Saturday, July 4, 2015

संघ का शीर्ष नेतृत्व हमेशा से ही इस्लाम का छद्म विरोधी, ईसाइयत का प्रबल समर्थक और हिन्दू हितो के प्रति उदासीन रहा है (1-Jul-2015) No.2

July 1, 2015

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संघ का शीर्ष नेतृत्व हमेशा से ही इस्लाम का छद्म विरोधी, ईसाइयत का प्रबल समर्थक और हिन्दू हितो के प्रति उदासीन रहा है।
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भूमिका ---- लेख भारत की सबसे गंभीर समस्याओं जैसे सेना का लगातार कमजोर होना, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों/मिशनरीज़ का भारतीय राजनेतिक व्यवस्था में बढ़ता नियंत्रण, हिन्दू धर्म का लगातार सिकुड़ना, मिशनरीज़ द्वारा किये जा रहे धर्मान्तर, गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, महंगाई, शिक्षा, चिकित्सा आदि के समाधान के बारे में है। लेख में उन तथ्यों तथा तर्कों का समावेश है कि किस तरह संघ नामक छद्म हिन्दूवादी संगठन का शीर्ष नेतृत्व लाखो स्वयंसेवको तथा करोड़ो नागरिको को भ्रमित करके भारत में मिशनरीज़ के एजेंडे पर कार्य कर रहा है।
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हमारा एजेंडा भारत की सेना को अमेरिका के बराबर ताकतवर बनाना है, इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमने कई कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तावित किये है। लेख में उठायी गयी समस्याओ के समाधान के लिए हमारे द्वारा प्रस्तावित क़ानून ड्राफ्ट्स के लिंक भी दर्ज किये गए है, पाठको से अपेक्षा है कि इन क़ानून ड्राफ्ट्स को पढ़े तथा सहमत होने पर समर्थन देवें। यदि आपके पास इनसे बेहतर क़ानून ड्राफ्ट है, तो हमें उपलब्ध करवाएं, हम उनका भी प्रचार करेंगे।
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भारत की सबसे बड़ी समस्या सेना का कमज़ोर होना है। किसी भी देश की संप्रभुता सेना पर निर्भर करती है। युद्ध एक सतत प्रक्रिया है और शान्ति काल सिर्फ आगामी युद्ध के लिए विश्रांति है। जिस व्यक्ति/संस्था/संगठन/देश के पास संपत्ति तो होगी लेकिन उस संपत्ति की सुरक्षा करने का बूता नही होगा, उसे शक्तिशाली के आक्रमणों का सामना करना पड़ेगा, यह अनुभूत एतिहासिक तथ्य है। सेना मजबूत करने के लिए हमें स्वदेशी आधुनिक हथियारो का उत्पादन करना जरुरी है।
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गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं का निवारण तथा पुलिस प्रशासन, अदालतों को चुस्त बनाए बिना सेना को मजबूत बनाना सम्भव नही है, अत: हम इन सभी समस्याओ के समाधान के लिए भी कानूनी ड्राफ्ट्स प्रस्तावित कर रहे है, जबकि संघ उन सभी कानूनों का विरोध कर रहा है, जिन क़ानूनो का सम्बन्ध भारत की सेना को मजबूत करने तथा धर्मान्तर रोकने से है।
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लेख के अंतिम भाग में बताया गया है कि कैसे हम आम नागरिक किसी सरकार/नेता/पार्टी या संगठन के भरोसे बैठे न रह कर स्वयं देश की सभी समस्याओं के समाधान के अच्छे कानूनों को भारत में लागू करवा सकते है।
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भाग-1
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ज्यादातर मोदी-अंधभक्त, बीजेपी कार्यकर्ता और आरएसएस के स्वयंसेवक अपना अधिकांश सोशल मिडिया पर मुस्लिम विरोधी सामग्रियों का प्रचार करने में, तथा बचा हुआ वक्त नेहरु खानदान की जड़े खोदने में खपा दे रहे है। ऐसा करके उन्हें लगता है कि वे हिंदुत्व को मजबूत बना रहे है, जबकि संघ के इस एजेंडे पर कार्य करके वो अनजाने में हिंदुत्व और राष्ट्र को गंभीर क्षति पहुंचा रहे है।
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असल में भारत के वास्तविक दुश्मन मिशनरीज़ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां है। अमेरिका/ब्रिटेन/नेटो इनका प्रतिनिधित्व करते है। आज मिशनरीज़ के पास आधुनिक हथियार है, डॉलर है, तथा पूरे विश्व में ईसाइयत फैलाने का मिशन है। यदि हमने स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देकर व्यापार घाटे को कम नही किया तो हमारी हालत साउथ कोरिया जैसी हो जायेगी या हथियारों के अभाव में ईराक जैसी।
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1) साउथ कोरिया में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने प्रवेश किया था, तब कोरिया में ईसाइयत 3-4% थी । 90 के दशक में कोरिया दिवालिया हुआ और उनकी राष्ट्रीय संपत्तियां MNCs/मिशनरीज़ के हाथो में चली गयी। आज साऊथ कोरिया में ईसाई जनसँख्या का प्रतिशत 60% है ।
2) ईराक के तेल के कुँए लूटने के लिए जब अमेरिका ने आक्रमण किया तो ईराक में ईसाई जनसँख्या 5% थी, जो अगले दस वर्ष में बढ़कर 15% हो गयी।
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सऊदी अरब, कोरिया, इंडोनेशिया, ब्राजील, थाईलेंड, जिम्बाब्वे, ग्रीस के बाद अब 120 करोड़ की आबादी का हमारा देश मिशनरीज़ के लिए सबसे आसान और बड़ा शिकार है। जहाँ लूटने के लिए खनिज और धर्मान्तर के लिए करोड़ो गरीब और हथियार विहीन नागरिक है।
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मिशनरीज़ किसी भी देश में धर्मान्तर करने के लिए FDI और सेना का इस्तेमाल करती है। FDI के माध्यम से अर्थवय्वस्था को नियंत्रित किया जाता है, और कमाए गए मुनाफे में से कुछ हिस्सा CSR के जरिये मिशनरीज़ प्राप्त करती है। इसी कोष से मिशनरीज़ सूदूर इलाको में स्कूल, अस्पताल और चर्च के माध्यम से धर्मान्तर करती है।
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लेकिन स्थानीय धर्म की रक्षा के प्रति जागरूक कार्यकर्ताओं का ध्यान बंटाने के लिए उन्हें ऐसे संगठन की जरुरत होती है, जो ऐसा भ्रम खड़ा किये रहे कि अमुक संगठन स्थानीय धर्म की रक्षा के प्रति समर्पित है।
लेकिन किसी संगठन द्वारा ऐसा भ्रम कैसे खड़ा किया जा सकता है ?
अन्य प्रतिस्पर्धी स्थानीय धर्म (इस्लाम) का विरोध करके कार्यकर्ताओं का ध्यान बंटाइये।
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इसके लिए संघ के नेता लगातार इस्लाम विरोधी भड़काऊ बयान देते है, तथा इनकी सोशल मिडिया सेल 24×7 ऐसे पोस्ट्स की रचना करती है, जिनमें मुस्लिमों का विरोध दृष्टिगोचर होता है। संघ के समर्थक इन लुगदी साहित्य को चाव से पढ़ते, सुनते है और इन्हें फैलाने में लगे रहते है। इस पूरी कवायद में मुस्लिम धर्म के स्वास्थ्य पर कमोबेश कोई फर्क आये न आये हिन्दू धर्म लगातार कमजोर होता जा रहा है, जिससे भारत में मिशनरीज़ लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रहे है। जहाँ तक इस्लाम का प्रश्न है संघ उन सभी कानूनो का भी विरोध करता है जिनसे भारत में बढ़ते जा रहे ईस्लाम के गैरवाजिब प्रभाव को कम किया जा सकेl
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ईसाइयत को बढ़ावा देने, ईस्लाम का सांकेतिक विरोध करने और हिन्दू धर्म और राष्ट्र को कमजोर बनाने के लिए के लिए मोदी-अंधभक्त और स्वयंसेवक यह सब अनजाने में जबकि संघ का शीर्ष नेतृत्व ऐसा जानबूझ कर कर रहा है।
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नीचे दिए कुछ उदाहरणों से इसे समझा जा सकता है।
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1. धार्मिक और भाषायी आंकड़े
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2011 की जनगणना के सभी आंकड़े 2012 तक उपलब्ध हो चुके थे, लेकिन सोनिया गांधी ने धर्म और भाषा के आंकड़ो को दबा दिया तथा अन्य सभी आंकड़े जारी कर दिए। मोदी साहेब 2014 तक इन आंकड़ो पर चुप्पी साधे बैठे रहे तथा संघ ने भूले से भी कभी इन आंकड़ो को जारी करने की मांग नही की। यह आश्चर्य का विषय है कि जो संगठन हिन्दू हितो का राग अलाप कर सत्ता में पहुंचा उसके लिए इस बात का कोई महत्त्व नही है कि पिछले दशक में हिन्दू जन्संख्याँ में कितनी गिरावट आई है। अब जबकि सत्ता में आये 1 वर्ष बीत चुका है, मोदी सोनिया बन गए है और आंकड़ो को दबा के बैठे है।
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पूर्वोत्तर में 1991 से 2001 के बीच धार्मिक जनसँख्या वृद्धि दर* का प्रतिशत इस प्रकार था।
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*वृद्धि दर : मान लीजिये कि किसी क्षेत्र में हिन्दू आबादी 1 करोड़ तथा मुस्लिम आबादी भी 1 करोड़ थी, जो कि 10 वर्ष में बढ़कर 110 करोड़ तथा 125 हो गयी, तो कहा जाएगा कि जनसँख्या वृद्धि दर क्रमश: 10% तथा 25% रही।
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1. असम : हिन्दू 15%, मुस्लिम 29%, ईसाई 33%
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2. अरुणाचल प्रदेश : हिन्दू 18%, मुस्लिम 73%, ईसाई 130%
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3. नागालेंड : हिन्दू 25%, मुस्लिम 69%, ईसाई 69%
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4. मणिपुर : हिन्दू (-)5%, मुस्लिम 43%, ईसाई 36%,
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5. मिजोरम : हिन्दू (-)9%, मुस्लिम 122%, ईसाई 31%
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6. मेघालय : हिन्दू 18%, मुस्लिम 61%, ईसाई 42%
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7. त्रिपुरा : हिन्दू 15%, मुस्लिम 29%, ईसाई 142%
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इस समय मिशनरीज़ पूर्वोत्तर इलाके में सक्रीय है, अत: ईसाई वृद्धि दर धर्मान्तर की द्योतक है। चूंकि इस्लाम के पास धर्मान्तर के लिए स्कूल, अस्पताल, दवाइयां तथा पेड मिडिया उपलब्ध नही है, अत: मुस्लिम आबादी में अनपेक्षित बढ़ोत्तरी बांग्लादेशी घुसपेठ को दर्शाती है।
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1991 से 2001 तक भारत में बीजेपी, कोंग्रेस, जनता दल और संयुक्त मोर्चे की सरकारे रही । 2001 से 2011 तक की धार्मिक जनसँख्या के आंकड़े अब तक प्रकाशित नही हुए है, तथा इन आंकड़ो को दबाने में संघ सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। चूंकि मोदी साहेब भी अन्य राजनेतिक दलों की तरह एक सियासी दल के मुखिया है, अत: उनसे ऐसा कदम उठाने की उम्मीद करना नादानी है, जो कदम मिशनरीज़ को नुक्सान पहुंचाता हो।
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मूल विषय यह है कि पीएम बदलने से यह धर्मान्तर रुकने वाला नही है, जब तक कि हम सरकारी स्कूलों, अस्पतालों को दुरुस्त करने और गरीबी को कम करने के लिए आवश्यक कानूनों को गेजेट में प्रकाशित नही करे।
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संघ ने न आज तक इन आंकड़ो को जारी करने की मांग की, न ही अपने स्वयं सेवको को इस बारे में सूचना दी। संघ की तरफ से मामला रफा दफा है।
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2. गणित विज्ञान
