February 28, 2016 No.3
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153312284456922
यदि पेड राजदीप देसाई आदि मोदी साहेब के खिलाफ है , तो उन्होंने मोदी साहेब से आरक्षण पर कभी भी कोई सीधा सवाल क्यों नही पूछा ? इस बात से कोई फ़र्क़ नही आता कि मोदी साहेब इस सवाल पर क्या जवाब देते, पर वे चाहे जो भी जवाब देते उनके वोट कटना तय था।
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कहानी का सबक यह है कि --- राजदीप दरदेसाई और मोदी साहेब के प्रायोजक एक ही है। मोदी साहेब प्रायोजकों का अच्छे से ख़याल रखते है और बदले में वे राजदीप सरदेसाई जैसे लोगो को पैसा देते है ताकि वे मोदी के खिलाफ बयानबाजी करके उनके वोट बढ़ा सके !!
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अगर पेड मिडिया आरक्षण के मुद्दे को उठाता तो या तो आरक्षण की विरोधी अगड़ी जातियों के कार्यकर्ता उनसे नाराज हो जाते या फिर मोदी साहेब दलितों के वोट गँवाते।
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लेकिन मोदी विरोधियो के रूप में प्रचारित राजदीप सरदेसाई आदि पत्रकारों ने कभी मोदी साहेब को आरक्षण के मुद्दे पर प्रश्न नही किये।
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मोदी साहेब ने आरक्षण विरोधी कार्यकर्ताओ के सामने अपनी ऐसी छवि गढ़ी कि उन्हें लगा कि मोदी साहेब आरक्षण के खिलाफ है। मोदी साहेब ने कभी भी आरक्षण का विरोध करने वाला बयान नही दिया, लेकिन उन्होंने अपने हावभाव और उनके प्रायोजकों ने पेड मिडिया के सहयोग से ऐसा आभा मंडल तैयार किया, जिससे यह संकेत गया कि मोदी साहेब अपनी योग्यता के बूते इस मुकाम पर पहुंचे है और वे आरक्षण जैसे मुद्दो को व्यर्थ समझते है, तथा उनके प्रायोजकों ने ऐसा दिखाया कि मोदी साहेब तुष्टिकरण की नीति के खिलाफ है, और ज्यादातर आरक्षण विरोधी कार्यकर्ता आरक्षण को तुष्टिकरण की नीति से जोड़ कर देखते है। और इस प्रकार के समग्र प्रचार से मोदी साहेब के प्रायोजकों ने उनकी आरक्षण विरोधी छवि स्थापित की।
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और इसी दौरान मोदी साहेब ने कभी भी आरक्षण विरोधी बयान भी नहीं दिया , जिससे आरक्षण समर्थको ने सोचा कि बीजेपी के अन्य नेताओ की तरह ही मोदी साहेब भी आरक्षण के समर्थक है।
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अब यदि आप इस 'दूध-दही' यानी की दोनों पक्षों का समर्थन लेने की नीति पर चलेंगे तो आपको निश्चित रूप से पेड मिडिया का सहयोग लेना होगा। क्योंकि ऐसे मुद्दे को उठाकर कोई भी एक बड़ा मिडिया समूह आपके गुब्बारे को पंचर कर सकता है। और एक बार यदि मुद्दा उठ गया तो मोदी साहेब को उस पर अपना रूख स्पष्ट करना होगा। और फिर ऐसे मुद्दे पर जो भी राय रखे, उन्हें किसी एक पक्ष या दोनों पक्षों के वोट गंवाने पड़ेंगे।
