July 21, 2015
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10152923247451922
क्यों संविधान की व्याख्या तथा किसी मामले की सुनवाई का अधिकार नागरिको की ज्यूरी के पास होना चाहिए न कि जज जैसे कुछ मुट्ठी भर बौद्धिक लोगो के पास ?
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बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक सेठजी रहते थे। उनके पास एक बहुमूल्य रत्नजड़ित हार था जिसकी कीमत 9 करोड़ रूपये थी।
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एक बार उस गांंव में बहुत जोरो की वर्षा हुयी और पूरा गाँव जलमग्न हो गया। सभी लोग खुद को बचाने के लिए छतो पर चढ़ गए लेकिन पानी रूकने का नाम नही ले रहा था। लग रहा था की जल्दी ही सब कुछ पानी में डूब जाएगा। छतो पर चढ़ने के बाद ग्रामीणो के पास बचने का कोई उपाय नहीं बचा था और जलस्तर लगातार बढ़ रहा था। सेठजी भी अपने प्राणो की रक्षा के लिए अपनी छत पर खड़े थे लेकिन उन्हें अपने प्राण आसन्न संकट में नजर आ रहे थे।
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तभी सेठजी ने ऊँची आवाज में घोषणा की कि, 'हे ईश्वर, यदि मैं इस विपत्ति से बच जाता हूँ तो अपने सबसे कीमती रत्नजड़ित हार को बेच कर प्राप्त धन गरीबो में वितरित कर दूंगा। हे प्रभो मेरी रक्षा करो ' ।
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दैवयोग से उसी समय बारिश रुक गयी और पानी उतरने लगा।
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अब सेठजी पेशोपेश में थे। क्योंकि वे एक तरफ अपने हार को खोना नहीं चाहते थे लेकिन उन्हें अपना वचन भी निभाना था।
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उन्होंने एक युक्ति लगाई !!!!
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अगले दिन सेठजी ने कहा कि मैं अपने रत्नजड़ित हार और एक ताम्बे की कटोरी को बेचना चाहता हूँ। सेठजी ने हार की कीमत 100 रूपये तथा कटोरी की कीमत 9 करोड़ रूपये निश्चित की। सेठजी ने कहा कि मैं ये दोनों वस्तुएं एक ही व्यक्ति को एक साथ ही बेचूंगा अत: जो भी इच्छुक हो इन्हे खरीद सकता है। एक व्यापारी ने कहा कि मैं इस हार के 100 रुपये देने को तैयार हूँ लेकिन मैं इस ताम्बे की कटोरी को नही खरीदना चाहता। इसलिए आप 100 रूपये लेकर मुझे ये हार बेच दो। किन्तु सेठजी ने कहा कि, सौदे की यह शर्त है कि तुम्हे दोनों वस्तुए खरीदनी होगी। तब कुछ सोचकर व्यापारी ने कहा कि, ठीक है मैं तुम्हे हार की कीमत 9 करोड़ देने को तैयार हूँ किन्तु तब भी मुझे कटोरी की आवश्यकता नहीं है। लेकिन सेठजी नहीं माने, उन्होंने कहा कि हार की कीमत 100 रुपया ही है अत: मैं इससे ज्यादा राशि नहीं ले सकता, ये कटोरी है जिसकी कीमत मैंने 9 करोड़ तय की है। व्यापारी जानता था कि उस हार की कीमत 9 करोड से कम कतई नहीं थी, अत: उसने उस दुर्लभ हार को प्राप्त करने के लिए सेठजी को 9 करोड़ कटोरी के और 100 रूपये हार के देकर दोनों वस्तुएं खरीद ली।
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तब सेठजी ने अपने वादे के मुताबिक़ हार की बिक्री से प्राप्त 100 रूपये की धनराशि का वितरण गरीबो में कर दिया, और ताम्बे की कटोरी से प्राप्त 9 करोड़ खुद के पास रख लिए।
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कहानी का सबक यह है कि सिर्फ कागज पर किसी विधि, क़ानून संविधान आदि को दर्ज करने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता जब तक कि परिस्थिति के अनुसार उसकी न्यायपूर्ण विवेचना नही की जाए।
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यह जानी हुयी बात है कि ज्यूरी सदस्यों की तुलना में जज ज़्यादा भ्रष्ट और भाई भतीजा वादी है। वे अपनी पदोन्नति, निलंबन और नियुक्ति के लिए विभिन्न राजनैतिक-धनिक गठजोड़ो और शक्ति पुंजो पर निर्भर करते है, अत: स्वाभाविक तौर पर कानूनो की तोड़ मरोड़ कर इस प्रकार व्याख्या करते है जिससे उन्हें होने वाले लाभ में इजाफा हो तथा वे नुक्सान से बचे रहे।
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लेकिन जैसा कि हम सब जानते है कि हमारे सभी बुद्धिजीवी जो कि असल में कुबुद्धिजीवी है, न्यायमूर्ति पूजक है अत: जजो का अनवरत रूप से स्तुतिगान करते है।
