July 12, 2015
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10152905946551922
जवाहर लाल गाज़ी और उसके जैसे अन्य नेताओं के हाथ में आजाद भारत की बागडोर आयी और वे भारत को होलसेल में लूट पाए, इसका सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण कारण था---- क्योंकि अंग्रेजो के चमचे देशी राजाओं, तथा इन देशी राजाओं जैसे सिंधिया आदि के चमचे संघ के सर संघसंचालक हेडगेवार और गोलवलकर ने अंग्रेजो के कहने पर देश के लाखों युवाओं को राजनीति से जानबूझकर दूर कर दिया, ताकि हिन्दू महासभा तथा अन्य राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को कार्यकर्ता नही मिलें, और अंग्रेजो के चमचे जवाहर लाल ग़ाज़ी, मोहन गांधी तथा अन्य कोंग्रेस के नेता उभर सके।
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1925 से 1948 के बीच संघ ने तमाम ऐसे युवाओं को जो राष्ट्रवादी विचार धारा से ओतप्रोत थे और अंग्रेजो को भारत से खदेड़ने में योगदान देना चाहते थे, को पोलिटिक्स से दूर रहने और नैतिक मूल्यों तथा सेवा कार्यो पर ध्यान केन्द्रित करने का सन्देश दिया। युवा कार्यकर्ता संघ के इस 'ऊँचे आदर्श' के चकमे आ गए जिससे उनका समय और ऊर्जा अंग्रेजो को खदेड़ने की जगह इन फ़िज़ूल कार्यो में नष्ट हो गयी।
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इससे सच्चे क्रांतिकारियों और हिन्दू महासभा के नेताओं जैसे सावरकर, सुभाष बाबू आदि को कार्यकर्ताओं का अभाव हुआ, और जवाहर लाल ग़ाज़ी को शिखर पर बने रहने में सहायता मिली ।
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यह कुछ ऐसा है, यदि कोई कहे कि 'प्रतिभावान छात्रों को इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में प्रवेश नही लेना चाहिए'। और जब सभी प्रतिभावान छात्रो द्वारा इंजनियरिंग की उपेक्षा करने पर जब हमारे हिस्से में निकम्मे इंजिनियर्स आते है तो वही व्यक्ति कोसते हुए यह कहता है कि, 'ये इंजिनियर निकम्मा है और वह इंजिनियर बेकार है' ।
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1947 में संघ के अंध-सेवको की संख्या 7-8 लाख थी। अपनी खाल बचाने, अंग्रेजो से टकराव टालने, राजाओं से चंदे लेकर अपने संगठन को बढाने और जवाहर लाल को उभरने देने के लिए संघ ने इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का समय नष्ट किया। और आज वही संघ अपनी आईटी सेल के माध्यम से 24×7 घंटे जवाहर लाल ग़ाज़ी को कोस रहा है, और नशे में धुत्त संघ के स्वयंसेवक और मोदी-अंधभगत इस जानकारी को करोड़ो लोगो तक फैलाने में लगे हुए है। इन अक्ल के अन्धो को इतना भी शउर नही है कि इस पाप को अंग्रेजो के कहने पर संघ ने ही पाल पोसकर इस उंचाई तक पहुंचाया था।
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संघ और उसके अंध-सेवक आज जवाहर लाल गाज़ी और मोहन दुरात्मा गांधी को कोसने में पीएचडी कर चुके है, लेकिन उनके पास इस प्रश्न का कोई जवाब नही है कि तब संघ ने लाखो स्वयंसेवको को राजनीति से दूर रखकर जवाहर लाल का सहयोग क्यों किया। संघ आज भी इस ढर्रे पर है, और अधिकृत रूप से 60 लाख राष्ट्रवादी स्वयंसेवको को राजनीति से दूर रहने की सलाह देता है, तथा पीछे के दरवाजे से बीजेपी में घुसपेठ बनाए रखता है। इस लिहाज से संघ अजीब जंतु है, जो खुले में कहता है कि राजनीति से दूरी बनाए रखो। किन्तु यदि आप को राजनीति में भाग लेना ही है तो सिर्फ बीजेपी का ही समर्थन करो।
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मतलब यह कि संघ के अनुसार राजनीति तब तक ही घटिया वस्तु नही है, जब तक कोई बीजेपी का समर्थन करता है, वरना राजनीति बेहद घटिया शय है और सिर्फ जवाहर लाल, मुलायम, माया, केजरीवाल और सोनिया-राहुल आदि को ही राजनीति करने दी जानी चाहिए।
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कहानी का सबक यह है कि राजनीति में अच्छे या बुरे लोग हो सकते है, किन्तु संघ जैसे संगठन जो युवाओं को राजनीति से दूर रहने (1925-1948) की सलाह देते है, सिर्फ दुश्मनों की मदद करने के लिए ही ऐसा करते है।
