Monday, October 5, 2015

कौन अधिक ताकतवर है ---- जंजीरो से जकड़े हुए 10 विशालकाय हाथी या करोड़ो स्वतंत्र चींटियाँ ? (6-oct-2015) No.2

October 6, 2015 No.2

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कौन अधिक ताकतवर है ---- जंजीरो से जकड़े हुए 10 विशालकाय हाथी या करोड़ो स्वतंत्र चींटियाँ ? 

कैसे सिर्फ छोटे और साधारण कार्यकर्ता ही देश की व्यवस्था सुधारने के लिए आवश्यक कानूनो को लागू करने के लिए प्रयास करेंगे, जबकि ऊँचे कद के नेता और बड़े संघठन इन कानूनो का प्रारम्भ में विरोध करेंगे और अंततोगत्वा कार्यकर्ताओ की इस उपलब्धि का श्रेय हड़प लेंगे ?

एक वयस्क हाथी का वजन लगभग 7000 किलोग्राम होता है, जबकि चींटी का 5 मिलीग्राम। इस हिसाब से 1 ग्राम में 200 और एक किलोग्राम में 2 लाख चींटी तुल जायेगी। मतलब एक हाथी के वजन में 7000 * 2,00,000 = 140 करोड़ चींटी होती है !!! मान लीजिये कि ये चींटियाँ अपने किसी दुश्मन को ख़त्म करना चाहती है, अत: रणनीति के तहत सभी चींटियाँ यह तय करती है कि, 'हमें "एक" होकर हाथी बन जाना चाहिए'। लेकिन इससे दुश्मन का काम आसान हो जाएगा !!! क्योंकि अब दुश्मन को सिर्फ एक गोली चलानी है। दुश्मन एक गोली चलाकर हाथी की खोपड़ी तोड़ देगा और दिमाग के मृत होने पर हाथी का 7000 किलो का भार सिर्फ एक 'वजन' भर रह जाएगा !!! यदि ये 140 करोड़ चींटियाँ 'एक' न होकर स्वतंत्र रूप से कार्य करती तो दुश्मन को इन चींटियों को ख़त्म करने के लिए करोडो गोलियां चलानी पड़ती। दूसरे शब्दों में कहे तो, 7000 किलोग्राम के हाथी के सिर्फ एक दिमाग ही है, अत: दिमाग को मारने से ही उसका अंत हो जाता है, जबकि इसी वजन के बराबर चींटियों में 140 करोड़ दिमाग है !!! इसलिए हाथी की अपेक्षा स्वतंत्र चींटियाँ में दुश्मन को नुकसान पहुंचाने का ज्यादा सामर्थ्य है। 

बहुधा मैं स्पष्टीकरण के लिए उपमाओं का प्रयोग नहीं करता। क्योंकि सभी उपमाओं की एक सीमा होने के कारण कोई भी उपमा किसी विषय से सम्बंधित सभी वास्तविक तथ्यों और समस्याओ का समावेश करने में असफल रहती है। अत: मैं उपमा को समाप्त करके मूल विषय पर लौटता हूँ। 

आइये असली हालात पर गौर करे। 

भारत में कई समस्याएं है। इनके समाधान के लिए एक आसान रास्ता एफडीआई को अनुमति देना है। लेकिन हम यानी 'राईट टू रिकॉल ग्रुप' एफडीआई का विरोध कर रहे है, क्योंकि इन विदेशी कम्पनियो द्वारा कमाए जाने वाले मुनाफे के बदले जब हमें डॉलर का भुगतान करना होगा तो हमारी अर्थव्यवस्था चौपट हो जायेगी। अत: हम समस्याओ के निराकरण के लिए एफडीआई की जगह राईट टू रिकॉल क़ानून प्रक्रियाओ, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स आदि कानूनी समाधान प्रस्तावित कर रहे है। 
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तो सवाल यह है कि इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने का सामर्थ्य किसके पास है ? सोनिया-मोदी-केजरीवाल जैसे ऊँचे कद के नेताओ के पास, या बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, आरएसएस और भारत स्वाभिमान ट्रस्ट जैसे विशाल संगठनो के पास, या लाखो चींटी जैसे साधारण कार्यकर्ताओ के पास ?