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इनका दावा है कि भारत के जजो को किसी व्यक्ति के तौर पर नहीं बल्कि पवित्र 'संस्था' के तौर पर देखा जाना चाहिए अत: हमारे जज उपरोक्त दुर्बलताओं से मुक्त है। क्या बकवास तर्क है। असल में ये सभी कु-बुद्धिजीवी अंदरखाने जजो गठजोड़ बनाये हुए है इसलिए ये लोग ऐसी बेतुकी बातें जनता के दिमाग में डालते है, जिनका कोई सिर पैर नहीं।
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वे क़ानून की व्याख्या का अधिकार जजो के पास ही बनाये रखना चाहते है, ताकि यदि धनिक वर्ग जिन्होंने इन कु-बुद्धिजीवियों को पेड मिडिया में लिखने के लिए स्पोंसर किया है कभी किसी मामले में फंस जाता है तो वे जजो को प्रभावित करके आसानी से मामले को रफा दफा करवा सके।
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'कागज पर संविधान की परिकल्पना* एक मोम के टुकड़े की तरह है, जिसे अपने फायदे के लिए इच्छित आकार में ढ़ाला जा सकता है' ----- थॉमस जेफरसन 1819, अमेरिका के द्वितीय राष्ट्रपति तथा स्वतंत्रता सैनानी
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* यहां इस परिकल्पना का मतलब है कि संविधान की अंतिम व्याख्या का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों के हाथ में होगा !!!
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हमारे जूरी सिस्टम के ड्राफ्ट में हमने यह प्रस्तावित किया है कि संविधान तथा क़ानून की व्याख्या का अधिकार सिर्फ नागरिको को दिया जाना चाहिए अन्य किसी को भी नहीं।
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यदि आप भारत में जूरी सिस्टम के लागू करवाने का समर्थन करते है तो अपने क्षेत्र के सांसद को इस सम्बन्ध में SMS द्वारा यह आदेश भेजे।
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Dear MP , I order you to print following law-draft in Gazette ----https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10152258909086922 After sending the SMS, pls post SMS on twitter / FB.
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सांसद को भेजे जाने वाले आदेश का नमूना तथा सांसद को SMS द्वारा आदेश क्यों भेजे जाने चाहिए, यह जानने के लिए कॉमेंट बॉक्स में दर्ज़ लिंक को देखे।
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To know why SMS to MP are must, and emails / tweets / FB without SMS are useless, pls see --- https://www.facebook.com/notes/10151190606916922
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10152923247451922
क्यों संविधान की व्याख्या तथा किसी मामले की सुनवाई का अधिकार नागरिको की ज्यूरी के पास होना चाहिए न कि जज जैसे कुछ मुट्ठी भर बौद्धिक लोगो के पास ?
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बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक सेठजी रहते थे। उनके पास एक बहुमूल्य रत्नजड़ित हार था जिसकी कीमत 9 करोड़ रूपये थी।
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एक बार उस गांंव में बहुत जोरो की वर्षा हुयी और पूरा गाँव जलमग्न हो गया। सभी लोग खुद को बचाने के लिए छतो पर चढ़ गए लेकिन पानी रूकने का नाम नही ले रहा था। लग रहा था की जल्दी ही सब कुछ पानी में डूब जाएगा। छतो पर चढ़ने के बाद ग्रामीणो के पास बचने का कोई उपाय नहीं बचा था और जलस्तर लगातार बढ़ रहा था। सेठजी भी अपने प्राणो की रक्षा के लिए अपनी छत पर खड़े थे लेकिन उन्हें अपने प्राण आसन्न संकट में नजर आ रहे थे।
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तभी सेठजी ने ऊँची आवाज में घोषणा की कि, 'हे ईश्वर, यदि मैं इस विपत्ति से बच जाता हूँ तो अपने सबसे कीमती रत्नजड़ित हार को बेच कर प्राप्त धन गरीबो में वितरित कर दूंगा। हे प्रभो मेरी रक्षा करो ' ।
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दैवयोग से उसी समय बारिश रुक गयी और पानी उतरने लगा।
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अब सेठजी पेशोपेश में थे। क्योंकि वे एक तरफ अपने हार को खोना नहीं चाहते थे लेकिन उन्हें अपना वचन भी निभाना था।
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उन्होंने एक युक्ति लगाई !!!!
