October 7, 2015 No.3
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153072708421922
गोहत्या कम करने के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट
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भारत के नागरिको,
आज लगभग हर राज्य में गो-हत्या के विरुद्ध कानून होने के बावजूद, गो-हत्या अभी भी चल रही है | और उपर से शुद्ध गाय का दूध या तो मिलता ही नहीं या तो बहुत महंगा मिलता है | ऐसा इसीलिए है क्यूंकि आम नागरिकों के पास ऐसे कोई भी प्रक्रिया नहीं जिसके द्वरा वे भ्रष्ट को गलत कार्य करने से रोक सकें |
यदि आप गोहत्या कम करने हेतू प्रभावशाली प्रक्रिया और कानून चाहते हैं और शुद्ध गाय के उत्पाद चाहते हैं जो अधिक महेंगे नहीं हों, तो अपने विधायक को एस.एम.एस. या ट्विट्टर के द्वारा आदेश दें कि इस कानूनी ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाए।
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माननीय सांसद/विधायक,
अगर आपको एस.एम.एस. के द्वारा यू.आर.एल. मिला है तो उसे वोटर का आदेश माना जाये जिसने यह मैसेज भेजा है न कि जिसने ये लेख लिखा है।
एस.एम.एस. भेजने वाला आपको लेख के `C` और `D` सैक्शन में कानून-ड्राफ्ट को अपने वेबसाईट, निजी बिल आदि द्वारा बढ़ावा करने और मांग करने के लिए आदेश दे रहा है -
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सैक्शन A. संक्षिप्त में मुख्य सुझाव
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A1. पारदर्शी शिकायत प्रणाली- (ट्रांसपेरेंट कंप्लेंट प्रोसीजर-टी.सी.पी.) -
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आज यदि किसी के पास गोहत्या करने वाले के विरुद्ध सबूत है और वो सबूत सरकार द्वारा नियुक्त दफ्तर में जमा करता है, तो जमा करने के बाद वो स्वयं अपनी अर्जी देख नहीं सकता | इसलिए, उन सबूत वाली अर्जी को दबाना / छेड़-छाड़ करना बहुत आसान है |
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इसीलिए, हमने प्रस्ताव किया है कि नागरिकों के पास विकल्प होना चाहिए कि कोई भी नागरिक कलेक्टर आदि सरकार द्वारा नियुक्त हजारों दफ्तर में से किसी में जाकर, अपनी सबूत, बयान, अर्जी 20 रुपये की एफिडेविट के रूप में दे सकता है और उस एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर स्कैन करने के लिए कह सकता है ताकि उस एफिडेविट को उसके वोटर आई.डी. के साथ कोई भी बिना लॉग-इन उसे देख सकें |
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संक्षिप्त में ये मांग केवल एक लाइन की है कि नागरिक के पास विकल्प हो कि वो अपना एफिडेविट निश्चित सरकारी दफ्तर जाकर प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन करवा सके ताकि उस एफिडेविट को उसके वोटर आई.डी. नंबर के साथ, बिना लॉग-इन के सभी उसे देख सकें | इस एक लाइन सरकारी आदेश-क़ानून द्वारा आने से सबूतों को दबाया नहीं जा सकेगा ; जनता के सामने सबूत दबाने का प्रयास करने वाले की जनता में सबूत सहित पोल खुल जायेगी |
इसका पूरा ड्राफ्ट आगे (C1 में) पढ़ें |
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A2. न्यायतंत्र, प्रशासन और पुलिस में मुख्य पदों पर राईट टू रिकॉल के कानून-ड्राफ्ट -
गो-हत्या के बढ़ते चले जाने का एक सबसे बड़ा कारण जज-व्यवस्था, सरकारी वकील और पुलिस में बढ़ता भ्रष्टाचार है | हिन्दू गायों का पोषण दान के द्वारा करते हैं, इसलिए गायों के पोषण का खर्च लगभग शून्य आता है | विपरीत इसके, भैंसों के पोषण में खर्च गायों के तुलना में बहुत अधिक है क्यूंकि इन्हें खाना खरीद कर खिलाना पड़ता है | इसीलिए, गो-पालक गायों को बहुत ही सस्ते दामों पर कसाई को बेच देते हैं | और कसाई गो-मांस के द्वारा भारी मुनाफ़ा कमाते हैं | ये कसाई सजा से बचने के लिए, जजों, वकील, पुलिस को भारी रिश्वत देते हैं | इसीलिए, कई जज, पुलिस, वकील गो-ह्त्या को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाते और गो-हत्या चलने देते हैं |
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लेकिन यदि नागरिकों के पास ऐसी प्रक्रिया हो कि वे भ्रष्ट सरकारी वकील, जज और पुलिस को ईमानदार अफसरों से किसी भी दिन बदल सकें, तो नौकरी जाने के डर से 99% अफसर अपना कार्य सुधार देंगे और 1% जो अफसर कार्य नहीं सुधारेंगे, उनको नागरिक बदल कर ईमानदार अफसर ले आयेंगे | तो, सरकारी वकील, जज और पुलिस में भ्रष्टाचार कम हो जाये तो गो-हत्या कम हो जायेगी | इन जनहित प्रक्रियाओं से दूसरे अपराधों में भी कमी आएगी |
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इसीलिए, हमें राईट टू रिकॉल-पुलिस कमिश्नर, राईट टू रिकॉल-जिला सरकारी वकील, राईट टू रिकॉल-जिला न्यायाधीश (जज) , गौ कल्याण मंत्री पर भी राईट टू रिकॉल का प्रावधान लागू करना ताकि दोषियों को समय पर उचित सजा मिल सके । (राईट टू रिकॉल-पुलिस कमिश्नर का ड्राफ्ट आगे C2.1 में देखें, राईट टू रिकॉल-जिला न्यायाधीश (जज) का ड्राफ्ट आगे C2.2 में देखें, राईट टू रिकॉल- जिला सरकारी वकील का ड्राफ्ट आगे C2.3 में देखें और राईट टू रिकॉल-गौ कल्याण मंत्री का ड्राफ्ट आगे C5 में देखें)
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A3. जज सिस्टम के बदले जूरी सिस्टम -
जूरी सिस्टम में जज के बदले क्रम-रहित (लॉटरी द्वारा) चुने गए 15 से 1500 नागरिक मामले का फैसला करते हैं और हर मामले के बाद नए लोग चुने जाते हैं | दोष और सजा की अवधि (समय) तय करने के लिये जज द्वारा मुकदमे की जगह ज्यूरी द्वारा मुकदमा होना चाहिये क्यूंकि ज्यूरी सिस्टम में जज सिस्टम की तुलना में फैसला जल्दी और न्यायपूर्वक आता है (पूरा ड्राफ्ट आगे देखें) ।
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जूरी सिस्टम गो-वध को किस प्रकार से कम करता है ?
मान लीजिये कि एक कसाई एक महीने में 1000 गायों का वध करके प्रत्येक गाय पर 5000 रूपये का लाभ कमाता है, अर्थात एक माह में 50 लाख रूपये का लाभ कमाता है | अब मान लें कि प्रत्येक वर्ष में उनके विरुद्ध गो-कत्ल, गायों को लाने-ले जाने या उनका मांस बेचने के लिए 50-100 केस दर्ज होते हैं | अब ये सारे केस 2-3 जजों के पास जायेंगे | जजों के पास स्थानान्तरण के पहले 3 साल की अवधि है | इसिलए ये 2-3 जज में से प्रत्येक जज उनके 3 साल के कार्यकाल में गो-कत्ल या गाय-चुराने या उन्हें ले जाने या जो-मांस विक्रय के 200-300 मामलों पर विचार करेंगे | अब उन 50 कसाइयों का काम सरल हो गया कि उन्हें बस 2-3 जजों को ही रिश्वत देनी पड़ेगी |
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अगर उनमें से किसी जज ने गायों के मुकदमे मे रिश्वत लेने से मना किया, तो वे सारे कसाईयों को चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या फिर प्रधान सैशन जज को सम्बंधित मुकदमे को किसी दूसरे जज को ट्रांसफर करने के लिए कहेंगे जो कि आसानी से प्रभावित हो जाने वाला हो | या वे कसाई उच्च न्यायालय के मुख्य जज को उस क्षेत्र के जजों का स्थानान्तरण करने को कहेंगे | या वे कसाई सरकारी वकील (पब्लिक प्रासीक्यूटर) को सम्बंधित मुकदमों को 2 साल और टालने के लिए कहेंगे जिससे कि उस समयांतराल में उन कठोर जजों का ट्रांसफर हो जाये | अधिकतर मामलों में कसाई 1-2 क्षेत्रों में होते हैं जो कि केवल 1-2 मजिस्ट्रेट्स के अधीन हों | और कसाई ये निश्चित करते हैं कि उनके क्षेत्र में उनके अनुकूल ही मजिस्ट्रेट् की नियुक्ती हो | कुल मिलाकर अनेक तरीके हैं जिनसे कि मजिस्ट्रेट् और जजों को मैनेज किया जा सकता है |
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अब जूरी प्रथा में 200-300 मामलों में से प्रत्येक मामला 12 अलग अलग जूरी सदस्यों के पास जाता है | अर्थात सम्बंधित क्षेत्र के सारे गो-वध के केस कुल 2400-3600 नागरिकों के पास जाते हैं जो कि जूरी सदस्य के रूप में चुने गये होते हैं और उन कसाइयों को सभी 2400-3600 लोगों को रिश्वत खिलानी पड़ेगी | जज सिस्टम में कसाइयों को केवल 2-3 जजों को रिश्वत देकर ही रिहाई की 100% संभावना बनती है जबकि जूरी सिस्टम में ऐसा नहीं है | जूरी सिस्टम में दोषी व्यक्ति को रिहाई मिलना कहीं अधिक कठिन है, इसीलिए जूरी आने से गो-हत्या कम होगी |
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हमारे प्रस्तावित जूरी सिस्टम के ड्राफ्ट में जैसे जैसे अपराधों की गंभीरता बढ़ती जायेगी वैसे वैसे ही जूरी-सदस्यों की भी संख्या बढ़ती जाएगी | अब यदि किसी व्यक्ति के ऊपर दर्जनों गायों की हत्या का आरोप है तो जूरी का आकार भी बढ़ता जायेगा अर्थात (12+ मारे गए गायों कि संख्या) जो कि अधिकतम 1500 जूरी सदस्यों तक जा सकती है |
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अब किसी जूरी सदस्य, जिसके पास केवल एक ही मुकदमा है, उसको रिश्वत देना और उसके साथ सांठ-गाँठ (सेट्टिंग) करना कहीं अधिक कठिन है उसकी तुलना में कि एक जज को रिश्वत देना जिसके पास 50 मामले होंगे !! क्योंकि जज सिस्टम में यदि जज पैसे ले लेता है और कसाई के पक्ष में निर्णय नहीं करता, तो उस जज को आगे रिश्वत नहीं मिलेगी | यदि जज कसाई का काम कर देता है लेकिन कसाई उसको पैसे नहीं देता, तो जज अपने सभी मित्र जजों को बोल देगा कि इस कसाई का कोई काम नहीं करना क्यूंकि ये पैसे नहीं देता काम करने के लिए | इस प्रकार, जज सिस्टम में अपराधी और जज की सांठगांठ आसानी से हो जाती है |
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जबकि जूरी में जूरी सदस्य और अपराधी के बीच में सांठगांठ (सेट्टिंग) करना बहुत कठिन है | क्योंकि जूरी सदस्य 10 साल के लिए दोहराया नहीं जाता | आरोपी तथा उन 12 जूरी सदस्यों को ये निश्चित करना कठिन होगा कि उन्हें न्याय के पहले रिश्वत का लेन-देन करना चाहिए या बाद में | यदि आरोपी ये कहता है कि वो रिहाई के बाद रिश्वत देगा, तो जूरी-सदस्य उस आरोपी के ऊपर विश्वास नहीं कर पायेंगे और यदि जूरी सदस्य ये कहता है कि रिश्वत पहले और रिहाई बाद में तो वह आरोपी जूरी सदस्यों के उपर विश्वास नहीं कर सकेगा | इसलिए, जूरी सिस्टम में मामला लटकाया नहीं जाता और फैसला जल्दी ही, कुछ ही हफ़्तों में आ जाता है |
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निचली अदालत में जूरी सिस्टम का ड्राफ्ट आगे C3 में देखें |
A4. ज्यूरी सदस्यों के आदेश पर गौहत्या के दोषियों का नार्को टेस्ट
(ड्राफ्ट के लिए लेख में आगे देखें )
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जूरी-सदस्य के लिए सबसे कठिन कार्य है ये निर्णय लेना कि आरोपी सत्य बोल रहा है या नहीं, ये उस आरोपी का पहला अपराध है या उसने ऐसे ही दसियों अपराध पहले भी किये हैं | अधिकतर मामलों में प्रायः ही गवाहों और सबूतों की कमी ही रहती है | गवाह गलत भी हो सकते हैं, साक्ष्य उपयुक्त नही भी हो सकते हैं और सबूतों का निर्माण भी किया जा सकता है | ये सभी बातें, जूरी-सदस्य के लिए निर्णय लेने में समस्या उत्पन्न करती हैं |
इस स्थिति में, जनता के मध्य, पब्लिक में, पाली-ग्राफ, ब्रेन-मैपिंग और नार्को-टेस्ट सहायक सिद्ध हो सकता है |
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नार्को-टेस्ट में व्यक्ति के रक्त में 5 मिली सोडियम पेंटोथल नामक रसायन डाला जाता है | ये रसायन पूरी तरह से हानि रहित है और इसे लगभग सौ सालों के ऊपर से चेतनाशून्य करनेवाली औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है | नार्को-जांच का परिणाम सुराग के रूप में लिया जाता है, न कि सबूत के रूप में | नार्को-जांच में पूछे गए प्रश्न जैसे किसको रिश्वत दी थी और कौनसे गुप्त स्विस खाते में दी थी, आदि से प्राप्त उत्तरों से आगे कार्यवाई की जाती है और यदि उस कार्यवाई से कोई सबूत मिलता है, तो ही उन्हें कोर्ट में पेश किया जाता है | इसीलिए, जूरी द्वारा नारको-जांच पूरी तरह से संवैधानिक है और किसी प्रकार से नागरिकों का हनन नहीं करता |
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ज्यूरी सदस्यों के आदेश पर गौहत्या के दोषियों का नार्को टेस्ट का ड्राफ्ट आगे C4 में देखें |
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A5. गौहत्या करने वालों, गो-मॉस बेचने वालों और गो और गो-मांस को निर्यात करने वालों को जूरी द्वारा 5 वर्षों तक सजा का प्रावधान -
इसको बनाने के लिये राजपत्र- अधिसूचना (सरकारी आदेश) छपवाया जाना चाहियें ।
केरला और पश्चिम बंगाल को छोड़ कर भारत के लगभग सभी राज्यों में गो-हत्या सम्बंधित कानून पहले से ही बना हुआ हैं लेकिन ऊपर बताये गए नागरिक-प्रामाणिक कानून नहीं होने से गो-हत्या अभी भी चालू है । मतलब हमें ऐसे कानून चाहिए जिसके द्वारा नागरिक को स्वयं पता चल सके कि सच क्या है और झूठ क्या है | उपरोक्त कानून द्वारा नागरिक शशक्त (ताकतवर) हो जायेंगे कि भ्रष्ट को गलत काम करने से रोक सकते हैं | इसीलिए, हमें वर्तमान कानूनों में संशोधन करना होगा और पश्चिम बंगाल और केरला में भी गो-हत्या के प्रतिबन्ध सम्बंधित जनहित के नागरिक-प्रामाणिक कानून लाने होंगे |
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सैक्शन B. अन्य मांगें -
इन मांगों के लिए सभी ड्राफ्ट पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव प्रणाली (टी.सी.पी.) द्वारा लाये जायेंगे, मतलब जनता और अधिकारी की सहमति से लाये जायेंगे |
6. किसी एक राज्य से दूसरे राज्य में गाय को ले जाने पर पाबन्दी हो । ऐसा करने वालों को भी ज्यूरी पाँच वर्षों की सजा दे सकती है ।
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7. ट्रेक्टर आदि की खरीद पर छूट (सब्सीडी) हर वर्ष 20% कम हो ताकि बैलो की माँग बढ़े, उपज बड़े और गो-हत्या कम हो ।
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8. रासायनिक खाद पर सब्सीडी और रासायनिक कीटनाशक पर सब्सिडी हर वर्ष 20% कम हो और इस पैसे को राशन की दुकानों पर अनाज आदि राशन को कम दाम पर देने के लिए प्रयोग किया जाये ताकि उपज बड़े और गो-हत्या और जीव-हत्या कम हो | (इसके बारे में विस्तृत रूप से जानने के लिए ये वीडियो देखें - https://www.youtube.com/watch?v=5uzEb1iKdz4)
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9. गाय का चमड़ा बेचने पर प्रतिबन्ध लगेगा | मृत गाय को दफनाया जायेगा या जलाया जायेगा | जूतों आदि पर "हरा गो-हत्या मुक्त लेबल" लगाना, जिसका मतलब होगा कि चमड़ा जिस पशु से आया है, उसकी प्राकृतिक मृत्यु हुई है और उसका मांस खाने के लिए प्रयोग नहीं किया गया था | इस `हरा` चमड़े का मूल्य अधिक होगा लेकिन गो-हत्या और जीव-हत्या कम हो जायेगी |
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10. गाय के नकली घी और नकली दूध आदि की बिक्री कम करने के लिये मिलावट-नियंत्रक (Anti-Adulteration) अफसर पर राईट टू रिकॉल (ड्राफ्ट के लिए लेख में आगे देखें) । मिलावट-नियंत्रक अफसर पर राईट टू रिकॉल सही अपना काम सही तरीके से करेंगे और नागरिकों के लिए थोड़े से शुल्क के लिए जगह-जगह सब्जी, फल, दूध, घी के विश्वसनीय जांच केन्द्र चलवाने का प्रबंध करेंगे | स्वयं मिलावट-नियंत्रक अफसर और इनके नीचे अफसर क्रमरहित (रैंडम) चैक करेंगे कि दूध सब्जी सही है या मिलावटी | और मिलावट सम्बन्धी कोई भी शिकायत और जांच-केन्द्रों के कर्मचारियों सम्बन्धी कोई शिकायत जूरी सिस्टम द्वारा ही विवाद सुलझाए जायेंगे | इससे मिलावट में कमी आएगी और मिलावट सम्बन्धी मामलों में फैसला जल्दी और अधिक न्यायपूर्वक तरीके से आएगा |
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11. गाय-भैंस खरीदने पर सरकार द्वारा कोई छूट (सब्सीडी) नहीं मिलेगी । इन छूट के कारण गो-हत्या बढ़ रही है (क्यूंकि गाय सस्ते दामों पर कसाई को मिल जाती है और मुनाफा अधिक होता है | उस मुनाफे का एक भाग दोषी जज, पुलिस आदि को रिश्वत देते हैं और छूट जाते हैं )
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12. सरकार बूढ़ी गायों को एक निर्धारित कीमत पर खरीदेगी ।
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13. शुक्राणु-विभाजन की प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये पूंजी निवेश किया जाना चाहिये ताकि सांड की पैदावार कम की जा सके और इस प्रकार सांड की हत्या कम की जा सके |
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14. दूध की थैली/डिब्बे पर स्पष्ट लिखा होगा कि दूध गाय का है या भैंस का । साथ ही यह भी लिखा होगा कि दूध देशी गाय का है या जर्सी/गीर गाय का ।
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15. दूध की थैली/डिब्बे पर स्पष्ट लिखा होगा कि दूध में प्रोटीन, वसा (फैट) आदि की मात्रा और भारतीय मेडिकल काउन्सिल के आनुसार उस फैट लेवल से हार्ट अटैक की सम्भावना भी लिखी होगी । इस तरह से भैंस और जर्सी गाय के दूध के खपत में भी कमी आयेगी ।
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16. सरकार गौ-शालाएँ चलायेगी जिसके लिये धन बिना कोई टैक्स छूट के दान से आयेगा । शहरों में 10,000 से 30,000 आबादी वाले हर बस्ती में कम से कम एक गौशाला जरूर होनी चाहिये । इस तरह शहरों में हर वार्ड में कम से कम 1 या 2 गौशाला अवश्य हो जायेंगी ।
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17. भैंस और जर्सी गाय के दूध से मनुष्य शरीर पर और दिल पर हो रहे दुष्प्रभाव (नुकसान) के बारे में नागरिकों को विभिन्न माध्यमों से बताया जाये । जैसे-जैसे भैंस और जर्सी गाय के दूध से दिल पर हो रहे नुकसान के बारे में नागरिकों को पता चलेगा भैंस और जर्सी गाय के दूध का उत्पादन और उपयोग कम हो जायेगा और भारतीय गाय की माँग बढ़ेगी ।
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सैक्शन C. मुख्य मांगें के राजपत्र में छपवाने के लिए ड्राफ्ट :
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=====ड्राफ्ट का प्रारम्भ======
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C1. पारदर्शी शिकायत प्रणाली- (ट्रांसपेरेंट कंप्लेंट प्रोसीजर-टी.सी.पी.) -
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[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया
1.
