Sunday, July 26, 2015

नानावटी मामला और जूरी सिस्टम को भ्रष्ट लोगों ने क्यों समाप्त किया का सच (27-Jul-2015) No.2

July 27, 2015

https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10152935273406922



नानावटी मामला और जूरी सिस्टम को भ्रष्ट लोगों ने क्यों समाप्त किया का सच
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हमारे देश में 1959 के पूर्व एक कमजोर जूरी सिस्टम की न्यायप्रणाली थी | इस सिस्टम में निचली कोर्ट में क्रम रहित तरीके से 9 नागरिकों को चुना जाता जिले के वोटर सूची से और इन चुने हुए लोगों को जूरी सदस्य बोला जाता था और ये हर मामले के बाद बदले जाते थे | जज तय करता कि किस धारा के अंतर्गत मामला दर्ज होगा और जज ही तय करता था कि जूरी को कौनसे सबूत दिखाए जायें | जूरी को केवल और केवल दिखाए गए सबूत और दर्ज किये मामले के धारा के अंतर्गत दोषी या निर्दोष बोलना होता था | मतलब उस समय इस कमजोर जूरी सिस्टम में अधिकतर अधिकार जज के पास ही थे, न कि जूरी के पास |
ये जूरी सिस्टम कमजोर होने के बावजूद समाज और देश के लिए काफी लाभदायक था | सज़ा होने के डर से उस समय लोग मिलावट कम करते थे, हफ़्ता गिरी कम होती थी और कोर्ट-कचहरी में रिश्वतबाजी कम होती थी | लेकिन एक साजिश के अंतर्गत, नानावटी मामले का बहाना बनाकर इस प्रणाली को समाप्त किया गया |
नानावटी एक नौसैनिक अफसर था | उसने एक अंग्रेज से शादी की थी | उसे पता चला कि उसकी पत्नी और उसके मित्र, आहूजा के अवैध शारारिक सम्बन्ध हैं | गुस्से में उसने आहूजा को मार दिया और अपने आप को आत्म-समर्पण किया | इस मामले को गलत तरीके से मीडिया में पेश करके 1959 में भ्रष्ट जज और भ्रष्ट नेहरु ने इसको समाप्त कर दिया |
नानावटी मामले का बहाना बनाकर जूरी के विरुद्ध बोलने वालों को इस प्रश्न का उत्तर देना चाहिए कि जज ने धारा 302 के साथ-साथ कम सजा वाली हत्या की धाराएं क्यों नहीं लगवाई जबकि नानावटी ने स्वयं कबूल किया था कि उसने आहूजा को मारा है ? क्योंकि यदि कम अपराध वाली धाराएं होती तो जूरी उन धाराओं के अंतर्गत कम सजा दे देते नानावटी को जो अहुजा के परिवार वाले और उनसे मिले भ्रष्ट जज और भ्रष्ट मीडिया वाले नहीं चाहते थे |
नानावटी मामला एक ऐसा मामला था जिसमें काफी राजनैतिक प्रभाव था | अहुजा के परिवार वालों ने जज आदि को खरीद कर नानावटी पर पूर्व-द्वेष के साथ अहुजा को मारने का आरोप लगाया | ये बात स्पष्ट थी कि नानावटी ने आहूजा को मारा है क्योंकि नानावटी ने स्वयं आत्म-समर्पण किया था | फिर भी, न तो वकीलों ने और न ही जज ने कम अपराध वाली धाराओं के अंतर्गत मुक़दमा चलवाया | सीधे 302 धारा पर ही मुक़दमा चला | क्योंकि आहूजा के परिवार वाले चाहते थे कि नानावती को अधिक से अधिक सजा हो और इसके लिए उन्होंने जज आदि पर प्रभाव डाला था |
लेकिन आहूजा के वकील ये पूरी तरह से साबित न कर सके कि नानावटी ने पूर्व-द्वेष से आहूजा को मारा है | इसीलिए, जूरी ने संदेह का लाभ देते हुए उसे छोड़ दिया और 302 धारा का दोषी नहीं माना | ये मुद्दा मीडिया ने भी नहीं उठाया था कि जूरी ने 302 के अंतर्गत नानावटी को निर्दोष माना है | इससे ये स्पष्ट होता है कि मीडिया को भी प्रभावित किया गया था जूरी के पक्ष में नहीं बोलने के लिए |
भ्रष्ट जज और नेताओं ने जज आदि का दोष छुपाने के लिए जूरी पर बिना कोई प्रमाण दिए इल्जाम लगा दिया | जूरी के किसी भी सदस्य ने ऐसा कोई भी बयान नहीं दिया कि उसने मीडिया के प्रभाव में फैसला किया है | न ही कोई अध्ययन किया गया कि न्यायपालिका की कौनसा प्रक्रिया श्रेष्ट है |
जूरी उस समय भ्रष्ट जजों को अपना काला धंधा करने से रोकते थे | और कोई कारण समझ में नहीं आता, क्योंकि अपील में कोई जूरी नहीं थी और अक्सर अपील आदि आगे द्वारा ही प्रभावशाली लोग छूट जाते थे | अंत में नानावटी को नेहरू पर प्रभाव होने के कारण ही छूट मिली और इसपर किसी भी जज आदि ने आपत्ति नहीं उठाई क्योंकि वे जूरी के समाप्त किये जाने से भ्रष्ट जज नेताओं से प्रसन्न थे |
दूसरे देश जैसे हांगकांग के नागरिकों ने अपने यहाँ की कमजोर जूरी सिस्टम को सुधार दिया लेकिन हमारे देश में सिस्टम को सुधारने के बदले उसे समाप्त कर दिया गया जिससे न्याय प्रणाली और बुरी हो गयी | कृपया हमारे देश में नागरिक सशक्त जूरी सिस्टम कैसे ला सकते हैं, कृपया ये लिंक देखें – www.tinyurl.com/JuryNichliCourt

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