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बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपनी तकनीक के बल पर पूरी दुनिया में कारोबार करती है। यदि किसी देश में गणित-विज्ञान का आधार मजबूत होगा, तो वह देश आने वाले समय में तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेगा, फलस्वरूप विदेशी कम्पनियों के व्यापार के अवसर सिकुड़ जायेंगे। अत: ये कम्पनियां विकासशील और पिछड़े हुए देशो में 8 वीं क्लास तक फेल न करने का क़ानून चाहती है, ताकि बच्चे 8 क्लास तक गणित विज्ञान न पढ़े। जाहिर है ये बच्चे हमेशा के लिए गणित विज्ञान को समझने में असफल रहेंगे। यही क़ानून मिशनरीज को भी फायदा देता है। सरकारी स्कूल तबाह होने से पिछड़े इलाको में गरीब तबके के पास मिशनरीज़ स्कूल में जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता, अत: धर्मान्तर के अवसर बढ़ जाते है। ज्ञातव्य है कि फिलिपिन्स में यह क़ानून 1980 में लागू किया था, आज वह पूरी तरह से ईसाई देश है, तथा उत्पादन के नाम पर वे सिर्फ सनसिल्क शेम्पू ही बनाते है।
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आप इस समय जो यह लेख पढ़ रहे है, इसके लिखने से लेकर पढने तक सब कुछ विज्ञान और गणित के कारण सम्भव हुआ है। आपके फोन, कम्पूटर से लेकर एप्लीकेशन तक सब कुछ विज्ञान-गणित की देन है। हम गणित-विज्ञान में पिछड़ गए इसलिए आपके हाथ में इस समय फोन, कम्पूटर से लेकर एप्लीकेशन तक सब कुछ विदेशी है, और इसिलिये हम हथियार निर्माण में पिछड़ कर परजीवी बने हुए है।
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लेकिन संघ की शिक्षा नीति इतिहास और संस्कृति के पुनर्लेखन से शुरू होकर उसी पर ख़त्म हो जाती है। आप संघियो से इस बात पर जी भर कर बहस करा लीजिये कि अकबर महान थे या महाराणा प्रताप, इतिहास में बाबर को प्रमुखता से पढ़ाया जाना चाहिए या पृथ्वीराज चौहान को, किन्तु संघ ने आज तक कभी सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए कभी कोई क़ानून प्रस्तावित नही किया। क्योंकि ऐसा करने से सरकारी स्कूलों का स्तर बेहतर होगा, जिससे गरीबी कम होगी और मिशनरीज़ के लिए धर्मान्तर के अवसर सिकुड़ जायेंगे। अत: सरकारी स्कूलों को बदहाल बनाए रखने के लिए संघ पाठ्यक्रम पर बहस छेड़ बाबर, अकबर, प्रताप और चौहान के इर्द गिर्द घूमता रहता है, और लाखो स्वयंसेवको को भी घुमाता रहता है, इससे मिशनरीज़ को धर्मान्तर में सहायता मिलती है।
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जहाँ तक मोदी सरकार की बात है, मोदी साहेब सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को तोड़ने के लिए मनमोहन से भी तेजी से कार्य कर रहे है। हाल ही में उन्होंने वसुंधरा और आनंदी बेन को सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को एनजीओ के हवाले करने के आदेश दिए है, तथा 8 वीं क्लास तक फेल न करने के क़ानून को हटाने से साफ़ इनकार कर दिया है। उल्लेखनीय है कि RTE के तहत आने वाले सभी स्कूलों में 8 वीं क्लास तक फ़ैल नही किया जा सकता अत: वहां शिक्षा का स्तर गिरता जाएगा, जबकि मिशनरीज़ स्कूल इस योजना से बाहर है अत: उनका स्तर सुधरेगा। वक़्त गुजरने के साथ मिशनरीज स्कूल में छात्रों की संख्या बढती जायेगी, और शिक्षा के एजेंडो को मिशनरीज़ नियंत्रित करेंगे।
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3. चिकित्सा
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जिस तरह सरकारी स्कूलों में आबाबिले मंडराती है, वही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है। सरकारी अस्पतालों का ढांचा गिरता जा रहा है और इसकी जगह निजी अस्पताल ले रहे है। जहाँ आपको बदहजमी या अपच की भी शिकायत हो तो डॉक्टर 3 तरह की खून जांच, एक्स रे और सोनोग्राफी लिख देता है। गरीब आदमी के लिए चिकित्सा महँगी वस्तु हो चुकी है। इससे मिशानिरिज़ को धर्मान्तर में सहायता मिलती है।
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संघ समर्थित वाजपेयी सरकार ने पेटेंट का क़ानून पास किया जिससे दवाइयों के दाम आसमान छू गए, लेकिन संघ इस क़ानून पर चुप्पी साधे रहा। क्योंकि ये क़ानून बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और मिशनरीज़ को सहायता पहुंचाता है।
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संघ ने आज तक कभी भी देश के सरकारी अस्पतालों को सुधारने के लिए कभी कोई क़ानून प्रस्तावित नही किये, जिससे इलाज महंगा होता जा रहा है और मिशनरीज़ को बढ़त मिल रही है।
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4. मिडिया
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जयेंद्र सरस्वती, नित्यानंद, आसाराम बापू तथा और भी ऐसे कई संतो पर आरोप लगने के बाद मिशनरीज़ संचालित मिडिया ने इन पर जी भर कर कीचड़ उछाला। कौन दोषी है कौन निर्दोष इसका फैसला अदालते करती है, लेकिन इनकी गैर जरुरी मिडिया ट्रायल की गयी तथा हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाया गया । इसी तरह PK, OMG तथा सिंघम-2 जैसे फिल्मो में हिन्दू धर्म, मंदिर, दान, संतो आदि का फूहड़ ढंग से चित्रण किया गया । सभी स्वयंसेवक 24×7 घंटे यह पोपाट मचाते रहते है कि मिडिया बिकाऊ है, लेकिन संघ ने कभी भी इसके समाधान के लिए मुँह नही खोला।
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संघ ने अपने स्वयंसेवको को यह जानकारी नही दी कि मिडिया इसलिए बिकाऊ है, क्योंकि वाजपेयी ने इसे मिशनरीज़ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को बेच दिया था। और तब संघ ने इसका समर्थन किया था । मिडिया में FDI की अनुमति देने से मिडिया हमारे नियंत्रण से बाहर चला गया और आज स्थिति हमारे सामने है।
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संघ ने भारतीय मिडिया को स्वतंत्र बनाने के लिए कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट नही दिए।
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इससे पहले कि मैं अन्य मसलो पर संघ की नीति स्पष्ट करूँ, पहले एक महत्त्वपूर्ण जानकारी रखना चाहता हूँ, जिससे ज्यादातर नागरिक अनभिग्य है। इस जानकारी के अभाव में आप स्थिति की गंभीरता को समझने में नाकाम रहेंगे।
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क्षेपक
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देश को क़ानून चलाते है, अत: व्यवस्था में किसी भी प्रकार का बदलाव लाने के लिए हमें क़ानून में बदलाव लाना पड़ेगा। यदि क़ानून अच्छे होंगे तो व्यवस्था अच्छी तरह से कार्य करेगी, यदि क़ानून बुरे होंगे तो व्यवस्था बुरे तरीके से कार्य करेगी । किसी भी तरह का बदलाव लाने के लिए सबसे जरुरी वस्तु प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट है। यदि कोई व्यक्ति/नेता/संगठन किसी समस्या के समाधान या बदलाव की बात कर रहा है, किन्तु वह समाधान के लिए ड्राफ्ट देने से इनकार करता है, मतलब वह व्यक्ति/नेता/संगठन मक्कार है, धूर्त है, बदमाश है और धोखेबाज भी है। असल में उसकी रुचि सिर्फ समस्या को उभाड़ कर वोट खींचने या कार्यकर्ताओं को अपने संगठन से चिपकाए रखने में है, समाधान में नही।
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उदाहरण के लिए कई संघठन देश में आरक्षण को ख़त्म करने के लिए मुहीम चला रहे है, लेकिन उनसे जब आप पूछते है कि 'आरक्षण कानूनन लागू है, अत: आरक्षण हटाने के लिए कौनसा नया क़ानून लाने का आप प्रस्ताव कर रहे है ? तो उनका मुहं घोड़े जैसा लटक जाता है।
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वे आरक्षण को नारे लगा कर हटाना चाहते है, जो कि सम्भव नही है। इसी तरह मिडिया बिकाऊ है बिकाऊ है, सरकारी स्कूल बेकार है बेकार है, जैसे जुमलो की मुहीम से न तो स्वतंत्र मिडिया की स्थापना हो सकती है, न ही स्कूलों का स्तर सुधर सकता है। इसलिए इस बात को समझना सबसे जरुरी है कि जहाँ भी कोई समस्या है, उसके समाधान के लिए हमें एक प्रस्तावित क़ानून की आवश्यकता है। क़ानून अच्छे या बुरे हो सकते है, लेकिन क़ानून विहीन विमर्श टाइम पास करने के सिवा कुछ नही है।
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क्षेपक समाप्त
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5. बांग्लादेशी घुसपेठ
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वाजपेयी ने बांग्ला देशी घुसपेठियो को खदेड़ने का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आकर पलट गए, तब संघ ने इस विषय पर 5 साला चुप्पी साध ली। मनमोहन सरकार आने के साथ ही संघ फिर से गीत गाने लगा कि, 'देखो बांग्लादेशी भारत में घुसे जा रहे है, इन्हें कोई रोकता नही'। चुनाव प्रचार में मोदी साहेब ने बंगाल में मंच से चेतावनी दी कि, '16 मई को बांग्लादेशियो को जाना पड़ेगा' । जैसा की जुमलो, भासणो और नारों से कभी कोई बदलाव नही आता अत: एक भी बांग्लादेशी घुसपेठिया वापिस बंगाल नही गया। सत्ता में आकर अब संघ फिर से इस मुद्दे पर चुप्पी साध के बैठा है।
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2001 में आडवाणी ने गृहमंत्री रहते हुए संसद में अनुमान व्यक्त किया था कि इस समय लगभग 1 करोड़ अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत में मौजूद है, जिनकी संख्या अब तक बढ़कर 2 करोड़ होने का अनुमान है l युद्ध के दौरान यदि चीन या पाक यदि इन्हे हथियार पहुंचा देता है, तो पूर्वोत्तर के हथियार विहीन नागरिक गाजर मूली की तरह कट जाएंगे और उन्हें जान बचाने के लिए मध्य भारत की और भागना पड़ेगा l पूर्वोत्तर हमारे हाथ से निकल जाएगा, क्योंकि हम इस प्रकार के नागरिक विद्रोह के लिए तैयार नहीं हैl
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घुसपेठियो को खदेड़ने के लिए पहले हमें उनकी पहचान करनी पड़ेगी, जिसके लिए नेशनल आई डी सिस्टम का क़ानून चाहिए। क्योकि ये दो करोड़ घुसपेठिये पूरे देश में बिखरे हुए है, जिनके पास वोटर आई डी से लेकर ड्राइविंग लाइसेंस तक सब कुछ है। केवल जाओ कहने से ये चले जाने वाले होते तो भारत में घुसते भी नहीं थे।
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2011 जनगणना के भाषाई आंकड़े जारी होने से यह तथ्य सामने आ जाएगा कि पिछले दशक में बांग्लादेशी घुसपेठियो की संख्या में कितना इजाफा हुआ है, अत: संघ ने इस आंकड़ो को जारी करने की कभी मांग नही की, बल्कि इन आंकड़ो को दबाये जाने का समर्थन किया।
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संघ ने पिछले 25 वर्ष में बांग्लादेशी घुसपेठियो को खदेड़ने के लिए कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तावित नही किया।
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6. मंदिर