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[कलेक्टर (और उसके क्लर्क) के लिए निर्देश ]
कोई भी नागरिक मतदाता, यदि खुद हाजिर होकर, एफिडेविट पर अपनी सूचना अधिकार का आवेदन अर्जी / भ्रष्टाचार के खिलाफ फरियाद / कोई प्रस्ताव या कोई अन्य एफिडेविट कलेक्टर को देता है और प्रधानमंत्री की वेब-साईट पर रखने की मांग करता है, तो कलेक्टर (या उसका क्लर्क) उस एफिडेविट को प्रति पेज 20 रूपये का लेकर, सीरियल नंबर देकर, एफिडेविट को स्कैन करके प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रखेगा, नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ, ताकि सभी बिना लॉग-इन के वे एफिडेविट देख सकें ।
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2.
[पटवारी (तलाटी, लेखपाल)]
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(2.1) कोई भी नागरिक मतदाता यदि धारा-1 द्वारा दी गई अर्जी या एफिडेविट पर आपनी हाँ या ना दर्ज कराने मतदाता कार्ड लेकर आये, 3 रुपये का शुल्क (फीस) लेकर, तो पटवारी नागरिक का मतदाता कार्ड संख्या, नाम, उसकी हाँ या ना को कंप्यूटर में दर्ज करके रसीद दे देगा ।
नागरिक की हाँ या ना प्रधानमंत्री की वेब-साईट पर आएगी । गरीबी रेखा के नीचे के नागरिकों के लिए शुल्क 1 रूपये होगा ।
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(2.2) नागरिक पटवारी के दफ्तर जाकर किसी भी दिन अपनी हाँ या ना, बिना किसी शुल्क के रद्द कर सकता है और तीन रुपये देकर बदल सकता है ।
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(2.3) कलेक्टर एक ऐसा सिस्टम भी बना सकता है, जिससे मतदाता का फोटो, अंगुली के छाप को रसीद पर डाला जा सके | और मतदाता के लिए फीडबैक (पुष्टि) एस.एम.एस. सिस्टम बना सकता है |
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(2.4) प्रधानमंत्री एक ऐसा सिस्टम बना सकता है, जिससे मतदाता अपनी हाँ या ना, 10 पैसे देकर एस.एम.एस. द्वारा दर्ज कर सके |
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3. सभी के लिए
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नागरिको द्वारा दर्ज की गयी हाँ/ना प्रधानमन्त्री के लिए बाध्य नही है।
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ये कोई रेफेरेनडम / जनमत-संग्रह नहीं है | यह हाँ या ना अधिकारी, मंत्री, जज, सांसद, विधायक, अदि पर अनिवार्य नहीं होगी । लेकिन यदि भारत के 40 करोड़ नागरिक मतदाता, कोई एक अर्जी, फरियाद पर हाँ दर्ज करें, तो प्रधानमंत्री उस फरियाद, अर्जी पर ध्यान दे भी सकते हैं या ऐसा करना उनके लिए जरूरी नहीं है, या इस्तीफा दे सकते हैं । उनका निर्णय अंतिम होगा ।
C2. न्यायतंत्र, प्रशासन और पोलिस में मुख्य पदों पर राईट टू रिकॉल के कानून-ड्राफ्ट -
हमने 200 से अधिक पदों के लिए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) का प्रस्ताव किया है। जिन प्रक्रियाओं का मैंने प्रस्ताव किया है, उन सभी में खुले मतदान का प्रयोग किया जाता है। लेकिन जिला पुलिस कमिश्नर/आयुक्त के लिए मैंने इन प्रक्रियाओं के अलावा एक और प्रक्रिया का भी प्रस्ताव किया है जिसमें गोपनीय सह-चुनाव मतदान का प्रयोग किया जाता है।
C2.1 राइट-टू-रिकॉल -जिला पुलिस कमिश्नर (भ्रष्ट पुलिस-कमिश्नर को बदलने का नागरिकों का अधिकार) सरकारी-अधिसूचना(आदेश) का पूरा ड्राफ्ट
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया/अनुदेश
1.
—-
मुख्यमंत्री सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करेंगे ।
2.
[राज्य चुनाव आयुक्त/इलेक्शन-कमिश्नर]
मुख्य मंत्री और नागरिक , राज्य चुनाव आयुक्त से जिला पुलिस प्रमुख का सह-मतदान करवाने का अनुरोध/प्रार्थना करेंगे, जब कभी भी किसी जिले में जिला पंचायत, तहसील पंचायत, ग्राम पंचायत अथवा नगर निगम अथवा जिला भर में जिला स्तर का कोई भी आम चुनाव चल रहा हो।
3.
[राज्य चुनाव आयुक्त]
यदि कोई भारतीय नागरिक पिछले 3000 दिनों में 2400 से अधिक दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख नहीं रहा हो, 30 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी भारतीय नागरिक जिसने 5 वर्षों से अधिक समय तक सेना में काम किया हो, पुलिस में एक भी दिन काम किया हो, सरकारी कर्मचारी के रूप में 10 वर्षों तक काम किया हो अथवा उसने राज्य लोक सेवा आयोग या संघ लोक सेवा आयोग की लिखित परीक्षा पास की हो, अथवा सिर्फ विधायक या सांसद या पार्षद या जिला पंचायत के सदस्य का चुनाव जीता हो, वह जिला पुलिस प्रमुख के उम्मीदवार के रूप में अपने को दर्ज करवा सकेगा |
4.
[राज्य चुनाव आयुक्त]
राज्य चुनाव आयुक्त जिला पुलिस प्रमुख के चुनाव के लिए एक मतदान पेटी रखवा देगा ।
5.
[नागरिक]
कोई भी नागरिक–मतदाता उम्मीदवारों में से किसी को भी वोट दे सकता है ।
6.
[मुख्यमंत्री]
यदि कोई उम्मीदवार जिले के सभी दर्ज नागरिक-मतदाताओं (सभी, न कि केवल उनका जिन्होंने वोट दिया है) के 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का मत/वोट प्राप्त कर लेता है तो मुख्यमंत्री त्यागपत्र/इस्तीफा दे सकते हैं अथवा सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उस व्यक्ति को उस जिले में अगले 4 वर्ष के लिए नया जिला पुलिस प्रमुख नियुक्त कर सकते हैं ।
7.
[मुख्यमंत्री]
मुख्यमंत्री एक जिले में अधिक से अधिक एक व्यक्ति को जिला पुलिस प्रमुख बना सकते हैं ।
8.
[मुख्यमंत्री]
यदि कोई व्यक्ति पिछले 3000 दिनों में 2400 से अधिक दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख रह चुका हो तो मुख्यमंत्री उसे अगले 600 दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख के पद पर रहने की अनुमति नहीं देंगे ।
9.
[मुख्यमंत्री, राज्य के नागरिकगण]
राज्य के सभी नागरिक मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से मुख्यमंत्री किसी जिले में इस कानून को 4 वर्षों के लिए हटा/निलंबित कर सकते हैं और अपने विवेक/अधिकार से उस जिले में जिला पुलिस प्रमुख की नियुक्ति कर सकते हैं/रख सकते हैं ।
10.
[प्रधानमंत्री, भारत के नागरिक]
भारत के सभी नागरिक मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से प्रधानमंत्री किसी राज्य में इस कानून को 4 वर्षों के लिए हटा सकते हैं और अपने विवेक/अधिकार से उस राज्य के सभी जिलों में जिला पुलिस प्रमुख की नियुक्ति कर सकते हैं।
11. जनता की आवाज़ (सी वी ) 1
[जिला कलेक्टर (डी सी)]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन का प्रस्ताव करना चाहता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क के पास इस परिवर्तन की मांग करने वाला एक एफिडेविट जमा करवा देगा । जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन कर देगा ताकि बिना लॉग-इन सब उसको देख सकें ।
12. जनता की आवाज़ (सी वी ) 2
[तलाटी यानि पटवारी/लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी क्लॉज/खण्ड के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के क्लॉज/खण्ड में प्रस्तुत किसी एफिडेविट/हलफनामा पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है । तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उस नागरिक के हां–नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर भी नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ डाल देगा ।
C2.2 राइट-टू-रिकॉल – जिले का प्रधान जज का कानून-ड्राफ्ट
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया/अनुदेश
1. `नागरिक` शब्द का अर्थ जिले का पंजीकृत मतदाता होगा |
2. [कलेक्टर के लिए निर्देश] यदि भारत का कोई नागरिक जो 35 साल से अधिक हो और जिसके पास एल.एल.बी की शैक्षिक उपाधि हो और जिले का प्रधान जज बनना चाहता है, तो वो स्वयं या उसके वकील द्वारा एफिडेविट के साथ जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) के समक्ष आये, तो जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्क लेकर, उसकी जिले का प्रधान जज उम्मीदवार बनने की अर्जी को स्वीकार करेगा | जिला कलेक्टर या उसका क्लर्क उम्मीदवारों के नाम मुख्यमंत्री वेबसाईट पर रखेगा |
3. [तलाटी या तलाटी के क्लर्क के लिए निर्देश] यदि उस जिले का नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में स्वयं जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्यक्तियों को जिला सरकारी वकील के पद के लिए अनुमोदित करता है तो तलाटी उसके अनुमोदन को कम्प्युटर में डाल देगा और उसे उसका मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्यक्तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा ।
4. [तलाटी के लिए निर्देश] वह तलाटी नागरिकों की पसंद को जिले के वेबसाइट पर उनके मतदाता पहचान-पत्र और उनकी प्राथमिकताओं के साथ डाल देगा ।
5. [तलाटी के लिए निर्देश] यदि कोई नागरिक अपनी स्वीकृति रद्द करने के लिए आता है तो तलाटी उसके एक या अधिक अनुमोदनों को बिना कोई शुल्क लिए रद्द कर देगा ।
6. [कलेक्टर के लिए निर्देश] प्रत्येक महीने की पांचवी तारीख को जिला कलेक्टर प्रत्येक उम्मीदवार की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती पिछले महीने की अंतिम तिथि की स्थिति के अनुसार प्रकाशित करेगा ।
7. [हाई कोर्ट प्रधान जजों के लिए निर्देश] यदि किसी उम्मीदवार को जिले के सभी मतदाताओं के 35% से अधिक अनुमोदन मिलते हैं (सभी, न कि केवल जिन्होंने अपने अनुमोदन दिए हैं), और वे अनुमोदन वर्तमान जिला प्रधान जज के अनुमोदनों से जिले के मतदाता संख्या के 5% से अधिक है, तो हाई कोर्ट के प्रधान जज उसे जिले का प्रधान जज नियुक्त कर सकते हैं |
8. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] जब तक जिला सरकारी वकील के पास जिले के 34% से अधिक मतदातों का अनुमोदन है, मुख्यमंत्री उसको बदलेगा नहीं | लेकिन यदि जिला सरकारी वकील के अनुमोदन 34% से कम हो जाते हैं, तो मुख्यमंत्री उसको अपने पसंद के अफसर से बदल देगा |
9. (जिले के प्रधान जज के लिए निर्देश) जिले का प्रधान जज, हाई कोर्ट के प्रधान जज की स्वीकृति से या पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव प्रणाली का उपयोग करके उस राज्य के नागरिकों की स्वीकृति से, अपने प्रस्तावित जूरी सिस्टम के ड्राफ्ट को लागू करने का निर्णय कर सकता है |
10. जनता की आवाज़ (सी वी ) 1
[जिला कलेक्टर (डी सी)]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन का प्रस्ताव करना चाहता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क के पास इस परिवर्तन की मांग करने वाला एक एफिडेविट जमा करवा देगा । जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन कर देगा ताकि बिना लॉग-इन सब उसको देख सकें ।
11. जनता की आवाज़ (सी वी ) 2
[तलाटी यानि पटवारी/लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी क्लॉज/खण्ड के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के क्लॉज/खण्ड में प्रस्तुत किसी एफिडेविट/हलफनामा पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है । तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उस नागरिक के हां–नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर भी नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ डाल देगा ।
C2.3 राइट-टू-रिकॉल जिला सरकारी वकील
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया/अनुदेश
1. `नागरिक` शब्द का अर्थ जिले का पंजीकृत मतदाता होगा |
2. [कलेक्टर के लिए निर्देश] यदि भारत का कोई भी नागरिक जिला सरकार वकील बनना चाहे और वो स्वयं या अपने वकील द्वारा एफिडेविट के साथ जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) के समक्ष आये, तो जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्क लेकर, उसकी जिला सरकारी वकील उम्मीदवार बनने की अर्जी को स्वीकार करेगा | जिला कलेक्टर या उसका क्लर्क उम्मीदवारों के नाम मुख्यमंत्री वेबसाईट पर रखेगा |
3. [तलाटी या तलाटी के क्लर्क के लिए निर्देश] यदि उस जिले का नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में स्वयं जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्यक्तियों को जिला सरकारी वकील के पद के लिए अनुमोदित करता है तो तलाटी उसके अनुमोदन को कम्प्युटर में डाल देगा और उसे उसका मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्यक्तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा ।
4. [तलाटी के लिए निर्देश] वह तलाटी नागरिकों की पसंद को जिले के वेबसाइट पर उनके मतदाता पहचान-पत्र और उनकी प्राथमिकताओं के साथ डाल देगा ।
5. [तलाटी के लिए निर्देश] यदि कोई नागरिक अपनी स्वीकृति रद्द करने के लिए आता है तो तलाटी उसके एक या अधिक अनुमोदनों को बिना कोई शुल्क लिए रद्द कर देगा ।
6. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] बाद में, मुख्यमंत्री इस प्रक्रिया को एस.एम.एस. पर भी लागू करवा सकता है |
7. [कलेक्टर के लिए निर्देश] प्रत्येक महीने की पांचवी तारीख को जिला कलेक्टर प्रत्येक उम्मीदवार की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती पिछले महीने की अंतिम तिथि की स्थिति के अनुसार प्रकाशित करेगा ।
8. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] यदि किसी उम्मीदवार को जिले के सभी मतदाताओं के 35% से अधिक अनुमोदन मिलते हैं (सभी, न कि केवल जिन्होंने अपने अनुमोदन दिए हैं), और उस उम्मीदवार को वर्तमान जिला सरकारी वकील के अनुमोदनों से जिले के सभी मतदाता संख्या के 5% से अधिक अनुमोदन मिलते हैं, तो मुख्यमंत्री उसे सरकारी वकील नियुक्त कर सकता है |
9. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] जब तक जिला सरकारी वकील के पास जिले के 34% से अधिक मतदातों का अनुमोदन है, मुख्यमंत्री उसको बदलेगा नहीं | लेकिन यदि जिला सरकारी वकील के अनुमोदन 34% से कम हो जाते हैं, तो मुख्यमंत्री उसको अपने पसंद के अफसर से बदल देगा |
10. जनता की आवाज़ (सी वी ) 1
[जिला कलेक्टर (डी सी)]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन का प्रस्ताव करना चाहता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क के पास इस परिवर्तन की मांग करने वाला एक एफिडेविट जमा करवा देगा । जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन कर देगा ताकि बिना लॉग-इन सब उसको देख सकें ।
11. जनता की आवाज़ (सी वी ) 2
[तलाटी यानि पटवारी/लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के धारा में प्रस्तुत किसी एफिडेविट पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है । तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उस नागरिक के हां–नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर भी नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ डाल देगा ।
C2.4 राइट-टू-रिकॉल मिलावट-नियंत्रक (Anti-Adulteration) अफसर
ये ड्राफ्ट C2.3 में दिए गए राइट-टू-रिकॉल जिला सरकारी वकील के सामान है | केवल `जिला सरकारी वकील` के स्थान पर ` मिलावट-नियंत्रक (Anti-Adulteration) अफसर ` डालें |
C2.5 राइट-टू-रिकॉल राशन अधिकारी
ये ड्राफ्ट C2.3 में दिए गए राइट-टू-रिकॉल जिला सरकारी वकील के सामान है | केवल `जिला सरकारी वकील` के स्थान पर ` राशन अधिकारी ` डालें |
C3. निचले कोर्ट में जूरी सिस्टम का प्रक्रिया-ड्राफ्ट
निचले कोर्ट में जूरी सिस्टम लाने के लिए नागरिकों को निम्नलिखित ड्राफ्ट कि आवश्यकता होगी | ये राजपत्र तभी लागू हो सकता है जब इसपर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर होंगे | इसको लाने के लिए नागरिकों को अपने सांसदों या विधायकों को एस.एम.एस. या ट्विट्टर द्वारा आदेश देना चाहिए कि वे इस निम्नलिखित ड्राफ्ट को अपने वेबसाईट, निज बिल द्वारा बढ़ावा और मांग करें और सांसद प्रधानमंत्री को आदेश करें और विधायक मुख्यमंत्री को आदेश करें कि इस ड्राफ्ट को भारतीय राजपत्र में छापें -
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया
सैक्शन – 1 : जूरी प्रशासक की नियुक्ति और उन्हें बदलने की प्रक्रिया
1.