मौजूदा हालात में सोनिया-मोदी-केजरीवाल/बीजेपी-कांग्रेस-आम आदमी पार्टी-आरएसएस-भारत स्वाभिमान ट्रस्ट आदि नेता और संगठन राइट टू रिकॉल और ज्यूरी सिस्टम कानूनो के विरोधी है। पहले भी विरोधी थे, और भविष्य में भी विरोध ही करने वाले है। जबकि सोनिया-मोदी-केजरीवाल-भागवत-रामदेव आदि के अंध भगतो का मानना है कि ये नेता निकट भविष्य में देश की समस्याओ के निराकरण के लिए वांछित राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स, टीसीपी आदि कानूनो को देश में लागू कर देंगे। 

मैं आपको बताता हूँ कि, क्यों सोनिया-मोदी-केजरीवाल-भागवत जैसे ऊँचे कद के नेता और विशाल संगठन हमेशा ही राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम जैसे कानूनो का विरोध करेंगे। 

असल में सोनिया-मोदी-केजरीवाल तथा उनके स्तर के सभी बड़े नेता अपने राजनैतिक कॅरियर को बनाये रखने और बढ़ाने के लिए विदेशी/देशी धनिकों पर बुरी तरह से निर्भर करते है। एक बारगी यह मान भी लिया जाए कि ये सभी नेता निजी स्वार्थ से मुक्त है फिर भी इन्हे अपनी स्थिति बनाये रखने के लिए अपनी पार्टियो की उत्तरजीविता सुनिश्चित करनी पड़ेगी। और यदि ये शीर्ष नेता अपने राजनैतिक प्रायोजकों की इच्छा के प्रतिकूल कार्य करने लगते है, तो ये ताकतवर प्रायोजक अन्य नेताओ को इनकी जगह प्रतिस्थापित करने में पर्याप्त रूप से सक्षम है। मिसाल के लिए उन्होंने सिर्फ चार दिनों (अप्रेल 4, 2011 से अप्रेल 8, 2011) के अंदर केजरीवाल और अन्ना जैसे साधारण कार्यकर्ताओ को बड़े नेताओ की तरह स्थापित किया, और 3 वर्ष के मामूली अंतराल में एक साधारण कार्यकर्ता को राज्य के मुख्यमंत्री के पद पर अभिषिक्त कर दिया। वो भी पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ !!! ये उनके सामर्थ्य का परिचायक है। 

कांग्रेस-बीजेपी-आम आदमी पार्टी को तोडना बेहद सरल है। सम्पूर्ण कोई नहीं। प्रत्येक व्यक्ति में कमजोरियां होती है, जिनके खुल आने से नताओं का सार्वजनिक रूतबा गिर सकता है। ऊँचे कद के इन सफ़ेदपोश नेताओ की ऐसी कई कमजोर नसे है, जिन्हे दबाने से ये तड़प उठेंगे। विदेशी/देशी धनिक वर्ग नेता की किसी कमजोरी/गलती/चूक को सार्वजनिक रूप से उभाड़कर उन्हें कई समस्याओ का जिम्मेदार ठहरा सकते है। उदाहरण के लिए फेसबुक* आरक्षण विरोधी भावनाओ को भड़काकर पूरे देश को आंदोलनों की आग में झोंक सकता है, और यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि पूरे प्रकरण का दोष मोदी साहेब के सिर जाए। और मोदी साहेब के गिरने से पूरी पार्टी ढह जायेगी। इस तथ्य से मोदी साहेब और पार्टी के अन्य नेता भी वाकिफ है। इसीलिए वे फेसबुक के फ्री-बेसिक्स** के प्रस्ताव को ठुकरा देने का साहस नहीं दिखा पा रहे है। सोनिया और केजरीवाल पर भी यही शर्त लागू है। यदि ये अपने प्रायोजको के साथ वादा खिलाफी करेंगे तो वे इन नेताओ को गिरा कर उनकी जगह पर पार्टी के अन्य नेताओ को स्थापित कर सकते है।

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*किस तरह फेसबुक जनमानस को प्रभावित करके अपने एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है :

1. फ़िल्टरिंग --- फेसबुक किसी पोस्ट को फिल्टर कर सकता है। मान लीजिये आपकी मित्र सूची में 1000 व्यक्ति है, तो फेसबुक ऐसी कमांड दे सकता है कि जब आप कोई पोस्ट करे तो वह आपके 1000 मित्रो में से 50 मित्रो को ही प्राथमिकता के साथ दिखाई देगी। 

2. बूस्टिंग --- फेसबुक चाहे तो किसी पोस्ट को बूस्ट कर कर सकता है। इससे आपके द्वारा की गयी पोस्ट आपके सभी 1000 मित्रो को अपनी वाल पर प्राथमिकता के साथ दिखाई देगी। 