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तो यदि पेड राजदीप सरदेसाई या पेड अर्नब पेड गोस्वामी (कहा जाता है कि, पेड अर्नब पेड गोस्वामी वेतन, भत्तो अलावा प्रति वर्ष 5 करोड़ रूपये अतिरिक्त बनाता है) मोदी साहेब के विरोधी थे तो उन्हें जरूर ही मोदी साहेब के सामने आरक्षण के विषय को उठाना चाहिए था ताकि मोदी साहेब को नुकसान हो।
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लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
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कारण यह है कि --- न तो मोदी साहेब न ही पेड राजदीप और न ही पेड अर्नब यह तय करते है कि किस मुद्दे को उठाया या दबाया जाना है।
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मोदी साहेब और पेड राजदीप के प्रायोजक एक ही है या फिर उनमे आपसी समझौता था। समझौता यह था कि --- मोदी साहेब इन प्रायोजकों के हितो की रक्षा करेंगे और बदले में पेड राजदीप सरदेसाई आदि मोदी साहेब के प्रधानमंत्री बन जाने तक आरक्षण का मुद्दा नही उठाएंगे।
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और इसी समय पेड़ राजदीप सरदेसाई को यह भौकने के लिए पैसा दिया गया कि , 'मोदी मुस्लिम विरोधी है, मोदी मुस्लिम विरोधी है'। इससे 2009 के चुनावो में जिन गिने चुने मुस्लिम मतदाताओ ने बीजेपी को वोट किया था वे बीजेपी से दूर छिटक गए और ऐसा बकते रहने के कारण लगभग 2 से 4 करोड़ हिन्दू मतदाता बीजेपी के साथ चिपक गए। तो क्या राजदीप मोदी विरोधी था और मोदी साहेब को नुकसान पहुंचा रहा था ? या वो बेवकूफ है ? सच्चाई यही है कि न तो राजदीप मोदी विरोधी है और न ही वो मूर्ख है। वह सिर्फ वही करता है जो करने के लिए उसके प्रायोजको द्वारा कहां जाता है।
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और अब चूंकि मोदी साहेब प्रधानमन्त्री बन चुके है , अत: उनके प्रायोजक उन्हें अपने काबू में बनाये रखना चाहते है। यदि मोदी साहेब बहुत ज्यादा ताकतवर और लोकप्रिय हो गए तो वे उनके प्रायोजकों के हाथ से निकल जाएंगे। इसीलिए अब पेड मिडिया आरक्षण के मुद्दे को विभिन्न राज्यों में उठाकर मोदी साहेब को मुश्किल में डाल रहा है।
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तो, यदि कोई सिर्फ बयानों के आधार पर यह समझता है कि पेड मिडिया मोदी साहेब के खिलाफ है, तो ऐसा समझना सिर्फ एक गलतफहमी है।
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यदि पेड राजदीप देसाई आदि मोदी साहेब के खिलाफ है , तो उन्होंने मोदी साहेब से आरक्षण पर कभी भी कोई सीधा सवाल क्यों नही पूछा ? इस बात से कोई फ़र्क़ नही आता कि मोदी साहेब इस सवाल पर क्या जवाब देते, पर वे चाहे जो भी जवाब देते उनके वोट कटना तय था।
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कहानी का सबक यह है कि --- राजदीप दरदेसाई और मोदी साहेब के प्रायोजक एक ही है। मोदी साहेब प्रायोजकों का अच्छे से ख़याल रखते है और बदले में वे राजदीप सरदेसाई जैसे लोगो को पैसा देते है ताकि वे मोदी के खिलाफ बयानबाजी करके उनके वोट बढ़ा सके !!