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जवाहर लाल गाज़ी और उसके जैसे अन्य नेताओं के हाथ में आजाद भारत की बागडोर आयी और वे भारत को होलसेल में लूट पाए, इसका सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण कारण था---- क्योंकि अंग्रेजो के चमचे देशी राजाओं, तथा इन देशी राजाओं जैसे सिंधिया आदि के चमचे संघ के सर संघसंचालक हेडगेवार और गोलवलकर ने अंग्रेजो के कहने पर देश के लाखों युवाओं को राजनीति से जानबूझकर दूर कर दिया, ताकि हिन्दू महासभा तथा अन्य राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को कार्यकर्ता नही मिलें, और अंग्रेजो के चमचे जवाहर लाल ग़ाज़ी, मोहन गांधी तथा अन्य कोंग्रेस के नेता उभर सके।
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1925 से 1948 के बीच संघ ने तमाम ऐसे युवाओं को जो राष्ट्रवादी विचार धारा से ओतप्रोत थे और अंग्रेजो को भारत से खदेड़ने में योगदान देना चाहते थे, को पोलिटिक्स से दूर रहने और नैतिक मूल्यों तथा सेवा कार्यो पर ध्यान केन्द्रित करने का सन्देश दिया। युवा कार्यकर्ता संघ के इस 'ऊँचे आदर्श' के चकमे आ गए जिससे उनका समय और ऊर्जा अंग्रेजो को खदेड़ने की जगह इन फ़िज़ूल कार्यो में नष्ट हो गयी।
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इससे सच्चे क्रांतिकारियों और हिन्दू महासभा के नेताओं जैसे सावरकर, सुभाष बाबू आदि को कार्यकर्ताओं का अभाव हुआ, और जवाहर लाल ग़ाज़ी को शिखर पर बने रहने में सहायता मिली ।
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यह कुछ ऐसा है, यदि कोई कहे कि 'प्रतिभावान छात्रों को इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में प्रवेश नही लेना चाहिए'। और जब सभी प्रतिभावान छात्रो द्वारा इंजनियरिंग की उपेक्षा करने पर जब हमारे हिस्से में निकम्मे इंजिनियर्स आते है तो वही व्यक्ति कोसते हुए यह कहता है कि, 'ये इंजिनियर निकम्मा है और वह इंजिनियर बेकार है' ।
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1947 में संघ के अंध-सेवको की संख्या 7-8 लाख थी। अपनी खाल बचाने, अंग्रेजो से टकराव टालने, राजाओं से चंदे लेकर अपने संगठन को बढाने और जवाहर लाल को उभरने देने के लिए संघ ने इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का समय नष्ट किया। और आज वही संघ अपनी आईटी सेल के माध्यम से 24×7 घंटे जवाहर लाल ग़ाज़ी को कोस रहा है, और नशे में धुत्त संघ के स्वयंसेवक और मोदी-अंधभगत इस जानकारी को करोड़ो लोगो तक फैलाने में लगे हुए है। इन अक्ल के अन्धो को इतना भी शउर नही है कि इस पाप को अंग्रेजो के कहने पर संघ ने ही पाल पोसकर इस उंचाई तक पहुंचाया था।
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संघ और उसके अंध-सेवक आज जवाहर लाल गाज़ी और मोहन दुरात्मा गांधी को कोसने में पीएचडी कर चुके है, लेकिन उनके पास इस प्रश्न का कोई जवाब नही है कि तब संघ ने लाखो स्वयंसेवको को राजनीति से दूर रखकर जवाहर लाल का सहयोग क्यों किया। संघ आज भी इस ढर्रे पर है, और अधिकृत रूप से 60 लाख राष्ट्रवादी स्वयंसेवको को राजनीति से दूर रहने की सलाह देता है, तथा पीछे के दरवाजे से बीजेपी में घुसपेठ बनाए रखता है। इस लिहाज से संघ अजीब जंतु है, जो खुले में कहता है कि राजनीति से दूरी बनाए रखो। किन्तु यदि आप को राजनीति में भाग लेना ही है तो सिर्फ बीजेपी का ही समर्थन करो।
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मतलब यह कि संघ के अनुसार राजनीति तब तक ही घटिया वस्तु नही है, जब तक कोई बीजेपी का समर्थन करता है, वरना राजनीति बेहद घटिया शय है और सिर्फ जवाहर लाल, मुलायम, माया, केजरीवाल और सोनिया-राहुल आदि को ही राजनीति करने दी जानी चाहिए।
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कहानी का सबक यह है कि राजनीति में अच्छे या बुरे लोग हो सकते है, किन्तु संघ जैसे संगठन जो युवाओं को राजनीति से दूर रहने (1925-1948) की सलाह देते है, सिर्फ दुश्मनों की मदद करने के लिए ही ऐसा करते है।
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