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भारत के समृद्ध मंदिरों (खासकर दक्षिण भारत) को आने वाले विपुल दान का इस्तेमाल मिशनरीज धर्मान्तर में करती है। इसके लिए पहले मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में ले लिया जाता है, तथा मंदिरों के कोष का बटवारा विभिन्न धार्मिक संगठनों तथा कल्याणकारी ट्रस्टो को सेवा करने के लिए दे दिया जाता है। ये अधिकतर ट्रस्ट छद्म नाम से मिशनरीज़ द्वारा संचालित है, अत: मंदिरों के कोष का उपयोग मिशनरीज धर्मान्तर में कर पाती है। 2009 के अपने मेनिफेस्टो में बीजेपी ने वादा किया था कि वे यदि सत्ता में आये तो मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करेंगे, लेकिन 2014 में मोदी साहेब ने इस वादे को अपने मेनिफेस्टो से निकाल दिया। संघ ने खामोशी बरती।
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संघ ने 2012 में मंदिरों के स्वर्ण भंडारों को हडपने के मनमोहन-चिदंबरम-सोनिया के फैसले का सांकेतिक प्रतिरोध किया, किन्तु जब मोदी साहेब ने सत्ता में आकर तिरुपति से 2 टन सोना खींच लिया तब संघ ने उन्हें मौन समर्थन दिया। मोदी साहेब अब अन्य मंदिरों का सोना खींचने के लिए गोल्ड बांड ले आये है, तथा संघ इस फैसले का समर्थन कर रहा है।
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मोदी साहेब ने 'देवालय से पहले शौचालय' के बयान दिए, परेश रावल ने 'हिन्दू मंदिर सबसे गंदे पूजा स्थल है' कहा, आनंदी बेन ने ' मंदिरों को दान न देने' की अपील जारी कि ताकि मंदिरों के ढाँचे को तोडा जा सके लेकिन संघ खामोश रहा।
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संघ ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए कभी कोई क़ानून प्रस्तावित नही किया।
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7. न्यायालय
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भारत की अदालतों में 3 करोड़ केस लटके हुए है, तथा हमारी सुस्त अदालतें पूरी तरह से भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार से ग्रस्त है। अदालतों में दशको तक फैसले न आने से उत्पादन इकाइयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा मुकदमो की चपेट में आने वाले कारखाने लंबित न्याय के कारण बंद हो जाते है। नेताओं ने अदालतों से गठजोड़ बना रखे है, अत: दशको तक आरोपी नेता और जज तारीख पर तारीख खेलते रहते है, जिससे दबंग, भ्रष्ट, निरंकुश और बेईमान नेताओं को शीर्ष पदो पर टिके रहने का अवसर मिलता है। जहाँ तक धनिक वर्ग की बात है, तो उनके पास न्याय खरीदने या मुकदमे को घसीटने के लिए जजों को देने के लिए पर्याप्त पैसा है।
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किसी भी देश के सभी क़ानून रद्दी हो जाते है, यदि उन कानूनों को तोड़ने पर सजा दशको बाद दी जाए। हमारी उच्च तथा उच्चतम न्यायलयो में मिशनरीज़ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गहरी घुसपेठ होने से ऐसे फैसले दिए जाते है, जिससे हमारी निर्माण इकाइयों की कमर टूटे, अर्थव्यवस्था गर्त में जाए और हम विदेशी कम्पनियों पर निर्भर बने रहे।
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कैसे भारत की अदालतों को चुस्त और स्वतंत्र बनाया जा सकता है, इस सम्बन्ध में संघ ने आज तक न अपना कभी मुहं खोला है, न ही कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तावित किया है।
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8. स्वदेशी
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भारत की दुसरे नंबर की यह सबसे बड़ी समस्या है, जिससे हम जूझ रहे है। यदि हमने इस समस्या को हल नही किया, तो हम निश्चित रूप से शांतिपूर्ण गुलामी और दिवालियेपन की और बढ़ रहे है।
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चूंकि हमारी अदालतों में सालो तक फैसले नही आते, गणित और विज्ञान की शिक्षा को हम शून्य स्तर तक तोड़ चुके है, जमीन की कीमते आसमान छू रही है, वैट, सेल्स टेक्स, एक्साइज तथा प्रदुषण विभाग जैसे दर्जनों विभाग स्थानीय इकाइयों से पैसा खींच रहे है, अत: हमारी स्वदेशी इकाइयां धड़ाधड़ बंद हो रही है, आयात बढ़ता जा रहा है, निर्यात गिर रहा है और विदेशी मुद्रा का क़र्ज़ लगातार बढ़ रहा है।
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संघ अपने स्वयंसेवको से पिछले 25 साल से यह बात छुपाता आ रहा है कि, जिन विदेशी कम्पनियों को हमने व्यापार करने के लिए बुलाया है, उनके द्वारा कमाए गए मुनाफे के बदले जब हमें डॉलर्स का भुगतान करना होगा तो हम दिवालिये हो जायेंगे। हमें अपने खनिज, प्राकृतिक संसाधन और राष्ट्रीय संपत्तियां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंपनी पड़ेगी और पूरा देश नीलाम हो जाएगा।
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तब पूरी आर्थिक, राजनेतिक व्यवस्था पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कब्ज़ा होगा, और मिशनरीज़ भारत में बड़े पैमाने पर धर्मान्तर कर सकेंगे, जैसा कि उन्होंने दक्षिण कोरिया में किया।
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मिशनरीज की रीढ़ MNCs (FDI) को रोकने के लिए संघ ने कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट नही दिए।
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9. भुखमरी और खनन क्षेत्र में भ्रष्टाचार
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देश में व्याप्त सबसे बड़ा भ्रष्टाचार खनन क्षेत्र में है, तथा इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा काले धन का कारोबार होता है। खनिज राष्ट्र की संपत्ति है तथा इसके मालिक हम नागरिक है। यह देश तथा इसके प्राकृतिक संसाधन हमें विरासत में मिले है, अत: खनन से प्राप्त रोयल्टी पर देश के करोड़ो नागरिको का हक है। सरकार हमारी सेवक है, और देश चलाने के लिए हम उसकी नियुक्ति करते है । सरकारों को अपने खर्चे टेक्स से निकालने चाहिए, न कि खनिजो से प्राप्त रोयल्टी से।
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देश की संपत्ति जो भी है, वह प्राकृतिक संसाधन और खनिज है, अत:हमारा प्रस्ताव है कि खनन से प्राप्त रोयल्टी नागरिको के खाते में भेजी जानी चाहिए। इससे नागरिको को उनका हक मिलने लगेगा, जिससे भुखमरी, नक्सलवाद, खनिजो की लूट और भ्रष्टाचार ख़त्म होगा और धर्मान्तर में कमी आएगी।
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संघ ने इस समस्या के समाधान के लिए कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट नही दिए।
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10. सेना
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यह भारत की सबसे बड़ी समस्या नही बल्कि सबसे बड़ा खतरा है, जिसका सामना हम कर रहे है। यदि हमने भारतीय सेना को अमेरिका के बराबर मजबूत नही बनाया तो हमारी आजादी सिर्फ एक युद्ध की गुलाम है। जिस दिन युद्ध हुआ उसी दिन हम ख़त्म।
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यह दुराशा सिर्फ स्वयंसेवको को कल्पित लग सकती है, क्योंकि संघ ने उन्हें यह जानकारी कभी नही दी कि सेना से मतलब हथियार होता है न कि वर्दीधारी रंगरूट। और आयातित हथियारों से उस देश से लड़ाई नही की जा सकती जो देश हमें हथियार निर्यात कर रहा है। यदि हम पर चीन हमला करता है, तो हम सिर्फ तब तक लड़ सकते है जब तक अमेरिका हमे हथियार देता है, चाहे अमेरिका हमसे 10 गुना दाम ही क्यों न वसूल करे। लेकिन यदि अमेरिका खुद हमला कर देता है या पाकिस्तान को अपने हथियार देता है, तो हम किसके हथियारों से लड़ेंगे। यदि ऐसा हुआ तो भारत के हालात ईराक जैसे हो जायेंगे और पूरा भारत ही ईसा हो जाएगा।
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संघ ने भारत की सेना को मजबूत करने के लिए, आधुनिक हथियारों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए और हथियार बंद नागरिक समाज की रचना के लिए कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट नही दिए।
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मैंने ये 10 मुख्य बिन्दु रखे है, जिन्हें विस्तारित करके 100 तक किया जा सकता है। जैसे 2G, कोल ब्लोक घोटालो को रोकने के लिए नागरिको की ज्यूरी द्वारा पब्लिक में नार्को टेस्ट, काले धन की रोकथाम के लिए मोरिशस रूट की समाप्ति, कृषि में रासायनिक खाद और GM फसलो पर बढती निर्भरता के कारण किसानो की आत्महत्या, कृषि क्षेत्र में लगातार दर्ज की जा रही गिरावट, आसमान छूती जमीनों की कीमते, जमीनों में काले धन का निवेश, नक्सल वाद की समस्या, खनिजो की बेतहाशा लूट, अन्यायिक रूप से जमीनों का अधिग्रहण आदि आदि।
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हालांकि संघ ने इन सभी समस्याओं के निस्तारण के लिए भी कभी कोई कानूनी ड्राफ्ट नही दिए है, लेकिन मैं अपने विषय को संघ के 'हिन्दुवाद' तक ही सिमित रखूँगा।
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भाग- 2
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स्तम्भ का यह भाग इस बारे में है कि किस तरह संघ का शीर्ष खुद के संगठन को बचाने और बढाते रहने के लिए मिशनरीज, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सहायता और हिंदुत्व को नुक्सान पहुचाता है। संघ का शीर्ष नेतृत्व ऐसा जानबूझकर करता आ रहा है, तथा आज भी कर रहा है।
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हमारे सरकारी स्कूलो, अस्पतालो का ढांचा टूट रहा है, गणित विज्ञान जीरो है, अदालते घोंघा चाल से सरक रही है, तकनीक और निर्माण में हम जमा हो चुके है, मोबाइल फोन तक हम आयात कर रहे है युद्धक टैंक और फाइटर प्लेन की तो बात ही छोड़ दीजिये, डॉलर का कर्ज बढ़ता जा रहा है, गरीबी, भुखमरी, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार शाश्वत समस्याएं है, सेना हथियारों के मामले में परजीवी है, हमारा मिडिया विदेशी चला रहे है, मतलब हम हर क्षेत्र में लगातार पिछड़ते जा रहे है, और इसे ढकने के लिए हम मेक इन इण्डिया के नाम से विदेशी कम्पनियों को बुला रहे है। जिनको बुलाना तो हमारे हाथ में है लेकिन भेजना हमारे हाथ में नहीं है।
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ऐसी स्थिति में देश के सबसे बड़े अराजनेतिक संगठन की इन समस्याओं के समाधान में रूचि नही हो, ये बात समझ में नही आती। लेकिन तब संदेह गहरा जाता है, जब संघ इन समस्याओं के समाधान के कानूनों का विरोध करने लगे।
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या तो हम यह मान ले कि शिक्षा, चिकित्सा, सेना, अर्थव्यवस्था, स्वदेशी हथियारों का उत्पादन, अदालतें, तकनिकी विकास, घटता निर्यात बढ़ता आयात, भ्रष्टाचार, गरीबी, भुखमरी आदि समस्याएँ पोची समस्याएं है, किन्तु यदि इन मुद्दों का राष्ट्र की समृद्धि से सरोकार है, तो संघ इन समस्याओं के निराकरण पर खामोश ही नही है बल्कि विरोध भी कर रहा है।
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क्यों मैं संघ पर यह आरोप लगा रहा हूँ ?