[मुख्यमंत्री ; जिला कलेक्टर]
इस कानून के पारित/पास किए जाने के 2 दिनों के भीतर, सभी मुख्यमंत्री अपने-अपने पूरे राज्य के लिए एक रजिस्ट्रार की नियुक्ति करेंगे और हर जिले के लिए एक जूरी प्रशासक की भी नियुक्ति करेंगे कोई भी भारत का नागरिक जो 30 साल या अधिक का हो, जिला कलेक्टर के दफ्तर में जा कर, सांसद के जितना शुल्क जमा कर के अपने को जूरी प्रशाशक के लिए प्रत्याशी दर्ज करा सकता है और जिला कलेक्टर प्रत्याशी का नाम मुख्यमंत्री वेबसाईट पर डालेगा |
2.
[तलाटी = पटवारी = लेखपाल (या तलाटी का क्लर्क) ]
किसी जिले में रहने वाला कोई नागरिक अपना मतदाता पहचान-पत्र प्रस्तुत करके अपने जिले में जूरी प्रशासक के पद के लिए (ज्यादा से ज्यादा) पांच उम्मीदवारों के क्रमांक नंबर बताएगा जिन्हें वो अनुमोदन/स्वीकृति करता है । क्लर्क उनके अनुमोदनों को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ कंप्यूटर और मुख्यमंत्री वेबसाईट पर डाल देगा और उस नागरिक को रसीद दे देगा। नागरिक अपनी पसंदों को किसी भी दिन बदल सकता है। क्लर्क तीन रूपए का शुल्क लेगा ।
3.
[मुख्यमंत्री]
यदि किसी उम्मीदवार को सबसे अधिक नागरिक-मतदाताओं द्वारा और जिले के सभी नागरिक-मतदाताओं के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है तो मुख्यमंत्री उसे दो ही दिनों के भीतर उस जिले के नए जूरी प्रशासक के रूप में नियुक्त कर देंगे। यदि किसी उम्मीदवार को सभी नागरिक-मतदाताओं के 25 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है और उसके अनुमोदनों की गिनती वर्तमान जूरी प्रशासक की गिनती से 5 प्रतिशत अधिक हो तो मुख्यमंत्री उसे दो ही दिनों के भीतर नए जूरी प्रशासक के रूप में नियुक्त कर देंगे ।
4.
[मुख्यमंत्री]
उस राज्य में सभी नागरिक-मतदाताओं के 51 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से, मुख्यमंत्री क्लॉज/खण्ड 2 और क्लॉज/खण्ड 3 को रद्द कर सकते हैं और पांच वर्षों के लिए अपनी ओर से जूरी प्रशासक नियुक्त कर सकते हैं ।
5.
[प्रधानमंत्री]
भारत के सभी नागरिक-मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से, प्रधानमंत्री क्लॉज/खण्ड 2, क्लॉज/खण्ड 3 और ऊपर लिखित क्लॉज/खण्ड 4 को पूरे राज्य के लिए या कुछ जिलों के लिए रद्द कर सकते हैं और पांच वर्षों के लिए अपनी ओर से जूरी प्रशासक नियुक्त कर सकते हैं ।
सैक्शन – 2 : महा-जूरीमंडल का गठन
6.
[जूरी प्रशासक]
मतदाता-सूची का उपयोग करके, जूरी प्रशासक किसी आम बैठक में, क्रमरहित तरीके से / रैंडमली उस जिले की मतदाता-सूची में से 40 नागरिकों का चयन महा-जूरीमंडल के सदस्य के रूप में करेगा, जिसमें से वह साक्षात्कार के बाद किन्हीं 10 नागरिकों को उस सूची से हटा देगा और शेष 30 लोग/नागरिक महा-जूरीमंडल के सदस्य होंगे। यदि जूरीमंडल की नियुक्ति मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री द्वारा क्लॉज/खण्ड 4 अथवा क्लॉज/खण्ड 5 के तहत की गई है तो वे 60 नागरिकों तक को चुन सकते हैं और उनमें से तीस तक को हटाकर महा-जूरीमंडल बना सकते हैं ।
(स्पष्टीकरण-
ये पूर्व चयनित महा-जूरी के लिए नागरिकों की संख्या बढाने का आशय मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री, जो राज्य और राष्ट्र के प्रतिनिधि हैं, उनके अधिकार बढ़ाने के लिए है स्थानीय लोगों के बनिस्पत)
7.
[जूरी प्रशासक]
महा-जूरीमंडल के पहले समूह (सेट) में से, जूरी प्रशासक हर 10 दिनों में महा-जूरीमंडल के किन्हीं 10 सदस्यों को सेवा-निवृत्ति दे देगा/रिटायर कर देगा और क्रमरहित तरीके से/रैंडमली उस जिले की मतदाता-सूची में से 10 नागरिकों का चयन कर लेगा ।
8.
[जूरी प्रशासक]
जूरी प्रशासक किसी यांत्रिक उपकरण का प्रयोग नहीं करेगा किसी संख्या को क्रमरहित तरीके से/रैण्डमली चुनने के लिए। वह मुख्यमंत्री द्वारा विस्तार से बताए गए तरीके से प्रक्रिया का प्रयोग करेगा। यदि मुख्यमंत्री ने किसी विशिष्ठ/खास प्रक्रिया के बारे में नहीं बताया तो वह निम्नलिखित तरीके से चयन करेगा। मान लीजिए, जूरी प्रशासक को 1 और चार अंकों वाली किसी संख्या `क ख ग घ“ के बीच की कोई संख्या चुननी है।
तब जूरी प्रशासक को हर अंक के लिए चार दौर/राउन्ड में डायस/गोटी/पांसा फेंकनी होगी। किसी राउन्ड में यदि अंक, 0-5 के बीच की संख्या से चुना जाना है तो वह केवल एक ही डायस का प्रयोग करेगा और यदि अंक, 0-9 के बीच की संख्या से चुना जाना है तो वह दो डायसों का प्रयोग करेगा। चुनी गई संख्या उस संख्या से 1 कम होगी जो एक अकेले डायस के फेंके जाने पर आएगी और दो डायसों के फेंके जाने की स्थिति में यह 2 कम होगी। यदि डायसों/गोटियों के फेंके जाने से आयी संख्या उसके जरूरत की सबसे बड़ी संख्या से बड़ी है तो वह डायस को दोबारा/फिर से फेंकेगा— उदाहरण – मान लीजिए, जूरी प्रशासक को किसी किताब में से एक पृष्ठ/पेज का चुनाव करना है जिस किताब में 3693 पृष्ठ हैं। वह जूरी प्रशासक चार राउन्ड चलेगा। पहले दौर/राउन्ड में वह एक ही पांसा का प्रयोग करेगा क्योंकि उसे 0-3 के बीच की एक संख्या का चयन करना है।
यदि पांसा 5 या 6 दर्शाता है तो वह पांसा फिर से/ दोबारा फेंकेगा। यदि पांसा 3 दर्शाता है तो चुनी गई संख्या 3-1 = 2 होगी और वह जूरी प्रशासक दूसरे दौर में चला जाएगा। दूसरे दौर में उसे 0-6 के बीच की एक संख्या चुनने की जरूरत होगी। इसलिए वह दो पांसे फेंकेगा। यदि उनका योग 8 से अधिक हो जाता है तो वह दोबारा डायसों/पांसों को फेंकेगा। यदि योग/ जोड़ मान लीजिए, 6 आता है तो चुनी गई दूसरी संख्या 6-2 = 4 होगी। इसी प्रकार मान लीजिए, चार दौरों/राउन्ड्स में पांसा 3, 5, 10 और 2 दर्शाता है तो जूरी प्रशासक (3-1), (5-2), (10-2) और (2-1) अर्थात पृष्ठ संख्या 2381 चुनेगा। जूरी प्रशासक को चाहिए कि वह अलग-अलग नागरिकों को पांसा फेंकने के लिए दे। मान लीजिए, मतदाता-सूची में ख किताबें हैं, और सबसे बड़ी किताब में पृष्ठों/पेजों की संख्या `प` है और सभी पृष्ठों में प्रविष्ठियों (एंट्री) की संख्या `त` है तो उपर उल्लिखित तरीके या मुख्यमंत्री द्वारा बताए गए तरीके का प्रयोग करके जूरी प्रशासक 1-ख, 1-प और 1-त के बीच की तीन संख्याओं को क्रमरहित/रैंडम तरीके से चुनेगा। अब मान लीजिए, चुनी गई किताब में उतने अधिक पृष्ठ नहीं हैं अथवा चुने गए पृष्ठ में बहुत ही कम प्रविष्टियां (एंट्री) हैं। तो वह 1-ख, 1-प और 1-त के बीच एक संख्या फिर से चुनेगा ।
9.
[जूरी प्रशासक]
महा–जूरीमंडल प्रत्येक शनिवार और रविवार को मिला करेंगे/बैठक करेंगे। यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य अनुमोदन/स्वीकृति करें तो वे अन्य दिनों में भी मिल सकते हैं। यह संख्या “15 से ज्यादा” उस स्थिति में भी होनी चाहिए जब महा-जूरीमंडल के 30 से भी कम सदस्य मौजूद हों। यदि बैठक होती है तो यह 11 बजे सुबह अवश्य शुरू हो जानी चाहिए और कम से कम 5 बजे शाम तक चलनी चाहिए। महा-जूरीमंडल के सदस्य जिस दिन बैठक में उपस्थति रहेंगे, उस दिन उन्हें 200 रूपए प्रति दिन की दर से वेतन मिलेगा। महा-जूरीमंडल का एक सदस्य एक महीने के अपने कार्यकाल में अधिकतम 2000 रूपए वेतन पा सकता है।
जूरी प्रशासक महा-जूरीमंडल के किसी सदस्य के कार्यकाल/अवधि पूरी कर लेने के 2 महीने के बाद उसे चेक जारी करेगा(स्पष्टीकरण-आंकने के लिए समय देने के लिए इतना समय की जरुरत है) । यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य जिले से बाहर जाता है तो उसे वहां रहने का हर दिन 400 रूपए की दर से पैसा मिलेगा और यदि वह राज्य से बाहर जाता है तो उसे वहां ठहरने के 800 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलेगा। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपने घर और कोर्ट/न्यायालय के बीच की दूरी का 5 रूपए प्रति किलोमीटर की दर से पैसा मिलेगा ।
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मुद्रास्फीति/महंगाई की दर के अनुसार क्षतिपूर्ति (मुआवजा) की रकम में परिवर्तन कर सकते हैं। सभी रकम इस कानून में जनवरी, 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिए गए `थोक मूल्य सूचकांक` के अनुसार हैं। और जूरी प्रशासक नवीनतम थोक मूल्य सूचकांक का प्रयोग करके प्रत्येक छह महीनों में धनराशि को बदल सकता है ।
10.
[जूरी प्रशासक]
यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य किसी बैठक से अनुपस्थित रहता है तो उसे उस दिन का 100 रूपया नहीं मिलेगा और उसे अपनी भुगतान की जाने वाली राशि से तिगुनी राशि की हानि भी हो सकती है। जो व्यक्ति 30 दिनों के बाद महा-जूरीमंडल के सदस्य होंगे, वे ही अर्थदण्ड/जुर्माने के संबंध में निर्णय लेंगे ।
11.
[जूरी प्रशासक]
जूरी प्रशासक बैठक 11 बजे सुबह शुरू कर देगा। जूरी प्रशासक (बैठक के) कमरे में सुबह 10.30 बजे से पहले आ जाएगा। यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य सुबह 10.30 बजे से पहले आने में असफल रहता है तो जूरी प्रशासक उसे बैठक में भाग लेने की अनुमति नहीं देगा और उसकी अनुपस्थिति दर्ज कर देगा ।
सैक्शन – 3 : किसी नागरिक पर आरोप तय करना
12.
[जूरी प्रशासक]
कोई व्यक्ति, चाहे वह निजी/आम आदमी हो चाहे जिला दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर, यदि वह किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कोई शिकायत करना चाहता है तो वह महा-जूरीमंडल के सभी सदस्यों या कुछ सदस्यों को शिकायती पत्र लिखेगा। शिकायतकर्ता से उसे यह भी अवश्य बताना होगा कि वह क्या समाधान चाहता है। ये समाधान इस प्रकार के हो सकते हैं –
किसी सम्पत्ति पर कब्जा/स्वामित्व प्राप्त करना
आरोपी व्यक्ति से आर्थिक क्षतिपूर्ति या मुआवजा प्राप्त करना
आरोपी व्यक्ति को कुछ महीने/साल के लिए कैद की सजा दिलवाना
13.
[जूरी प्रशासक]
यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य किसी बैठक में आने के लिए बुलावा भेजते हैं तो वह नागरिक उपस्थित होगा। महा-जूरीमंडल आरोपी और शिकायतकर्ता को बुला भी सकते हैं या नहीं भी बुला सकते हैं ।
14.
[जूरी प्रशासक]
यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य यह स्पष्ट कर देते हैं कि शिकायत में कुछ दम/मेरिट है तो जूरी प्रशासक शिकायत की जांच कराने के लिए एक जूरी बुलाएगा जिसमें उस जिले के 12 नागरिक होंगे। जूरी प्रशासक 12 से अधिक नागरिकों का क्रमरहित/रैंडम तरीके से चयन करेगा (खंड-8 में महा-जूरीमंडल के चुनाव के सामान ही जूरीमंडल का चयन होगा) और उन्हें बुलावा भेजेगा। आनेवालों में से जूरी प्रशासक क्रमरहित तरीके से 12 लोगों का चयन कर लेगा।
[मान लीजिए एक जिले में सौ मामले दर्ज हुए हैं | तो कोई 3000 या अधिक लोगों को बुलावा भेजा जायेगा जब तक उनमें से 2600 लोग न आ जायें ,क्योंकि उनमें कुछ मर गए होंगे, कुछ शहर से बहार गए होंगे | ये 2600 लोग क्रमरहित तरीके से 26-26 के 100 समूहों में क्रमरहित तरीके से बांटे जाएँगे , एक मामले के लिए एक समूह | दोंनो पक्ष के वकील उन 26 लोगों में से हरेक व्यक्ति को 20 मिनट इंटरव्यू/साक्षात्कार लेगा और हर पक्ष का वकील 4 लोगों को बाहर निकाल देगा(इस तरह किसी भी पक्ष को पूर्वाग्र/पक्षपात का बहाना नहीं मिलेगा ) | इस तरह 18 लोगों का जूरी-मंडल होगा जो 12 मुख्य जूरी सदस्य और 6 विकल्प जूरी सदस्य में क्रमरहित तरीके से बांटे जाएँगे |]
15.