फेसबुक किसी सूचना विशेष, फोटो, वीडियो आदि को या किसी व्यक्ति या ग्रुप द्वारा प्रसारित की जा रही सूचनाओ को बूस्ट करके लाखो-करोड़ो यूजर्स तक पहुंचा सकता है। इस समय फेसबुक के पास लगभग 8 करोड़ यूजर्स है, किन्तु डिजिटल इण्डिया और फ्रीबेसिक्स की बदौलत शीघ्र ही फेसबुक यूजर्स संख्या 50 करोड़ के आस पास पहुँच जायेगी।

**फ्री-बेसिक्स ---- फ्री-बेसिक्स योजना के तहत फेसबुक करोडो भारतीयों को इंटरनेट के मुफ्त कनेक्शन दे सकता है। इससे फेसबुक यूजर्स की संख्या तेजी से बढ़ेगी, फलस्वरूप फेसबुक का राजनैतिक प्रभाव भी क्रमिक रूप से बढ़ता जाएगा। फेसबुक द्वारा दिए जा रहे कनेक्शन पर यूजर फेसबुक पर सिर्फ उन्ही वेबसाइटों को देख सकेगा जिन कम्पनियो ने फेसबुक के साथ टाई अप किया है। इससे ज्यादातर यूजर फेसबुक का फ्री कनेक्शन इस्तेमाल करेंगे ई-रिटेल का सारा बाजार अमेजन जैसी बड़ी अमेरिकन कम्पनियो के हाथो में चला जाएगा। भारतीय कम्पनियो को यूजर्स नहीं मिलेंगे और वे बाजार से बाहर हो जायेगी। 

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इस समय सोनिया-मोदी-केजरीवाल के अंधभक्तो की संख्या करोडो में है, लेकिन इन सभी ने कांग्रेस-बीजेपी-आम पार्टी के नेतृत्व में 'एक' होने का फैसला कर लिया है। और उनकी एकता का नतीजा ये भारी भरकम विशालकाय नेता है। इनका कहना है कि हमारी जगह सोनिया-मोदी-केजरीवाल सोचेंगे और हम सिर्फ वही सोचेंगे जो सोनिया-मोदी-केजरीवाल सोचेंगे। सीधे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि करोडो स्वतंत्र चींटियों ने 'एक' होकर एक विशाल और वजनी हाथी बनने का फैसला किया है। इसलिए करोडो चींटियों का वजन तो अब भी हाथी के बराबर ही है, किन्तु इन करोडो दिमागों की जगह अब एक दिमाग ने ले ली है। ऐसी स्थिति में दुश्मन फायदे की स्थिति में है, और एक दिमाग को कब्जे में करने या नष्ट करने से करोड़ो चींटियों को निष्क्रिय किया जा सकता है। नेता के खिलाफ एक धुँवाधार नकारात्मक अभियान चलाओ और उसे गिरा दो, शेष करोडो कार्यकर्ता स्वत्: ही दिग्भ्रमित होकर निष्क्रिय हो जाएंगे। 

इसके उलट राईट टू रिकॉल ग्रुप के स्वतंत्र कार्यकर्ता चींटियों की तरह है, और सभी अपने लक्ष्य से भली भाँती परिचित है कि ---- उन्हें राइट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, टीसीपी वेल्थ टैक्स आदि कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने की दिशा में स्वतंत्र रूप से कार्य करना है। सभी को पता है कि दुश्मन का सबसे प्रभावी हथियार पेड मिडिया और फेसबुक है। हमारे पास अपने लक्ष्य को लेकर कोई सर्वमान्य योजना नहीं है, लेकिन सभी इस रूप रेखा पर सहमत है कि इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने के लिए इनके ड्राफ्ट की जानकारी करोड़ो नागरिको तक पहुंचानी है ताकि ड्राफ्ट आधारित एक जनांदोलन खड़ा करके इन कानूनो को देश में लागू करवाया जा सके। चूंकि हमारे पास न तो कोई सर्वमान्य रणनीति है न ही कोई नेता, अत: विभिन्न कार्यकर्ता अपनी परिस्थितियों के अनुसार अपने अपने ढंग से इन कानूनो का प्रचार करने के लिए कार्य करते है। कुछ कार्यकर्ता पर्चे छपवाकर वितरण करते है, कुछ समाचार पत्रो में विज्ञापन देते है तथा कुछ अन्य गतिविधियाँ आयोजित करते है। इससे आंदोलन बिना किसी संगठन और नेता के अपने लक्ष्य की और लगातार बढ़ता रहता है। 
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इस प्रकार हमारे पास कोई केंद्रीय नियंत्रण प्रणाली नहीं है। किन्तु हम सभी को लक्ष्य ने 'एक' कर रखा है। केंद्रीय प्रणाली न होने से सभी कार्यकर्ता स्वत्: स्फूर्त प्रेरणा से कार्य करते है, और किसी एक या कई कार्यकर्ताओ के निष्क्रिय होने के बावजूद अन्य कार्यकर्ता अपने काम में लगे रहकर लक्ष्य की और बढ़ते रहते है। यदि दुश्मन हमें ख़त्म करना चाहे तो उसे हम सभी को निष्क्रिय करना पड़ेगा, जो कि दुश्मन के लिए नितांत अव्यवहारिक और दुष्कर कार्य है। और सबसे महत्त्वपूर्ण है ड्राफ्ट ---- जब एक बार ड्राफ्ट लिख दिया जाता है तो यह अपने आप में एक स्वतंत्र दस्तावेज की तरह व्यवहार करता है, तथा लेखक की ख्याति/अपख्याति के प्रभाव से मुक्त होता है। यदि दुश्मन लेखक के खिलाफ नकारात्मक अभियान चलाता है तब भी ड्राफ्ट इससे अप्रभावित बना रहेगा, और आंदोलन को कोई नुक्सान नहीं होगा।