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1. हम देश के सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालो की दशा सुधारने के लिए राईट टू रिकाल शिक्षा अधिकारी तथा राईट टू रिकाल चिकित्सा अधिकारी के कानूनी ड्राफ्ट को गेजेट में छापने की मांग कर रहे है। जिसका ड्राफ्ट इस लिकं पर देखा जा सकता है।
tinyurl.com/RtrShiksha
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2. अमेरिका में किसी भी मुकदमे का फैसला 10 से 15 दिनों के भीतर आ जाता है, क्योंकि वहां दंड देने की शक्ति नागरिको की ज्यूरी के पास है। हम भारत की अदालतों को सुधारने के लिए ज्यूरी सिस्टम तथा बड़े स्तर के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अपराधी का सार्वजनिक रूप से नार्को टेस्ट करने की मांग कर रहे है, जिसका ड्राफ्ट इस लिंक पर देखा जा सकता है :
tinyurl.com/NichliCourt
tinyurl.com/NarcoJury
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ज्यूरी सिस्टम में किसी भी मुक़दमे की सुनवाई के लिए मतदाता सूची में से रेंडमली 12 से 15 नागरिको को समन भेजे जाते है, इन नागरिको के समूह को ज्यूरी कहते है , मुकदमे की सुनवाई इन आम नागरिको द्वारा की जाती है और ये नागरिक ही मुक़दमे में फैसला देते है । हर मुक़दमे के लिए अलग अलग नागरिको की ज्यूरी होती है। ज्यूरी बहुमत से अपना फैसला जज को देती है और जज फैसले की व्याख्या करके जजमेंट दे देता है। हाईकोर्ट ज्यूरी में 50 - 60 जबकि केस विशेष में 1500 नागरिको तक की ज्यूरी सुनवाई कर सकती है ।जिनका चयन राज्य की मतदाता सूची से किया जाता है। मुलजिम को जानकारी नही होती कि लाखो नागरिको में से कौन उसके मुकदमे का फैसला करने वाला है। इस प्रकार भ्रष्टाचार शून्य हो जाता है तथा लाखो न्यायधीश होने से फैसलों का निपटारा त्वरित गति से होता है।
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जज प्रणाली - सुस्त,भ्रष्ट और निरंकुश व्यवस्था । ( भारत )
ज्यूरी व्यवस्था - चुस्त, त्वरित, ईमानदार और जवाबदेह व्यवस्था। ( अमेरिका,ब्रिटेन )
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3. स्वदेशी इकाइयों को बचाने और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रो में विदेशी कम्पनियों को व्यापार की अनुमति न देने के लिए हमने इस क़ानून का प्रस्ताव किया है :
tinyurl.com/SwadeshiBadhao
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4. गरीबी कम करने और खनिजो की लूट रोकने के लिए हम प्रस्ताव कर रहे है कि खनन से प्राप्त रोयल्टी का दो तिहाई सीधे नागरिको के खाते में तथा एक तिहाई सेना के खाते में भेजा जाए। प्रस्तावित DDMRCM क़ानून का ड्राफ्ट :
tinyurl.com/TeenLineKanoon
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5. स्वतंत्र मिडिया की स्थापना के लिए हम राईट टू रिकाल दूरदर्शन अध्यक्ष के क़ानून को गेजेट में प्रकाशित करने की मांग कर रहे है।
tinyurl.com/RtrDdAdhyaksh
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इसके अलावा हमने बांग्लादेशी घुसपेठियो को खदेड़ने, मोरिशस रूट को समाप्त करने तथा हथियार बंद नागरिक समाज की रचना के लिए भी क़ानून प्रस्तावित किये है।
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जब हमने संघ को इन कानूनों का समर्थन करने को कहा तो संघ ने इस कानूनों का समर्थन करने से इनकार कर दिया। तब हमने संघ से इन समस्याओं के समाधान के लिए अपने कानूनी ड्राफ्ट देने के लिए कहा तो संघ ने अपने ड्राफ्ट देने से भी इनकार कर दिया। हो सकता है कि हमारे ड्राफ्ट बुरे हो इसलिए हमने संघ से अपने अच्छे ड्राफ्ट देने का जब बार बार आग्रह किया तो संघ ने किसी भी समस्या का कानूनी ड्राफ्ट देने से इनकार कर कर दिया। इस स्थिति में यह स्पष्ट होता है कि मिशनरीज, MNCs और संघ एक ही एजेंडे पर कार्य कर रहे है। चूंकि समस्या का समाधान सिर्फ क़ानून बना कर ही किया जा सकता है अत: मिशनरीज और MNCs कभी नही चाहती कि इन समस्याओं के निराकरण के लिए क़ानून बनाए जाए।
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संघ के इतिहास में झाँकने से संकेत मिलते है कि संघ हमेशा से ही मिशनरीज़ और MNCs के प्रति उदार ही नही बल्कि सहयोगात्मक भी रहा है।
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महात्मा भगत सिंह जी, आजाद, सान्याल, लाजपत राय आदि गरम दल के नेताओं को रोकने के लिए अंग्रेजो ने गांधी का इस्तेमाल किया था। गांधी एक टाइम वेस्टर था, जिसने अंग्रेजो के खिलाफ हिंसक आन्दोलन करने वाले युवाओं को चरखे चलाने, अनशन करने और भजन गाने जैसी फिजूल गतिविधियों में उलझा दिया। इस तरह गांधी अंग्रेजो के नुक्सान की अहिंसा के गीत गाकर कम कर रहे थे, वही दूसरी तरफ पेड मिडिया के माध्यम से अंग्रेज गांधी को भारत में मसीहा की तरह स्थापित कर रहे थे।
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जिस देश में अंग्रेजो की हुकूमत हो, उस देश में वही विचारधारा पनप सकती थी जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजो को लाभ पहुंचा रही हो। अत: गांधी, नेहरु, टैगोर, बिडला, बजाज, साराभाई और सिंधिया समेत वे सभी देशी राजा खूब पनपे जिन्होंने अपने शरीर पर देश भक्ति की खाल चढ़ा रखी थी लेकिन भीतर से वे अंग्रेजो को फायदा पहुंचा रहे थे।
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वीर सावरकर, भगत, आजाद, लालाजी, सुखदेव, बटुकेश्वर, उधम सिंह और सुभाष बाबू जैसे सच्चे क्रांतिकारी महात्माओं को दमन का सामना करना पड़ा और अंग्रेजो ने इनमे से किसी को नही बख्शा।
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संघ के की स्थापना 1925 में हुयी और 1947 तक संघ के स्वयंसेवको की संख्या लगभग 8 लाख हो चुकी थी। किन्तु यह बात समझ से बाहर है कि क्यों कभी संघ के सरसंघ संचालक हेडगेवार और माधव सदाशिव गोलवलकर कभी गिरफ्तार नही किये गए,न ही उन्हें किसी प्रकार के दमन का सामना करना पड़ा, कि क्यों संघ ने 1947 तक अंग्रेजो के खिलाफ कभी कोई आन्दोलन नही किया, कि क्यों ब्रिटिश हुकूमत में संघ फूलता फलता रहा।
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कोंग्रेस की तरह ही संघ को भी अंग्रेजो का मौन समर्थन हासिल था, क्योंकि दोनों ही संघठन कार्यकर्ताओं का टाइम फिजूल गतिविधियों में कर के अंग्रेजो को लाभ पहुंचा रहे थे।
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खिलाफत आन्दोलन को गांधी द्वारा समर्थन दिए जाने के कारण हिन्दुओ का गांधी से मोहभंग हुआ और हिन्दू महासभा की ताक़त बढ़ने लगी। हिन्दू महासभा को वीर सावरकर और मदन मोहन मालवीय का समर्थन था और ये हथियारों की मांग कर रहे थे। 1857 की क्रान्ति के बाद अन्य किसी सशस्त्र विद्रोह की आशंका को ख़त्म करने के लिए अंग्रेजो ने आर्म्स एक्ट लागू कर के भारतीय नागरिको के सभी हथियार जब्त कर लिए और हथियार रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। अंग्रेज जानते थे की 40 करोड़ की आबादी को 70 हजार अंग्रेज सिर्फ तब तक ही काबू में रख सकते है जब तक कि अवाम हथियार विहीन हो। संघ और गांधी दोनों ही भारतीयों को हथियार विहीन बनाने के अंग्रेजो के एजेंडे पर कार्य कर रहे थे l
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कोंग्रेस पर अंग्रेजो का नियंत्रण था, किन्तु महासभा अंग्रेजो को वास्तविक नुक्सान पहुंचाने के एजेंडे पर कार्य कर रही थी। महासभा के दमन से पहले हिंदूवादी कार्यकर्ताओं का टाइम वेस्ट करने के लिए एक छद्म राष्ट्रवादी-हिंदूवादी संगठन की जरुरत थी जो कि खाली स्थान को भर सके। हेडगेवार महासभा में बंगाल प्रकोष्ठ के अध्यक्ष थे। अंग्रेजो ने देशी राजाओं को महासभा के बरअक्स एक संघठन खड़ा करने की अनुमति दी, जो कि महासभा के एजेंडे के खिलाफ कार्य करे।
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1925 में हेडगेवार ने संघ की स्थापना की।
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संघ ने महासभाईयों के एजेंडे के उस एजेंडे को पलट दिया जो अंग्रेजो को नुक्सान पहुंचा सकते थे। महासभा का स्पष्ट रूख 'हिन्दू' था अत: संघ ने इसकी जगह 'राष्ट्र' शब्द चुना। संघ सावरकर के हिन्दूवाद से सहमत नही था, अत: उसने इसे राष्ट्रवाद तक विस्तारित कर दिया। महासभा हथियारों की मांग कर रही थी, अत: संघ ने हथियारों की जगह अपने शस्त्र के रूप में लाठी को चुना। महासभा हिन्दुओ को राजनेतिक रूप से संघठित होकर चुनावों में उतरने का आवाहन कर रही थी, अत: संघ ने स्वयंसेवको को राजनीति से दूर रहने और सेवा कार्य करने का सन्देश दिया।
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संघ ने अंग्रेजो को भारत से खदेड़ने के लिए मुहीम चलाने की जगह अंग्रेजो का गांधीनुमा सांकेतिक प्रतिरोध किया और लाखों कार्यकर्ताओं को कम्बल बांटने, गायों को चारा खिलाने, खून इकट्ठा करने, भोजन बांटने, राष्ट्र भक्ति के गीत गाने, ड्रम शंख बजाने, हलके व्यायाम करने, पथ-संचलन करने आदि में व्यस्त कर दिया, बदले में अंग्रेजो ने संघ को फलने फूलने दिया।
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इस बात को समझने के लिए किसी विशेष बुद्धि की आवश्यकता नही है कि गजनी से लेकर बाबर और अंग्रेज भारत को जीतने में इसी कारण सफल रहे क्योंकि भारत के नागरिको के पास हथियार नही थे तथा भारत के पास आधुनिक हथियारों का अभाव था। यह एक मात्र कारण था जिस कारण भारत गुलाम बना। आखिरकार जब जंग होती है तो सिर्फ हथियार ही आपकी रक्षा करते है। लेकिन संघ का पिछले 90 वर्षो का इतिहास है कि न तो संघ ने भारत की सेना को मजबूत करने के लिए कभी कोई क़ानून प्रस्तावित किये न ही आम नागरिको को हथियार रखने देने की छूट का समर्थन किया।
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यहाँ एक स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि, क्या संघ राष्ट्रविरोधी संगठन है ?
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मेरे विचार में संघ पर राष्ट्रविरोधी होने का सीधा आरोप लगाना न्यायपूर्ण नही है। किन्तु यह तथ्यात्मक रूप से सही है कि संघ हिन्दू तथा राष्ट्र हितो की जानबूझ कर अवहेलना कर रहा है । इसका एक मात्र निकटस्थ कारण जो मैं देखता हूँ, वह यह है कि संघ ने राष्ट्रहित की तुलना में अपने अस्तित्व को बनाए रखना चुना है।
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तब भी और अब भी
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दंड देने का अधिकार (अदालतें) और सेना अक्षय शक्ति की स्त्रोत है। गुलाम भारत में अंग्रेजो के पास सेना, अदालते, प्रशासन और पेड मिडिया था। अत: किसी भी संगठन की उत्तरजीविता अंग्रेजो से टकराव टालने पर ही निर्भर थी। यदि आप अंग्रेजो को नुक्सान नही पहुचाएंगे तो आपको भी नुक्सान नही होगा। संघ के शीर्ष नेतृत्व ने टकराव टालने को चुना। यदि आप टकराव मोल लेंगे तो आपको प्रतिरोध और दमन का सामना करना पड़ेगा, जिसमे जान-माल की क्षति होना स्वाभाविक है। आजादी के बाद भारत में काले अंग्रेजो की सरकार बनी, तथा संघ ने अगले कुछ दशको तक नेहरु-गांधी-कांग्रेस की सरकारों से टकराव टालते हुए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में निवास किया। वाजपेयी सरकार के दौरान भी आज मोदी सरकार के शासन काल में भी संघ ने सरकार से टकराव टालने को चुना है।
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एक मासूम प्रश्न यहाँ यह उठ सकता है कि आज तो संघ खुद सत्ता में है, तब संघ किससे टकराव टाल रहा है ?