[जूरी प्रशासक]
जूरी प्रशासक मुख्य जिला प्रशासक से कहेगा कि वह मुकदमे की अध्यक्षता करने के लिए एक या एक से अधिक जजों की नियुक्ति कर दे। यदि विवादित संपत्ति का मूल्य लगभग 25 लाख से अधिक है अथवा दावा किए गए मुआवजे की राशि 1,00,000 (एक लाख) रूपए से अधिक है अथवा अधिकतम कारावास का दण्ड 12 महीने से अधिक है तो जूरी प्रशासक 24 जूरी-मंडल सदस्य का चुनाव करेगा और उस मुकदमे के लिए मुख्य जज से 3 जजों की नियुक्ति करने का अनुरोध करेगा , नहीं तो वह मुख्य जज से 1 जजों की नियुक्ति करने का अनुरोध करेगा। विवादित संपत्ति का मूल्य 50 करोड़ से अधिक होने पर 50-100 जूरी सदस्य और 5 जज होंगे |
यदि मुलजिम के खिलाफ 10 से कम मामले हैं तो, जूरी-सदस्य 12, 10-25 मामले हों तो 24 जूरी सदस्य चुने जाएँगे और 25 से अधिक मामले होने पर 50-100 जी सदस्य होंगे| यदि मुलजिम श्रेणी 4 का अफसर है तो 12 जूरी सदस्य, श्रेणी 2 या 3 का होगा तो , 24 जूरी सदस्य होंगे और श्रेणी 4 या अधिक होने पर 50-100 जूरी सदस्य होंगे | इस मामले में नियुक्त किए जाने वाले जजों की संख्या के संबंध में मुख्य न्यायाधीश का फैसला ही अंतिम होगा |
सैक्शन – 4 : सुनवाई/फैसला आयोजित करना
16.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
सुनवाई 11 बजे सुबह से लेकर 4 बजे शाम तक चलेगी। सभी 12 जूरी-मंडल (जूरी समूह) और शिकायतकर्ता के आ जाने के बाद ही सुनवाई शुरू की जाएगी । यदि कोई पक्ष उपस्थित नहीं होता है तो जो पक्ष उपस्थित है उसे 3 से 4 बजे शाम तक इंतजार करना होगा और तभी वे घर जा सकते हैं । यदि तीन दिन बिना कारण दिए, कोई पक्ष उपस्थित नहीं होता, तो उपस्थित पक्ष अपनी दलीलें देगा और जूरी तीन दिन और इंतजार करेगी, अनुपस्थित पक्ष को बुलावा देने के पश्चात | यदि फिर भी अनुपस्थित पक्ष बिना कारण दिए नहीं आती, तो जूरी अपना फैसला सुनाएगी |
17.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
यह जज शिकायतकर्ता को 1 घंटे बोलने की अनुमति देगा जिसके दौरान कोई अन्य बीच में नहीं बोलेगा । वह जज प्रतिवादी (वह जिसपर मुकदम्मा चलाया जा रहा है) को भी 1 घंटे बोलने की अनुमति देगा जिसके दौरान कोई अन्य व्यक्ति बोलने में बाधा/व्यावधान पैदा नहीं करेगा। इसी तरह, बारी-बारी से दोनों पक्षों को बोलने देगा | मुकदमा हर दिन इसी प्रकार चलता रहेगा ।
18.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
मुकद्दमा कम से कम 2 दिनों तक चलेगा। तीसरे दिन या उसके बाद यदि 7 से अधिक जूरी सदस्य यह घोषित कर देते हैं कि उन्होंने काफी सुन लिया है तो वह मुकदमा एक और दिन चलेगा। यदि अगले दिन 12 जूरी सदस्यों में से 7 से ज्यादा सदस्य यह घोषित कर देते हैं कि वे और दलीलें सुनना चाहेंगे तो यह मुकदमा तब तक चलता रहेगा जब तक 7 से ज्यादा जूरी सदस्य यह नहीं कह देते कि (अब) मुकदमा समाप्त किया जाना चाहिए ।
19.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
अंतिम दिन जब दोनों पक्ष/पार्टी अपना-अपना पक्ष/दलील 1 घंटे प्रस्तुत कर देंगे तो जूरी-मंडल (जूरी समूह) कम से कम 2 घंटे तक विचार-विमर्श करेंगे। यदि 2 घंटे के बाद 7 से ज्यादा जूरी-मंडल (जूरी समूह) कहते हैं कि और विचार-विमर्श की जरूरत नहीं है तो जज (जूरी-मंडल के) प्रत्येक सदस्य से अपना-अपना फैसला बताने/घोषित करने के लिए कहेगा ।
20.
[महा-जूरीमंडल]
यदि कोई जूरी सदस्य अथवा कोई एक पक्ष उपस्थित नहीं होता है या देर से उपस्थित होता है तो महा-जूरीमंडल 3 महीने के बाद दण्ड/जुर्माने पर फैसला करेंगे जो अधिकतम 5000 रूपए अथवा अनुपस्थित व्यक्ति की सम्पत्ति का 5 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, तक हो सकता है ।
21.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
जुर्माने/अर्थदण्ड के मामले में, हर जूरी सदस्य दण्ड की वह राशि बताएगा जो वह उपयुक्त समझता है। और यह कानूनी सीमा से कम ही होनी चाहिए। यदि यह कानूनी सीमा से ज्यादा है तो जज उस राशि या दंड को कानूनी सीमा जितनी ही मानेगा। वह जज दण्ड की राशियों को बढ़ते क्रम में सजाएगा और चौथी सबसे छोटी दण्डराशि को चुनेगा अर्थात उस राशि को जूरी मंडल द्वारा सामूहिक रूप से लगाया गया जुर्माना/दण्ड माना जाएगा जो 12 जूरी सदस्यों में से 8 से ज्यादा सदस्यों ने (उतना या उससे अधिक) अनुमोदित किया हो |
उदहारण - जैसे जूरी-मंडल द्वारा लगायी हुई दण्ड-राशि यदि बदते क्रम में 400,400,500,600,700,700,800,1000,1000,1200,1200 रुपये हैं तो चौथी सबसे छोटी दण्ड-राशि 600 है और बाकी 8 जूरी-मंडल के लोगों ने इससे अधिक दण्ड-राशि का अनुमोदन/स्वीकृति किया है |
22.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
कारावास की सजा के मामले में जज, जूरी-मंडल (जूरी समूह) द्वारा दी गई सजा की अवधि को बढ़ते क्रम में सजाएगा जो उस कानून में उल्लिखित सजा से कम होगा, जिस कानून को तोड़ने का वह आरोपी है। और जज चौथी सबसे छोटी सजा-अवधि को चुनेगा यानि कारावास की वह सजा जो 12 जूरी-मंडल में से 8 से ज्यादा जूरी सदस्यों द्वारा अनुमोदित हो को `कारावास की सजा जूरी-मंडल द्वारा मिलकर तय किया गया` घोषित करेगा ।
सैक्शन – 5 : निर्णय/फैसला,(फैसले का) अमल और अपील
23.
[जिला पुलिस प्रमुख]
जिला पुलिस प्रमुख या उसके द्वारा बताया गया पुलिसवाला, जुर्माना अथवा कारावास की सजा जो जज द्वारा सुनाई गई है और जूरी-मंडल (जूरी समूह) द्वारा दी की गई है, पर अमल करेगा/करवाएगा ।
24.
[जिला पुलिस प्रमुख]
यदि 4 या इससे अधिक जूरी सदस्य किसी कुर्की/जब्ती अथवा जुर्माने अथवा कारावास की सजा की मांग नहीं करते तो जज आरोपी को निर्दोष घोषित कर देगा और जिला पुलिस प्रमुख उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा ।
25.
[आरोपी, शिकायतकर्ता]
दोनो ही पक्षों को राज्य के उच्च न्यायालय अथवा भारत के उच्चतम न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए 30 दिनों का समय होगा ।
सैक्शन – 6 : नागरिकों के मौलिक / बुनियादी (मूल/प्रमुख) अधिकारों की रक्षा
26.
[सभी सरकारी कर्मचारी]
निचली अदालतों के 12 जूरी सदस्यों में से 8 से अधिक की सहमति के बिना किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा तब तक कोई अर्थदण्ड अथवा कारावास की सजा नहीं दी जाएगी जब तक कि हाई-कोर्ट अथवा सुप्रीम-कोर्ट के जूरी-मंडल (जूरी समूह) इसका अनुमोदन/स्वीकृति नहीं कर देते। कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी नागरिक को जिला अथवा राज्य के महा-जूरीमंडल के 30 में से 15 से ज्यादा सदस्यों की अनुमति के बिना 24 घंटे से अधिक से लिए जेल में नहीं डालेगा ।
27.
[सभी के लिए]
जूरी सदस्य तथ्यों के साथ-साथ इरादे/मंशा के बारे में भी निर्णय करेंगे और कानूनों के साथ-साथ संविधान का भी मतलब निकालेंगे ।
28.
–
यह सरकारी अधिसूचना (सरकारी आदेश) तभी लागू/प्रभावी होगी जब भारत के सभी नागरिकों में से 51 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने इस पर हां दर्ज किया हो और उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों ने इस सरकारी अधिसूचना (आदेश) का अनुमोदन/स्वीकृति कर दिया हो ।
29.
[जिला कलेक्टर]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन/बदलाव का प्रस्ताव करता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क से परिवर्तन की मांग करते हुए एक एफिडेविट जमा करवा सकता है। नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क इसे 20 रूपए प्रति पृष्ठ का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन करके डाल देगा ताकि कोई भी उस एफिडेविट को बिना लॉग-इन के पढ़ सके ।
30.
[तलाटी अर्थात पटवारी अर्थात लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इस कानून के किसी क्लॉज/धारा पर अपना विरोध दर्ज कराना चाहता है अथवा उपर्युक्त क्लॉज/खण्ड के बारे में दायर किए गए ऐफिडेविट पर कोई समर्थन दर्ज कराना चाहता है तो वह पटवारी के कार्यालय में 3 रूपए का शुल्क जमा करके अपना हां/नहीं दर्ज कर सकता है। पटवारी नागरिकों के हां/नहीं को लिख लेगा और नागरिकों के हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा ।
C4. ज्यूरी सदस्यों के आदेश पर गौहत्या के दोषियों का नार्को टेस्ट का ड्राफ्ट
========= कानूनी ड्राफ्ट ========
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ये राजपत्र मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर के बाद लागू होगा
सैक्शन - बहुमत जूरी की सहमति द्वारा नार्को जांच
1)
नागरिक का मतलब यहाँ भारत में पंजीकृत नागरिक-वोटर है, जो 25 साल से अधिक है और 65 साल से नीचे है | जिला जूरी प्रशासक का मतलब यहाँ जिला जूरी प्रशासक जो मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त होगा या जिला जूरी प्रशासक के द्वारा इन कार्यों के लिए नियुक्त किया गया हो | जिला जूरी प्रशासक नागरिकों के द्वारा बदला जा सकता है (जिला जूरी प्रशासक को बदलने की प्रक्रिया को आगे देखें )
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2) जिला जूरी प्रशासक के लिए निर्देश -
निम्नलिखित व्यक्ति अपनी इच्छा से, अपने पर पब्लिक में नार्को जांच करवाने की मांग कर सकते हैं -
. जिले का कोई नागरिक जो किसी अपराध का आरोपी है जिसमें सजा 3 साल से अधिक है
या
कोई नागरिक जो श्रेणी-2 अफसर के पद या उससे ऊपर के पद पर है
या
. कोई नागरिक जो सांसद या विधायक का चुनाव लड़ रहा है
. कोई नागरिक जो सांसद, विधायक या मंत्री रह चूका है
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3) जिला जूरी प्रशासक के लिए निर्देश -
यदि ऊपर दिए गए श्रेणी में कोई भी कोई नागरिक अपने ऊपर पब्लिक में नारको जांच की मांग करता है, तो जिला जूरी प्रशासक उस नागरिक का नारको जांच करने के लिए, नागरिक के निवास स्थान वाले राज्य में क्रमरहित तरीके से (रैनडमली) एक न्यायिक प्रयोगशाला को आदेश देगा | सभी कोर्ट मामलों में बहुमत जूरी के सहमति से नार्को, ब्रेन-मैपिंग, पोली-ग्राफ किया जा सकता है |
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4) जिला जूरी प्रशासक के लिए निर्देश -
जिला जूरी प्रशासक 35 और 55 वर्ष के बीच के आयु में, 24 नागरिकों को क्रमरहित तरीके से चुनेगा और बुलाएगा और उन्हें 12 जूरी सदस्यों के दो समूह में बंटेगा | जिला जूरी प्रशासक एक श्रेणी-2 या उससे ऊपर के अफसर को भी नारको जांच करने के लिए नियुक्त करेगा |
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5) नारको जांच के प्रभारी के लिए निर्देश -
जब नारको की दवाई का इंजेक्शन लग जाये, तो समूह-क के लोंग प्रश्न बनायेंगे, और यदि समूह-ख में 7 से अधिक लोंग उसको स्वीकृति दे देते हैं, तो फिर नार्को प्रभारी वो प्रश्न पूछेगा | समूह-क के हरेक व्यक्ति को प्रश्न पूछने के लिए केवल 5 मिनट मिलेंगे |
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6) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
जूरी सदस्य ये निर्णय करेंगे कि नार्को जांच निजी हो या सार्वजनिक हो | यदि किसी महिला पीड़ित का नाम गुप्त रखना है, तो फिर पोलीग्राफ, ब्रेन-मैपिंग, नार्को जांच निजी होनी चाहिए और जूरी सदस्य उसे सार्वजानिक नहीं कर सकते | इसके अलावा, नारको जांच सार्वजनिक की जा सकती है |
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7) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
यदि समूह-क में कोई व्यक्ति अपना स्थान समूह-ख से बदलना चाहता है, तो वो ऐसा कर सकता है | जूरी सदस्यों का बहुमत, जिला जूरी प्रशासक द्वारा बनाये गए विशेषज्ञ दल में से किसी विशेषज्ञ को नार्को जांच के लिए प्रश्न बनाने की स्वीकृति दे सकते हैं | प्रश्नों के बनाने का कार्य केवल दोनों समूहों में जूरी सदस्यों द्वारा किया जायेगा और गुप्त रूप से किया जायेगा | प्रश्न के बनाने के समय जज, वकील, आदि उपस्थित नहीं हो सकते | प्रश्न बनाने का सत्र तब समाप्त होगा जब बहुमत जूरी सदस्य सहमत हों कि प्रश्न बनाने का कार्य अब समाप्त हो |
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8) जूरी सदस्यों के लिए निर्देश -
जूरी सदस्यों का बहुमत ये निर्णय करेगा कि कौन से विशेषज्ञ पोलीग्राफ, ब्रेन-मैपिंग और नार्को-जांच का कार्य करवाएंगे | वे इन विशेषज्ञों को जिला जूरी प्रशासक द्वारा चुने गए विशेषज्ञ दल में से चुनेंगे |
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9) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
पोलीग्राफ या ब्रेन-मैपिंग या नार्को-जांच में प्रश्नों के प्राप्त उत्तर के आधार पर, समूह-क में कोई जूरी सदस्य या जूरी द्वारा निश्चित विशेषज्ञ नया प्रश्न भी बना सकता है और यदि समूह-ख उस प्रश्न को स्वीकृत करता है, तो जांच प्रभारी उस प्रश्न को पूछेगा | कोई भी प्रश्न समूह-ख के बहुमत जूरी सदस्यों की स्वीकृति के बिना नहीं पूछा जायेगा |
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10) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
पोलीग्राफ, नार्को जांच और ब्रेन-मैपिंग - तीनों तरह के जांच में प्राप्त उत्तर को सबूत के रूप में नहीं लिया जायेगा |
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11) (पुलिस जांच अफसर के लिए निर्देश) -
मामले की जांच-पड़ताल करने वाला पुलिस अफसर इस जांच में प्राप्त उत्तर के आधार पर आगे जांच करके, और सबूत प्राप्त कर सकता है |
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12) (नार्को जांच प्रभारी के लिए निर्देश) -
जूरी की स्वीकृति से, नार्को जांच प्रभारी जूरी मुकदमा शुरू होने से पहले भी पोलीग्राफ, ब्रेन-मैपिंग या नारको जाँच करवा सकता है | वो जांच की प्रक्रिया भी पिछले धाराओं में बताई गयी प्रक्रिया के सामान होगी |
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13)
बिना जूरी की स्वीकृति से, नार्को जांच नहीं किया जा सकता | यदि आरोपित अपनी सहमति भी दे दे, तो भी नारको-जांच करवाने के लिए बहुमत जूरी सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक होगी |
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14) नारको जांच प्रभारी के लिए निर्देश -
मीडिया को लाइव प्रसारण के लिए आमंत्रित किया जाएगा यदि जूरी ये निर्णय करती है कि नारको-जांच सार्वजानिक होगा | इस नार्को जांच को रिकॉर्ड किया जाएगा और लाइव प्रसारण और रिकोर्डिंग सरकारी वेबसाईट पर दिखाई जायेगी
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=======ड्राफ्ट की समाप्ति =========
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153072708421922
गोहत्या कम करने के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट
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भारत के नागरिको,
आज लगभग हर राज्य में गो-हत्या के विरुद्ध कानून होने के बावजूद, गो-हत्या अभी भी चल रही है | और उपर से शुद्ध गाय का दूध या तो मिलता ही नहीं या तो बहुत महंगा मिलता है | ऐसा इसीलिए है क्यूंकि आम नागरिकों के पास ऐसे कोई भी प्रक्रिया नहीं जिसके द्वरा वे भ्रष्ट को गलत कार्य करने से रोक सकें |
यदि आप गोहत्या कम करने हेतू प्रभावशाली प्रक्रिया और कानून चाहते हैं और शुद्ध गाय के उत्पाद चाहते हैं जो अधिक महेंगे नहीं हों, तो अपने विधायक को एस.एम.एस. या ट्विट्टर के द्वारा आदेश दें कि इस कानूनी ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित किया जाए।
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माननीय सांसद/विधायक,
अगर आपको एस.एम.एस. के द्वारा यू.आर.एल. मिला है तो उसे वोटर का आदेश माना जाये जिसने यह मैसेज भेजा है न कि जिसने ये लेख लिखा है।
एस.एम.एस. भेजने वाला आपको लेख के `C` और `D` सैक्शन में कानून-ड्राफ्ट को अपने वेबसाईट, निजी बिल आदि द्वारा बढ़ावा करने और मांग करने के लिए आदेश दे रहा है -
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सैक्शन A. संक्षिप्त में मुख्य सुझाव
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A1. पारदर्शी शिकायत प्रणाली- (ट्रांसपेरेंट कंप्लेंट प्रोसीजर-टी.सी.पी.) -
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आज यदि किसी के पास गोहत्या करने वाले के विरुद्ध सबूत है और वो सबूत सरकार द्वारा नियुक्त दफ्तर में जमा करता है, तो जमा करने के बाद वो स्वयं अपनी अर्जी देख नहीं सकता | इसलिए, उन सबूत वाली अर्जी को दबाना / छेड़-छाड़ करना बहुत आसान है |
