस्ट्स में बदल देते है।
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(b) मान लीजिये कि ये लाखों कार्यकर्ता 70 करोड़ नागरिको को इन कानूनो के बारे में जानकारी दे देते है।
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(c) और मान लीजिये कि उनमे से 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेज देते है कि इन कानूनो को गैजेट प्रकाशित किया जाए।
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(d) और 70 करोड़ नागरिको को भी यह जानकारी हो चुकी है कि एसएमएस द्वारा आदेश भेजे जा चुके है।
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(e) और मान लीजिये कि सांसद इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने से इंकार कर देते है।
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तो ऐसी स्थिति में क्या अहिंसा मूर्ती महात्मा ऊधम सिंह जी सांसदों से मुलाक़ात करेंगे ? नही। क्योंकि मतदाताओ ने सांसदों को इस्तीफा देने के एसएमएस नही भेजे है, और सभी सांसदों ने चुनावों से पहले ही इन कानूनो को लागू करने से इंकार कर दिया था। अत: उन पर इन कानूनो को लागू करने और इस्तीफा देने की कोई नैतिक बाध्यता नही है, और इसीलिए ऊधम सिंह जी सांसदों से मुलाक़ात नही करेंगे।
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(f) अब मान लीजिये कि 45 करोड़ मतदाता अपने सांसदों को 'इस्तीफा' देने के लिए एसएमएस द्वारा अादेश भेजते है।
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(g) और यदि राईट टू रिकाल ग्रुप के कार्यकर्ता यह साफ़ कर देते है कि वे चुनावो में 'भाग' नही लेने वाले है। मैं इसे फिर से दोहराता हूँ --- यदि रिकालिस्ट्स यह घोषणा करते है कि वे 'चुनावी प्रक्रियाओ में हिस्सा "नही" लेने वाले है'।
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तब अहिंसा मूर्ती महात्मा ऊधम सिंह जी यह निष्कर्ष निकालेंगे कि , 'सांसदों से मेरी मुलाक़ात का देश को क्या लाभ होगा ? क्योंकि यदि फिर से चुनाव हो भी जाते है, तो भी फिर से वही उम्मीदवार संसद में पहुँच जायेंगे जो कि इन कानूनो के खिलाफ है, क्योंकि इन कानूनो के समर्थक रिकालिस्ट्स ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है'। कुल मिलाकर ऊधम सिंह जी के पास सांसदों से मिलने के लिए कोई प्रेरणा नही होगी, क्योंकि नए चुनाव होने से भी इन कानूनो के लागू होने की संभावना शून्य रहेगी। अत: ऊधम सिंह जी सांसदों से न मिलने का फैलसा करेंगे।
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तो इस स्थिति में सांसद यही सोचेंगे कि ऊधम सिंह जी उनसे मिलने नही आने वाले है। वे यह भी सोचेंगे कि एक तो ऊधम सिंह जी हमसे मिलने आने वाले नही है , और दूसरे, कोई भी रिकालिस्ट्स चुनाव लड़ने को भी तैयार नही है , इसीलिए राईट टू रिकॉल कानूनो को गैजेट में प्रकाशित न करने से हमे कोई नुकसान नही होने वाला, लेकिन यदि हम इन कानूनो को लागू कर देते है तो हमारे प्रायोजक और धनिक वर्ग हमसे नाराज हो जाएगा। इसीलिए इन कानूनो का विरोध करने में ही मेरा फायदा है। और नुकसान तो कोई है ही नही।
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और इसका मतदाताओ पर भी उल्टा असर होगा। मान लीजिये कि 45 करोड़ नागरिक इन कानूनो को लागू करने के लिए एसएमएस द्वारा आदेश भेज चुके है, लेकिन सांसदों ने इन कानूनो को लागू करने से मना कर दिया है। तब मतदाता इस असमंजस का शिकार हो जाएगा कि, "क्या मुझे सांसद को इस्तीफा देने के लिए एसएमएस भेजना चाहिए कि नही ? क्योंकि कोई भी रिकालिस्ट चुनाव लड़ने को तैयार नही है, अत: मौजूदा सांसद से इस्तीफा मांगने में कोई लाभ नही है। क्योंकि कोई भी रिकालिस्ट इन मुद्दो पर चुनाव लड़ने को तैयार नही है अत: यदि सभी सांसद इस्तीफा दे भी देते है, और फिर से चुनाव होते है तो भी फिर से वे ही उम्मीदवार संसद में पहुंचेंगे जो राईट टू रिकॉल कानूनो का विरोध कर रहे है। अत: बेहतर यही है कि मौजूदा सांसदों को इस्तीफा देने के लिए आदेश न भेजा जाए"।
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और इस कारण शायद कुछ मतदाता (कुछ, न कि सभी) सांसद को इन कानूनो को लागू करवाने का आदेश न भेजने का भी फैसला ले सकते है !!! कई मतदाता यह सोच सकते है कि, "मौजूदा सांसदों ने चुनावो से पहले ही यह बात स्पष्ट कर दी थी कि, वे राईट टू रिकॉल कानूनो को लागू करने वाले नही है। और सांसद जानते है कि मैं उन्हें इस्तीफा देने के लिए नही कह सकता, क्योंकि कोई भी रिकालिस्ट राईट टू रिकॉल कानूनो के समर्थन में चुनाव लड़ने को तैयार नही है। अत: यदि मैं सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेज भी देता हूँ तो सांसद इन कानूनो को लागू करने से साफ़ इंकार कर देंगे। अत: ये मामला अब यहीं ख़त्म हो चुका है"।
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तब हम रिकालिस्ट्स के सामने प्रश्न यह है कि --- क्या हमारे पास ऐसे रिकालिस्ट्स उपलब्ध है जो कि सांसद बन कर राइट टू रिकॉल कानूनो को लागू करने की मंशा रखते हो ?
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यदि हमारे पास ऐसे उम्मीदवार नहीं है तो राइट टू रिकॉल क़ानून ड्राफ्ट्स बिना शरीर की आत्मा की तरह होंगे , तथा ऐसे अमूर्त विचार का राजनीति और वास्तविक जीवन में कोई महत्त्व नहीं होगा।
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कोई क़ानून ड्राफ्ट सिर्फ तभी अच्छा क़ानून ड्राफ्ट कहा जा सकता है जबकि ऐसा ड्राफ्ट 45 करोड़ नागरिको और 2 लाख कार्यकर्ताओ का समर्थन जुटा सके , और साथ ही यह प्रस्तावित ड्राफ्ट इतना प्रभावी हो कि 543 कार्यकर्ता इन कानूनो को लागू करवाने का उद्देश्य लेकर चुनाव लड़े। ताकि संसद में जाकर इन्हे लागू किया जा सके। अन्यथा ऐसे कानून ड्राफ्ट्स का प्रचार करना सिर्फ समय की बर्बादी है।
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इसलिए हमें पूरे देश में चुनाव लड़ने के लिए 543 लोकसभा उम्मीदवारों और 5000 विधानसभा प्रत्याशियों की आवश्यकता होगी। और बाद में हमें लगभग 2 लाख ऐसे कार्यकर्ताओ की भी जरुरत होगी जो कि स्थानीय निकाय के चुनावो में भाग ले सके।
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इसीलिए चुनावो में भाग लेना बेहद जरुरी है , और जल्दी से जल्दी रिकालिस्ट्स को इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए।
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हम चुनाव लड़े बिना आगे नहीं बढ़ सकते। क्योंकि ज्यादातर मतदाता हमारी बात सिर्फ तब ही सुनेंगे जब हमारे पास चुनावो में उररने के लिए पर्याप्त प्रत्याशी हो। वरना हमें मतदाताओ से या सुनने हो मिलेगा कि -- आप लोगो द्वारा प्रस्तावित ड्राफ्ट्स बेशक अच्छे हो सकते है। लेकिन यदि आप के ड्राफ्ट्स यदि 543 कार्यकर्ताओ को भी चुनाव लड़ने और सांसद बनने के लिए प्रेरित नहीं कर सकते तो इन ड्राफ्ट्स की अच्छाई संदेहास्पद है।
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कई बार किसी कार्य को करने की सलाह देने को सिर्फ तब ही गंभीरता से लिया जाता है जब कि ऐसी सलाह देने वाला स्वयं उस सलाह पर अमल करके दिखाए। इस सम्बद्ध में महात्मा बुद्ध के जीवन से जुडी एक लोकप्रिय बोध कथा है।
"एक बार एक महिला ने महात्मा बुद्ध से कहा कि उनका पुत्र बहुत ज्यादा मिठाई का सेवन करता है , अत: वे उसके पुत्र को ज्यादा मीठा न खाने का उपदेश दें। महात्मा बुद्ध ने उस महिला को एक महीने बाद पुन: आने को कहा। एक मास पश्चात जब महिला फिर से लौटी तो महात्मा बुद्ध ने बालक को अधिक मीठा न खाने के लिए समझाया। बालक पर महात्मा बुद्ध के उपदेश का पर्याप्त असर हुआ और उसने मीठा खाना कम कर दिया। इस प्रकरण के साक्षी महात्मा बुद्ध के एक शिष्य ने यह जिज्ञासा प्रकट की कि , 'आपने महिला को एक महीने का इंतिजार करने को क्यों कहा' ? भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया कि, 'एक महीने पहले तक मैं स्वयं मीठा खाने का आदी था, अत: मेरी सीख तब तक श्रोता पर कोई असर नहीं डालेगी जब तक कि मैं स्वयं उस सीख पर अनुसरण न करूँ। इसीलिए जब मैंने खुद इस आदत से छुटकारा पा लिया तब ही मैंने बालक को मीठा न खाने की सलाह दी'।
कहानी का सबक यह है कि, क़ानून ड्राफ्ट्स को लागू करवाने के लिए कार्यकर्ताओ को चुनाव लड़ने की सलाह देने का तब तक कोई महत्त्व नहीं है , जब तक कि ऐसी सलाह देने वाले खुद चुनावो में भाग न ले।
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हम 70 करोड़ नागरिको को यह नहीं कह सकते कि 'पहले हम राइट टू रिकॉल पार्टी में 1 करोड़ सदस्य बनाएंगे तब हम चुनाव लड़ेंगे'। क्योंकि तब ज्यादातर मतदाता कहेंगे कि 'अगर आपके पास चुनाव लड़ने के लिए 500 कार्यकर्ता भी नहीं है तो, आप किस आधार पर कांग्रेस/बीजेपी/आम आदमी पार्टी का विकल्प बन सकेंगे' ? इसीलिए मेरा कहना यह है कि पहले कार्यकर्ताओ को इन कानूनो के प्रति अपना समर्पण दिखाना चाहिए , तब नागरिको से समर्थन की आशा करनी चाहिए।
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तो इस प्रकार 543 रिकालिस्ट्स को लोकसभा और 5000 रिकालिस्ट्स को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार करना 'सबसे पहला' काम है। क्योंकि सबसे पहले कार्यकर्ताओ को इन कानूनो पर अपना भरोसा दिखाना होगा , सिर्फ तब ही मतदाता इन क़ानून ड्राफ्ट्स को पढ़ने, समझने और अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेजने के लिए राजी होंगे।
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इसके अलावा, यदि हम रिकालिस्ट्स के पास यदि 543 लोकसभा उम्मीदवार नहीं होंगे तो वर्तमान सांसदो पर इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने का कभी भी दबाव नहीं बन सकेगा। मौजूदा सांसद इन कानूनो को लागू करने के लिए तब ही राजी होंगे जब वे देखेंगे कि उन्हें बदलने के लिए इन कानूनो के समर्थक चुनावी मैदान में है।
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रिकालिस्ट्स चुनावो में भाग लेने से इंकार क्यों कर रहे है ?