इसका कडुवा और सच्चा जवाब यह है कि संघ सत्ता में नही है, संघ मोदी सरकार की उस चौपाया कुर्सी का महज एक पाया है, जो कुर्सी मिशनरीज/MNCs, सांसदों और पेड मिडिया के पायों पर टिकी है । यदि संघ इन तीनो शक्ति पुंजो से टकराव लेता है तो कुर्सी अस्थिर हो जायेगी और इन तीनो के अलावा स्वयं बीजेपी के विधायक और मंत्री भी संघ के खिलाफ हो जायेंगे, अत: संघ को दमन का सामना करना पड़ेगा, जिससे उसके 5 करोड़ अंधसेवको की फ़ौज खड़ी करने और सत्ता का उपभोग करने की योजना पर पलीता लग जाएगा।
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*यदि आप कुर्सी के पायों में आम नागरिको या 80 करोड़ मतदाताओं को खोज रहे है, तो उनकी वहां कोई उपस्थिति नहीं है। क्योंकि भारत के नागरिको के पास सिर्फ चुनने का अधिकार है, नौकरी से निकालने का नही। राईट टू रिकाल प्रधानमन्त्री क़ानून के अभाव में एक बार चुन लिए जाने के बाद मतदाताओं की भूमिका शून्य होती है। ज्ञातव्य है कि महर्षि दयानंद सरस्वती, महात्मा भगत, आजाद, सान्याल तथा राजिव भाई राईट टू रिकाल कानूनों के समर्थक रहे है, और संघ इन कानूनों का 1925 से ही विरोध कर रहा है।
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वस्तुत: तब भी और अब भी, मिशनरीज़ और MNCs से टकराव ठानने के लिए जिन आंतो और गुर्दों की आवश्यकता है, संघ का नेतृत्व उससे तब भी विहीन था और अब भी विहीन है।
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संघ की उत्तरजीविता इस पर निर्भर करती है कि वह मिशनरीज/MNCs, जो कि देश के वास्तविक दुशमन है, के क्रिया कलापों में टांग न अड़ाए। यहाँ टांग अड़ाने से आशय उन क़ानूनो का प्रचार करने, मांग करने और लागू करवाने के प्रयास करने से है, जिन कानूनों के लागू होने से हिन्दू धर्म और राष्ट्र वास्तविक अर्थो में मजबूत हो और मिशनरीज़/MNCs की पकड़ भारत पर से कमजोर हो जाए। आज मिशनरीज़ के पास स्कूल्स है, अस्पताल है, बहुराष्ट्रीय कम्पनियां है, पेड मिडिया है, अदालतों, प्रशासन पर नियंत्रण है तथा भारत की सेना एवं अर्थव्यवस्था उन पर निर्भर है। अत: संघ इन मुद्दों को हल करने के कानूनों पर खामोश है, और नारो बयानो और भाषणों का गुल-गपाड़ा करने से ये मुद्दे कभी हल हो नही सकते,यह बात मिशनरीज़ और संघ का नेतृत्व दोनों अच्छे से जानते है।
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लेकिन इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता कि संघ MNCs/मिशनरीज़ को नुकसान पहुंचाने वाली मुहीम को तोड़ने की गतिविधियों में लिप्त रहा है। इस संदर्भ में एक उदाहरण महात्मा राजिव दिक्षित जी का है।
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राजिव भाई ने 25 वर्षो तक निरंतर गाँव-गाँव शहर-शहर घूम कर विदेशी कम्पनियों के निवेश से आने वाली बर्बादी के बारे में लाखो नागरिको को परिचित करवाया। वे विदेशी कम्पनियों को रोकने के लिए जन-आन्दोलन खड़ा कर रहे थे। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को दिवालिया करने वाले मोरिशस रूट को केंसिल करने का केस हाईकोर्ट में जीत लिया था, जिससे विदेशी कम्पनियों द्वारा जारी लूट पर लगाम लगती।
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चूंकि राजिव भाई सच्चे अर्थो में विदेशी कम्पनियों को फायदा पहुंचाने वाले कानूनों को रद्द करवाने और विदेशीकम्पनियों की घुसपेठ को रोकने के लिए आवश्यक कानूनों की मांग कर रहे थे, अत: संघ ने उनकी मुवमेंट को तोड़ने और विदेशी कम्पनियों को सुरक्षित करने के लिए 'स्वदेशी जागरण मंच' की स्थापना की। स्वदेशी जागरण मंच ने पेड मिडिया और संघ के सहयोग से सभी स्वदेशी में मानने वाले कार्यकर्ताओं को खींच कर उनका इस्तेमाल वोट में किया। बीजेपी जब सत्ता में आयी तो स्वदेशी जागरण मंच के यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री बने और उन्होंने अगले ही दिन हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्कुलर निकाल कर मोरिशस रूट के जारी रहने पर मुहर लगा दी। इतना ही नहीं उन्होंने सभी क्षेत्रो में विदेशी निवेश को अनुमति दिए जाने का समर्थन किया। स्वदेशी के नारे लगाने वाले करोड़ो अंध-भगत आज भी उसी संघ और बीजेपी से चिपके हुए है, जिन्होंने महात्मा राजीव दिक्षित जी की मूवमेंट तोड़ने की साज़िश रची थी।
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जिन कार्यकर्ताओं ने राजिव भाई के व्याख्यान नहीं सुने है, वे यदि 1992 से 1998 तक के राजिव भाई के व्याख्यान सुने तो पायेंगे कि राजिव भाई ने गांधी परिवार को जितना एक्सपोज़ किया उतना बीजेपी और संघ मिलकर आज तक भी नही कर पाए है, उन्ही खुलासो से सम्बंधित तथ्यों और चित्रों के आधार पर इमेजेज़ और पोस्ट बना बना कर संघ और बीजेपी की सोशल मिडिया सेल ने फेसबुक/वाट्स एप को गाँधी खानदान विरोधी सामग्री से पाट रखा है। संघ इन खुलासो पर 40 साल चुप्पी साधे रहा, तथा जब राजिव भाई ने इन्हें प्रकाशित कर दिया तब संघ और बीजेपी ने इनका राजनेतिक इस्तेमाल करके सत्ता हासिल की। संघ के स्वयंसेवक और मोदी साहेब के अंध-भगत देश के कानूनों को सुधारने की जगह आज भी इन 20 साल पुराने खुलासो को जन जन तक फैलाने में लगे हुए है।
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यह स्तम्भ संघ के बारे में है, अत: मैं मोदी साहेब को इसमें शरीक नही करूँगा। लेकिन एक कैफियत उनके बारे में यह देनी वाजिब है, कि इन मसलो की निस्बत मोदी साहेब को उतना दोषी नही ठहराया जा सकता। जिस प्रकार कोई परचून का व्यापारी यह मिसाल पेश करे कि उसने लोगो के राशन की फ़िक्र को हल करने के लिए यह कारोबार शुरू किया है न कि मुनाफा कमाने के लिए, तो आप तो आप उसे गंभीरता से नहीं लेंगे, उसी तरह सियासी दलों की बुनियाद हुकूमत हासिल करने और उसे जारी रखने पर टिकी होती है, न कि मुल्क को बचाने के लिए। बहरहाल मोदी साहेब भी एक सियासी दल की नुमाइंदगी करते है और उनसे अपवाद होने की उम्मीद करके हम उंनके साथ ज़्यादती कर रहे है।
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सरकारे हमेशा से सत्तावादी रही है, और इसी से उनका वजूद है, लेकिन कार्यकर्ताओं और राष्ट्रवादी समूहों का यह फ़र्ज़ है कि वे जन दबाव द्वारा सरकारों को ऐसे क़ानून लागू करने पर मजबूर करे जिनसे देश की सेना और अर्थव्यवस्था मजबूत हो। मोदी साहेब कल सत्ता में नही थे और कल रहेंगे भी नही, कल मनमोहन थे आज नही है, सरकारे और नेता आने जाने के लिए ही है, किन्तु नागरिक संगठन लगातार मौजूद रहते है, सरकारों पर दबाव डाल कर सही दिशा में बनाए रखने के लिए। और यही पर देश का सबसे बड़ा देशभक्त स्वयंसेवको का संगठन देश को बचाने की जगह खुद को बढाने में लगा हुआ है, जो कि 120 करोड़ नागरिको के भविष्य के लिए घातक साबित होगा।
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भाग- 3
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यह भाग इस बारे में है कि संघ किस तरह अपने प्रिय मुद्दों को हल करने की जगह उनका इस्तेमाल अपनी राजनैतिक ताकत बढाने और सत्ता हासिल करने में करता है।
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मेरे विचार में भारत की कमजोर होती सेना और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का हमारी अर्थव्यवस्था, प्रशासन और राजनैतिक व्यवस्था पर बढ़ता नियंत्रण सबसे गंभीर मुद्दे है। किन्तु यह कहा जा सकता है कि यह मेरा एजेंडा हो सकता है, संघ का नही। इसलिए मैं इस भाग में संघ के उन मुद्दों पर चर्चा करूँगा, जो मुद्दे संघ का अस्तित्व है।
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संघ का गायवाद
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चूंकि पुलिस प्रशासन राज्यों के अधीन है, अत: केन्द्रीय स्तर पर बनाया गया कोई भी क़ानून गौ-हत्या रोकने में सक्षम नही है। 1966 के गौ-आन्दोलन के बाद पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोडकर, समय के साथ सभी राज्यों में धीरे धीरे गौ-हत्या निषेध बिल पास हुए। तो पहली बात तो यह है कि पूर्वोत्तर को छोड़कर सभी राज्यों में गौ-हत्या पहले से निषेध है, लेकिन दूसरी बात यह है कि चूंकि क़ानून बेहद कमजोर और लचीले है, अत: गौ-हत्या जारी है। अब यदि हमें गौ-हत्या रोकनी है तो वर्तमान क़ानूनो की जगह राज्यों में नए मजबूत क़ानून लाने होंगे।
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संघ से जब मैंने सम्पर्क करके कहा कि मैं भारत में गौ-हत्या निषेध करने का समर्थन करता हूँ तथा आपके इस कार्य में सहयोग करना चाहता हूँ, अत: आप मुझे आपका गौ-हत्या निषेध करने का कानूनी ड्राफ्ट दीजिये, ताकि मैं नागरिको में इस क़ानून का प्रचार कर सकूं। तो संघियों ने मुझसे कहा कि हमने ऐसा कोई क़ानून प्रस्तावित नही किया है। तब मैंने उन्हें यह क़ानून दिखाया :
tinyurl.com/GoHatyaRokoKanoon
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संघ ने कहा कि हम इस क़ानून का समर्थन नहीं करते। संघ ने न तो मुझे कोई कानूनी ड्राफ्ट दिया न ही मेरे ड्राफ्ट को समर्थन दिया।
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पड़ताल करने पर अनाधिकृत जानकारी मिली कि मोहन भागवत ने बीजेपी शासित सभी मुख्यमंत्रियों को गौ-हत्या निषेध के लिए कठोर क़ानून पास न करने के निर्देश दे रखे है। बीजेपी की इस विरोधाभासी नीति को एक्सपोज़ करने के लिए जब कोंग्रेस के विधायक आकिल आसिफ ने एमपी विधानसभा में गौ-हत्या निषेध बिल पेश किया तो, भागवत ने शिवराज सिंह से कह कर इस बिल को विधान सभा में गिरवा दिया। तारीख थी, 13 जुलाई 2014.
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यह इत्तिफाक है कि देश की सभी गौ-शालाएं संघ और उसके आनुषांगिक संगठनो द्वारा संचालित है, और उनमे करोडो का दान आता है, किन्तु उनकी गणना तथा पंजीयन की कोई व्यवस्था नही है। इत्तेफाक है कि, जब मोदी साहेब ने 2002 में गुजरात की सत्ता संभाली तब मीट का उत्पादन 9 लाख मीट्रिक टन था जो 2012 में बढ़कर 22 लाख मीट्रिक टन हो गया, इत्तिफाक से मनोहर पर्रीकर बैलो की कटवाई को कानूनी बनाए जाने के लिए हाईकोर्ट में केस लड़ रहे है, इत्तिफाक है कि दान से गायो के पलने के कारण गौ-मांस 170 रू किलो में उपलब्ध है जबकि मटन और चिकन के लिए 400 रू चुकाने पड़ते है। इत्तिफाक से मोदी साहेब ने कत्लखानो को दी जा रही सब्सिडी को जारी रखा है, तथा कटवाई में काम आने वाली मशीनों का आयात शुल्क 4% घटा दिया है। ये सुपर पिंक रिवोलुशन है।
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आरएसएस और उसके स्वयंसेवक सोशल मिडिया पर गाय बचाने के नारे लगा कर गौ-हत्या निषेध करना चाहते है। क़ानून बनाने मैं उनकी रुचि नही है। रुचि क्यों नही है, इसे ऊपर दिए विवरण से समझने में कोई कठिनाई नही होनी चाहिए। बहरहाल गाय वोट और नोट का मुनाफा देंने वाला कारोबार है, और इस धंधे को कोंग्रेस और आम आदमी पार्टी नियंत्रित नही करती।
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मंदिरों का प्रशासन सुधारने के लिए क़ानून बनाने की जगह जिस तरह आनंदी बेन ने अपील जारी की कि, 'कृपया मंदिरों को दान न दे', उसी तर्ज पर गौ-शालाओं का प्रबंधन सुधारने की जगह यदि कल भागवत ऐसी अपील जारी नही करते है कि, 'गौ-शालाओ को दान न दे', तो इसका कारण हितो का टकराव है।
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संघ का मंदिर वाद
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राम मंदिर मुद्दा जबकि 1949 से ही कोर्ट में लंबित है, 1990 में संघ ने कहा कि हमें वोट देने से हम संसद में मंदिर निर्माण के लिए क़ानून बना देंगे। वाजपेयी के सत्ता में आने पर बहुमत नहीं होने का हवाला दिया गया। अब बहुमत आने पर राज्यसभा में बहुमत नही होने का हवाला दिया जा रहा है। इस सम्बन्ध में राजनाथ का कहना है कि राज्यसभा में बहुमत नही है, शाह कहते है कि 370 सीट चाहिए, संघ कहता है कि अव्वल तो मामला अदालत में है दुसरे बीजेपी को मंदिर बनाने के लिए वक़्त दिया जाना चाहिए, जबकि राज्यवर्धन ने राम भक्तो को जोकर साबित करने के लिए यह कह दिया कि अयोध्या में राम मंदिर बन चुका है।
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हमने संघ के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि देश के करोड़ो नागरिक अयोध्या में राम-मंदिर बनाना चाहते है तो हम नेताओं और राज्यसभा में बहुमत के भरोसे क्यों बैठे है ?