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इसीलिए, हमने प्रस्ताव किया है कि नागरिकों के पास विकल्प होना चाहिए कि कोई भी नागरिक कलेक्टर आदि सरकार द्वारा नियुक्त हजारों दफ्तर में से किसी में जाकर, अपनी सबूत, बयान, अर्जी 20 रुपये की एफिडेविट के रूप में दे सकता है और उस एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर स्कैन करने के लिए कह सकता है ताकि उस एफिडेविट को उसके वोटर आई.डी. के साथ कोई भी बिना लॉग-इन उसे देख सकें |
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संक्षिप्त में ये मांग केवल एक लाइन की है कि नागरिक के पास विकल्प हो कि वो अपना एफिडेविट निश्चित सरकारी दफ्तर जाकर प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन करवा सके ताकि उस एफिडेविट को उसके वोटर आई.डी. नंबर के साथ, बिना लॉग-इन के सभी उसे देख सकें | इस एक लाइन सरकारी आदेश-क़ानून द्वारा आने से सबूतों को दबाया नहीं जा सकेगा ; जनता के सामने सबूत दबाने का प्रयास करने वाले की जनता में सबूत सहित पोल खुल जायेगी |
इसका पूरा ड्राफ्ट आगे (C1 में) पढ़ें |
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A2. न्यायतंत्र, प्रशासन और पुलिस में मुख्य पदों पर राईट टू रिकॉल के कानून-ड्राफ्ट -
गो-हत्या के बढ़ते चले जाने का एक सबसे बड़ा कारण जज-व्यवस्था, सरकारी वकील और पुलिस में बढ़ता भ्रष्टाचार है | हिन्दू गायों का पोषण दान के द्वारा करते हैं, इसलिए गायों के पोषण का खर्च लगभग शून्य आता है | विपरीत इसके, भैंसों के पोषण में खर्च गायों के तुलना में बहुत अधिक है क्यूंकि इन्हें खाना खरीद कर खिलाना पड़ता है | इसीलिए, गो-पालक गायों को बहुत ही सस्ते दामों पर कसाई को बेच देते हैं | और कसाई गो-मांस के द्वारा भारी मुनाफ़ा कमाते हैं | ये कसाई सजा से बचने के लिए, जजों, वकील, पुलिस को भारी रिश्वत देते हैं | इसीलिए, कई जज, पुलिस, वकील गो-ह्त्या को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाते और गो-हत्या चलने देते हैं |
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लेकिन यदि नागरिकों के पास ऐसी प्रक्रिया हो कि वे भ्रष्ट सरकारी वकील, जज और पुलिस को ईमानदार अफसरों से किसी भी दिन बदल सकें, तो नौकरी जाने के डर से 99% अफसर अपना कार्य सुधार देंगे और 1% जो अफसर कार्य नहीं सुधारेंगे, उनको नागरिक बदल कर ईमानदार अफसर ले आयेंगे | तो, सरकारी वकील, जज और पुलिस में भ्रष्टाचार कम हो जाये तो गो-हत्या कम हो जायेगी | इन जनहित प्रक्रियाओं से दूसरे अपराधों में भी कमी आएगी |
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इसीलिए, हमें राईट टू रिकॉल-पुलिस कमिश्नर, राईट टू रिकॉल-जिला सरकारी वकील, राईट टू रिकॉल-जिला न्यायाधीश (जज) , गौ कल्याण मंत्री पर भी राईट टू रिकॉल का प्रावधान लागू करना ताकि दोषियों को समय पर उचित सजा मिल सके । (राईट टू रिकॉल-पुलिस कमिश्नर का ड्राफ्ट आगे C2.1 में देखें, राईट टू रिकॉल-जिला न्यायाधीश (जज) का ड्राफ्ट आगे C2.2 में देखें, राईट टू रिकॉल- जिला सरकारी वकील का ड्राफ्ट आगे C2.3 में देखें और राईट टू रिकॉल-गौ कल्याण मंत्री का ड्राफ्ट आगे C5 में देखें)
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A3. जज सिस्टम के बदले जूरी सिस्टम -
जूरी सिस्टम में जज के बदले क्रम-रहित (लॉटरी द्वारा) चुने गए 15 से 1500 नागरिक मामले का फैसला करते हैं और हर मामले के बाद नए लोग चुने जाते हैं | दोष और सजा की अवधि (समय) तय करने के लिये जज द्वारा मुकदमे की जगह ज्यूरी द्वारा मुकदमा होना चाहिये क्यूंकि ज्यूरी सिस्टम में जज सिस्टम की तुलना में फैसला जल्दी और न्यायपूर्वक आता है (पूरा ड्राफ्ट आगे देखें) ।
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जूरी सिस्टम गो-वध को किस प्रकार से कम करता है ?
मान लीजिये कि एक कसाई एक महीने में 1000 गायों का वध करके प्रत्येक गाय पर 5000 रूपये का लाभ कमाता है, अर्थात एक माह में 50 लाख रूपये का लाभ कमाता है | अब मान लें कि प्रत्येक वर्ष में उनके विरुद्ध गो-कत्ल, गायों को लाने-ले जाने या उनका मांस बेचने के लिए 50-100 केस दर्ज होते हैं | अब ये सारे केस 2-3 जजों के पास जायेंगे | जजों के पास स्थानान्तरण के पहले 3 साल की अवधि है | इसिलए ये 2-3 जज में से प्रत्येक जज उनके 3 साल के कार्यकाल में गो-कत्ल या गाय-चुराने या उन्हें ले जाने या जो-मांस विक्रय के 200-300 मामलों पर विचार करेंगे | अब उन 50 कसाइयों का काम सरल हो गया कि उन्हें बस 2-3 जजों को ही रिश्वत देनी पड़ेगी |
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अगर उनमें से किसी जज ने गायों के मुकदमे मे रिश्वत लेने से मना किया, तो वे सारे कसाईयों को चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या फिर प्रधान सैशन जज को सम्बंधित मुकदमे को किसी दूसरे जज को ट्रांसफर करने के लिए कहेंगे जो कि आसानी से प्रभावित हो जाने वाला हो | या वे कसाई उच्च न्यायालय के मुख्य जज को उस क्षेत्र के जजों का स्थानान्तरण करने को कहेंगे | या वे कसाई सरकारी वकील (पब्लिक प्रासीक्यूटर) को सम्बंधित मुकदमों को 2 साल और टालने के लिए कहेंगे जिससे कि उस समयांतराल में उन कठोर जजों का ट्रांसफर हो जाये | अधिकतर मामलों में कसाई 1-2 क्षेत्रों में होते हैं जो कि केवल 1-2 मजिस्ट्रेट्स के अधीन हों | और कसाई ये निश्चित करते हैं कि उनके क्षेत्र में उनके अनुकूल ही मजिस्ट्रेट् की नियुक्ती हो | कुल मिलाकर अनेक तरीके हैं जिनसे कि मजिस्ट्रेट् और जजों को मैनेज किया जा सकता है |
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अब जूरी प्रथा में 200-300 मामलों में से प्रत्येक मामला 12 अलग अलग जूरी सदस्यों के पास जाता है | अर्थात सम्बंधित क्षेत्र के सारे गो-वध के केस कुल 2400-3600 नागरिकों के पास जाते हैं जो कि जूरी सदस्य के रूप में चुने गये होते हैं और उन कसाइयों को सभी 2400-3600 लोगों को रिश्वत खिलानी पड़ेगी | जज सिस्टम में कसाइयों को केवल 2-3 जजों को रिश्वत देकर ही रिहाई की 100% संभावना बनती है जबकि जूरी सिस्टम में ऐसा नहीं है | जूरी सिस्टम में दोषी व्यक्ति को रिहाई मिलना कहीं अधिक कठिन है, इसीलिए जूरी आने से गो-हत्या कम होगी |
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हमारे प्रस्तावित जूरी सिस्टम के ड्राफ्ट में जैसे जैसे अपराधों की गंभीरता बढ़ती जायेगी वैसे वैसे ही जूरी-सदस्यों की भी संख्या बढ़ती जाएगी | अब यदि किसी व्यक्ति के ऊपर दर्जनों गायों की हत्या का आरोप है तो जूरी का आकार भी बढ़ता जायेगा अर्थात (12+ मारे गए गायों कि संख्या) जो कि अधिकतम 1500 जूरी सदस्यों तक जा सकती है |
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अब किसी जूरी सदस्य, जिसके पास केवल एक ही मुकदमा है, उसको रिश्वत देना और उसके साथ सांठ-गाँठ (सेट्टिंग) करना कहीं अधिक कठिन है उसकी तुलना में कि एक जज को रिश्वत देना जिसके पास 50 मामले होंगे !! क्योंकि जज सिस्टम में यदि जज पैसे ले लेता है और कसाई के पक्ष में निर्णय नहीं करता, तो उस जज को आगे रिश्वत नहीं मिलेगी | यदि जज कसाई का काम कर देता है लेकिन कसाई उसको पैसे नहीं देता, तो जज अपने सभी मित्र जजों को बोल देगा कि इस कसाई का कोई काम नहीं करना क्यूंकि ये पैसे नहीं देता काम करने के लिए | इस प्रकार, जज सिस्टम में अपराधी और जज की सांठगांठ आसानी से हो जाती है |
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जबकि जूरी में जूरी सदस्य और अपराधी के बीच में सांठगांठ (सेट्टिंग) करना बहुत कठिन है | क्योंकि जूरी सदस्य 10 साल के लिए दोहराया नहीं जाता | आरोपी तथा उन 12 जूरी सदस्यों को ये निश्चित करना कठिन होगा कि उन्हें न्याय के पहले रिश्वत का लेन-देन करना चाहिए या बाद में | यदि आरोपी ये कहता है कि वो रिहाई के बाद रिश्वत देगा, तो जूरी-सदस्य उस आरोपी के ऊपर विश्वास नहीं कर पायेंगे और यदि जूरी सदस्य ये कहता है कि रिश्वत पहले और रिहाई बाद में तो वह आरोपी जूरी सदस्यों के उपर विश्वास नहीं कर सकेगा | इसलिए, जूरी सिस्टम में मामला लटकाया नहीं जाता और फैसला जल्दी ही, कुछ ही हफ़्तों में आ जाता है |
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निचली अदालत में जूरी सिस्टम का ड्राफ्ट आगे C3 में देखें |
A4. ज्यूरी सदस्यों के आदेश पर गौहत्या के दोषियों का नार्को टेस्ट
(ड्राफ्ट के लिए लेख में आगे देखें )
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जूरी-सदस्य के लिए सबसे कठिन कार्य है ये निर्णय लेना कि आरोपी सत्य बोल रहा है या नहीं, ये उस आरोपी का पहला अपराध है या उसने ऐसे ही दसियों अपराध पहले भी किये हैं | अधिकतर मामलों में प्रायः ही गवाहों और सबूतों की कमी ही रहती है | गवाह गलत भी हो सकते हैं, साक्ष्य उपयुक्त नही भी हो सकते हैं और सबूतों का निर्माण भी किया जा सकता है | ये सभी बातें, जूरी-सदस्य के लिए निर्णय लेने में समस्या उत्पन्न करती हैं |
इस स्थिति में, जनता के मध्य, पब्लिक में, पाली-ग्राफ, ब्रेन-मैपिंग और नार्को-टेस्ट सहायक सिद्ध हो सकता है |
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नार्को-टेस्ट में व्यक्ति के रक्त में 5 मिली सोडियम पेंटोथल नामक रसायन डाला जाता है | ये रसायन पूरी तरह से हानि रहित है और इसे लगभग सौ सालों के ऊपर से चेतनाशून्य करनेवाली औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है | नार्को-जांच का परिणाम सुराग के रूप में लिया जाता है, न कि सबूत के रूप में | नार्को-जांच में पूछे गए प्रश्न जैसे किसको रिश्वत दी थी और कौनसे गुप्त स्विस खाते में दी थी, आदि से प्राप्त उत्तरों से आगे कार्यवाई की जाती है और यदि उस कार्यवाई से कोई सबूत मिलता है, तो ही उन्हें कोर्ट में पेश किया जाता है | इसीलिए, जूरी द्वारा नारको-जांच पूरी तरह से संवैधानिक है और किसी प्रकार से नागरिकों का हनन नहीं करता |
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ज्यूरी सदस्यों के आदेश पर गौहत्या के दोषियों का नार्को टेस्ट का ड्राफ्ट आगे C4 में देखें |
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A5. गौहत्या करने वालों, गो-मॉस बेचने वालों और गो और गो-मांस को निर्यात करने वालों को जूरी द्वारा 5 वर्षों तक सजा का प्रावधान -
इसको बनाने के लिये राजपत्र- अधिसूचना (सरकारी आदेश) छपवाया जाना चाहियें ।
केरला और पश्चिम बंगाल को छोड़ कर भारत के लगभग सभी राज्यों में गो-हत्या सम्बंधित कानून पहले से ही बना हुआ हैं लेकिन ऊपर बताये गए नागरिक-प्रामाणिक कानून नहीं होने से गो-हत्या अभी भी चालू है । मतलब हमें ऐसे कानून चाहिए जिसके द्वारा नागरिक को स्वयं पता चल सके कि सच क्या है और झूठ क्या है | उपरोक्त कानून द्वारा नागरिक शशक्त (ताकतवर) हो जायेंगे कि भ्रष्ट को गलत काम करने से रोक सकते हैं | इसीलिए, हमें वर्तमान कानूनों में संशोधन करना होगा और पश्चिम बंगाल और केरला में भी गो-हत्या के प्रतिबन्ध सम्बंधित जनहित के नागरिक-प्रामाणिक कानून लाने होंगे |
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सैक्शन B. अन्य मांगें -
इन मांगों के लिए सभी ड्राफ्ट पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव प्रणाली (टी.सी.पी.) द्वारा लाये जायेंगे, मतलब जनता और अधिकारी की सहमति से लाये जायेंगे |
6. किसी एक राज्य से दूसरे राज्य में गाय को ले जाने पर पाबन्दी हो । ऐसा करने वालों को भी ज्यूरी पाँच वर्षों की सजा दे सकती है ।
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7. ट्रेक्टर आदि की खरीद पर छूट (सब्सीडी) हर वर्ष 20% कम हो ताकि बैलो की माँग बढ़े, उपज बड़े और गो-हत्या कम हो ।
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8. रासायनिक खाद पर सब्सीडी और रासायनिक कीटनाशक पर सब्सिडी हर वर्ष 20% कम हो और इस पैसे को राशन की दुकानों पर अनाज आदि राशन को कम दाम पर देने के लिए प्रयोग किया जाये ताकि उपज बड़े और गो-हत्या और जीव-हत्या कम हो | (इसके बारे में विस्तृत रूप से जानने के लिए ये वीडियो देखें - https://www.youtube.com/watch?v=5uzEb1iKdz4)
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9. गाय का चमड़ा बेचने पर प्रतिबन्ध लगेगा | मृत गाय को दफनाया जायेगा या जलाया जायेगा | जूतों आदि पर "हरा गो-हत्या मुक्त लेबल" लगाना, जिसका मतलब होगा कि चमड़ा जिस पशु से आया है, उसकी प्राकृतिक मृत्यु हुई है और उसका मांस खाने के लिए प्रयोग नहीं किया गया था | इस `हरा` चमड़े का मूल्य अधिक होगा लेकिन गो-हत्या और जीव-हत्या कम हो जायेगी |
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10. गाय के नकली घी और नकली दूध आदि की बिक्री कम करने के लिये मिलावट-नियंत्रक (Anti-Adulteration) अफसर पर राईट टू रिकॉल (ड्राफ्ट के लिए लेख में आगे देखें) । मिलावट-नियंत्रक अफसर पर राईट टू रिकॉल सही अपना काम सही तरीके से करेंगे और नागरिकों के लिए थोड़े से शुल्क के लिए जगह-जगह सब्जी, फल, दूध, घी के विश्वसनीय जांच केन्द्र चलवाने का प्रबंध करेंगे | स्वयं मिलावट-नियंत्रक अफसर और इनके नीचे अफसर क्रमरहित (रैंडम) चैक करेंगे कि दूध सब्जी सही है या मिलावटी | और मिलावट सम्बन्धी कोई भी शिकायत और जांच-केन्द्रों के कर्मचारियों सम्बन्धी कोई शिकायत जूरी सिस्टम द्वारा ही विवाद सुलझाए जायेंगे | इससे मिलावट में कमी आएगी और मिलावट सम्बन्धी मामलों में फैसला जल्दी और अधिक न्यायपूर्वक तरीके से आएगा |
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11. गाय-भैंस खरीदने पर सरकार द्वारा कोई छूट (सब्सीडी) नहीं मिलेगी । इन छूट के कारण गो-हत्या बढ़ रही है (क्यूंकि गाय सस्ते दामों पर कसाई को मिल जाती है और मुनाफा अधिक होता है | उस मुनाफे का एक भाग दोषी जज, पुलिस आदि को रिश्वत देते हैं और छूट जाते हैं )
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12. सरकार बूढ़ी गायों को एक निर्धारित कीमत पर खरीदेगी ।
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13. शुक्राणु-विभाजन की प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये पूंजी निवेश किया जाना चाहिये ताकि सांड की पैदावार कम की जा सके और इस प्रकार सांड की हत्या कम की जा सके |
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14. दूध की थैली/डिब्बे पर स्पष्ट लिखा होगा कि दूध गाय का है या भैंस का । साथ ही यह भी लिखा होगा कि दूध देशी गाय का है या जर्सी/गीर गाय का ।
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15. दूध की थैली/डिब्बे पर स्पष्ट लिखा होगा कि दूध में प्रोटीन, वसा (फैट) आदि की मात्रा और भारतीय मेडिकल काउन्सिल के आनुसार उस फैट लेवल से हार्ट अटैक की सम्भावना भी लिखी होगी । इस तरह से भैंस और जर्सी गाय के दूध के खपत में भी कमी आयेगी ।
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16. सरकार गौ-शालाएँ चलायेगी जिसके लिये धन बिना कोई टैक्स छूट के दान से आयेगा । शहरों में 10,000 से 30,000 आबादी वाले हर बस्ती में कम से कम एक गौशाला जरूर होनी चाहिये । इस तरह शहरों में हर वार्ड में कम से कम 1 या 2 गौशाला अवश्य हो जायेंगी ।
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17. भैंस और जर्सी गाय के दूध से मनुष्य शरीर पर और दिल पर हो रहे दुष्प्रभाव (नुकसान) के बारे में नागरिकों को विभिन्न माध्यमों से बताया जाये । जैसे-जैसे भैंस और जर्सी गाय के दूध से दिल पर हो रहे नुकसान के बारे में नागरिकों को पता चलेगा भैंस और जर्सी गाय के दूध का उत्पादन और उपयोग कम हो जायेगा और भारतीय गाय की माँग बढ़ेगी ।
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सैक्शन C. मुख्य मांगें के राजपत्र में छपवाने के लिए ड्राफ्ट :
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=====ड्राफ्ट का प्रारम्भ======
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C1. पारदर्शी शिकायत प्रणाली- (ट्रांसपेरेंट कंप्लेंट प्रोसीजर-टी.सी.पी.) -
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[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया
1.