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अगर पेड मिडिया आरक्षण के मुद्दे को उठाता तो या तो आरक्षण की विरोधी अगड़ी जातियों के कार्यकर्ता उनसे नाराज हो जाते या फिर मोदी साहेब दलितों के वोट गँवाते।
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लेकिन मोदी विरोधियो के रूप में प्रचारित राजदीप सरदेसाई आदि पत्रकारों ने कभी मोदी साहेब को आरक्षण के मुद्दे पर प्रश्न नही किये।
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मोदी साहेब ने आरक्षण विरोधी कार्यकर्ताओ के सामने अपनी ऐसी छवि गढ़ी कि उन्हें लगा कि मोदी साहेब आरक्षण के खिलाफ है। मोदी साहेब ने कभी भी आरक्षण का विरोध करने वाला बयान नही दिया, लेकिन उन्होंने अपने हावभाव और उनके प्रायोजकों ने पेड मिडिया के सहयोग से ऐसा आभा मंडल तैयार किया, जिससे यह संकेत गया कि मोदी साहेब अपनी योग्यता के बूते इस मुकाम पर पहुंचे है और वे आरक्षण जैसे मुद्दो को व्यर्थ समझते है, तथा उनके प्रायोजकों ने ऐसा दिखाया कि मोदी साहेब तुष्टिकरण की नीति के खिलाफ है, और ज्यादातर आरक्षण विरोधी कार्यकर्ता आरक्षण को तुष्टिकरण की नीति से जोड़ कर देखते है। और इस प्रकार के समग्र प्रचार से मोदी साहेब के प्रायोजकों ने उनकी आरक्षण विरोधी छवि स्थापित की।
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और इसी दौरान मोदी साहेब ने कभी भी आरक्षण विरोधी बयान भी नहीं दिया , जिससे आरक्षण समर्थको ने सोचा कि बीजेपी के अन्य नेताओ की तरह ही मोदी साहेब भी आरक्षण के समर्थक है।
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अब यदि आप इस 'दूध-दही' यानी की दोनों पक्षों का समर्थन लेने की नीति पर चलेंगे तो आपको निश्चित रूप से पेड मिडिया का सहयोग लेना होगा। क्योंकि ऐसे मुद्दे को उठाकर कोई भी एक बड़ा मिडिया समूह आपके गुब्बारे को पंचर कर सकता है। और एक बार यदि मुद्दा उठ गया तो मोदी साहेब को उस पर अपना रूख स्पष्ट करना होगा। और फिर ऐसे मुद्दे पर जो भी राय रखे, उन्हें किसी एक पक्ष या दोनों पक्षों के वोट गंवाने पड़ेंगे।
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तो यदि पेड राजदीप सरदेसाई या पेड अर्नब पेड गोस्वामी (कहा जाता है कि, पेड अर्नब पेड गोस्वामी वेतन, भत्तो अलावा प्रति वर्ष 5 करोड़ रूपये अतिरिक्त बनाता है) मोदी साहेब के विरोधी थे तो उन्हें जरूर ही मोदी साहेब के सामने आरक्षण के विषय को उठाना चाहिए था ताकि मोदी साहेब को नुकसान हो।
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लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
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कारण यह है कि --- न तो मोदी साहेब न ही पेड राजदीप और न ही पेड अर्नब यह तय करते है कि किस मुद्दे को उठाया या दबाया जाना है।
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मोदी साहेब और पेड राजदीप के प्रायोजक एक ही है या फिर उनमे आपसी समझौता था। समझौता यह था कि --- मोदी साहेब इन प्रायोजकों के हितो की रक्षा करेंगे और बदले में पेड राजदीप सरदेसाई आदि मोदी साहेब के प्रधानमंत्री बन जाने तक आरक्षण का मुद्दा नही उठाएंगे।
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और इसी समय पेड़ राजदीप सरदेसाई को यह भौकने के लिए पैसा दिया गया कि , 'मोदी मुस्लिम विरोधी है, मोदी मुस्लिम विरोधी है'। इससे 2009 के चुनावो में जिन गिने चुने मुस्लिम मतदाताओ ने बीजेपी को वोट किया था वे बीजेपी से दूर छिटक गए और ऐसा बकते रहने के कारण लगभग 2 से 4 करोड़ हिन्दू मतदाता बीजेपी के साथ चिपक गए। तो क्या राजदीप मोदी विरोधी था और मोदी साहेब को नुकसान पहुंचा रहा था ? या वो बेवकूफ है ? सच्चाई यही है कि न तो राजदीप मोदी विरोधी है और न ही वो मूर्ख है। वह सिर्फ वही करता है जो करने के लिए उसके प्रायोजको द्वारा कहां जाता है।
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और अब चूंकि मोदी साहेब प्रधानमन्त्री बन चुके है , अत: उनके प्रायोजक उन्हें अपने काबू में बनाये रखना चाहते है। यदि मोदी साहेब बहुत ज्यादा ताकतवर और लोकप्रिय हो गए तो वे उनके प्रायोजकों के हाथ से निकल जाएंगे। इसीलिए अब पेड मिडिया आरक्षण के मुद्दे को विभिन्न राज्यों में उठाकर मोदी साहेब को मुश्किल में डाल रहा है।
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तो, यदि कोई सिर्फ बयानों के आधार पर यह समझता है कि पेड मिडिया मोदी साहेब के खिलाफ है, तो ऐसा समझना सिर्फ एक गलतफहमी है।
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