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मैंने राइट टू रिकॉल कानूनो का प्रचार 1998 से शुरू किया , और 2008 से मैंने इसके लिए तेजी से प्रयास शुरू कर दिए थे। 2008 से अब तक मैं अकेला उम्मीदवार हूँ जो कि इन मुद्दो पर चुनाव लड़ रहा हूँ। दो अन्य रिकालिस्ट्स ने चुनावो में भाग लेने की कोशिश की, लेकिन तकनिकी (सीरियल नंबर, भाग संख्या आदि दर्ज नही करना) कारणों के चलते उनके आवेदन निरस्त हो गए और वे चुनाव नही लड़ सके। इनके अलावा अब तक किसी भी रिकालिस्ट ने चुनाव लड़ने की गतिविधि को गंभीरता से नहीं लिया।
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क्या कारण हो सकते है कि रिकालिस्ट्स चुनावो में भाग लेने से इंकार कर रहे है ?
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जो भी कारण रहे हो , लेकिन इतना तय है कि कुछ ऐसे कारण मौजूद है जिनके चलते रिकालिस्ट्स चुनावो में भाग लेने से कतरा रहे है।
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जहां तक मैं देखता हूँ , इसके पीछे कोई वास्तविक या भौतिक कारण नहीं है। --- चुनाव लड़ने के लिए बहुत ज्यादा धन की आवश्यकता नहीं होती -- 3000 रू स्थानीय निकाय के लिए, 10000 विधानसभा चुनावो के लिए और 25000 लोकसभा के लिए जमानत राशि के रूप में जमा कराना होता है। कई रिकालिस्ट्स या तो इस राशि के खर्च को वहन कर सकते है या फिर अपने 5-10 परिचितों से इस सम्बन्ध में सहायता ले सकते है। इसके अलावा पेम्फ्लेट आदि की छपाई वगेरह पर लगभग 20000 रू तक का खर्च आता है। इस प्रकार चुनाव लड़ने के लिए लगभग 50000 रू तक की आवश्यकता है, जो कि मेरे अनुमान में कई रिकालिस्ट्स के लिए इस राशि की व्यवस्था करना कोई बड़ी चुनौती नहीं है।
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हालांकि इलेक्शन फॉर्म भरना एक जटिल कार्य है --- एक लम्बा शपथपत्र प्रस्तुत करना, मतदाताओ के हस्ताक्षर, अनुभाग संख्या, क्रम संख्या इकट्ठे करना आदि। और उनके मतदाता पहचान पत्रो की फोटो कॉपी की भी जरुरत हो सकती है। कुल मिलाकर एक चुनावी फॉर्म भरने में लगभग 2-3 दिन लग सकते है , लेकिन यह भी कोई बड़ा प्रतिरोध नही है और इसका प्रबंधन किया जा सकता है।
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कुल मिलाकर मैं ऐसे कोई वास्तविक और वाजिब कारण नही देखता जिसके चलते रिकालिस्ट्स लगातार चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे है।
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मेरे विचार में चुनाव न लड़ने का फैसला लेने के पीछे कारण 'मनोवैज्ञानिक' है।
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(a) उन्हें यह भय है कि जब वे चुनाव हार जाएंगे तो लोग उनका मजाक उड़ाएंगे। यह बात ठीक है कि चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों को उपहास का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसका सामना करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नही है।
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(b) एक अन्य कारण यह हो सकता है कि --- कई रिकालिस्ट्स यह सोचते है कि चुनावो में भाग लेने की लिए सिर्फ 543 रिकालिस्ट्स की जरुरत है अत: इस कार्य को कोई अन्य रिकालिस्ट्स भी कर सकता है, इसीलिए मुझे चुनावो में भाग लेने की आवश्यकता नहीं है।
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(c) इसे बहुत मुश्किल समझना -- चुनाव जितना मुश्किल काम है, लेकिन चुनाव लड़ना कोई मुश्किल कार्य नही।
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(d) कार्यकर्ताओ और समर्थको की संख्या बढ़ने का इंतिजार करना -- राईट टू रिकॉल समर्थको की संख्या तब ही बढ़ेगी जब ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ता चुनावो में हिस्सा लेंगे।
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चुनावो में भाग न लेना राइट टू रिकॉल आंदोलन को कई तरीको से भारी नुकसान पहुंचायेगा। मान लीजिये कि, किसी जिले में 10 योग्य और समर्पित रिकालिस्ट्स है। मान लीजिये कि वे सभी चुनाव लड़ने से इंकार कर देते है। तब मुझे मजबूरन उस कम योग्य उम्मीदवार को टिकेट देना होगा, जो राइट टू रिकॉल कानूनो के प्रति पूर्णतया समर्पित नही है। इससे अमुक उम्मीदवार की ख्याति बढ़ेगी, और अगले चुनावो में भी मुझे उसी व्यक्ति को टिकेट देना होगा, और इससे समर्पित कार्यकर्ताओ को बुरा लगेगा।
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दूसरे शब्दों में, 'सही समय का इंतिजार करना' सिर्फ मुझे उन अयोग्य उम्मीदवारों को टिकेट देने के लिए बाध्य करेगा जो कि कम काबिल है। और एक बार किसी व्यक्ति को समर्थन देने के बाद उसे समर्थन वापिस लेना आसान नही है।
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कुल मिलाकर जैसा कि मैं देखता हूँ ,चुनावो में भाग न लेना राइट टू रिकॉल आंदोलन के बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है। और सबसे निराशाजनक बात यह है कि, ये सभी कारण मनोवैज्ञानिक है, न कि भौतिक। कारण जो भी रहे हो --- चुनाव न लड़ने के फैसले पर टिके रहना हमें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचायेगा। और यदि 543 लोकसभा में और 5000 रिकालिस्ट्स विधानसभा चुनावो में भाग लेने के लिए तैयार नही हुए तो इन देश में इन कानूनो का लागू होना कभी भी संभव नही हो पायेगा। क्योंकि जब तक बड़ी संख्या में रिकालिस्ट्स चुनाव नही लड़ेंगे, राइट टू रिकॉल कानूनो के समर्थको की संख्या नही बढ़ेगी।
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2. दूसरा काम --- 75 करोड़ नागरिको को टीसीपी , राईट टू रिकॉल , ज्यूरी सिस्टम आदि क़ानून ड्राफ्ट के बारे में ‘सूचित’ करना ; यह जानकारी अनिवार्य रूप से कार्यकर्ताओं द्वारा ही पहुंचाई जानी चाहिए, पेड मिडिया द्वारा नही ।
मेरे विचार में हम रिकालिस्ट्स को दूसरा काम यह करना होगा कि हम भारत के 70 करोड़ नागरिको को राईट टू रिकॉल , ज्यूरी सिस्टम , टीसीपी आदि क़ानून ड्राफ्ट्स की जानकारी दें। इसके लिए हमें 70 करोड़ पेम्फ्लेट , करोडो पुस्तिकाएं और करोड़ो डीवीडी का तैयार करके उनका वितरण करना होगा !! या हमें नागरिको को इस बात के लिए तैयार करना होगा कि वे इन पुस्तिकाओं और डीवीडी को दुकानो से ख़रीदकर पढ़ें और देखें। पर्चो की छपाई और डीवीडी के वितरण का अनुमानित व्यय प्रति नागरिक लगभग 400 रू के हिसाब से हमें अनुमानित 28 हजार करोड़ रूपयो की आवश्यकता होगी।
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अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि --- किस तरह हम 70 करोड़ नागरिको को इन पर्चो को पढ़ने और डीवीडी को सुनने के लिए राजी कर पाएंगे ?