जबकि संविधान के अनुसार किसी भी विषय पर जनमत संग्रह द्वारा क़ानून बनाया जा सकता है।
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हमने उन्हें तीन लाइन के क़ानून के बारे में बताया tinyurl.com/TeenLineKanoon
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[कलेक्टर के लिए निर्देश ]
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1) यदि कोई मतदाता कलेक्टर कार्यालय में उपस्थित होकर कोई शपथपत्र प्रस्तुत करता है, तो कलेक्टर 20 रू प्रति पेज की दर से शुल्क लेकर उस शपथपत्र को प्रधानमन्त्री की वेबसाईट पर डाल देगा।
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[पटवारी के लिए निर्देश]
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2) यदि कोई मतदाता पटवारी कार्यालय में जाकर ऐसे किसी शपथपत्र पर हाँ या ना दर्ज करता है, तो पटवारी उसे दर्ज करेगा और प्रधानमन्त्री की वेबसाईट पर डाल देगा।
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[सभी के लिए निर्देश]
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3) यदि देश के कुल मतदाताओं के 51% मतदाता किसी शपथपत्र पर हाँ दर्ज कर देते है, तो प्रधानमन्त्री ऐसे शपथ पत्र पर कार्यवाही कर सकते है।
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पूरा ड्राफ्ट ऊपर दिए लिंक पर देखें
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यदि इन तीन लाइनों को गेजेट में छाप दिया जाता है, तो अगले ही दिन संघ/विहिप या कोई भी नागरिक राम मंदिर निर्माण का प्रस्ताव धारा एक के तहत पीएम की वेबसाईट पर दर्ज कर देगा, और धारा दो का उपयोग करके करोड़ो नागरिक इस प्रस्ताव पर हाँ दर्ज कर सकेंगे ।इस तरह जनता के समर्थन से राम मंदिर ही नही, बल्कि मथुरा में कृष्ण तथा काशी में विश्वनाथ मंदिर के निर्माण के प्रस्ताव को भी जनता के बहुमत से पास किया जा सकता है।
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जब हमने संघ को इस क़ानून का समर्थन करने को कहा तो उन्होंने इस क़ानून का विरोध किया। तब हमने संघ से कोई अन्य क़ानून ड्राफ्ट देने को कहा जिस से भारत के करोड़ो नागरिक अपनी बात पीएम के सम्मुख रख सके। संघ ने साफ़ कहा कि हम जनता को ऐसा कोई भी अधिकार देने के खिलाफ है। यदि आपको इस बात पर यकीन न हो तो आप खुद संघ के नेतृत्व से संपर्क करके इस तथ्य की पुष्टि कर सकते है।
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पाठक इस सम्बन्ध में स्वयं फैसला कर सकते है कि संघ क्यों ऐसे निरापद क़ानून का विरोध कर रहा है, जो कि आम नागरिक को अपनी सम्मति रखने का अधिकार देता है।
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मंदिरों के प्रशासन पर संघ की नीति
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धर्म के दो आयाम है, मीमांसा और प्रशासन। मीमांसा में धर्म की व्याख्या, दर्शन, विश्वास, अध्यात्म तथा यम नियम आदि शामिल है, जबकि प्रशासन धर्म की भौतिक संस्थाओं जैसे मंदिर, आश्रम, पूजा स्थल, दान आदि के प्रबंधन से सम्बंधित है। इस सम्बन्ध में हिन्दू धर्म के श्रधालुओं को बहुत कम जानकारी है कि धर्म का प्रशासन ही धर्म को मजबूत बनाता है। यदि किसी धर्म के पूजा स्थलों तथा संस्थाओं का प्रशासनिक संगठन सुव्यवस्थित होगा तो धर्म ज्यादा मजबूती से टिका रहेगा।
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प्रशासनिक दृष्टी से मौजूदा धर्मो में सिक्ख धर्म का प्रशासन सबसे मजबूत है, जबकि हिन्दू धर्म कुप्रबंधन का शिकार है। ईसाई और इस्लाम धर्म का प्रशासन भी हिन्दू धर्म की तुलना में काफी बेहतर है, फलस्वरूप पिछली दो शताब्दियों में इन धर्मो को पूरी दुनिया में विस्तार हुआ जबकि हिन्दू धर्म लगातार सिकुड़ता गया।
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कैसे हिन्दू धर्म के प्रशासन को लोकतांत्रिक और मजबूत बनाया जा सकता है, इसके लिए हमने यह क़ानून प्रस्तावित किया है :
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tinyurl.com/HinduSashakt
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जब हमने संघ के नेतृत्व से इस क़ानून का समर्थन करने को कहा तो, उन्होंने इनकार कर दिया। हमने संघ से कहा कि भारतीय मंदिरों का प्रशासन टूटा हुआ है, जिससे हिन्दू धर्म कमजोर हो रहा है, अत: आप इस समस्या के समाधान के लिए अपना ड्राफ्ट दीजिये। संघ ने कोई भी ड्राफ्ट देने से मना कर दिया। यह विषय कितना गंभीर है, इसे समझने के लिए मैं आपसे आग्रह करूँगा कि आप ऊपर वर्णित ड्राफ्ट का अध्ययन करें।
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सारांश यह है की :
1. संघ शिक्षा, चिकित्सा के बुनियादी ढाँचे को सुधारने तथा खनिजो की रोयल्टी नागरिको के खाते में भेजने का विरोध कर रहा है, ताकि भारत में गरीबी बढे और मिशनरीज को धर्मान्तर में सहायता मिले।
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2. सुस्त और भ्रष्ट अदालतों को सुधारने, भारत की सेना को मजबूत बनाने तथा स्वदेशी हथियारों के उत्पादन को बढ़ावा देने वाले कानूनों का विरोध कर रहा है।
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3. राम-कृष्ण-विश्वनाथ मंदिर के निर्माण, मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने तथा हिन्दू धर्म के प्रशासन को सुगठित बनाने, गौ-हत्या निषेध के लिए आवश्यक कानूनों का विरोध कर रहा है।
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4. बांग्लादेशी घुसपेठियो को खदेड़ने, राष्ट्रीय पहचान पत्र प्रणाली, भारतीय मिडिया को स्वतंत्र बनाने और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की घुसपेठ रोकने के लिए आवश्यक कानूनों का विरोध कर रहा है।
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इस प्रकार के हिन्दु राष्ट्रवाद को समझना मेरी सहज बुद्धि से बाहर है, फिर भी करोड़ो नागरिक और लाखों स्वयसेवक इस भ्रम को पाले बैठे है कि संघ हिन्दू तथा राष्ट्रहित में कार्य करता है।
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भाग- 4
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यह भाग इस बारे में है कि किस तरह संघ इस्लाम का विरोध करके यह भ्रम खड़ा किये रहता है कि, वह हिन्दू धर्म तथा राष्ट्र हितो के लिए कार्य कर रहा है।
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इस बात को समझने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओ पर प्रमुखता से ध्यान देना होगा ----1) वास्तविक परिवर्तन सिर्फ और सिर्फ कानूनों में बदलाव करके ही लाये जा सकते है, 2) कार्यकर्ताओं का मूल मुद्दो से ध्यान भटकाने के लिए उनका टाइम अनुपयोगी कार्यो में बरबाद कर देना राजनीति की सबसे चालाक रणनीति है, 3) जनता उसी दिशा में सोचती है, जिस दिशा में सोचने के लिए पेड मिडिया उन्हें प्रेरित करता है।
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देश को क़ानून चलाते है। प्रधानमन्त्री/मुख्यमंत्री/सांसद/विधायक आदि का काम क़ानून बनाना है। जो भी प्रस्ताव क़ानून का रूप लेता है, वही देश में लागू होता है। अन्य सभी गतिविधियाँ जैसे बयान, नारे, भाषण, एलान, मन की बातें, आरोप प्रत्यारोप, आश्वासन, वादे आदि जनता का मनोरंजन करने और उन्हें इन फिजूल कार्यो में व्यस्त रखने के पैंतरे है। हमारे नेता जान बूझकर बयानों की नौटंकी करते रहते है, ताकि जनता का ध्यान कानूनों की और न जा पाए। और संघ इस तमाशे का सबसे बड़ा मदारी है।
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संघ हिन्दू धर्म तथा राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक सभी कानूनों का विरोध करता है, तथा लगातार इस्लाम को कोसता है। इससे संघ को निम्नलिखित फायदे होते है।
1. पूरे विश्व में इस्लाम तथा ईसाइयत के बीच टकराव हो रहा है। अत: इस्लाम के खिलाफ नफरत फैलाना मिशनरीज़ और संघ का साझा एजेंडा बन जाता है। उदाहरण के लिए यदि भारत में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत उच्च जन्म दर और अवैध घुसपेठ के कारण बढ़ रहा है तो संघ के नेता बयान देंगे की हिन्दुओ को 10 बच्चे पैदा करने चाहिए, लेकिन यदि आप उनसे इसके समाधान के लिए टू चाइल्ड पालिसी या नेशनल आईडी सिस्टम का ड्राफ्ट देने को कहेंगे तो संघी इनकार कर देंगे, यदि आप उन्हें कोई ऐसा क़ानून दिखाएँगे तो उसका विरोध करेंगे। इस स्थिति में मुस्लिम जनसँख्या की वृद्धि दर जारी रहती है और धार्मिक जनसँख्या का असंतुलन बिगड़ता है, जबकि भावुक भक्त सोचते है कि संघ बिगड़ते धार्मिक असंतुलन पर कार्य कर रहा है।
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2. इस्लाम के खिलाफ जहर उगलने से भावुक और सरल ह्रदय नागरिक समझते है कि संघ हिंदूवादी संगठन है, परन्तु वे यह नही समझ पाते कि संघ इस्लाम विरोधी है न कि हिन्दुओ का हितेषी। इससे लोगो का सारा ध्यान इस्लाम को लतियाने में लगा रहता है, तथा हिन्दू धर्म को कमजोर बनाए रखने के मिशनरीज़ और संघ के साझा एजेंडे पर कार्यकर्ताओं का ध्यान नही जा पाता। मुतमईन होने के लिये आप स्वयं संघ से पूछ सकते है कि पिछले 90 साल में हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के लिए संघ ने कितने क़ानून प्रस्तावित किये।
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3. मिशनरीज़/MNCs का मुख्य एजेंडा भारत की सेना को कमजोर बनाए रखना और हमारी अर्थव्यवस्था को अधिगृहित करना है, ताकि पूरे भारत को इसाई बनाया जा सके। अत: संघ इन मुद्दों पर खामोशी बरतता है, जिससे मिशनरीज़/MNCs लगातार अपना एजेंडा आगे बढ़ाती रहती है। यदि कोई नागरिक आन्दोलन पनपता है तो संघ उसे तोड़ने के लिए काम करके मिशनरीज को सहायता पहुंचाता है।
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4. चूँकि इस्लाम के खिलाफ विष वमन करने से ध्रुवीकरण होता है, अत: इसका फायदा संघ को वोटो के रूप में मिलता है, और अपने राजनैतिक संगठन बीजेपी के सत्ता में आने पर संघी उच्च पदों पर विराजमान होकर सत्ता की मलाई खाते है। खट्टर, फड़नवीस, शिवराज, गडकरी आदि तथा खुद मोदी साहेब संघ से ही आये है, और सत्ता के मझौले स्तर पर कितने संघी कहाँ कहाँ घुसे पड़े है कोई हिसाब नहीं।