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[कलेक्टर (और उसके क्लर्क) के लिए निर्देश ]
कोई भी नागरिक मतदाता, यदि खुद हाजिर होकर, एफिडेविट पर अपनी सूचना अधिकार का आवेदन अर्जी / भ्रष्टाचार के खिलाफ फरियाद / कोई प्रस्ताव या कोई अन्य एफिडेविट कलेक्टर को देता है और प्रधानमंत्री की वेब-साईट पर रखने की मांग करता है, तो कलेक्टर (या उसका क्लर्क) उस एफिडेविट को प्रति पेज 20 रूपये का लेकर, सीरियल नंबर देकर, एफिडेविट को स्कैन करके प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रखेगा, नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ, ताकि सभी बिना लॉग-इन के वे एफिडेविट देख सकें ।
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2.
[पटवारी (तलाटी, लेखपाल)]
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(2.1) कोई भी नागरिक मतदाता यदि धारा-1 द्वारा दी गई अर्जी या एफिडेविट पर आपनी हाँ या ना दर्ज कराने मतदाता कार्ड लेकर आये, 3 रुपये का शुल्क (फीस) लेकर, तो पटवारी नागरिक का मतदाता कार्ड संख्या, नाम, उसकी हाँ या ना को कंप्यूटर में दर्ज करके रसीद दे देगा ।
नागरिक की हाँ या ना प्रधानमंत्री की वेब-साईट पर आएगी । गरीबी रेखा के नीचे के नागरिकों के लिए शुल्क 1 रूपये होगा ।
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(2.2) नागरिक पटवारी के दफ्तर जाकर किसी भी दिन अपनी हाँ या ना, बिना किसी शुल्क के रद्द कर सकता है और तीन रुपये देकर बदल सकता है ।
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(2.3) कलेक्टर एक ऐसा सिस्टम भी बना सकता है, जिससे मतदाता का फोटो, अंगुली के छाप को रसीद पर डाला जा सके | और मतदाता के लिए फीडबैक (पुष्टि) एस.एम.एस. सिस्टम बना सकता है |
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(2.4) प्रधानमंत्री एक ऐसा सिस्टम बना सकता है, जिससे मतदाता अपनी हाँ या ना, 10 पैसे देकर एस.एम.एस. द्वारा दर्ज कर सके |
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3. सभी के लिए
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नागरिको द्वारा दर्ज की गयी हाँ/ना प्रधानमन्त्री के लिए बाध्य नही है।
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ये कोई रेफेरेनडम / जनमत-संग्रह नहीं है | यह हाँ या ना अधिकारी, मंत्री, जज, सांसद, विधायक, अदि पर अनिवार्य नहीं होगी । लेकिन यदि भारत के 40 करोड़ नागरिक मतदाता, कोई एक अर्जी, फरियाद पर हाँ दर्ज करें, तो प्रधानमंत्री उस फरियाद, अर्जी पर ध्यान दे भी सकते हैं या ऐसा करना उनके लिए जरूरी नहीं है, या इस्तीफा दे सकते हैं । उनका निर्णय अंतिम होगा ।
C2. न्यायतंत्र, प्रशासन और पोलिस में मुख्य पदों पर राईट टू रिकॉल के कानून-ड्राफ्ट -
हमने 200 से अधिक पदों के लिए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) का प्रस्ताव किया है। जिन प्रक्रियाओं का मैंने प्रस्ताव किया है, उन सभी में खुले मतदान का प्रयोग किया जाता है। लेकिन जिला पुलिस कमिश्नर/आयुक्त के लिए मैंने इन प्रक्रियाओं के अलावा एक और प्रक्रिया का भी प्रस्ताव किया है जिसमें गोपनीय सह-चुनाव मतदान का प्रयोग किया जाता है।
C2.1 राइट-टू-रिकॉल -जिला पुलिस कमिश्नर (भ्रष्ट पुलिस-कमिश्नर को बदलने का नागरिकों का अधिकार) सरकारी-अधिसूचना(आदेश) का पूरा ड्राफ्ट
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया/अनुदेश
1.
—-
मुख्यमंत्री सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करेंगे ।
2.
[राज्य चुनाव आयुक्त/इलेक्शन-कमिश्नर]
मुख्य मंत्री और नागरिक , राज्य चुनाव आयुक्त से जिला पुलिस प्रमुख का सह-मतदान करवाने का अनुरोध/प्रार्थना करेंगे, जब कभी भी किसी जिले में जिला पंचायत, तहसील पंचायत, ग्राम पंचायत अथवा नगर निगम अथवा जिला भर में जिला स्तर का कोई भी आम चुनाव चल रहा हो।
3.
[राज्य चुनाव आयुक्त]
यदि कोई भारतीय नागरिक पिछले 3000 दिनों में 2400 से अधिक दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख नहीं रहा हो, 30 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी भारतीय नागरिक जिसने 5 वर्षों से अधिक समय तक सेना में काम किया हो, पुलिस में एक भी दिन काम किया हो, सरकारी कर्मचारी के रूप में 10 वर्षों तक काम किया हो अथवा उसने राज्य लोक सेवा आयोग या संघ लोक सेवा आयोग की लिखित परीक्षा पास की हो, अथवा सिर्फ विधायक या सांसद या पार्षद या जिला पंचायत के सदस्य का चुनाव जीता हो, वह जिला पुलिस प्रमुख के उम्मीदवार के रूप में अपने को दर्ज करवा सकेगा |
4.
[राज्य चुनाव आयुक्त]
राज्य चुनाव आयुक्त जिला पुलिस प्रमुख के चुनाव के लिए एक मतदान पेटी रखवा देगा ।
5.
[नागरिक]
कोई भी नागरिक–मतदाता उम्मीदवारों में से किसी को भी वोट दे सकता है ।
6.
[मुख्यमंत्री]
यदि कोई उम्मीदवार जिले के सभी दर्ज नागरिक-मतदाताओं (सभी, न कि केवल उनका जिन्होंने वोट दिया है) के 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का मत/वोट प्राप्त कर लेता है तो मुख्यमंत्री त्यागपत्र/इस्तीफा दे सकते हैं अथवा सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उस व्यक्ति को उस जिले में अगले 4 वर्ष के लिए नया जिला पुलिस प्रमुख नियुक्त कर सकते हैं ।
7.
[मुख्यमंत्री]
मुख्यमंत्री एक जिले में अधिक से अधिक एक व्यक्ति को जिला पुलिस प्रमुख बना सकते हैं ।
8.
[मुख्यमंत्री]
यदि कोई व्यक्ति पिछले 3000 दिनों में 2400 से अधिक दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख रह चुका हो तो मुख्यमंत्री उसे अगले 600 दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख के पद पर रहने की अनुमति नहीं देंगे ।
9.
[मुख्यमंत्री, राज्य के नागरिकगण]
राज्य के सभी नागरिक मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से मुख्यमंत्री किसी जिले में इस कानून को 4 वर्षों के लिए हटा/निलंबित कर सकते हैं और अपने विवेक/अधिकार से उस जिले में जिला पुलिस प्रमुख की नियुक्ति कर सकते हैं/रख सकते हैं ।
10.
[प्रधानमंत्री, भारत के नागरिक]
भारत के सभी नागरिक मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से प्रधानमंत्री किसी राज्य में इस कानून को 4 वर्षों के लिए हटा सकते हैं और अपने विवेक/अधिकार से उस राज्य के सभी जिलों में जिला पुलिस प्रमुख की नियुक्ति कर सकते हैं।
11. जनता की आवाज़ (सी वी ) 1
[जिला कलेक्टर (डी सी)]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन का प्रस्ताव करना चाहता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क के पास इस परिवर्तन की मांग करने वाला एक एफिडेविट जमा करवा देगा । जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन कर देगा ताकि बिना लॉग-इन सब उसको देख सकें ।
12. जनता की आवाज़ (सी वी ) 2
[तलाटी यानि पटवारी/लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी क्लॉज/खण्ड के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के क्लॉज/खण्ड में प्रस्तुत किसी एफिडेविट/हलफनामा पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है । तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उस नागरिक के हां–नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर भी नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ डाल देगा ।
C2.2 राइट-टू-रिकॉल – जिले का प्रधान जज का कानून-ड्राफ्ट
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया/अनुदेश
1. `नागरिक` शब्द का अर्थ जिले का पंजीकृत मतदाता होगा |
2. [कलेक्टर के लिए निर्देश] यदि भारत का कोई नागरिक जो 35 साल से अधिक हो और जिसके पास एल.एल.बी की शैक्षिक उपाधि हो और जिले का प्रधान जज बनना चाहता है, तो वो स्वयं या उसके वकील द्वारा एफिडेविट के साथ जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) के समक्ष आये, तो जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्क लेकर, उसकी जिले का प्रधान जज उम्मीदवार बनने की अर्जी को स्वीकार करेगा | जिला कलेक्टर या उसका क्लर्क उम्मीदवारों के नाम मुख्यमंत्री वेबसाईट पर रखेगा |
3. [तलाटी या तलाटी के क्लर्क के लिए निर्देश] यदि उस जिले का नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में स्वयं जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्यक्तियों को जिला सरकारी वकील के पद के लिए अनुमोदित करता है तो तलाटी उसके अनुमोदन को कम्प्युटर में डाल देगा और उसे उसका मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्यक्तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा ।
4. [तलाटी के लिए निर्देश] वह तलाटी नागरिकों की पसंद को जिले के वेबसाइट पर उनके मतदाता पहचान-पत्र और उनकी प्राथमिकताओं के साथ डाल देगा ।
5. [तलाटी के लिए निर्देश] यदि कोई नागरिक अपनी स्वीकृति रद्द करने के लिए आता है तो तलाटी उसके एक या अधिक अनुमोदनों को बिना कोई शुल्क लिए रद्द कर देगा ।
6. [कलेक्टर के लिए निर्देश] प्रत्येक महीने की पांचवी तारीख को जिला कलेक्टर प्रत्येक उम्मीदवार की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती पिछले महीने की अंतिम तिथि की स्थिति के अनुसार प्रकाशित करेगा ।
7. [हाई कोर्ट प्रधान जजों के लिए निर्देश] यदि किसी उम्मीदवार को जिले के सभी मतदाताओं के 35% से अधिक अनुमोदन मिलते हैं (सभी, न कि केवल जिन्होंने अपने अनुमोदन दिए हैं), और वे अनुमोदन वर्तमान जिला प्रधान जज के अनुमोदनों से जिले के मतदाता संख्या के 5% से अधिक है, तो हाई कोर्ट के प्रधान जज उसे जिले का प्रधान जज नियुक्त कर सकते हैं |
8. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] जब तक जिला सरकारी वकील के पास जिले के 34% से अधिक मतदातों का अनुमोदन है, मुख्यमंत्री उसको बदलेगा नहीं | लेकिन यदि जिला सरकारी वकील के अनुमोदन 34% से कम हो जाते हैं, तो मुख्यमंत्री उसको अपने पसंद के अफसर से बदल देगा |
9. (जिले के प्रधान जज के लिए निर्देश) जिले का प्रधान जज, हाई कोर्ट के प्रधान जज की स्वीकृति से या पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव प्रणाली का उपयोग करके उस राज्य के नागरिकों की स्वीकृति से, अपने प्रस्तावित जूरी सिस्टम के ड्राफ्ट को लागू करने का निर्णय कर सकता है |
10. जनता की आवाज़ (सी वी ) 1
[जिला कलेक्टर (डी सी)]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन का प्रस्ताव करना चाहता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क के पास इस परिवर्तन की मांग करने वाला एक एफिडेविट जमा करवा देगा । जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन कर देगा ताकि बिना लॉग-इन सब उसको देख सकें ।
11. जनता की आवाज़ (सी वी ) 2
[तलाटी यानि पटवारी/लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी क्लॉज/खण्ड के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के क्लॉज/खण्ड में प्रस्तुत किसी एफिडेविट/हलफनामा पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है । तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उस नागरिक के हां–नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर भी नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ डाल देगा ।
C2.3 राइट-टू-रिकॉल जिला सरकारी वकील
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया/अनुदेश
1. `नागरिक` शब्द का अर्थ जिले का पंजीकृत मतदाता होगा |
2. [कलेक्टर के लिए निर्देश] यदि भारत का कोई भी नागरिक जिला सरकार वकील बनना चाहे और वो स्वयं या अपने वकील द्वारा एफिडेविट के साथ जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) के समक्ष आये, तो जिला कमिश्नर (या उसके द्वारा नियुक्त अफसर) सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्क लेकर, उसकी जिला सरकारी वकील उम्मीदवार बनने की अर्जी को स्वीकार करेगा | जिला कलेक्टर या उसका क्लर्क उम्मीदवारों के नाम मुख्यमंत्री वेबसाईट पर रखेगा |
3. [तलाटी या तलाटी के क्लर्क के लिए निर्देश] यदि उस जिले का नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में स्वयं जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्यक्तियों को जिला सरकारी वकील के पद के लिए अनुमोदित करता है तो तलाटी उसके अनुमोदन को कम्प्युटर में डाल देगा और उसे उसका मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्यक्तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा ।
4. [तलाटी के लिए निर्देश] वह तलाटी नागरिकों की पसंद को जिले के वेबसाइट पर उनके मतदाता पहचान-पत्र और उनकी प्राथमिकताओं के साथ डाल देगा ।
5. [तलाटी के लिए निर्देश] यदि कोई नागरिक अपनी स्वीकृति रद्द करने के लिए आता है तो तलाटी उसके एक या अधिक अनुमोदनों को बिना कोई शुल्क लिए रद्द कर देगा ।
6. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] बाद में, मुख्यमंत्री इस प्रक्रिया को एस.एम.एस. पर भी लागू करवा सकता है |
7. [कलेक्टर के लिए निर्देश] प्रत्येक महीने की पांचवी तारीख को जिला कलेक्टर प्रत्येक उम्मीदवार की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती पिछले महीने की अंतिम तिथि की स्थिति के अनुसार प्रकाशित करेगा ।
8. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] यदि किसी उम्मीदवार को जिले के सभी मतदाताओं के 35% से अधिक अनुमोदन मिलते हैं (सभी, न कि केवल जिन्होंने अपने अनुमोदन दिए हैं), और उस उम्मीदवार को वर्तमान जिला सरकारी वकील के अनुमोदनों से जिले के सभी मतदाता संख्या के 5% से अधिक अनुमोदन मिलते हैं, तो मुख्यमंत्री उसे सरकारी वकील नियुक्त कर सकता है |
9. [मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] जब तक जिला सरकारी वकील के पास जिले के 34% से अधिक मतदातों का अनुमोदन है, मुख्यमंत्री उसको बदलेगा नहीं | लेकिन यदि जिला सरकारी वकील के अनुमोदन 34% से कम हो जाते हैं, तो मुख्यमंत्री उसको अपने पसंद के अफसर से बदल देगा |
10. जनता की आवाज़ (सी वी ) 1
[जिला कलेक्टर (डी सी)]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन का प्रस्ताव करना चाहता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क के पास इस परिवर्तन की मांग करने वाला एक एफिडेविट जमा करवा देगा । जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन कर देगा ताकि बिना लॉग-इन सब उसको देख सकें ।
11. जनता की आवाज़ (सी वी ) 2
[तलाटी यानि पटवारी/लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के धारा में प्रस्तुत किसी एफिडेविट पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है । तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उस नागरिक के हां–नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर भी नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ डाल देगा ।
C2.4 राइट-टू-रिकॉल मिलावट-नियंत्रक (Anti-Adulteration) अफसर
ये ड्राफ्ट C2.3 में दिए गए राइट-टू-रिकॉल जिला सरकारी वकील के सामान है | केवल `जिला सरकारी वकील` के स्थान पर ` मिलावट-नियंत्रक (Anti-Adulteration) अफसर ` डालें |
C2.5 राइट-टू-रिकॉल राशन अधिकारी
ये ड्राफ्ट C2.3 में दिए गए राइट-टू-रिकॉल जिला सरकारी वकील के सामान है | केवल `जिला सरकारी वकील` के स्थान पर ` राशन अधिकारी ` डालें |
C3. निचले कोर्ट में जूरी सिस्टम का प्रक्रिया-ड्राफ्ट
निचले कोर्ट में जूरी सिस्टम लाने के लिए नागरिकों को निम्नलिखित ड्राफ्ट कि आवश्यकता होगी | ये राजपत्र तभी लागू हो सकता है जब इसपर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर होंगे | इसको लाने के लिए नागरिकों को अपने सांसदों या विधायकों को एस.एम.एस. या ट्विट्टर द्वारा आदेश देना चाहिए कि वे इस निम्नलिखित ड्राफ्ट को अपने वेबसाईट, निज बिल द्वारा बढ़ावा और मांग करें और सांसद प्रधानमंत्री को आदेश करें और विधायक मुख्यमंत्री को आदेश करें कि इस ड्राफ्ट को भारतीय राजपत्र में छापें -
धारा संख्या #
[अधिकारी जिसके लिए निर्देश]
प्रक्रिया
सैक्शन – 1 : जूरी प्रशासक की नियुक्ति और उन्हें बदलने की प्रक्रिया
1.