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नागरिक इन पर्चो को तब ही पढ़ने में रुचि दिखाएँगे जब ; (a) पेड मिडिया इन कानूनो की प्रशंषा करे (b) कार्यकर्ता अपने परिचित नागरिको को इन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
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पेड मिडिया का विकल्प हमारे लिए हमेशा के बंद है। इसीलिए हमारे पास सिर्फ यही तरीका शेष है कि, कार्यकर्ता अपने परिचित नागरिको से इन कानूनी ड्राफ्ट्स को पढ़ने का आग्रह करे। एक कार्यकर्ता लगभग 1000 नागरिको को ड्राफ्ट्स पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है, अत: हमें कम से कम 70 करोड़ / 10 / 1000 = 70 हजार कार्यकर्ताओ को आवश्यकता होगी। चूंकि कई नागरिक एक से अधिक कार्यकर्ताओ के संपर्क में आयंगे और सूचनाओ का दोहराव होगा, अत: आकलन में सटीकता बनाये रखने के लिए हमें तीन गुना अधिक कार्यकर्ताओ की गणना करनी चाहिए। इस हिसाब से हमें 70 करोड़ नागरिको को इन कानूनी ड्राफ्ट्स की सूचना पहुंचाँने के लिए कम से कम 2 लाख कार्यकर्ताओ की आवश्यकता होगी।
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क़ानून ड्राफ्ट्स की जानकारी अनिवार्य रूप से कार्यकर्ताओ द्वारा ही पहुंचाई जानी चाहिए न कि पेड मिडिया द्वारा। क्योंकि पेड मिडिया द्वारा सूचित नागरिक एक दायित्व है न कि एक सम्पति, अत: तब कार्यकर्ताओ को नागरिको से जुड़े रहने के लिए हमेशा पेड मिडिया पर निर्भर रहना पड़ेगा। लेकिन यदि नागरिक कार्यकर्ताओ से जुड़े हुए है तो मिडिया को भुगतान किये बिना भी कार्यकर्ता नागरिको से जुड़े हुए रह सकते है। इसीलिए यह बहुत जरूरी है कि, नागरिक यह सूचनाए पेड मिडिया की जगह कार्यकर्ताओ द्वारा प्राप्त करे।
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(कार्यकर्ता कौन है ? और भारत में कितने कार्यकर्ता है ? --- एक कार्यकर्ता वह व्यक्ति है जो भारत को मजबूत बनाने के लिए निस्वार्थ भाव से अपने धन और समय का एक अंश व्यय करने के लिए प्रतिबद्ध है , तथा बदले में उसका प्राथमिक लक्ष्य कोई ख्याति/धन/पद आदि प्राप्त करना नहीं है। मेरे अनुमान में भारत में कई लाख कार्यकर्ता है, लेकिन उनमे से सभी राईट टू रिकॉल कानूनो का प्रचार नहीं करेंगे। लेकिन यदि कुछ 2 लाख कार्यकर्ता भी प्रति सप्ताह 4 घंटे का समय इन कानूनो के प्रचार में देते है, तो कुछ ही सप्ताह में पहला चरण पूरा हो जाएगा।)
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इस समय हम कुछ 500 रिकालिस्ट्स है जो कि पूरे देश में फैले हुए है, और इन कानूनो का प्रचार नागरिको में कर रहे है। इसलिए हम रिकालिस्ट्स को ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओ को रिकालिस्ट्स में बदलने के लिए प्रयास करने चाहिए। तो यदि हम 2 लाख कार्यकर्ताओ को रिकालिस्ट्स में बदलने में असफल रहते है तो क्या होगा ? ऐसी स्थिति में, मेरा अनुमान है कि हम रिकालिस्ट्स खेल से बाहर हो जाएंगे।
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कोई यह प्रश्न पूछ सकता है कि --- मैंने किस आधार पर 2 लाख कार्यकर्ताओ की आवश्यकता बतायी है। असल में यह एक मोटा अनुमान है। मेरा मतलब यह है कि --- निश्चय ही हमें न तो कुछ हजार कार्यकर्ताओ की आवश्यकता है , न ही करोड़ो कार्यकर्ताओ की। जो बात समझना जरुरी है वह यह है कि --- कार्यकर्ताओ की संख्या पर्याप्त रूप से इतनी होनी चाहिए कि , कोई रिकालिस्ट 1% से अधिक रिकालिस्ट्स से परिचित हुए बिना और आपसी संपर्क के अभाव के बावजूद अपना काम जारी रखें और बिना किसी सम्प्रेषण के आंदोलन आगे बढ़ता रहे।
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अध्याय - 1 का सार यह है कि पहला काम यह है कि कार्यकर्ताओ द्वारा 70 करोड़ नागरिको को इन कानून ड्राफ्ट्स के बारे में सूचित किया जाए तथा ऐसा करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओ का पालन किया जाए :
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(1a) लाखो कार्यकर्ताओ तक अपनी पहुँच बनायी जाए।
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(1b) लगभग 2 लाख कार्यकर्ताओ को रिकालिस्ट्स में बदला जाए --- मतलब कार्यकर्ताओ को इस बात के लिए राजी किया जाए कि वे अपने धन से राईट टू रिकॉल आदि कानूनो के पर्चे छपवायें, डीवीडी बनाकर वितरण करें और सभाएं आयोजित करके नागरिको को इन कानूनो के बारे में जानकारी दे।
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(1c) तथा नागरिको को इन ड्राफ्ट्स को पढ़ने के लिए तैयार करें।
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इन सब प्रक्रियाओ में नागरिको को इन ड्राफ्ट्स को पढ़ने के लिए तैयार करना सबसे मुश्किल काम है। और इसीलिए हमें कार्यकर्ताओ की आवश्यकता है , न कि पेड मिडिया की। पेड मिडिया के प्रायोजक कभी भी नागरिको को ड्राफ्ट्स पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करेंगे। क्योंकि जब कोई नागरिक ड्राफ्ट्स पढ़ने लगता है तो उसका विवेक और विश्लेषण क्षमता बढ़ जाती है। और पेड मिडिया के प्रायोजकों को विवेकी और विश्लेषक नागरिक बिलकुल भी पसंद नहीं है। इसलिए पेड मिडिया कभी भी नागरिको को ड्राफ्ट्स पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करेगा।
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3. तीसरा काम ---- 45 करोड़ नागरिको को अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेजने के लिए तैयार करना।
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पहला काम है --- कम से कम 543 रिकालिस्ट्स को लोकसभा, 5000 रिकालिस्ट्स को विधानसभा और लगभग 200,000 रिकालिस्ट्स को स्थानीय निकायो के चुनाव लड़ने के लिए तैयार करना। इस सम्बन्ध में विवरण ऊपर के अध्याय में दिया जा चुका है।
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तीसरा काम है, कम से कम 45 करोड़ नागरिको को अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेजने के लिए राजी करना। यह काम पहले चरण के साथ साथ ही पूरा किया जाना चाहिए। रिकालिस्ट्स नागरिको को कानूनी ड्राफ्ट्स पढ़ने के साथ ही एसएमएस द्वारा आदेश भेजने का भी आग्रह करें।
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कौनसे आदेश ? ऐसा आदेश नागरिक द्वारा उन कानूनो के सम्बन्ध में भेजा जाना चाहिए, जिन कानूनो का समर्थन नागरिक करता है। दूसरे शब्दों में, हम रिकालिस्ट्स को यह सुनिश्चित करना है कि नागरिक जिन क़ानून ड्राफ्ट्स का समर्थन करते है उन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने के लिए अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे। और हमें 45 करोड़ नागरिको को ऐसे आदेश भेजने के लिए तैयार करना है।
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इसीलिए हमें 2 लाख कार्यकर्ताओ की जरुरत है। क्योंकि 45 करोड़ नागरिको को आदेश भेजने के लिए पेड मिडिया द्वारा प्रेरित नहीं किया जा सकता।
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यह बेहद जरुरी है कि, ऐसे एसएमएस में क़ानून ड्राफ्ट का यूआरएल, और/या md5hash और/या sha2hash शामिल हो। यह भी बेहद महत्त्वपूर्ण है कि, ऐसे आदेश सिर्फ एसएमएस द्वारा ही भेजे जाए। किसी पोस्ट कार्ड, मेल या फेसबुक/वाट्स एप के माध्यम से नहीं। यदि एसएमएस आदेश में अमुक क़ानून ड्राफ्ट्स का यूआरएल, और/या md5hash और/या sha2hash आदि दर्ज नहीं किये जाते है तो भेजे गए ऐसे आदेशो की कोई उपयोगिता नहीं रह जायेगी।
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साथ है यह भी आवश्यक है कि जब नागरिक अपने ऐसा आदेश भेजे तो कार्यकर्ता उसके समीप न हो। मतलब आदेशकर्ता पर 'सामीप्य का प्रभाव' नही होना चाहिए।
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उदाहरण के लिए ,
(2a) मान लीजिये कि कोई रिकालिस्ट/कार्यकर्ता किसी नागरिक को इस लिंक में दर्ज टीसीपी क़ानून के बारे में बताता है -- https://web.facebook.com/permalink.php?story_fbid=529823220529210&id=527176697460529
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(2b) मान लीजिये कि मतदाता यह मानता है कि टीसीपी क़ानून के लागू होने से भारत की व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पडेगा।
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(2c) तब हम रिकालिस्ट्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि मतदाता अपने सांसद में एसएमएस द्वारा जो आदेश भेजे उसमे यह यूआरएल या अन्य कोई यूआरएल जिसमे टीसीपी का यह क़ानून दर्ज किया गया हो, या/और md5hash या/और sha2hash लिंक शामिल हो
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(2d) और इसी तरीके से हम रिकालिस्ट्स को देश के 45 करोड़ नागरिको को एसएमएस द्वारा आदेश भेजने के लिए प्रेरित करना होगा।
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अब मान लीजिये कि , हम रिकालिस्ट्स से 2 लाख कार्यकर्ताओ को रिकालिस्ट्स में बदल दिया, तथा 2 लाख रिकालिस्ट्स ने 70 करोड़ नागरिको को इन कानूनो की जानकारी भी दे दी, लेकिन यदि 45 करोड़ नागरिको ने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेजने से इंकार कर दिया तो क्या होगा ?