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नया उदहारण राम माधव का है, जिन्होंने अन्ना आंदोलन के दौरान अपने स्वयंसेवको को लोकपाल क़ानून का समर्थन करने का आदेश दिया था, क्योंकि भारत में लोकपाल क़ानून मिशनरीज़/बहुराष्ट्रीय कम्पनियो का एजेंडा है अत: तोहफे के रूप में राम माधव संघ से प्रोमोट होकर पार्टी में ऊँचा पद पा गए है। ये आदमी जो तीन साल से MNCs के एजेंडे लोकपाल के समर्थन में मुहीम चला रहा है को दुनिया भर की पंचायत करने की फुर्सत है लेकिन बिगड़ते धार्मिक संतुलन को रोकने के लिए 'टू चाइल्ड पॉलिसी' का कानून लिखने की फुर्सत नहीं है।
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चूंकि समस्या का समाधान सिर्फ कानूनों से ही हो सकता है, अत: संघी समाधान के कानूनों की बात करने की जगह हिन्दुओ को एक करने और जगाने जैसे दार्शनिक जुमलो में उलझा कर रखते है। इस से समस्या का समाधान होने की जगह लाखो कार्यकर्ताओ की ऊर्जा और समय नष्ट हो जाता है, जिससे मिशनरीज़ को बढ़त मिलती है।
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भारत का मिडिया मिशनरीज और MNCs के नियंत्रण में है, तथा सभी राजनेतिक दल तथा नेता सकारात्मक कवरेज के लिए पेड मिडिया पर निर्भर है। चूंकि संघ मिशनरीज़ के एजेंडे पर कार्य करता है, अत: सभी पार्टियों के नेता जनता के सामने संघ को हिंदूवादी की छवी में प्रस्तुत करने के लिए उद्धत रहते है। इससे उन पर मिशनरीज़ की कृपा बनी रहती है।
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जैसा कि सभी जानते है बसपा, सपा तथा कोंग्रेस जैसे दल पूरी तरह मिशिनरीज/MNCs के हाथो बिकी हुयी पार्टियां है, अत: मुलायम और दिग्विजय जैसे नेता संघ पर हिन्दुवादी होने के बराबर आरोप लगाते रहते है। दरअसल ये नेता ऐसे बयान देकर संघ को नुकसान नही दे रहे होते है, बल्कि उसकी हिंदूवादी छवी को स्थापित कर रहे होते है। क्योंकि वे जानते है कि मिशनरीज़/MNCs द्वारा संचालित पेड मिडिया इन बयानों को उछालेगा, जिससे संघ से चिपके स्वयंसेवक इस नशे में गाफिल बने रहेंगे कि संघ हिंदूवादी संगठन है। इस प्रकार पेड मिडिया लगातार संघ के हिंदूवादी छवी को उसी तरह बनाए रखता है, जिस तरह ब्रिटिश पेड मिडिया के माध्यम से करोड़ो नागरिको में ये भरोसा बनाए रखते थे कि मोहन गांधी आजादी की लड़ाई लड़ रहा है।
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दो शब्द दिग्गजों के बारे में जो संघ को कटघरे में खड़ा करते है।
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1. मोहन उर्फ़ दुरात्मा गांधी : अब यह लगभग खुली हुयी बात है कि मोहन गांधी अंग्रेजो के पार्टनर थे तथा अंग्रेजो के शासन को बचाने के लिए अनशन धरनो का नाटक करके टाइम पास कर रहे थे। संघ ने मोहन की इस नीति के विरोध में कभी कोई अधिकृत स्टेंड नही लिया बल्कि अधिकृत तौर पर संघ आज भी उस नराधम के आदर्श का समर्थक है, जिसने भारत को हथियार विहीन करने में मुख्य भूमिका निभायी और नतीजे में विभाजन के दौरान 20 लाख हिन्दुओ को जान से हाथ धोना पड़ा। लेकिन संघ ने अनाधिकृत रूप से गांधी को मुस्लिम-समर्थक बनाने पर कार्य किया, और ध्रुवीकरण करके वोटो की फसल काटी। आप आज भी संघ से पूछ सकते है कि, क्या वो मोहन के राष्ट्रपिता अलंकरण को बनाए रखने का समर्थन करता है, तो जवाब मिलेगा, हाँ। क्योंकि मोहन और संघ दोनों ही अंग्रेजो के लिए कार्य कर रहे थे।
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2. महात्मा राजिव भाई दिक्षित : इनके बारे में ऊपर विवरण दिया जा चुका है। संघ ने इनके भागीरथ कार्यो का विरोध किया, क्योंकि राजिव भाई ब्रिटेन और अमेरिकी सत्ता के बढ़ते नियंत्रण के खिलाफ कार्य कर रहे थे।
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3. महात्मा वीर सावरकर : भारत में हिन्दू राष्ट्र और प्रखर राष्ट्रवाद के दर्शन को स्थापित करने वाले पहले व्यक्ति, जिन्हें अंग्रेजो ने वैचारिक तौर पर अंग्रेजी शासन के लिए सबसे खतरनाक आँका, तथा उन्हें दो बार काले पानी भेजा। संघ ने उनका विरोध किया और उनके एजेंडे को नुक्सान पहुंचाया। विवरण ऊपर दिया जा चुका है।
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4. अहिंसा मूर्ती महात्मा उधम सिंह जी : इनके बारे में नागरिको को बहुत कम जानकारी है। उधम सिंह जी ने जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के जिम्मेदार गवर्नर ड्वायर को 1940 में लन्दन जा कर फांसी दी थी। यदि आप उधम सिंह जी को पागल और विकृत आत्मा की संज्ञा देते है तो आप संघ के सबसे लम्बे समय तक सरसंघ संचालक रहे माधवराव सदाशिव गोलवलकर है। इस उद्वरण का कोई पुख्ता सूत्र उपलब्ध नही है, किन्तु यह तय है कि संघ ने उधम सिंह जी के कृत्य की निंदा की थी। यह लिखने की आवश्यकता नही कि उधम सिंह जी किसके खिलाफ काम कर रहे थे तथा संघ ने उनका विरोध क्यों किया।
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5. महात्मा सुभाष चन्द्र बोस : क्या संघ ने कभी सुभाष बाबू को राष्ट्रपिता का अलंकरण दिए जाने की मांग की ? जब सुभाष बाबू हिन्दुओं को हथियारों का प्रशिक्षण देने, सेना में भर्ती होने की मुहीम चला रहे थे, तो संघ ने उनका विरोध क्यों किया। कारण यह था कि सुभाष बाबू अंग्रेजो के खिलाफ बावर्दी सशस्त्र फ़ौज खड़ी कर रहे थे, न कि टाइम पास करने के लिए निकर और लाठी से लेस समूह की।
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6. देवी इंदिरा गांधी : इंदिरा जी ने आपातकाल लगाया था इसकी हम कड़े शब्दों में निंदा करते है, और संघ भी करता है। आपातकाल के लिए इंदिरा जी को माफ़ नही किया जा सकता, संघ भी नही करना चाहता। किन्तु आपातकाल 2 वर्ष के लिए था, इंदिरा जी ने अपने कार्यकाल के शेष 15 वर्ष में क्या किया, इस बारे में संघ कोई बात नही करना चाहता जबकि इस बारे में भी नागरिको को जानकारी दी जानी चाहिए। इंदिरा जी ने भारत की सेना को मजबूत बनाने के लिए युद्ध स्तर पर गतिविधियाँ प्रारम्भ की थी। उन्होंने रॉ का गठन किया, परमाणु बम का निर्माण किया, लड़ाकू विमान तेजस, अर्जुन टेंक निर्माण के प्रोजेक्ट शुरू किये, सेना की संख्या बढ़ाई, पाकिस्तान के दो टुकड़े किये, FDI को अनुमति नही दी, राजाओं के प्रिवीपर्स केंसिल किये, बेंको का राष्ट्रीयकरण किया, राजधानी और शताब्दी ट्रेने शुरू की, पेटेंट के क़ानून को पास करने से इनकार किया, थोरियम पर शोध को आगे बढ़ाया और खालिस्तान की मूवमेंट को तीन दिन के आपरेशन में हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया।
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सेना मजबूत करने के प्रयासों के कारण इंदिरा जी के खिलाफ मिशनरीज़/MNCs लगातार षड्यंत्र कर रही थी, ऐसे में उनके पास दो ही विकल्प थे, ----1) वे नियंत्रण बनाए रखने के लिए आपातकाल लगाए, 2) ज्यूरी सिस्टम और राईट टू रिकाल कानूनों को लागू करे।
दुर्भाग्य से उन्होंने आपातकाल को चुना जो कि उनकी सबसे बड़ी भूल थी। यदि वे ये क़ानून लागू कर देती तो खालिस्तान की समस्या भी शान्ति पूर्ण तरीके से हल हो जाती और उन्हें ब्लू स्टार जैसा हत्याकांड नही करना पड़ता।
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आपातकाल और ब्लूस्टार को छोड़कर इंदिरा जी ने ऐसे कई फैसले किये जिनसे राष्ट्र मजबूत हुआ। बीजेपी एक राजनेतिक पार्टी है, अत: किसी अन्य राजनेतिक पार्टी के नेता की तारीफ़ करना उन्हें राजनेतिक नुक्सान पहुंचाएगा, किन्तु यदि संघ एक राष्ट्र वादी संघठन है तो संघ ने इंदिरा जी के इन फैसलों का हमेशा विरोध क्यों किया। इसकी जगह संघ ने अनाधिकृत रूप से इंदिरा जी को मुस्लिम होने से जोड़ा और उनकी इस छवी को उभाड़कर धुर्विकरण द्वारा वोट खींचे। आज भी संघ की आई टी सेल उनके मुस्लिम परस्त होने की सामग्रियों का सोशल मिडिया पर प्रचार करती है, तथा हिंदूवादी अफीमची उनके बारे में यह जानकारी जन जन तक फैलाने के कार्य में लगे हुए है जिसने पाकिस्तान के दो टुकड़े किये।
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निष्कर्ष यह है कि जो भी व्यक्ति/संगठन मिशनरीज/MNCs के एजेंडे के खिलाफ कार्य करेगा, संघ उनका विरोध करेगा । यदि ऐसे व्यक्ति को मुस्लिमो से जोड़ा जा सकता है तो संघ उन्हें इस्लाम से जोड़कर वोट खींचेगा और खुद के हिंदूवादी संगठन होने का भ्रम खड़ा करेगा।
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भाग- 5
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यह भाग समाधान के बारे में है कि किस तरह हम अपने देश की गंभीर समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक क़ानून लागू करवा सकते है।
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1990 तक भारत के राजनेतिक दल और नेता एक हद तक खुदमुख्तार थे, लेकिन WTO एग्रीमेंट के बाद स्थिति बदल गयी। बेहिसाब FDI आने से विदेशी कम्पनियों ने भारत की अर्थ और राजनेतिक व्यवस्था में गहरी घुसपेठ बना ली है। आज सभी राजनेतिक दल मिशनरीज़ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गुलामी करने को मजबूर है। सभी नेता और राजनेतिक दल सकारात्मक कवरेज के लिए पेड मिडिया पर निर्भर है तथा पेड मिडिया बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और मिशनरीज़ पर निर्भर है। अत: किसी भी नेता को यदि कुर्सी पर बने रहना है तो उसे मिशनरीज़ और MNCs के एजेंडे पर कार्य करना होता है। संघ जैसे संगठन से देशहित में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन संघ के शीर्ष नेतृत्व ने भी अपने अस्तित्व को बचाने और अपनी ताकत बढाने के लिए मिशनरीज़/MNCs के एजेंडे पर ही कार्य करने को चुना है।
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यदि हमें भारत को मजबूत बनाना है, जो कि सेना को मजबूत बनाए बिना सम्भव नही है, तो हम आम नागरिको को इसके लिए प्रयास करने होंगे। सिर्फ आम नागरिक ही ऐसा करने में सक्षम है, सरकारों, नेताओ, और अन्य विशाल संगठनो से इसकी उम्मीद करना बेमानी है।
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हम आम नागरिक कैसे देश को विकसित और मजबूत बना सकते है ?