तो इस रणनीति पर कार्य करने से करोड़ो चींटी रुपी स्वतंत्र कार्यकर्ता जिनके पास स्वतंत्र दिमाग भी है, नेताओ को इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने के लिए मजबूर कर सकेंगे, जबकि बड़े नेता अपनी निहित व्यक्तिगत कमजोरियों/स्वार्थ के कारण इन कानूनो को लागू करने में सक्षम नहीं है। अत: विशालकाय हाथीनुमा नेताओ की तुलना में चींटी कार्यकर्ताओ द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की संभावना बहुत ज्यादा है। 

हालांकि बड़े नेता इन कानूनो का खामोश या मुखर विरोध करेंगे तथा कार्यकर्ताओ का ध्यान भटकाने के लिए उन्हें अपने एजेंडे में उलझाये रखने का प्रयास करेंगे। यही कारण है कि इन संगठनो और नेताओ के प्रायोजक इन्हे प्रमोट करके शिखर पर बनाये रखते है। 

किन्तु यदि प्रायोजक राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो के प्रचार को रोकने में असफल रहे तो, वे सोनिया-मोदी-केजरीवाल से या नवागुन्तक सोनिया-मोदी-केजरीवाल से राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम के आंदोलन को तोड़ने के लिए कहेंगे। इसके लिए वे इन नेताओ से राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम की कमजोर प्रक्रियाएं लागू करने के लिए कहेंगे। किन्तु यदि कार्यकर्ता नागरिको को यह समझाने में कामयाब हो जाते है कि राईट टू रिकॉल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट ज्यादा बेहतर है, तब ये आंदोलन जारी रहेगा और नेताओ पर राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम के मजबूत कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने का दबाव बढ़ता जाएगा। तब भारी जनदबाव में सोनिया-मोदी-केजरीवाल इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करने के लिए बाध्य होंगे, और जादुई तरीके से इन कानूनो को देश में लागू करवाने का श्रेय लूट लेंगे। इनके प्रायोजक यह सुनिश्चित करंगे कि अच्छे बदलावों का यह श्रेय इन बड़े नेताओ को ही मिले, ताकि इन नेताओ का कद कार्यकर्ताओ की तुलना में ऊँचा बना रहे। 

इस तरह पूरी संभावना है कि राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम के कमजोर या मजबूत कानूनो को लागू करवाने का श्रेय सोनिया-मोदी-केजरीवाल-भागवत जैसे बड़े नेता लूट लेंगे। 

मैं फिर से दोहराता हूँ ---- 'विदेशी/देशी धनिक और विशिष्ट वर्ग पूरा प्रयास करेगा कि आंदोलन को तोड़ने के लिए राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम के कमजोर क़ानून पास किये जाए तदुपरांत मजबूरी में मजबूत क़ानून लागू करने पड़े तो उसका सारा श्रेय सोनिया-मोदी-केजरीवाल को मिले'।

लेकिन इतना तो तय है कि ये क़ानून इन बड़े नेताओ के प्रयासों से कभी भी देश में लागू नहीं होंगे। इन कानूनो को देश के करोडो छोटे और स्वतंत्र कार्यकर्ता ही लागू करवा सकते है। 

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