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तब मेरे विचार में हम रिकालिस्ट्स खेल से बाहर हो जाएंगे। तब हमें या तो अपना अभियान छोड़ देना होगा या तब तक इन्तजार करना होगा, जब तक कि कम से कम 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश न भेजे। क्योंकि आदेशो के अभाव में हम सांसदों के सामने बहुमत साबित करने में नाकाम रहेंगे अत: सांसद इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने से मना कर दे तो उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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4. चौथा काम ---- 45 करोड़ नागरिको तक यह जानकारी पहुंचाना कि 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेज चुके है।
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मान लीजिये कि 70 करोड़ नागरिको को राइट टू रिकॉल कानूनो की जानकारी हो जाती है , तथा उनमे से कम से कम 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भी भेज देते है।
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तब हम रिकालिस्ट्स के लिए चौथा काम है कि ---- (a) हम 45 करोड़ नागरिको को यह मानने के लिए तैयार करे कि 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेज चुके है। (b) हम 45 करोड़ नागरिको को यह मानने के लिए तैयार करे कि प्रत्येक सांसद/विधायक, मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री को यह जानकारी है कि 45 करोड़ नागरिको द्वारा अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेजा जा चुका है।
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कुल मिलाकर हमें प्रस्तावित ड्राफ्ट्स और एसएमएस द्वारा आदेश भेजने की जानकारी को कॉमन नॉलेज में लेकर आना होगा। कॉमन नॉलेज के बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया गूगल करे तथा इस विषय पर विकिपीडिया पेज पढ़े।
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यह जरुरी है कि मतदाताओ को अपने सांसदों को एसएमएस भेज कर कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने या इस्तीफा देने के आदेश देने के लिए राजी किया जाए।
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तो किस तरह हम 45 करोड़ नागरिको को यह मानने के लिए तैयार कर सकते है कि प्रत्येक सांसद/विधायक, मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री को यह जानकारी है कि 45 करोड़ नागरिको द्वारा अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे जा चुके है ?
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फेसबुक पर करीब 10 करोड़ मतदाता जुड़े हुए है।
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हमें फेसबुक/ट्विटर पर उपस्थित 10 करोड़ मतदाताओ में से कम से कम करोड़ यूजर्स को निम्नलिखित कदम उठाने के लिए राजी करना होगा :
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(3a) हमें 5 करोड़ मतदाताओ को अपने फेसबुक/ट्विटर अकाउंट पर राईट टू रिकॉल क़ानून ड्राफ्ट्स के यूआरएल, md5hashes , sha2hashes आदि अपनी वॉल पर रखने को राजी करना होगा।
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(3b) इसके अलावा हमें इन 5 करोड़ नागरिको को राजी करना होगा कि वे अपने फेसबुक/ट्विटर अकाउंट पर @HIS_MP_NAME और @PMO लिखें।
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(3c) हमें इन 5 करोड़ मतदाताओ को कानून ड्राफ्ट्स के पोस्ट्स को शेयर करने के लिए तैयार करना होगा।
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(3d) हमें 5 करोड़ नागरिको को राजी करना होगा कि वे अपने फेसबुक एकाउंट पर एक फेसबुक नोट रखने के लिए राजी करना होगा, जिस नोट में उन आदेशो की सूची हो जो उन्होंने अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा भेजे है।
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(3e) हमें 5 करोड़ मतदाताओ को राजी करना होगा कि वे अपने सांसदों को भेजे गए आदेशो की सूची का नोट अपने डिटेल्स कॉलम में और इस नोट की इमेज अपने फेसबुक अकाउंट के प्रोफाइल पर रखें।
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(3f) यदि किसी कार्यकर्ता का फेसबुक पर एकाउंट है , किन्तु वह ऊपर दिए गए कदमो को उठाने इंकार कर देता है, तो मेरे विचार में वह राईट टू रिकॉल कानूनो का विरोधी अथवा छद्म समर्थक है। मैं सभी रिकालिस्ट्स से आग्रह करूंगा कि राइट टू रिकॉल के ऐसे छद्म समर्थको पर अपना समय नष्ट न करे। लेकिन यदि कोई मतदाता यह नहीं जानता कि फेसबुक का इस्तेमाल कैसे किया जाए, तो यह शर्त उस पर लागू नहीं होती।
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अब यदि फेसबुक/ट्विटर पर उपस्थित 5 करोड़ मतदाता उपर दिए गए कदमो का पालन करते है तो हम 5 करोड़ मतदाताओ को यह विश्वास दिल सकते है कि 5 करोड़ नागरिको द्वारा अपने सांसदों को आदेश भेजे जा चुके है। कैसे ? हम किसी मतदाता को कह सकते है कि वह फेसबुक की मित्र सूची में से अपने किसी ऐसे मित्र की प्रोफाइल चेक करे जो कि वास्तविक जीवन में भी उसका मित्र है। यदि अमुक मित्र की प्रोफाइल की डिटेल में वह नोट दर्ज है जिसमे उन आदेशो की सूची है जो आदेश उन्होंने अपने सांसदों को भेजे है , तथा अमुक आदेशो में उन कानूनो ड्राफ्ट्स के यूआरएल लिंक दिए हुए है तो यह व्यक्ति आसानी से यह जान जाएगा कि उसके मित्र ने अपने सांसद को इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने के आदेश भेजे है। बाद में फेसबुक पर ऐसा एप बनाया जा सकता है जो इन सभी नोट्स को संयुंक्त कर दे।
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इस प्रकार, फेसबुक पर उपस्थित प्रत्येक मतदाता यह जान जाएगा कि उसकी मित्र सूची में कितने लोग राइट टू रिकॉल कानून ड्राफ्ट्स का समर्थन करते है। इससे उसे पूरे देश के मतदाताओ का अनुमान लगाने के लिए एक अच्छा अवसर मिलेगा। फेसबुक पर कोई यूजर इस तरह अपनी मित्रता सूची के आधार पर यह अनुमान लगा सकता है कि 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को एसएमएस द्वारा आदेश भेज चुके है या नहीं।
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इस समय लगभग 10 करोड़ मतदाता फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे है। हम इन मतदाताओ को अपनी फेसबुक मित्रता सूची में से अपने 100 वास्तविक मित्रो की प्रोफाइल चेक करने को कह सकते है। जिससे वे जान सके कि कितने लोग राईट टू रिकॉल कानूनो का समर्थन कर रहे है।
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लेकिन यदि 2 लाख कार्यकर्ता नागरिको से क़ानून ड्राफ्ट्स के लिंक्स का ऐसा नोट बनाने के लिए कहने से इंकार कर देते है तो हम खेल से बाहर हो जाएंगे !!
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तो क्या होगा अगर 2 लाख रिकालिस्ट्स 5 करोड़ नागरिको को अपने फेसबुक/ट्विटर प्रोफाइल पर भेजे गए आदेशो के क़ानून ड्राफ्ट्स के लिंक रखने को कहते है ; किन्तु 5 करोड़ नागरिक अपने फेसबुक/ट्विटर प्रोफाइल पर इन आदेशो के यूआरएल, md5hashes , shah2hashes आदि का नोट रखने से इंकार कर देते है ? तो हमें यह समझना चाहिए कि मामला ख़त्म हो चुका है। तब हमें या तो इन कानूनो को लागू करवाने का प्रयास छोड़ना होगा या फिर तब तक प्रयास करने होंगे जब तक 45 करोड़ नागरिक इन कानूनो का समर्थन दर्शाने के लिए तैयार न हो जाए।
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किन्तु यदि तमाम दुश्वारियों के बावजूद यदि हम 5 करोड़ नागरिको को अपने फेसबुक/ट्विटर प्रोफाइल पर वह नोट रखने के लिए तैयार कर लेते है जिसमे उन क़ानूनो के लिंक दर्ज किये गए है जिनका समर्थन अमुक नागरिक करता है तो हम फेसबुक का इस्तेमाल करने वाले प्रत्येक नागरिक को यह दर्शाने में कामयाब हो सकते है कि पूरे देश में कितने नागरिक इन कानूनो का समर्थन कर रहे है।
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जो नागरिक फेसबुक पर नहीं है , उनके लिए हमें ऐसी ऑफ़लाइन एप्लीकेशन बनानी होगी जो यह दर्शा सके कि उनके आस पास के कितने नागरिक अमुक कानूनो का समर्थन कर रहे है।
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जब तक की ऐसी कोई एप्लीकेशन प्रचलन में नहीं आ जाती तब तक हमें प्रत्येक नॉन फेसबुक यूजर मतदाता के लिए एक प्रतिनिधि नागरिक की आवश्यकता होगी जो कि फेसबुक का नियमित इस्तेमाल करता हो। किसी मतदाता का यह प्रतिनिधि नागरिक अमुक मतदाता का फेसबुक एकाउंट बनाकर उन चरणो का पालन कर सकेगा जो चरण ऊपर बताये गए है। इस तरीके से ये क़ानून ड्राफ्ट्स कॉमन नॉलेज में आयेंगे और इनके समर्थको की संख्या बढ़ेगी। इससे उन लोगो की संख्या भी कॉमन नॉलेज में आ जायेगी जो राईट टू रिकॉल कानूनो का विरोध कर रहे है।