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अगले दिन सेठजी ने कहा कि मैं अपने रत्नजड़ित हार और एक ताम्बे की कटोरी को बेचना चाहता हूँ। सेठजी ने हार की कीमत 100 रूपये तथा कटोरी की कीमत 9 करोड़ रूपये निश्चित की। सेठजी ने कहा कि मैं ये दोनों वस्तुएं एक ही व्यक्ति को एक साथ ही बेचूंगा अत: जो भी इच्छुक हो इन्हे खरीद सकता है। एक व्यापारी ने कहा कि मैं इस हार के 100 रुपये देने को तैयार हूँ लेकिन मैं इस ताम्बे की कटोरी को नही खरीदना चाहता। इसलिए आप 100 रूपये लेकर मुझे ये हार बेच दो। किन्तु सेठजी ने कहा कि, सौदे की यह शर्त है कि तुम्हे दोनों वस्तुए खरीदनी होगी। तब कुछ सोचकर व्यापारी ने कहा कि, ठीक है मैं तुम्हे हार की कीमत 9 करोड़ देने को तैयार हूँ किन्तु तब भी मुझे कटोरी की आवश्यकता नहीं है। लेकिन सेठजी नहीं माने, उन्होंने कहा कि हार की कीमत 100 रुपया ही है अत: मैं इससे ज्यादा राशि नहीं ले सकता, ये कटोरी है जिसकी कीमत मैंने 9 करोड़ तय की है। व्यापारी जानता था कि उस हार की कीमत 9 करोड से कम कतई नहीं थी, अत: उसने उस दुर्लभ हार को प्राप्त करने के लिए सेठजी को 9 करोड़ कटोरी के और 100 रूपये हार के देकर दोनों वस्तुएं खरीद ली।
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तब सेठजी ने अपने वादे के मुताबिक़ हार की बिक्री से प्राप्त 100 रूपये की धनराशि का वितरण गरीबो में कर दिया, और ताम्बे की कटोरी से प्राप्त 9 करोड़ खुद के पास रख लिए।
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कहानी का सबक यह है कि सिर्फ कागज पर किसी विधि, क़ानून संविधान आदि को दर्ज करने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता जब तक कि परिस्थिति के अनुसार उसकी न्यायपूर्ण विवेचना नही की जाए।
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यह जानी हुयी बात है कि ज्यूरी सदस्यों की तुलना में जज ज़्यादा भ्रष्ट और भाई भतीजा वादी है। वे अपनी पदोन्नति, निलंबन और नियुक्ति के लिए विभिन्न राजनैतिक-धनिक गठजोड़ो और शक्ति पुंजो पर निर्भर करते है, अत: स्वाभाविक तौर पर कानूनो की तोड़ मरोड़ कर इस प्रकार व्याख्या करते है जिससे उन्हें होने वाले लाभ में इजाफा हो तथा वे नुक्सान से बचे रहे।
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लेकिन जैसा कि हम सब जानते है कि हमारे सभी बुद्धिजीवी जो कि असल में कुबुद्धिजीवी है, न्यायमूर्ति पूजक है अत: जजो का अनवरत रूप से स्तुतिगान करते है।
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इनका दावा है कि भारत के जजो को किसी व्यक्ति के तौर पर नहीं बल्कि पवित्र 'संस्था' के तौर पर देखा जाना चाहिए अत: हमारे जज उपरोक्त दुर्बलताओं से मुक्त है। क्या बकवास तर्क है। असल में ये सभी कु-बुद्धिजीवी अंदरखाने जजो गठजोड़ बनाये हुए है इसलिए ये लोग ऐसी बेतुकी बातें जनता के दिमाग में डालते है, जिनका कोई सिर पैर नहीं।
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वे क़ानून की व्याख्या का अधिकार जजो के पास ही बनाये रखना चाहते है, ताकि यदि धनिक वर्ग जिन्होंने इन कु-बुद्धिजीवियों को पेड मिडिया में लिखने के लिए स्पोंसर किया है कभी किसी मामले में फंस जाता है तो वे जजो को प्रभावित करके आसानी से मामले को रफा दफा करवा सके।
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'कागज पर संविधान की परिकल्पना* एक मोम के टुकड़े की तरह है, जिसे अपने फायदे के लिए इच्छित आकार में ढ़ाला जा सकता है' ----- थॉमस जेफरसन 1819, अमेरिका के द्वितीय राष्ट्रपति तथा स्वतंत्रता सैनानी
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* यहां इस परिकल्पना का मतलब है कि संविधान की अंतिम व्याख्या का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों के हाथ में होगा !!!
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हमारे जूरी सिस्टम के ड्राफ्ट में हमने यह प्रस्तावित किया है कि संविधान तथा क़ानून की व्याख्या का अधिकार सिर्फ नागरिको को दिया जाना चाहिए अन्य किसी को भी नहीं।
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यदि आप भारत में जूरी सिस्टम के लागू करवाने का समर्थन करते है तो अपने क्षेत्र के सांसद को इस सम्बन्ध में SMS द्वारा यह आदेश भेजे।
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Dear MP , I order you to print following law-draft in Gazette ----https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10152258909086922 After sending the SMS, pls post SMS on twitter / FB.
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सांसद को भेजे जाने वाले आदेश का नमूना तथा सांसद को SMS द्वारा आदेश क्यों भेजे जाने चाहिए, यह जानने के लिए कॉमेंट बॉक्स में दर्ज़ लिंक को देखे।
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