[मुख्यमंत्री ; जिला कलेक्टर]
इस कानून के पारित/पास किए जाने के 2 दिनों के भीतर, सभी मुख्यमंत्री अपने-अपने पूरे राज्य के लिए एक रजिस्ट्रार की नियुक्ति करेंगे और हर जिले के लिए एक जूरी प्रशासक की भी नियुक्ति करेंगे कोई भी भारत का नागरिक जो 30 साल या अधिक का हो, जिला कलेक्टर के दफ्तर में जा कर, सांसद के जितना शुल्क जमा कर के अपने को जूरी प्रशाशक के लिए प्रत्याशी दर्ज करा सकता है और जिला कलेक्टर प्रत्याशी का नाम मुख्यमंत्री वेबसाईट पर डालेगा |
2.
[तलाटी = पटवारी = लेखपाल (या तलाटी का क्लर्क) ]
किसी जिले में रहने वाला कोई नागरिक अपना मतदाता पहचान-पत्र प्रस्तुत करके अपने जिले में जूरी प्रशासक के पद के लिए (ज्यादा से ज्यादा) पांच उम्मीदवारों के क्रमांक नंबर बताएगा जिन्हें वो अनुमोदन/स्वीकृति करता है । क्लर्क उनके अनुमोदनों को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ कंप्यूटर और मुख्यमंत्री वेबसाईट पर डाल देगा और उस नागरिक को रसीद दे देगा। नागरिक अपनी पसंदों को किसी भी दिन बदल सकता है। क्लर्क तीन रूपए का शुल्क लेगा ।
3.
[मुख्यमंत्री]
यदि किसी उम्मीदवार को सबसे अधिक नागरिक-मतदाताओं द्वारा और जिले के सभी नागरिक-मतदाताओं के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है तो मुख्यमंत्री उसे दो ही दिनों के भीतर उस जिले के नए जूरी प्रशासक के रूप में नियुक्त कर देंगे। यदि किसी उम्मीदवार को सभी नागरिक-मतदाताओं के 25 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है और उसके अनुमोदनों की गिनती वर्तमान जूरी प्रशासक की गिनती से 5 प्रतिशत अधिक हो तो मुख्यमंत्री उसे दो ही दिनों के भीतर नए जूरी प्रशासक के रूप में नियुक्त कर देंगे ।
4.
[मुख्यमंत्री]
उस राज्य में सभी नागरिक-मतदाताओं के 51 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से, मुख्यमंत्री क्लॉज/खण्ड 2 और क्लॉज/खण्ड 3 को रद्द कर सकते हैं और पांच वर्षों के लिए अपनी ओर से जूरी प्रशासक नियुक्त कर सकते हैं ।
5.
[प्रधानमंत्री]
भारत के सभी नागरिक-मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से, प्रधानमंत्री क्लॉज/खण्ड 2, क्लॉज/खण्ड 3 और ऊपर लिखित क्लॉज/खण्ड 4 को पूरे राज्य के लिए या कुछ जिलों के लिए रद्द कर सकते हैं और पांच वर्षों के लिए अपनी ओर से जूरी प्रशासक नियुक्त कर सकते हैं ।
सैक्शन – 2 : महा-जूरीमंडल का गठन
6.
[जूरी प्रशासक]
मतदाता-सूची का उपयोग करके, जूरी प्रशासक किसी आम बैठक में, क्रमरहित तरीके से / रैंडमली उस जिले की मतदाता-सूची में से 40 नागरिकों का चयन महा-जूरीमंडल के सदस्य के रूप में करेगा, जिसमें से वह साक्षात्कार के बाद किन्हीं 10 नागरिकों को उस सूची से हटा देगा और शेष 30 लोग/नागरिक महा-जूरीमंडल के सदस्य होंगे। यदि जूरीमंडल की नियुक्ति मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री द्वारा क्लॉज/खण्ड 4 अथवा क्लॉज/खण्ड 5 के तहत की गई है तो वे 60 नागरिकों तक को चुन सकते हैं और उनमें से तीस तक को हटाकर महा-जूरीमंडल बना सकते हैं ।
(स्पष्टीकरण-
ये पूर्व चयनित महा-जूरी के लिए नागरिकों की संख्या बढाने का आशय मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री, जो राज्य और राष्ट्र के प्रतिनिधि हैं, उनके अधिकार बढ़ाने के लिए है स्थानीय लोगों के बनिस्पत)
7.
[जूरी प्रशासक]
महा-जूरीमंडल के पहले समूह (सेट) में से, जूरी प्रशासक हर 10 दिनों में महा-जूरीमंडल के किन्हीं 10 सदस्यों को सेवा-निवृत्ति दे देगा/रिटायर कर देगा और क्रमरहित तरीके से/रैंडमली उस जिले की मतदाता-सूची में से 10 नागरिकों का चयन कर लेगा ।
8.
[जूरी प्रशासक]
जूरी प्रशासक किसी यांत्रिक उपकरण का प्रयोग नहीं करेगा किसी संख्या को क्रमरहित तरीके से/रैण्डमली चुनने के लिए। वह मुख्यमंत्री द्वारा विस्तार से बताए गए तरीके से प्रक्रिया का प्रयोग करेगा। यदि मुख्यमंत्री ने किसी विशिष्ठ/खास प्रक्रिया के बारे में नहीं बताया तो वह निम्नलिखित तरीके से चयन करेगा। मान लीजिए, जूरी प्रशासक को 1 और चार अंकों वाली किसी संख्या `क ख ग घ“ के बीच की कोई संख्या चुननी है।
तब जूरी प्रशासक को हर अंक के लिए चार दौर/राउन्ड में डायस/गोटी/पांसा फेंकनी होगी। किसी राउन्ड में यदि अंक, 0-5 के बीच की संख्या से चुना जाना है तो वह केवल एक ही डायस का प्रयोग करेगा और यदि अंक, 0-9 के बीच की संख्या से चुना जाना है तो वह दो डायसों का प्रयोग करेगा। चुनी गई संख्या उस संख्या से 1 कम होगी जो एक अकेले डायस के फेंके जाने पर आएगी और दो डायसों के फेंके जाने की स्थिति में यह 2 कम होगी। यदि डायसों/गोटियों के फेंके जाने से आयी संख्या उसके जरूरत की सबसे बड़ी संख्या से बड़ी है तो वह डायस को दोबारा/फिर से फेंकेगा— उदाहरण – मान लीजिए, जूरी प्रशासक को किसी किताब में से एक पृष्ठ/पेज का चुनाव करना है जिस किताब में 3693 पृष्ठ हैं। वह जूरी प्रशासक चार राउन्ड चलेगा। पहले दौर/राउन्ड में वह एक ही पांसा का प्रयोग करेगा क्योंकि उसे 0-3 के बीच की एक संख्या का चयन करना है।
यदि पांसा 5 या 6 दर्शाता है तो वह पांसा फिर से/ दोबारा फेंकेगा। यदि पांसा 3 दर्शाता है तो चुनी गई संख्या 3-1 = 2 होगी और वह जूरी प्रशासक दूसरे दौर में चला जाएगा। दूसरे दौर में उसे 0-6 के बीच की एक संख्या चुनने की जरूरत होगी। इसलिए वह दो पांसे फेंकेगा। यदि उनका योग 8 से अधिक हो जाता है तो वह दोबारा डायसों/पांसों को फेंकेगा। यदि योग/ जोड़ मान लीजिए, 6 आता है तो चुनी गई दूसरी संख्या 6-2 = 4 होगी। इसी प्रकार मान लीजिए, चार दौरों/राउन्ड्स में पांसा 3, 5, 10 और 2 दर्शाता है तो जूरी प्रशासक (3-1), (5-2), (10-2) और (2-1) अर्थात पृष्ठ संख्या 2381 चुनेगा। जूरी प्रशासक को चाहिए कि वह अलग-अलग नागरिकों को पांसा फेंकने के लिए दे। मान लीजिए, मतदाता-सूची में ख किताबें हैं, और सबसे बड़ी किताब में पृष्ठों/पेजों की संख्या `प` है और सभी पृष्ठों में प्रविष्ठियों (एंट्री) की संख्या `त` है तो उपर उल्लिखित तरीके या मुख्यमंत्री द्वारा बताए गए तरीके का प्रयोग करके जूरी प्रशासक 1-ख, 1-प और 1-त के बीच की तीन संख्याओं को क्रमरहित/रैंडम तरीके से चुनेगा। अब मान लीजिए, चुनी गई किताब में उतने अधिक पृष्ठ नहीं हैं अथवा चुने गए पृष्ठ में बहुत ही कम प्रविष्टियां (एंट्री) हैं। तो वह 1-ख, 1-प और 1-त के बीच एक संख्या फिर से चुनेगा ।
9.
[जूरी प्रशासक]
महा–जूरीमंडल प्रत्येक शनिवार और रविवार को मिला करेंगे/बैठक करेंगे। यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य अनुमोदन/स्वीकृति करें तो वे अन्य दिनों में भी मिल सकते हैं। यह संख्या “15 से ज्यादा” उस स्थिति में भी होनी चाहिए जब महा-जूरीमंडल के 30 से भी कम सदस्य मौजूद हों। यदि बैठक होती है तो यह 11 बजे सुबह अवश्य शुरू हो जानी चाहिए और कम से कम 5 बजे शाम तक चलनी चाहिए। महा-जूरीमंडल के सदस्य जिस दिन बैठक में उपस्थति रहेंगे, उस दिन उन्हें 200 रूपए प्रति दिन की दर से वेतन मिलेगा। महा-जूरीमंडल का एक सदस्य एक महीने के अपने कार्यकाल में अधिकतम 2000 रूपए वेतन पा सकता है।
जूरी प्रशासक महा-जूरीमंडल के किसी सदस्य के कार्यकाल/अवधि पूरी कर लेने के 2 महीने के बाद उसे चेक जारी करेगा(स्पष्टीकरण-आंकने के लिए समय देने के लिए इतना समय की जरुरत है) । यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य जिले से बाहर जाता है तो उसे वहां रहने का हर दिन 400 रूपए की दर से पैसा मिलेगा और यदि वह राज्य से बाहर जाता है तो उसे वहां ठहरने के 800 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलेगा। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपने घर और कोर्ट/न्यायालय के बीच की दूरी का 5 रूपए प्रति किलोमीटर की दर से पैसा मिलेगा ।
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मुद्रास्फीति/महंगाई की दर के अनुसार क्षतिपूर्ति (मुआवजा) की रकम में परिवर्तन कर सकते हैं। सभी रकम इस कानून में जनवरी, 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिए गए `थोक मूल्य सूचकांक` के अनुसार हैं। और जूरी प्रशासक नवीनतम थोक मूल्य सूचकांक का प्रयोग करके प्रत्येक छह महीनों में धनराशि को बदल सकता है ।
10.
[जूरी प्रशासक]
यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य किसी बैठक से अनुपस्थित रहता है तो उसे उस दिन का 100 रूपया नहीं मिलेगा और उसे अपनी भुगतान की जाने वाली राशि से तिगुनी राशि की हानि भी हो सकती है। जो व्यक्ति 30 दिनों के बाद महा-जूरीमंडल के सदस्य होंगे, वे ही अर्थदण्ड/जुर्माने के संबंध में निर्णय लेंगे ।
11.
[जूरी प्रशासक]
जूरी प्रशासक बैठक 11 बजे सुबह शुरू कर देगा। जूरी प्रशासक (बैठक के) कमरे में सुबह 10.30 बजे से पहले आ जाएगा। यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य सुबह 10.30 बजे से पहले आने में असफल रहता है तो जूरी प्रशासक उसे बैठक में भाग लेने की अनुमति नहीं देगा और उसकी अनुपस्थिति दर्ज कर देगा ।
सैक्शन – 3 : किसी नागरिक पर आरोप तय करना
12.
[जूरी प्रशासक]
कोई व्यक्ति, चाहे वह निजी/आम आदमी हो चाहे जिला दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर, यदि वह किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कोई शिकायत करना चाहता है तो वह महा-जूरीमंडल के सभी सदस्यों या कुछ सदस्यों को शिकायती पत्र लिखेगा। शिकायतकर्ता से उसे यह भी अवश्य बताना होगा कि वह क्या समाधान चाहता है। ये समाधान इस प्रकार के हो सकते हैं –
किसी सम्पत्ति पर कब्जा/स्वामित्व प्राप्त करना
आरोपी व्यक्ति से आर्थिक क्षतिपूर्ति या मुआवजा प्राप्त करना
आरोपी व्यक्ति को कुछ महीने/साल के लिए कैद की सजा दिलवाना
13.
[जूरी प्रशासक]
यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य किसी बैठक में आने के लिए बुलावा भेजते हैं तो वह नागरिक उपस्थित होगा। महा-जूरीमंडल आरोपी और शिकायतकर्ता को बुला भी सकते हैं या नहीं भी बुला सकते हैं ।
14.
[जूरी प्रशासक]
यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य यह स्पष्ट कर देते हैं कि शिकायत में कुछ दम/मेरिट है तो जूरी प्रशासक शिकायत की जांच कराने के लिए एक जूरी बुलाएगा जिसमें उस जिले के 12 नागरिक होंगे। जूरी प्रशासक 12 से अधिक नागरिकों का क्रमरहित/रैंडम तरीके से चयन करेगा (खंड-8 में महा-जूरीमंडल के चुनाव के सामान ही जूरीमंडल का चयन होगा) और उन्हें बुलावा भेजेगा। आनेवालों में से जूरी प्रशासक क्रमरहित तरीके से 12 लोगों का चयन कर लेगा।
[मान लीजिए एक जिले में सौ मामले दर्ज हुए हैं | तो कोई 3000 या अधिक लोगों को बुलावा भेजा जायेगा जब तक उनमें से 2600 लोग न आ जायें ,क्योंकि उनमें कुछ मर गए होंगे, कुछ शहर से बहार गए होंगे | ये 2600 लोग क्रमरहित तरीके से 26-26 के 100 समूहों में क्रमरहित तरीके से बांटे जाएँगे , एक मामले के लिए एक समूह | दोंनो पक्ष के वकील उन 26 लोगों में से हरेक व्यक्ति को 20 मिनट इंटरव्यू/साक्षात्कार लेगा और हर पक्ष का वकील 4 लोगों को बाहर निकाल देगा(इस तरह किसी भी पक्ष को पूर्वाग्र/पक्षपात का बहाना नहीं मिलेगा ) | इस तरह 18 लोगों का जूरी-मंडल होगा जो 12 मुख्य जूरी सदस्य और 6 विकल्प जूरी सदस्य में क्रमरहित तरीके से बांटे जाएँगे |]
15.