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यदि 45 करोड़ नागरिको के संज्ञान में यह बात आ जाती है कि, 45 करोड़ नागरिको द्वारा अपने सांसदों को आदेश भेजे जा चुके है तब हम चौथे चरण में प्रवेश कर सकते है।
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5. पांचवा काम --- 45 करोड़ नागरिको को तैयार करना की, वे अपने सांसदों को इस्तीफा देने के लिए एसएमएस द्वारा आदेश भेजे ।
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इस चरण के पालन की आवश्यकता सिर्फ तब होगी जबकि पहले से चौथे चरण के कार्य पूरे कर लिए जाने के बावजूद सांसद राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो को लागू करने से इंकार कर दे।
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यदि --- (a) यदि हमारे पास लोकसभा चुनावो में भाग लेने के लिए 543 प्रत्याशी है, तथा (b) 45 करोड़ नागरिक इस बात को मानते है कि 45 करोड़ नागरिको द्वारा अपने सांसदों को राइट टू रिकॉल कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने के लिए एसएमएस द्वारा आदेश भेजे जा चुके है तब --- हम रिकालिस्ट्स के पास नागरिको से यह अपील जारी करने का नैतिक अधिकार होगा कि उन्हें अपने सांसदों को इस्तीफा देने के लिए एसएमएस द्वारा आदेश भेजने चाहिए। इस स्थिति में कुछ प्रबुद्ध लोगो की यह सलाह हो सकती है कि हमें अगले चुनावो तक इंतिजार करना चाहिए। किन्तु इस बारे में मेरा कहना है अगले चुनावो का इंतिजार करने में समय बर्बाद करने की कोई तुक नहीं है। समय ही पैसा है, समय ही जीवन है। यदि हम इंतिजार करते रहे तो देश को इस दौरान बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए यदि 45 करोड़ नागरिको द्वारा एसएमएस करने के बावजूद यदि सांसद इन कानूनो को लागू करने से इंकार कर देते है तो हमें नागरिको को राजी करना होगा कि वे अपने सांसदों को इस्तीफा देने के आदेश भेजे।
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यह कदम बेहद महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद उतना विकट नहीं है। क्योंकि कई मतदाता यह तय कर सकते है कि 'हमें अगले चुनावो तक इंतिजार करना चाहिए'। इस दौरान नागरिक राइट टू रिकॉल ग्रुप के प्रत्याशियों का मूल्यांकन कर सकेंगे तथा साथ ही वर्तमान सांसदों पर राइट टू रिकॉल कानूनो को लागू करवाने का दबाव भी बना सकेंगे।
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इसीलिए यदि 45 करोड़ नागरिक अपने सांसदों को इस्तीफा देने के लिए आदेश भेजने के लिए राजी हो जाते है तो ठीक है, वरना हमें अगले लोकसभा चुनावो तक इंतिजार करना होगा
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यदि 45 करोड़ नागरिको द्वारा आदेश भेजे जाने के बावजूद यदि सांसद इस्तीफा देने के लिये राजी नहीं होते है तो क्या होगा ? तब अहिंसामूर्ती महात्मा ऊधम सिंह जी सांसदों से मिलकर उन्हें इस्तीफा देने के लिए राजी कर लेंगे।
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6. छठा काम --- 45 करोड़ नागरिको को लोकसभा-विधानसभा चुनावो में राईट टू रिकॉल पार्टी के उम्मीदवारों को वोट देने के लिए राजी करना।
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लोकसभा-विधानसभा चुनावो में हमें 45 करोड़ या कम से कम 25 करोड़ मतदाताओ को इस बात पर राजी करना होगा कि वे राईट टू रिकॉल पार्टी के उम्मीदवारों को वोट करे।
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यदि 45 करोड़ मतदाता प्रस्तावित राईट टू रिकॉल कानून ड्राफ्ट्स का समर्थन करते है, और अपने सांसदों को इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने के आदेश भेज चुके है तो उन्हें इन कानूनो के समर्थन में वोट करने के लिए तैयार करना कोई मुश्किल कार्य नहीं है।
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7. सातवां काम --- उस स्थिति से निपटना जबकि चुनकर आये राइट टू रिकॉल पार्टी के सांसद इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने से इंकार कर दे, या प्रधानमंत्री राज्य सभा में बहुमत नहीं होने का हवाला देने का नाटक करें।
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मान लीजिये कि, टीसीपी/राइट टू रिकॉल कानून ड्राफ्ट्स के मुद्दे पर चुन कर आये सांसद इन कानूनो को लागू करने से इंकार कर देते है तो हम रिकालिस्ट्स और नागरिको के पास क्या विकल्प बचा रहेगा ?
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यह कोई गंभीर समस्या नहीं है। क्योंकि तब अहिंसामूर्ति महात्मा ऊधम सिंह जी स्थिति को नियंत्रण में लेकर आसानी से मामला सुलझा लेंगे।
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अत: तब टीसीपी/राईट टू रिकॉल आदि क़ानून लोकसभा से पास हो जाएंगे। लेकिन यदि सांसद राज्य सभा में बहुमत नहीं होने का हवाला देते है तो यह सिर्फ बहाना होगा, क्योंकी राईट टू रिकॉल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित अधिकतर कानून ड्राफ्ट्स को राज्य सभा से पास करने की आवश्यकता नहीं है।
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8. आठवाँ काम --- राईट टू रिकॉल कानूनो को रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश द्वारा अड़ंगा लगाने की स्थिति का सामना करना।
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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को राईट टू रिकॉल सुप्रीम कोर्ट जज की अधिसूचना को जारी करके नागरिको द्वारा नौकरी से निकाला जा सकता है। यदि मुख्य न्यायधीश इस राजपत्र अधिसूचना को रद्द कर देते है तो फिर अहिंसामूर्ती महात्मा ऊधम सिंह जी मुख्य न्यायधीश से मुलाक़ात करके उन्हें समझा देंगे।
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इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश द्वारा इन कानूनो में अड़ंगा लगाना कोई विशेष समस्या नहीं है।
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9. नवां काम --- उस स्थिति से निपटना, जब प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी , रिजर्व बैंक अधिकारी, सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारी आदि राइट टू रिकॉल कानूनो का विरोध करें और इन्हे रोकने के लिए लिए गड़बड़ी फैलाये।
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यदि एक बार राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम प्रक्रियाएं लागू हो जाती है तो सरकारी कर्मचारियों को घूस से होने वाली आय घटकर लगभग शून्य तक आ जायेगी , तथा टीसीपी के आने से सरकारी कर्मचारियों के वेतन में लगभग एक तिहाई से एक चौथाई की कमी आएगी। इसलिए पूरी संभावना है कि ज्यादातर प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी इन क़ानूनो के निष्पादन में बाधा उत्पन्न करें।
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कार्यकर्ता इस परिस्थिति से कैसे निपट सकते है ?
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मेरे विचार में इस समस्या के हल के लिए कार्यकर्ताओ/एक्टिविस्ट्स को एक समानांतर प्रशासन खड़ा करने के फार्मूले पर काम नहीं करना चाहिए। ऐसे समानांतर प्रशासन को मैं 'एक्टिविस्टोक्रेसी' कहता हूँ। इस समस्या का वाजिब समाधान सरकारी प्रशासन को सुधारना है, न कि एक समानांतर सरकार खड़ी करने का प्रयास करना। कार्यकर्ता प्रशासन में जो भी बदलाव लाना चाहते है उन्हें उन बदलावों को लिए राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम/टीसीपी आदि प्रक्रियाओ का उपयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि कोई पुलिस प्रमुख/शिक्षा अधिकारी ठीक से काम नहीं कर रहा है तो राइट टू रिकॉल प्रक्रियाओ का इस्तेमाल करके उन्हें बदला जा सकता है, या कनिष्ठ कर्मचारियों के विवादों का निपटारा नागरिको की ज्यूरी द्वारा किया जा सकता है। आत्मरक्षा जैसी आपातकालीन अवस्थाओ को छोड़ कर मैं कार्यकर्ताओ द्वारा किसी भी प्रकार की सीधी कार्यवाही का समर्थन नहीं करता।
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मौजूदा स्थिति में लगभग 700 जिलो में 20 हजार जिलाधीश स्तर के प्रशासनिक अधिकारी जैसे ; शिक्षा अधिकारी, पुलिस प्रमुख, तहसीलदार, भू अभिलेख अधिकारी आदि कार्यरत है। इसके अतिरिक्त वे अधिकारी भी महत्त्वपूर्ण है, जो सरकारी एकाउंट्स, रेकॉर्ड्स, बैंक आदि के विवरणों का प्रबंधन करते है।
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यदि ये सभी अधिकारी व्यवस्था में गड़बड़ी फैलाना तय करते है तो हमारे पास क्या उपाय है ?