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1. नेता-भक्ति बंद करे----- हमे नेता द्वारा पास किये जा रहे कानूनों पर ध्यान देना चाहिए, यदि वो अच्छे क़ानून बनाता है तो समर्थन करे, और बुरे कानूनों की आलोचना करे । इससे नेता पर अच्छे कानूनों को पास करने का दबाव बना रहता है।
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2. पार्टी की क़ानून धारा से जुड़े न कि विचार धारा से----- विचारधाराएँ लागू नही की जा सकती तथा इनकी व्याख्या करने वाला इन्हें अपनी सुविधानुसार बदलता रहता है। पार्टियाँ नागरिको को भरमाने कानूनों से ध्यान हटाने के लिए विचारधाराओं के गुब्बारे छोड़ती रहती है। नागरिको को चाहिए कि पार्टियों से प्रस्तावित कानूनों की मांग करे।
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3. देश को क़ानून चलाते है----- विचारधारा, उपदेश, भाषण, मन की बातें, प्रवचन, सलाहे आदि दर्शन शास्त्र के विषय है, जबकि नारे, आरोप-प्रत्यारोप आदि वोट खींचने के लटके। लेकिन राजनीति दर्शन और लटको का विषय नही है, राजनीति नीति (क़ानून) बनाने का विषय है। अत: राजनीति पर सभी प्रकार के विमर्श, बहस आदि कानूनों को केंद्र में ही रख कर करे।
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4. समस्याओं की जगह समाधान पर ध्यान केन्द्रित करे----- सभी दल समस्याओं को उभारकर मतदाताओं को विरोधी दल के प्रति उकसाते है, इससे मतदाता समझता है, कि अमुक दल समाधान पर कार्य कर रहा है। जबकि वो इस और ध्यान ही नही देते कि, समस्या उठाने वाला दल समाधान के लिए क़ानून प्रस्तावित कर रहा है या नही। नागरिको को समस्या की जगह समाधान पर ध्यान देना चाहिए, और राजनीति में सभी समाधान सिर्फ कानूनी ही हो सकते है, शेष सभी टाइम पास करने के पैंतरे है।
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5. मूल विषयों पर ध्यान बनाए रखे------देश की सेना तथा अर्थव्यवस्था जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर ध्यान दे। आज ज़्यादातर कार्यकर्ता अपने नेता की गुणगान और विरोधी नेताओ को गरियाने में अपनी अधिकाँश ऊर्जा और समय खर्च कर रहे है, इस कारण देश की गंभीर समस्याओं के समाधानों पर कार्य नही हो पा रहा है।
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6. पेड मिडिया द्वारा उठाये गए फिजूल मुद्दों पर ध्यान न दें--------भारत का पेड मिडिया MNCs और मिशनरीज़ के नियंत्रण में है, तथा उनका एजेंडा गलत ख़बरें दिखाना नही बल्कि फ़ालतू खबरे दिखा कर जनता का टाइम पास करना है, ताकि मूल समस्याओं और उनके समाधान पर नागरिको का ध्यान नही जाए।
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7. संगठन से जुड़ने की जगह मुद्दों से जुड़े------- जब आप किसी ऐसे संगठन से जुड़ते है जो क़ानून ड्राफ्ट विहीन सिद्धांत पर कार्य कर रहा है, तो आप उस संगठन के लिए कार्य कर रहे होते है न की मुद्दे के लिए। उस संगठन से अमुक मुद्दे के समाधान का ड्राफ्ट मांगे, यदि वह इनकार करे तो ऐसे संगठन को विषयुक्त भोजन समझ कर त्याग दें।
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संघ की दोहरी नीति का समाधान
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क्योंकि संघ के लाखो स्वयंसेवक देश के प्रति समर्पित है, किन्तु नेतृत्व भ्रष्ट है, इसलिए इसका विरोध करने, या नुक्सान पहुंचाना समाधान नही है। यदि संघ का नेतृत्व राष्ट्रवादी रास्ते पर आ जाता है, तो यह संगठन सबसे तेजी से देश की व्यवस्था में परिवर्तन लाने की ताकत रखता है। आखिर 60 लाख समर्पित स्वयंसेवको की फ़ौज और 50 हजार शाखाओं का नेटवर्क देश के अन्य किसी भी संगठन के पास नही है।
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1. यदि आप संघ से जुड़े हुए है तो, संघ से उसके द्वारा उठाये जा रहे मुद्दों जैसे राम-कृष्ण-विश्वनाथ देवालय, गौ रक्षा, बांग्लादेशी घुसपेठ, जनसँख्या का बढ़ता असंतुलन, धर्मान्तर, मंदिरों का प्रशासन आदि विषयों के समाधान के लिए प्रस्तावित ड्राफ्ट देने को कहें।
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2. संघ से देश की सेना, अदालतों, अर्थव्यवस्था, भुखमरी, गरीबी, खनन क्षेत्र में भ्रष्टाचार, पुलिस प्रशासन, पेड मिडिया, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का बढ़ता नियंत्रण, स्वदेशी सरंक्षण, गणित विज्ञान की शिक्षा, सरकारी स्कूलों और चिकित्सालयो का गिरता स्तर आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर अपने कानूनी ड्राफ्ट्स देने को कहें।
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3. यदि लाखो स्वयंसेवको द्वारा ऐसी मांग करने पर भी यदि संघ का नेतृत्व इन मुद्दों के कानूनी ड्राफ्ट नही देता है, तो या तो आप स्वयं इन समस्याओं के समाधान के ड्राफ्ट लिखें या किसी अन्य संगठन द्वारा प्रस्तावित ड्राफ्ट लें या ड्राफ्ट के लिए राईट टू रिकाल ग्रुप के किसी कार्यकर्ता से संपर्क करके इन सम्बंधित ड्राफ्ट प्राप्त करे, तथा ये ड्राफ्ट संघ को देकर उनसे इन ड्राफ्ट्स का समर्थन करने को कहे । यदि तब भी संघ का नेतृत्व टाइम पास गतिविधियाँ छोड़ कर ड्राफ्ट आधारित एजेंडे को स्वीकार नही करता है तो आप निम्न में से कोई भी विकल्प अपना सकते है।
अ) संघ के नेतृत्व का देश हित में पूरी शक्ति से विरोध करे और उसे एक्सपोज़ करे।
ब) संघ के सरसंघ संचालक की चयन प्रक्रिया के लिए वोटिंग की मांग करे।
*ऐसी चयन प्रक्रिया में संघ के प्रचारक और स्वयंसेवक वोट करके ऐसे सरसंघ संचालक को चुन सकेंगे जो राष्ट्रवादी एजेंडे पर कार्य करे।
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4. राष्ट्रवादी-हिंदूवादी नागरिको को चाहिए कि अपने परिचित स्वयंसेवको से सम्बंधित समस्याओं के ड्राफ्ट देने को कहें, यदि स्वयंसेवक ड्राफ्ट देने से इनकार करते है तो उन्हें अंध-सेवक संबोधित करे और उन्हें एक्सपोज़ करे।
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सनद रहे
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यह उल्लेखनीय नही है कि, बीजेपी, कोंग्रेस, सपा, बसपा, आपा, लेफ्ट, राईट, शिवसेना, नव निर्माण सेना, राजद, बीजद तथा शेष सभी पार्टियाँ और इनके हीरोनुमा नेता चंदो, घूस के लिए और सकारात्मक कवरेज के लिए मिशनरीज़/MNCs पर निर्भर करते है, अत: मिडिया द्वारा फैलाए हुए इस भ्रम का शिकार होने से बचे कि ये नेता देशहित में कार्य कर रहे है। मोदी से लेकर सोनिया-राहुल और केजरीवाल से लेकर अन्ना-टन्ना तक सभी कुर्सी और पुरूस्कारो की मंडी में कभी के खुद को दांव पर लगा चुके है। अत: ये सभी बघियार भी देश हित के इन कानूनों का विरोध कर रहे है और यथा शक्ति आगे भी करते रहेंगे।
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सिर्फ आम नागरिक ही देशहित में कार्य कर सकते है। जब कोई आम ख़ास बन जाता है, तो वह भी उतना ही भ्रष्ट हो जाता है, जितना की अधिकतम हुआ जा सकता है। मान-वृद्धि महंगी वस्तु है।
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कैसे हम आम नागरिक देश में सकारात्मक बदलाव ला सकते है ?
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चरण : 1
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1) कोई भी विषय/समस्या/मुद्दा चुने, जिसका आप समाधान चाहते है।
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2) अमुक समस्या के समाधान के लिए किसी भी संगठन/व्यक्ति/पार्टी से अमुक मुद्दे के समाधान का कानूनी ड्राफ्ट प्राप्त करे।
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3) एक ही विषय पर यदि आप कई ड्राफ्ट जुटा सके तो ज्यादा बेहतर है।
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4) इन ड्राफ्ट्स का अध्ययन करके उनमे से सबसे लोकतांत्रिक और अच्छे ड्राफ्ट को चुने।
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5) यदि आप किसी व्यक्ति/कार्यकर्ता/संगठन/दल से जुड़े हुए है तो उन्हें इस ड्राफ्ट को अपने एजेंडे में शामिल करने को कहें।
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6) यदि अमुक संगठन न तो इसे अपने एजेंडे में शामिल करता है न ही स्वयं कोई ड्राफ्ट देता है, तो उस संगठन को छोड़ दे। यदि वह संगठन क़ानून ड्राफ्ट्स को एजेंडे में शामिल करता है, तो आप ऐसे संगठन से जुड़ने के बारे में फैसला ले सकते है।
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7) अपने ड्राफ्ट्स का नागरिको/कार्यकर्ताओं में मुक्त रूप से प्रचार करे।
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8) अपनी ऊर्जा और समय का एक हिस्सा उन संगठनो को एक्सपोज़ करने में अवश्य लगाए जो देश में अच्छे कानूनों को लागू करने का विरोध कर रहे है, वरना उनकी शक्ति बढ़ती जायेगी, और वे लाखों करोड़ो नागरिको/कार्यकर्ताओं का समय फिजूल गतिविधियों में नष्ट करेंगे, फलस्वरूप राष्ट्रीय ऊर्जा का ह्रास होगा और अच्छे कानूनों का प्रचार करने के लिए कार्यकर्ताओं के पास समय ही नही बचेगा।
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ध्यातव्य है कि, महात्मा भगत सिंह, आजाद और सान्याल जैसे क्रांतिकारी इसीलिए अपने संगठन को नही बढ़ा पाए क्योंकि पूरे देश में जितने भी नौजवान आजादी की लड़ाई में योगदान देना चाहते थे, वे सभी मोहन गांधी के सामने बैठ कर चरखे चला रहे थे। मौजूदा हालात में हिन्दूवाद-राष्ट्रवाद के नाम पर वही तमाशा संघ लाखों कार्यकर्ताओं के साथ कर रहा है।
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चरण : 2 ( सबसे जरुरी )
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1) आप जिस भी क़ानून को देश में लागू कराना चाहते है, उस क़ानून की मांग अपने क्षेत्र के सांसद से अवश्य करे। संविधान के अनुसार यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने सांसद को देशहित में आवश्यक आदेश भेजे। सांसदों (पढ़े नौकरो) का एक मात्र कार्य मतदाताओं (पढ़े मालिकों) से आदेश प्राप्त करके उनकी पालना करना है। अत: यदि आप सांसद को आदेश नही भेजेंगे तो वे अपनी मर्जी और खुद के फायदे के क़ानून बनायेंगे, आपके और जनता के फायदे के नही।
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सांसद को भेजा गया ऐसा आदेश स्पष्ट और अधिकृत होना चाहिए। आदेश को स्पष्ट बनाने के लिए उस क़ानून का ड्राफ्ट या उसका लिंक भेजे, जिस क़ानून को लागू करने की आप मांग कर रहे है, तथा आदेश को अधिकृत बनाने के लिए SMS में अपनी मतदाता पहचान संख्या दर्ज करें। ऐसा करने से आपकी मांग प्रमाणिक ढंग से दर्ज होगी।
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यह क्रिया सबसे महत्वपूर्ण है। आप चाहे अन्य कोई गतिविधि करे या न करे, परन्तु सांसद को SMS द्वारा आदेश अवश्य भेजे।
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अपने सांसद को आदेश भेजने का नमूना नीचे दिया गया है :
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Hon MP, I order you to print the law draft mentioned in tinyurl.com/PrintTcp
voter ID : ######
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2) अपनी मांग को पारदर्शी और प्रमाणिक बनाने के लिए आप अपनी मांग कोsmstoneta.com जैसे किसी नागरिक प्रमाणिक मंच पर भी दर्ज करा सकते है।
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हम देश में व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रजा लक्षि कानूनों का मुक्त रूप से प्रचार करते है। हमने देश की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए 120 से अधिक क़ानून प्रस्तावित किये है जिन्हें आप यहाँ देख सकते है
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righttorecall.info
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