[जूरी प्रशासक]
जूरी प्रशासक मुख्य जिला प्रशासक से कहेगा कि वह मुकदमे की अध्यक्षता करने के लिए एक या एक से अधिक जजों की नियुक्ति कर दे। यदि विवादित संपत्ति का मूल्य लगभग 25 लाख से अधिक है अथवा दावा किए गए मुआवजे की राशि 1,00,000 (एक लाख) रूपए से अधिक है अथवा अधिकतम कारावास का दण्ड 12 महीने से अधिक है तो जूरी प्रशासक 24 जूरी-मंडल सदस्य का चुनाव करेगा और उस मुकदमे के लिए मुख्य जज से 3 जजों की नियुक्ति करने का अनुरोध करेगा , नहीं तो वह मुख्य जज से 1 जजों की नियुक्ति करने का अनुरोध करेगा। विवादित संपत्ति का मूल्य 50 करोड़ से अधिक होने पर 50-100 जूरी सदस्य और 5 जज होंगे |
यदि मुलजिम के खिलाफ 10 से कम मामले हैं तो, जूरी-सदस्य 12, 10-25 मामले हों तो 24 जूरी सदस्य चुने जाएँगे और 25 से अधिक मामले होने पर 50-100 जी सदस्य होंगे| यदि मुलजिम श्रेणी 4 का अफसर है तो 12 जूरी सदस्य, श्रेणी 2 या 3 का होगा तो , 24 जूरी सदस्य होंगे और श्रेणी 4 या अधिक होने पर 50-100 जूरी सदस्य होंगे | इस मामले में नियुक्त किए जाने वाले जजों की संख्या के संबंध में मुख्य न्यायाधीश का फैसला ही अंतिम होगा |
सैक्शन – 4 : सुनवाई/फैसला आयोजित करना
16.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
सुनवाई 11 बजे सुबह से लेकर 4 बजे शाम तक चलेगी। सभी 12 जूरी-मंडल (जूरी समूह) और शिकायतकर्ता के आ जाने के बाद ही सुनवाई शुरू की जाएगी । यदि कोई पक्ष उपस्थित नहीं होता है तो जो पक्ष उपस्थित है उसे 3 से 4 बजे शाम तक इंतजार करना होगा और तभी वे घर जा सकते हैं । यदि तीन दिन बिना कारण दिए, कोई पक्ष उपस्थित नहीं होता, तो उपस्थित पक्ष अपनी दलीलें देगा और जूरी तीन दिन और इंतजार करेगी, अनुपस्थित पक्ष को बुलावा देने के पश्चात | यदि फिर भी अनुपस्थित पक्ष बिना कारण दिए नहीं आती, तो जूरी अपना फैसला सुनाएगी |
17.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
यह जज शिकायतकर्ता को 1 घंटे बोलने की अनुमति देगा जिसके दौरान कोई अन्य बीच में नहीं बोलेगा । वह जज प्रतिवादी (वह जिसपर मुकदम्मा चलाया जा रहा है) को भी 1 घंटे बोलने की अनुमति देगा जिसके दौरान कोई अन्य व्यक्ति बोलने में बाधा/व्यावधान पैदा नहीं करेगा। इसी तरह, बारी-बारी से दोनों पक्षों को बोलने देगा | मुकदमा हर दिन इसी प्रकार चलता रहेगा ।
18.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
मुकद्दमा कम से कम 2 दिनों तक चलेगा। तीसरे दिन या उसके बाद यदि 7 से अधिक जूरी सदस्य यह घोषित कर देते हैं कि उन्होंने काफी सुन लिया है तो वह मुकदमा एक और दिन चलेगा। यदि अगले दिन 12 जूरी सदस्यों में से 7 से ज्यादा सदस्य यह घोषित कर देते हैं कि वे और दलीलें सुनना चाहेंगे तो यह मुकदमा तब तक चलता रहेगा जब तक 7 से ज्यादा जूरी सदस्य यह नहीं कह देते कि (अब) मुकदमा समाप्त किया जाना चाहिए ।
19.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
अंतिम दिन जब दोनों पक्ष/पार्टी अपना-अपना पक्ष/दलील 1 घंटे प्रस्तुत कर देंगे तो जूरी-मंडल (जूरी समूह) कम से कम 2 घंटे तक विचार-विमर्श करेंगे। यदि 2 घंटे के बाद 7 से ज्यादा जूरी-मंडल (जूरी समूह) कहते हैं कि और विचार-विमर्श की जरूरत नहीं है तो जज (जूरी-मंडल के) प्रत्येक सदस्य से अपना-अपना फैसला बताने/घोषित करने के लिए कहेगा ।
20.
[महा-जूरीमंडल]
यदि कोई जूरी सदस्य अथवा कोई एक पक्ष उपस्थित नहीं होता है या देर से उपस्थित होता है तो महा-जूरीमंडल 3 महीने के बाद दण्ड/जुर्माने पर फैसला करेंगे जो अधिकतम 5000 रूपए अथवा अनुपस्थित व्यक्ति की सम्पत्ति का 5 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, तक हो सकता है ।
21.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
जुर्माने/अर्थदण्ड के मामले में, हर जूरी सदस्य दण्ड की वह राशि बताएगा जो वह उपयुक्त समझता है। और यह कानूनी सीमा से कम ही होनी चाहिए। यदि यह कानूनी सीमा से ज्यादा है तो जज उस राशि या दंड को कानूनी सीमा जितनी ही मानेगा। वह जज दण्ड की राशियों को बढ़ते क्रम में सजाएगा और चौथी सबसे छोटी दण्डराशि को चुनेगा अर्थात उस राशि को जूरी मंडल द्वारा सामूहिक रूप से लगाया गया जुर्माना/दण्ड माना जाएगा जो 12 जूरी सदस्यों में से 8 से ज्यादा सदस्यों ने (उतना या उससे अधिक) अनुमोदित किया हो |
उदहारण - जैसे जूरी-मंडल द्वारा लगायी हुई दण्ड-राशि यदि बदते क्रम में 400,400,500,600,700,700,800,1000,1000,1200,1200 रुपये हैं तो चौथी सबसे छोटी दण्ड-राशि 600 है और बाकी 8 जूरी-मंडल के लोगों ने इससे अधिक दण्ड-राशि का अनुमोदन/स्वीकृति किया है |
22.
[अध्यक्षता करने वाला जज]
कारावास की सजा के मामले में जज, जूरी-मंडल (जूरी समूह) द्वारा दी गई सजा की अवधि को बढ़ते क्रम में सजाएगा जो उस कानून में उल्लिखित सजा से कम होगा, जिस कानून को तोड़ने का वह आरोपी है। और जज चौथी सबसे छोटी सजा-अवधि को चुनेगा यानि कारावास की वह सजा जो 12 जूरी-मंडल में से 8 से ज्यादा जूरी सदस्यों द्वारा अनुमोदित हो को `कारावास की सजा जूरी-मंडल द्वारा मिलकर तय किया गया` घोषित करेगा ।
सैक्शन – 5 : निर्णय/फैसला,(फैसले का) अमल और अपील
23.
[जिला पुलिस प्रमुख]
जिला पुलिस प्रमुख या उसके द्वारा बताया गया पुलिसवाला, जुर्माना अथवा कारावास की सजा जो जज द्वारा सुनाई गई है और जूरी-मंडल (जूरी समूह) द्वारा दी की गई है, पर अमल करेगा/करवाएगा ।
24.
[जिला पुलिस प्रमुख]
यदि 4 या इससे अधिक जूरी सदस्य किसी कुर्की/जब्ती अथवा जुर्माने अथवा कारावास की सजा की मांग नहीं करते तो जज आरोपी को निर्दोष घोषित कर देगा और जिला पुलिस प्रमुख उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा ।
25.
[आरोपी, शिकायतकर्ता]
दोनो ही पक्षों को राज्य के उच्च न्यायालय अथवा भारत के उच्चतम न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए 30 दिनों का समय होगा ।
सैक्शन – 6 : नागरिकों के मौलिक / बुनियादी (मूल/प्रमुख) अधिकारों की रक्षा
26.
[सभी सरकारी कर्मचारी]
निचली अदालतों के 12 जूरी सदस्यों में से 8 से अधिक की सहमति के बिना किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा तब तक कोई अर्थदण्ड अथवा कारावास की सजा नहीं दी जाएगी जब तक कि हाई-कोर्ट अथवा सुप्रीम-कोर्ट के जूरी-मंडल (जूरी समूह) इसका अनुमोदन/स्वीकृति नहीं कर देते। कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी नागरिक को जिला अथवा राज्य के महा-जूरीमंडल के 30 में से 15 से ज्यादा सदस्यों की अनुमति के बिना 24 घंटे से अधिक से लिए जेल में नहीं डालेगा ।
27.
[सभी के लिए]
जूरी सदस्य तथ्यों के साथ-साथ इरादे/मंशा के बारे में भी निर्णय करेंगे और कानूनों के साथ-साथ संविधान का भी मतलब निकालेंगे ।
28.
–
यह सरकारी अधिसूचना (सरकारी आदेश) तभी लागू/प्रभावी होगी जब भारत के सभी नागरिकों में से 51 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने इस पर हां दर्ज किया हो और उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों ने इस सरकारी अधिसूचना (आदेश) का अनुमोदन/स्वीकृति कर दिया हो ।
29.
[जिला कलेक्टर]
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन/बदलाव का प्रस्ताव करता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क से परिवर्तन की मांग करते हुए एक एफिडेविट जमा करवा सकता है। नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क इसे 20 रूपए प्रति पृष्ठ का शुल्क लेकर एफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन करके डाल देगा ताकि कोई भी उस एफिडेविट को बिना लॉग-इन के पढ़ सके ।
30.
[तलाटी अर्थात पटवारी अर्थात लेखपाल]
यदि कोई नागरिक इस कानून या इस कानून के किसी क्लॉज/धारा पर अपना विरोध दर्ज कराना चाहता है अथवा उपर्युक्त क्लॉज/खण्ड के बारे में दायर किए गए ऐफिडेविट पर कोई समर्थन दर्ज कराना चाहता है तो वह पटवारी के कार्यालय में 3 रूपए का शुल्क जमा करके अपना हां/नहीं दर्ज कर सकता है। पटवारी नागरिकों के हां/नहीं को लिख लेगा और नागरिकों के हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा ।
C4. ज्यूरी सदस्यों के आदेश पर गौहत्या के दोषियों का नार्को टेस्ट का ड्राफ्ट
========= कानूनी ड्राफ्ट ========
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ये राजपत्र मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर के बाद लागू होगा
सैक्शन - बहुमत जूरी की सहमति द्वारा नार्को जांच
1)
नागरिक का मतलब यहाँ भारत में पंजीकृत नागरिक-वोटर है, जो 25 साल से अधिक है और 65 साल से नीचे है | जिला जूरी प्रशासक का मतलब यहाँ जिला जूरी प्रशासक जो मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त होगा या जिला जूरी प्रशासक के द्वारा इन कार्यों के लिए नियुक्त किया गया हो | जिला जूरी प्रशासक नागरिकों के द्वारा बदला जा सकता है (जिला जूरी प्रशासक को बदलने की प्रक्रिया को आगे देखें )
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2) जिला जूरी प्रशासक के लिए निर्देश -
निम्नलिखित व्यक्ति अपनी इच्छा से, अपने पर पब्लिक में नार्को जांच करवाने की मांग कर सकते हैं -
. जिले का कोई नागरिक जो किसी अपराध का आरोपी है जिसमें सजा 3 साल से अधिक है
या
कोई नागरिक जो श्रेणी-2 अफसर के पद या उससे ऊपर के पद पर है
या
. कोई नागरिक जो सांसद या विधायक का चुनाव लड़ रहा है
. कोई नागरिक जो सांसद, विधायक या मंत्री रह चूका है
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3) जिला जूरी प्रशासक के लिए निर्देश -
यदि ऊपर दिए गए श्रेणी में कोई भी कोई नागरिक अपने ऊपर पब्लिक में नारको जांच की मांग करता है, तो जिला जूरी प्रशासक उस नागरिक का नारको जांच करने के लिए, नागरिक के निवास स्थान वाले राज्य में क्रमरहित तरीके से (रैनडमली) एक न्यायिक प्रयोगशाला को आदेश देगा | सभी कोर्ट मामलों में बहुमत जूरी के सहमति से नार्को, ब्रेन-मैपिंग, पोली-ग्राफ किया जा सकता है |
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4) जिला जूरी प्रशासक के लिए निर्देश -
जिला जूरी प्रशासक 35 और 55 वर्ष के बीच के आयु में, 24 नागरिकों को क्रमरहित तरीके से चुनेगा और बुलाएगा और उन्हें 12 जूरी सदस्यों के दो समूह में बंटेगा | जिला जूरी प्रशासक एक श्रेणी-2 या उससे ऊपर के अफसर को भी नारको जांच करने के लिए नियुक्त करेगा |
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5) नारको जांच के प्रभारी के लिए निर्देश -
जब नारको की दवाई का इंजेक्शन लग जाये, तो समूह-क के लोंग प्रश्न बनायेंगे, और यदि समूह-ख में 7 से अधिक लोंग उसको स्वीकृति दे देते हैं, तो फिर नार्को प्रभारी वो प्रश्न पूछेगा | समूह-क के हरेक व्यक्ति को प्रश्न पूछने के लिए केवल 5 मिनट मिलेंगे |
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6) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
जूरी सदस्य ये निर्णय करेंगे कि नार्को जांच निजी हो या सार्वजनिक हो | यदि किसी महिला पीड़ित का नाम गुप्त रखना है, तो फिर पोलीग्राफ, ब्रेन-मैपिंग, नार्को जांच निजी होनी चाहिए और जूरी सदस्य उसे सार्वजानिक नहीं कर सकते | इसके अलावा, नारको जांच सार्वजनिक की जा सकती है |
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7) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
यदि समूह-क में कोई व्यक्ति अपना स्थान समूह-ख से बदलना चाहता है, तो वो ऐसा कर सकता है | जूरी सदस्यों का बहुमत, जिला जूरी प्रशासक द्वारा बनाये गए विशेषज्ञ दल में से किसी विशेषज्ञ को नार्को जांच के लिए प्रश्न बनाने की स्वीकृति दे सकते हैं | प्रश्नों के बनाने का कार्य केवल दोनों समूहों में जूरी सदस्यों द्वारा किया जायेगा और गुप्त रूप से किया जायेगा | प्रश्न के बनाने के समय जज, वकील, आदि उपस्थित नहीं हो सकते | प्रश्न बनाने का सत्र तब समाप्त होगा जब बहुमत जूरी सदस्य सहमत हों कि प्रश्न बनाने का कार्य अब समाप्त हो |
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8) जूरी सदस्यों के लिए निर्देश -
जूरी सदस्यों का बहुमत ये निर्णय करेगा कि कौन से विशेषज्ञ पोलीग्राफ, ब्रेन-मैपिंग और नार्को-जांच का कार्य करवाएंगे | वे इन विशेषज्ञों को जिला जूरी प्रशासक द्वारा चुने गए विशेषज्ञ दल में से चुनेंगे |
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9) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
पोलीग्राफ या ब्रेन-मैपिंग या नार्को-जांच में प्रश्नों के प्राप्त उत्तर के आधार पर, समूह-क में कोई जूरी सदस्य या जूरी द्वारा निश्चित विशेषज्ञ नया प्रश्न भी बना सकता है और यदि समूह-ख उस प्रश्न को स्वीकृत करता है, तो जांच प्रभारी उस प्रश्न को पूछेगा | कोई भी प्रश्न समूह-ख के बहुमत जूरी सदस्यों की स्वीकृति के बिना नहीं पूछा जायेगा |
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10) (जूरी सदस्यों के लिए निर्देश) -
पोलीग्राफ, नार्को जांच और ब्रेन-मैपिंग - तीनों तरह के जांच में प्राप्त उत्तर को सबूत के रूप में नहीं लिया जायेगा |
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11) (पुलिस जांच अफसर के लिए निर्देश) -
मामले की जांच-पड़ताल करने वाला पुलिस अफसर इस जांच में प्राप्त उत्तर के आधार पर आगे जांच करके, और सबूत प्राप्त कर सकता है |
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12) (नार्को जांच प्रभारी के लिए निर्देश) -
जूरी की स्वीकृति से, नार्को जांच प्रभारी जूरी मुकदमा शुरू होने से पहले भी पोलीग्राफ, ब्रेन-मैपिंग या नारको जाँच करवा सकता है | वो जांच की प्रक्रिया भी पिछले धाराओं में बताई गयी प्रक्रिया के सामान होगी |
.
13)
बिना जूरी की स्वीकृति से, नार्को जांच नहीं किया जा सकता | यदि आरोपित अपनी सहमति भी दे दे, तो भी नारको-जांच करवाने के लिए बहुमत जूरी सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक होगी |
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14) नारको जांच प्रभारी के लिए निर्देश -
मीडिया को लाइव प्रसारण के लिए आमंत्रित किया जाएगा यदि जूरी ये निर्णय करती है कि नारको-जांच सार्वजानिक होगा | इस नार्को जांच को रिकॉर्ड किया जाएगा और लाइव प्रसारण और रिकोर्डिंग सरकारी वेबसाईट पर दिखाई जायेगी
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=======ड्राफ्ट की समाप्ति =========
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