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तब कार्यकर्ताओ/नागरिको को चाहिए कि वे राइट टू रिकॉल प्रक्रियाओ का प्रयोग करके इन्हे नौकरी से निकाल दे। राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओ के तहत चुनकर आये और लिखित परीक्षा द्वारा हम ज्यादा बेहतर और कुशल लोगो की भर्ती कर सकते है।
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इस सम्बन्ध में, सभी कार्यकर्ताओ को एक बात में याद दिलाना चाहूंगा कि ---- चंग़ेज़ खान ने इंजीनियर्स की जान कभी नहीं ली !! तथा शब्द 'इंजीनियर्स' में सभी प्रकार के तकनीशियन तथा वैज्ञानिक शामिल है। मेरे विचार में इस शब्द में डॉक्टर्स को भी शामिल किया जाना चाहिए। और मैं यहाँ किसी को भी मार देने की बात नहीं कर रहा हूँ। मेरा कहना है कि ऐसे व्यक्तियों को प्रशासन से बाहर कर देना चाहिए, जो गड़बड़ी फैलाने का कार्य करे।
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इंजीनियर्स, डॉक्टर्स, वैज्ञानिकों के अतिरिक्त हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि रेकॉर्ड्स रखने वाले अधिकारी बने रहे और किसी प्रकार की गड़बड़ी न फैलाये। क्योंकि आज की दुनिया में किसी भी देश में रेकॉर्ड्स रखने वाले अधिकारी सबसे महत्त्वपूर्ण बन गए है। अभिलेखो में गड़बड़ी कर के किसी देश को युद्ध से भी ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
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भूमि स्वामित्व के सभी अभिलेखो को सार्वजनिक करके और सभी क्रय-विक्रय व्यवहारों को सार्वजनिक करने से इस समस्या को आंशिक रूप से हल किया जा सकता है। इसके बाद हमे सभी बैको में खातों के बेलेंस को सार्वजनिक करना होगा, (सिर्फ बेलेंस को, खातों के सभी लेनदेन के व्यवहारों को नहीं)। यह प्रस्ताव विचलित करने वाला लग सकता है , किन्तु अधिकारियों के असहयोग के चलते बैंकिग घोटालो और अस्थिरता से बचने के लिए यह व्यवस्था बनाना आवश्यक है। इसके अलावा, मैंने 'ओपन बिटकॉइन' व्यवस्था का प्रस्ताव किया है, जिसे लागू करने से सभी लेनदेन के व्यवहार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होंगे , ताकि जो कोई इनके रिकॉर्ड्स रखना चाहता है वह ऐसा कर सकेगा -- इस प्रकार प्रत्येक लेनदेन को दो जगह दर्ज किया जाएगा। एक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होगा और एक गोपनीय रहेगा। नकदी के लेनदेन में नकली नोटों के चलन की समस्या के समाधान के लिए मेरा प्रस्ताव है कि आरोपी का ज्यूरी द्वारा सार्वजनिक रूप से नार्को टेस्ट किया जाए।
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यदि कोई सरकारी कर्मचारी गड़बड़ी फैलाने का दोषी है तो उसे नौकरी से निकाले दिया जाना चाहिए। किन्तु ऐसे फैसला नागरिको की ज्यूरी द्वारा किया जाना चाहिए , न कि कार्यकर्ताओ द्वारा। कार्यकर्ता ज्यूरी सदस्यों को इस सम्बन्ध में सलाह-मशविरा दे सकते है , किन्तु अंतिम फैसला नागरिको की ज्यूरी द्वारा ही किया जाना चाहिए। नागरिको की ज्यूरी को यह भी अधिकार दिया जाना चाहिए कि यदि वे आवश्यक समझते है तो कर्मचारियों का सार्वजनिक रूप से नार्को टेस्ट ले सके।
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सार्वजनिक रूप से नार्को टेस्ट लिए जाने का प्रावधान काफी हद तक यह सुनिश्चित कर देगा कि अधिकारी किसी प्रकार की गड़बड़ फैलाने का प्रयास नही करेंगे।
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अब प्रश्न यह है कि --- (a) यदि 20 हजार कलेक्टर और उसके स्तर के प्रशासनिक अधिकारी यदि यह घोषणा कर देते है कि, वे राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम प्रक्रियाओ के अधीन कार्य करने के लिए तैयार नहीं है, और अपना इस्तीफा दे देते है तो क्या हमारे पास ऐसे 20 हजार लोग है जो इनकी जगह ले सके ? (b) यदि तहसीलदार के स्तर के 2 लाख कर्मचारी यदि अपना इस्तीफा दे देते है तो, क्या हमारे पास उनकी जगह लेने के लिए 2 लाख व्यक्ति है ?
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उत्तर --- वर्तमान व्यवस्था में कार्यरत ज्यादातर इंजीनियर्स और तकनीशियन जैसे विशेषज्ञ अपने पद पर बने रहना पसंद करेंगे। यदि आवश्यकता महसूस हो तो उनका वेतन बढ़ाया जा सकता है।
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जहां तक सामान्यज्ञो का प्रश्न है, उन्हें राइट टू रिकॉल कानून प्रक्रियाओ का इस्तेमाल करके बदला जा सकता है। यदि कोई अधिकारी इस्तीफा देता है , तब भी कुछ ही दिनों के भीतर योग्य उम्मीदवार को अमुक पद ओर नियुक्त किया जा सकेगा।
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ज्यादतर संभावना है कि लगभग 90% सरकारी कर्मचारी राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम के अधीन व्यवस्था में काम करने के लिए राजी हो जायेगे। घूस खाने के अवसर बेहद सिकुड़ जाने और वेतन में 50% तक की कटौती होने के बावजूद वे त्यागपत्र नहीं देंगे। समस्या दूसरी तरफ से आ सकती है ---- चूंकि भारत के नागरिक वर्तमान कर्मचारियों के भ्रष्ट आचरण और दुर्व्यहार से इतने क्षुब्द है कि वे टीसीपी क़ानून का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर कर्मचारियों/अधिकारियों को नौकरी से निकाल सकते है। चूंकि ऐसे स्थिति में व्यवस्था में कोई विचलन पैदा नहीं होगा, अत: कार्यकर्ता इस प्रकार के बड़े पैमाने पर किये जा रहे बदलावों को नही रोक सकेंगे।
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राष्ट्रीय पहचान प्रणाली , सार्वजनिक अपराध अभिलेख, सार्वजनिक भूमि अभिलेख , ओपन बिटकॉइन आधारित राइट टू रिकॉल की नयी व्यवस्था यह सुनिश्चित करेगी कि सरकारी प्रशासन के संचालन के लिए कम से कम स्टाफ की आवश्यकता हो।
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कुल मिलाकर भूमि स्वामित्व के सभी लेखो को सार्वजनिक करके , आरोपियों का सार्वजनिक नार्को टेस्ट करके तथा राईट टू रिकॉल-ज्यूरी सिस्टम का उपयोग करके हम सरकारी कर्मचारियों की गड़बड़ियों की रोकथाम के उपाय कर सकते है।
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सिर्फ डॉक्टर्स, इंजीनियर्स और अभिलेखो को रखने वाले अधिकारियों को बदलने को लेकर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इनके अतिरिक्त शेष को निकाला जा सकता है या बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए 25 सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों, 750 हाई कोर्ट न्यायधीशों और 17000 निचली अदालतों के न्यायधीशों को एक दिन में ही नौकरी से निकाल कर ज्यूरी सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है। इन जजो की कमी नागरिको को बिलकुल भी महसूस नही होगी , और ऐसा करने से अदालते ज्यादा तेजी और ईमानदारी से कार्य करेंगी।
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वैसे बेहतर तो यही होगा कि राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम क़ानून प्रक्रियाएं लागू होने के बाद केंद्रित/राज्य और स्थानीय प्रशासन में पदासीन प्रत्येक अधिकारी को बदल दिया जाए। दूसरे शब्दों में, इंजीनियर्स एवं अभिलेख रखने वालो को छोड़कर उन सभी को बदल दिया जाना चाहिए जिन्हे बदला जा सकता है।
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10. दसवां अतिरिक्त कार्य --- अमेरिका/चीन द्वारा उत्पन्न किये गए छुपे और खुले आर्थिक-सैन्य हमलो का सामना करना।
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“यह इस आंदोलन का सबसे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। जब भी कोई देश अपनी सेना और आर्थिक प्रशासन को मजबूत बनाने के लिए व्यवस्था में बदलाव लाने की कोशिश करता है , पूरी दुनिया के धनिक संगठित होकर उस देश को तोड़ने का प्रयास करते है”।
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उदाहरण 1 - जब 1650 ईस्वी में इंग्लैंड ने राजा की शक्तियों को कम करके संसद की सर्वोच्चता की स्थापना करने का प्रयास किया तो यूरोपीय देशो के सभी राजाओ ने संगठित होकर इंग्लैंड की संसद को परास्त करने के प्रयास किये। वे ऐसा करने में असफल रहे , क्योंकि तब इंग्लैड की सेना काफी ताकतवर थी और इंग्लिश चैनल ने अन्य देशो की सेनाओ का इंग्लैंड तक पहुँचना काफी मुश्किल बना दिया था।
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उदाहरण 2 - जब अमेरिका ने राजतंत्र के खात्मा कर के राज्यों के मुखियाओं के चुनकर आने की व्यवस्था लागू कि तो यूरोप के कई राजा ब्रिटेन को सैन्य सहायता की पेशकश कर रहे थे। लेकिन वो इसलिए असफल रहे क्योंकि अमेरिका की सेना उस समय काफी मजबूत थी और बीच में फैले हुए समंदर ने ब्रिटेन की बड़ी सैन्य इकाई को अमेरिका तक पहुंचना कठिन बना दिया था।
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उदाहरण 3 - जब रूस ने 1916 में साम्यवाद का आश्रय लिया तो कई यूरोपोय देश रूस को नष्ट करने के लिए संगठित हो गए थे।
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उदाहरण 4 - जब सद्दाम ने क्रूड ऑयल और गोल्ड/सिल्वर के विनिमय के लिए नयी अंरराष्ट्रीय मुद्रा को चलन में लाने का प्रयास किया तो अमेरिका ने सद्दाम पर हमला कर उसे ख़त्म कर दिया। और गद्दाफी के साथ भी ऐसा ही हुआ था।
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उदाहरण 5 - जब भारत ने अमेरिका की मर्जी के खिलाफ पोकरण-2 किया और अमेरिका की बीमा कम्पनियो को भारत में व्यापार करने की अनुमति नहीं दी तो अमेरिका ने पाकिस्तान को धन और हथियार उपलब्ध कराए ताकि पाकिस्तान कारगिल पर हमला कर सके। नतीजे में भारत और पाकिस्तान दोनों की हार हुयी और अमेरिका बिना कोई गोली चलाये युद्ध जीत गया।
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इसलिए भारत के कार्यकर्ता जब भी सांसदों पर दबाव बनाकर राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम आदि कानूनो को लागू करने की मांग करेंगे तो इसकी प्रबल सम्भावना है (नही भी है) कि अमेरिका/चीन भारत में गड़बड़ी फैलाने के लिए पाकिस्तान/बांग्लादेश आदि को हमले के लिए हथियार दे या कसाब जैसे हमले करने के लिए प्रोत्साहित करे। सबसे बदतर स्थिति यह हो सकती है कि अमेरिका या चीन हम पर सीधा हमला कर दे। जैसे कि अमेरिका ने ईराक और लीबिया आदि पर किया था। इसके अलावा अमेरिका/चीन भारत को आंतरिक नुकसान पहुंचाने के लिए नक्सलवादियो और इस्लामिस्ट आतंकवादी समूहों को भी सहायता पहुंचा सकते है। वे भारत की आर्थिक स्थिति को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान के माध्यम से बड़ी मात्रा में नकली नोटों की खेप आदि भी भेज सकते है।
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समाधान ?
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1. राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम , एमआरसीएम आदि के लागू होने से नक्सलियों की समस्या समाप्त हो जायेगी। इससे अमेरिका/चीन द्वारा भारत को तबाह करने का एक रास्ता बंद हो जाएगा।
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2. हथियार बंद नागरिक समाज की रचना यानी कि प्रत्येक नागरिक को बन्दुक देकर हम अमेरिका/चीन द्वारा किये जाने वाले संभावित हमले से होने वाले हमले से होने वाले नुकसान को काफी कम कर सकते है।
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3. राष्ट्रीय पहचान प्रणाली और सार्वजनिक नार्को टेस्ट के क़ानून से हम देश में रह रहे अवैध बांग्लादेशियो को देश से बाहर खदेड़ सकते है।
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4. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के तर्ज पर हिन्दू सम्प्रदायों के लिए क़ानून पास किया जा सकता है। इससे हिन्दू धर्म सिक्ख धर्म की तरह ताकतवर हो जाएगा, और भारत के अंदर मौजूद इस्लामिक आतंकवाद संगठनो द्वारा नुक्सान पहुंचाने की सम्भावन कम हो जायेगी। इतना होने से स्थानीय हिन्दू स्थानीय मुस्लिमो से उसी तरह निपट लेंगे जिस तरह 1700 ईस्वी में सिक्खो ने मुस्लिंमो का प्रतिरोध किया था।
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नकली नोटों की समस्या से निपटने के लिए हम 1000, 500 और 100 के नोटों को वापिस ले सकते है। इसके अलावा नकदी के लेनदेन को हतोत्साहित करने की लिए ओपन बिट कॉइन प्रचलन में लाना , बिक्री कर/उत्पाद शुल्क/वेट/जीएसटी हटाकर सम्पति कर (संपत्ति कर में से आयकर को घटाते हुए) लागू करना, भूमि लेनदेन में बैंकिंग व्यवहार को अनिवार्य बनाना और नकदी की जगह चेक से भुगतान करने पर अतिरिक्त इंसेंटिव देने जैसे कानूनो को लागू किया जा सकता है। सार्वजनिक नार्को टेस्ट का क़ानून भी नकली नोटों के तस्करो में काफी कमी ले आएगा।
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6. ज्यूरी सिस्टम/राइट टू रिकॉल कानूनो के आने से भारत के स्थानीय उद्योगो की तकनिकी क्षमता बढ़ेगी , जिससे भारत हथियारों का उत्पादन करने में समर्थ हो जाएगा।
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अंतिम बिंदु के अलावा अन्य सभी उपायो को सिर्फ कुछ ही हफ्तों या महीनो में लागू किया जा सकता है। लेकिन पांचवे कदम के निष्पादन में कुछ समय लगेगा -- लगभग 2 वर्ष। इस दौरान यदि अमेरिका/चीन पाकिस्तान को मदद मुहैया कराते है तो पाकिस्तान हमें भारी नुकसान पहुंचा सकता है। अमेरिका के प्रतिरोध से निपटने के लिए हमें अमेरिका को धमकाना पड़ेगा कि , यदि अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की तो भारत अफ्रीकन-अमेरिकन को यह समझाने का प्रयास करेगा कि उन्हें अमेरिका से अलग देश बनाने की मांग करने का आंदोलन करना चाहिए। यह तरीका महंगा है , किन्तु सम्भव है और कारगर भी है। इस बारे में विस्तृत विवरण मैंने अपने इस वीडियो में दर्ज किया है कि ; यदि भारत ज्यूरी सिस्टम/राइट टू रिकॉल कानूनो को लागू करता है और अमरीका भारत पर हमला करता है तो बचाव में हम क्या कदम उठा सकते है ---- https://www.youtube.com/watch?v=NIYkn9UUH3g
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और यह एक मुख्य कारण है , जिसकी वजह से कांग्रेस , बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नेता बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के खिलाफ अपना सर उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते --- अमेरिका उन्हें धमकाता है कि , यदि उन्होंने भारत के प्रशासन को सुधारने के लिए राइट टू रिकॉल / ज्यूरी सिस्टम कानूनो को लागू करने का प्रयास किया तो वे पाकिस्तान को भारत पर हमला करने के लिए हथियारों की मदद देंगे। और जैसे जैसे भारत में राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो के लागू होने की संभावना बढ़ती जाएगी हमले का खतरा भी बढ़ता जाएगा।
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इसीलिए जिन कार्यकर्ताओ की रुचि भारत के कानूनो को सुधारने की है उन्हें निश्चित रूप से इस संभावित चुनौती से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए कि ; अमेरिका/चीन भारत पर हमला करने के लिए पाकिस्तान को हथियारों की भारी मदद देगा। और कार्यकर्ताओ को उन वास्तविक सम्भावनाओ पर विचार करना चाहिए जिससे 2 से 3 वर्षा तक युद्धरत स्थिति से निपटा जा सके। यदि हमारी तैयारी अच्छी हुयी तो सम्भावना है कि अमेरिका/चीन भारत पर हमले का विचार स्थगित कर दे। आखिरकार ऐसे हमलो की कीमत हमलावरों को भी चुकानी होती है। अत: जब वे देखेंगे कि हमला करने से होने वाले नुकसान की संभावना ज्यादा है, तो वे इसका विचार त्याग देंगे।
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तो क्या राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो की इतनी अहमियत है कि हम दुनिया भर से इतने झगड़े मोल ले ? देखिये, यदि हम देश में राइट टू रिकॉल /ज्यूरी सिस्टम कानूनो को नहीं ला पाते है तो भारत के फिर से "गुलाम बन जाना 100% तय" है। भारत पूरी तरह से पेड मिडिया के प्रायोजकों के नियंत्रण में होगा , हम तकनीक के क्षेत्र में बुरी तरह से परजीवी बने रहेंगे और हमारी आधारभूत शिक्षा में गणित-विज्ञान का ढांचा पूरी तरह से टूट जाएगा। भारत हर समय किसी सैन्य हमले के अप्रत्यक्ष भय से ग्रस्त रहेगा -- यह भय अप्रकट प्रकार का होगा, न कि प्रकट। यदि भारत राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो को लागू करवाने में असफल रहता है तो भारत के एक विशाल फिलीपींस या उससे भी बदतर देश के रूप में रूपांतरित हो जाने की गारण्टी है।
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इसीलिए मेरे विचार में, राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो की भारत के लिए बहुत अहमियत है। इतनी अहमियत कि, पाकिस्तान को तो जाने दीजिये, यदि अमेरिका/चीन भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दे तब भी हमें इन कानूनो को लागू करवाने का जोखिम अवश्य उठाना चाहिए।
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11. ग्यारवाँ काम --- इन कार्यों को पूरा करने के लिए किस तरह हम लाखों-करोड़ो कार्यकर्ता, नागरिक, इंजीनियर्स और जरुरी कौशल, प्रशिक्षण और योग्यता जुटा सकते है ? और किस तरह हम इन कार्यो को पूरा करने के लिए धन जुटा सकते है ?
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किसी देश में नागरिको को मैं मोटे तौर पर निम्न श्रेणियों में विभाजित करता हूँ :
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1. सामान्य प्रशासन और रिकॉर्ड रखने वाले अधिकारी
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2. सैनिक/पुलिस
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3. इंजीनियर्स, वैज्ञानिक, हुनरमंद तकनीशियन , डॉक्टर्स आदि
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4. निजी क्षेत्र के इंजीनियर्स, वैज्ञानिक, हुनरमंद तकनीशियन , डॉक्टर्स आदि
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5. श्रमिक
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6. निवेशक - जिन्होंने श्रम, अक्ल, भाग्य या विरासत से या सही/गलत तरीको से अपार दौलत जमा की है और उन्हें व्यवसाय में निवेश किया है।
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7. कार्यकर्ता
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8. अन्य नागरिक
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क्या राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम आधारित व्यवस्था भारत के हथियारों के उत्पादन की क्षमता के स्तर को अमेरिका के समकक्ष स्तर तक ले जा पाएगी ? क्योंकि इस आंदोलन का अंतिम उद्देश्य सांसदों पर दबाव बनाकर सिर्फ राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो को लागू करवाना भर नहीं है। असली सफलता इस बात पर निर्भर करेगी की इन कानूनो के आने के बाद भारत कितने बेहतर स्वदेशी हथियारों के उत्पादन में सक्षम हो पाता है।
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हथियारों के निर्माण के लिए आला दर्जे के इंजीनियर्स/वैज्ञानिक , समर्पित मंत्री , निवेशक और नागरिक चाहिए, जो कि भारत में इस कार्य को व्यवहारिक रूप से अंजाम दे सके। तो क्या हम ज्यूरी सिस्टम/राइट टू रिकॉल प्रक्रियाओ के आने के बाद हमें अमेरिका जितने बेहतर इंजीनियर्स/वैज्ञानिक उपलब्ध होंगे ? और क्या भारत के नागरिक इन्हे इस कार्य को करने के लिए पर्याप्त करो का भुगतान करके इन्हें यह काम करने देंगे ?
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मेरा जवाब है - हाँ
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पूरी दुनिया में बौद्धिकता का वितरण समान है। प्रत्येक देश में उतने ही काबिल और इंटेलिजेंट लोग है जितने कि अमेरिका में -- न कम न ज्यादा। आखिरकार अमेरिका खुद पूरी दुनिया के नागरिको का समुच्चय है।
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लेकिन बौद्धिकता के इस समान वितरण के बावजूद उत्पादकता का स्तर सभी देशो में असमान है।
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इस उत्पादकता में इस विभिन्नता का सबसे बड़ा कारक कानून व्यवस्थाएं है , न कि आनुवंशिकी या संस्कृति। अन्य पहलुओ का भी उत्पादकता पर कुछ प्रभाव पड़ता है , लेकिन यह प्रभाव मामूली है। निर्णायक भूमिका बेहतर क़ानूनो की है।
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इंजीनियर्स/वैज्ञानिकों की उत्पादकता इस पर निर्भर करती है कि इन्हें (a) झूठे श्रम मामलो (b) सरकारी अधिकारियों (c) प्रतिद्वंदियों (d) पारिवारिक सदस्यों और (e) नागरिको द्वारा किस मात्रा में पीड़ित किया जाता है।
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उत्पीड़न जितना कम होगा उत्पादकता भी उतनी ही बढ़ेगी।
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दूसरा कारण है -- जिस मात्रा में वे संपत्ति का सृजन करते है , उसमे से संपत्ति का कितना भाग वे समाज/सरकार में सुरक्षा के लिए वितरित करते है और कितना खुद के पास रखते है। धन का जितना भाग वे स्वयं के पास रखेंगे उसी अनुपात में वे नए आविष्कारो में अपने धन का निवेश कर सकेंगे।
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इसके अलावा विकास और उन्नति को प्रभावित करने वाले अन्य दसियों पहलू भी है , लेकिन वे सभी पहलू लागू क़ानून ड्राफ्ट्स द्वारा निर्धारित होते है। उदाहरण के लिए ज्यूरी सिस्टम झूठे मुकदमो द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न की सम्भावनाओ को बेहद कमजोर कर देता है , जबकि जज सिस्टम में यह उत्पीड़न बढ़ता जाता है। इसी तरह राइट टू रिकॉल , जनमत संग्रह उत्पीड़न को घटाते है, जबकि वैट/जीएसटी जैसे कर उत्पीड़न को बढ़ा देते है। संपत्ति कर से उत्पीड़न घटता है जबकि अन्य प्रतिगामी कर उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को घटाकर उद्योगो के विकास को नुक्सान पहुंचाते है। फ्लेट या समान करो से भी उद्योगिक विकास के अवसरों में वृद्धि होती है जबकि अनुगामी कर सिर्फ एक भ्रम है और प्रतिगामी करो को छिपाने के लिए ही लगाया जाता है।
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स्किल/कौशल/हुनर के विकास का उत्पीड़न, बेहतर कराधान और प्रतिस्पर्धा से सीधा सम्बन्ध है। प्रतिस्पर्धा जितनी अधिक और उत्पीड़न जितना कम होगा , उतना ही नए उद्यमी प्रोत्साहित होंगे। इससे कर्मचारियों, इंजीनियर्स/वैज्ञानिकों पर अपने कौशल को बढ़ाने का दबाव बनेगा अत: कौशल का स्तर क्रमिक रूप से सुधरता जाएगा। स्किल का विकास विद्यालयों और महाविद्यालयों के कक्षा कक्षों में नही होता, बल्कि यह प्रतिस्पर्धी कारखानो में पनपती है।
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निवेशको की निगाह ज्यादा मुनाफे पर टिकी होती है। क्योंकि कम बुरी कर प्रणाली एवं न्यूनतम उत्पीड़न से उनका मुनाफा बढ़ता है अत: वे ऐसी परिस्थिति में निवेश करने के लिए उद्यत हो जाते है। यदि निवेशक खेल में शामिल नही होते है तो जमीन की कीमते गिर जायेगी, श्रम सस्ता हो जाएगा और उत्पादों पर मुनाफे की दरें बढ़ जायेगी। ऐसी परिस्थिति में निवेशक खुद को बाजार में आने से रोक नहीं पाएंगे। कुल मिलाकर यदि एक बार कर प्रणाली और शासन व्यवस्था को ठीक कर दिया जाता है तो यह निवेशकों को आना सुनिश्चित कर देता है।
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क्या राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम आधारित क़ानून व्यवस्था हमें प्रतिबद्ध मंत्री उपलब्ध करवा सकेगी ? हाँ। क्योंकि राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम मंत्री एवं अधिकारियों के सभी स्तरों अपर भ्रष्टाचार में कमी ले आएगा। अत: समर्पित और ईमानदार प्रतिनिधियों को मंत्री स्तर तक पहुँचने में कम बाधाओ का सामना करना पड़ेगा।
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सार यह है कि -- राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनी ड्राफ्ट्स यह सुनिश्चित करेंगे कि हम कुशल इंजीनियर्स/विज्ञानिक, उत्साही निवेशक और समर्पित मंत्री जुटा सके। और इतना करने से हम अमेरिका के स्तर तक पहुँचने की ताकत खड़ी कर सकते है। और यदि हमारे कानूनी-ड्राफ्ट्स अमेरिका से बेहतर हुए तो हम कुछ ही वर्षो में अमेरिका का अधिग्रहण भी कर सकेंगे।
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12. निर्भरता
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मेरे नजरिये में चुनाव लड़ना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। जब तक कम से कम 543 प्रत्याशी लोकसभा और 5000 प्रत्याशी विधानसभा चुनावो में लड़ने के लिए तैयार नही होंगे तब तक ज्यादातर कार्यकर्ता हम रिकालिस्ट्स को गंभीरता से नही लेंगे। और इसीलिए वे हमारे द्वारा प्रस्तावित ड्राफ्ट पढ़ने की भी जहमत नहीं उठाएंगे। ऐसे स्थिति में इन कानूनो के समर्थको की संख्या बढ़ने की उम्मीद भी बेहद कम होगी।
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(यह अध्याय अपूर्ण है)
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लेकिन जब हम पहले चरण पर कार्य कर रहे है तब भी हमे नवें और दसवें चरण के कार्यो को अपने ध्यान में रखना होगा। असली सफलता राइट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाना नहीं है, बल्कि सफलता प्राप्त करने के लिए हमें इन कानूनो को लागू करवाकर खुद को खेल में बनाये रखना होगा ताकि हम आंतरिक और बाह्य हमलो से बचते हुए अपने तकनिकी कौशल को अमेरिका के समकक्ष बना सके।
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13. क्या भारत को ताकतवर बनाने का अन्य कोई शार्ट कट है ? जिससे इस भारी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया से बचा जान सके ?
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राइट टू रिकॉल की मेरी योजना में करने को काफी काम पूरे किये जाने है। इसके निष्पादन के लिए मौजूदा रिकालिस्ट्स को लाखो कार्यकर्ताओ तक पहुँचना होगा और उनमे से कम से कम 2 लाख कार्यकर्ताओ को रिकालिस्ट्स में परिवर्तित करना होगा। और इन रिकालिस्ट्स को 75 करोड़ नागरिको तक इन कानूनो की जानकारी पहुंचानी होगी ताकि नागरिक इन कानूनी ड्राफ्ट्स को पढ़ने के लिए तैयार हो। और इसके साथ ही उन्हें चुनावो में भी भाग लेना होगा। इसके अलावा हमें अपने कौशल से होने वाले संभावित हमलो से बचने के लिए भी तैयार रहना होगा। जाहिर है यह सब करने के लिए काफी कुछ लगेगा।
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क्या कोई अन्य रास्ता है जिसका अनुसरण करके हम आसानी से भारत को बेहतर देश बना सके ?
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मेरे विचार में --- नहीं
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भारत को बेहतर जगह बनाने के लिए अन्य लोग कई तरह के दीगर समाधान भी सुझाते है, लेकिन दुर्भाग्य से वे सभी भारत पर विदेशीयों के बढ़ते हुए नियंत्रण की अनदेखी कर रहे है। साथ ही वे इस बात को भी समझने में समर्थ नहीं है कि अंतिम रूप से सबकुछ सैन्य क्षमता पर निर्भर करता है। और वे इस तथ्य की भी अनदेखी कर रहे है कि , भारत और चीन तथा भारत और अमेरिका के बीच सैन्य अनुपात दिन के दिन बिगड़ता जा रहा है।
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अनिवार्य रूप से , अन्य रास्तो का प्रस्ताव कर रहे ये रणनीतिकार दीर्घकालीन खतरों की उपेक्षा कर रहे है , और उनके पास भारत की सेना को मजबूत और 'आत्मनिर्भर' बनाने का कोई खाका नहीं है।
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इसके अलावा ये सभी प्रस्तावक इस तथ्य की भी उपेक्षा कर रहे है कि उन्हें कोई भी बदलाव लाने के लिए दो तिहाई मौजूदा सांसदों का समर्थन चाहिए होगा या उन्हें 2 लाख कार्यकर्ताओ और 45 करोड़ नागरिको के समर्थन की जरुरत होगी। उनमे से ज्यादातर के प्रस्ताव सांसदों द्वारा खारिज कर दिए जाएंगे और 2 लाख कार्यकर्ताओ एवं 45 करोड़ नागरिको तक पहुंचने की उनके पास कोई योजना नहीं है। उनकी योजनाएं बेहद आसान दिखाई देती है , क्योंकि उनके सभी प्रस्ताव और योजनाएं अधूरी है !! उन्हें इस बात का भी कोई अंदाजा नहीं है कि यह काम किस हद तक चुनौतीपूर्ण है और इसका पैमाने का आकार क्या है।
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सामान्य समझ रखने वाले किसी भी व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि, ऐसे किसी भी राजनैतिक प्रस्ताव को मूर्त रूप देने के लिए उन्हें 2 लाख कार्यकर्ताओ और 45 करोड़ नागरिको के समर्थन की आवश्यकता होगी, जो प्रस्ताव धनिक वर्ग के हितो के खिलाफ है। और इसीलिए हमारे पास कोई शार्ट कट नहीं है। यह जरुरी है कि 2 लाख कार्यकर्ता ऐसे प्रस्तावों का समर्थन करें।
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तो इस प्रकार हम पर कई सारे और बहुत बड़े कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी है।
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