Wednesday, October 7, 2015

एफ डी आई समस्या है, समाधान बनाना है| (7-oct-2015) No.4

October 7, 2015 No.4

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एफ डी आई समस्या है, समाधान बनाना है|
मेरा ये नोट बड़ा/लम्बा होने वाला है, इसीलिए जो व्यक्ति एफ डी आई को किसी भी हाल में समस्या नहीं मानते उनसे मेरा निवेदन है कि वे अपना समय ये नोट पढ़ने में ना लगाये|मैं इस नोट में एफ डी आई से होने वाली दूरगामी समस्या के बारे में बताने जा रहा हु और अंत में कुछ समाधान भी बताऊंगा|
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पहले एफ डी आई क्या है, वो जान लेते है| एफ डी को अगर साधारण भाषा में समझाया जाये तो यह कह सकते है कि, विदेशी कंपनिया भारत में पूंजी निवेश करके अपना व्यापार करेंगी| तो अब नेता यह कहता है कि जब कोई भारत का नागरिक किसी और राज्य में जाकर व्यपार करता है तो देश को उससे कोई हानि नहीं होती तो फिर जब विदेशी कंपनिया भारत आएँगी तब भी कोई हानि नहीं होगी| इसके ऊपर नेता और उनके अंधभक्त ये भी कहते है कि एक डी आई से रोजगार बढेगा और भारत तरक्की करेगा| यह बात बिलकुल सच है कि भारत शुरू के दिनों में तरक्की करेगा और रोजगार भी बढेगा, तो फिर कैसी हानि? आइये समझते है|
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मानलीजिये तीन कंपनिया ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ भारत में एफ डी आई के माध्यम से आई| माना कंपनी ‘ए’ भारत में बुलेट ट्रेन का ठेका लेकर आई| माना कंपनी ‘बी' भारत में गंगा साफ़ करने का ठेका लेकर आई| और कंपनी ‘सी' भारत में कार मेनूफेक्चर करने आई| जब ये कंपनिया भारत आएँगी तो डॉलर लेकर आएगी और उसी डॉलर को पूंजी के रूप में निवेश करेंगी| पर हमारे यहाँ तो रुपये का प्रचलन है| आश्चर्ये मत होइए, ये कंपनिया भले ही डॉलर लेकर आये पर इन्हें उस डॉलर के बराबर आर.बी.आई(R.B.I) द्वारा रूपया दिया जायेगा|
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अब गणित सरल बनाने के लिए मानलीजिये कंपनी ‘ए', कंपनी ‘बी' और कंपनी ‘सी' ने $१ बिलियन($1 billion) लेकर आर.बी.आई को दिया| अब आर.बी.आई इसी $1 बिलियन के बराबर रुपये यानि ₹६,500 करोड़( ₹ 6,500 Crore) उन तीनो कंपनियों को देगा और खुद आर.बी.आई वो डॉलर (जो कि करीब $3 बिलियन है) अपने पास रखेगा| ये डॉलर यानि $3 बिलियन याद रखे क्यूकि इसका इस्तेमाल हम बाद में करेंगे| अब कंपनी ‘ए', ‘बी' और ‘सी' अपना अपना प्लांट भारत में स्थापित कर भारतवासियों के लिए रोजगार पैदा करेगा और भारत तरक्की कि और अपना सफ़र सुरु करता हुआ दिखाई देगा| यानि मैं अब तक उस बात कि पुष्टि कर रहा था (या प्रमाणित कर रहा था) कि एफ डी आई से रोजगार बढेगा और भारत तरक्की करेगा| पर अगर ऐसा है तो फिर समस्या किधर है? आइये देखते है|
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समस्या उन विदेशी कंपनियों को लाभ का पैसा वापस करने में है, पर कैसे? यह जानने के पहले हमे एक और तर्क के बारे में जानकारी लेना आवश्यक है| तर्क यह आता है कि चाइना देश में भी एफ डी आई है और इसलिए वह देश प्रगति कर रहा है| इसपर मैं कहना चाहूँगा कि एफ डी आई से चाइना ने प्रगति कि है यह मैं भी मानता हु पर चाइना के एफ डी आई और भारत के एफ डी आई में अंतर है और हमे उसी अंतर को समझना है जो यह नेता और उनके अंधभक्त कभी कहते नहीं|
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चाइना देश में एफ डी आई प्राकृतिक स्रोत (Natural Resources) पर नहीं है| इसका मतलब कोई भी विदेशी कंपनी चाइना के प्राकृतिक स्रोतों(जैसे कि कोयला, लोहा, टीन इत्यादि) का ठेका नहीं ले सकता| चाइना का एफ डी आई रेलवे, रोड बनाने, पानी का सप्लाई करने इत्यादि में नहीं है| पर हमारे नेता तो एफ डी आई के पीछे ही पड़ गए है और हर क्षेत्र में एफ डी आई लाने का जोर चल रहा है, उन क्षेत्रो में भी जहा चाइना ने अनुमति नहीं दी है| अब अंधभक्त कहेंगे कि रेलवे, रोड इत्यादि में एफ डी आई होने से क्या हानि है? आइये समझते है|
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तो हमने अभी तक यह जान लिया कि चाइना के किन-किन क्षेत्रो में एफ डी आई कि अनुमति नहीं है और हमने तीन कंपनियों का डॉलर में $३ billion आर.बी.आई को दिया|अब हम यह जान लेते है कि आर.बी.आई के पास अभी फोरेन एक्सचेंज रिज़र्व (Foreign Exchange Reserve) और भारत पर क़र्ज़ कितना है| सही आकडे अभी मेरे पास नहीं है, पुरानी जानकारी के अनुसार फोरेन एक्सचेंज रिज़र्व $300 बिलियन है और क़र्ज़ $350 बिलियन है मानलीजिये, और आप यह आकड़े याद रखे क्योंकि इसका इस्तेमाल हम करते रहेंगे| अब यह तीन कंपनिया जब अपना काम शुरू करेंगी तब रोजगार बढेगा पर उसके बाद क्या? चलिए एक एक कंपनी को लेकर समझते है|
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जब कंपनी ‘ए' और ‘बी' टाइप अपना काम शुरू करेगी तब क्या होगा? मानलीजिये आज बुलेट ट्रेन बन जाती है, तो सारा मुनाफा(Revenue) रुपये में होगा क्यूकि बुलेट ट्रेन में भारतीय सफ़र करेंगे और भारत में रुपये का प्रचलन है|तो यह याद रखे कि कंपनी ‘ए’ टाइप का सारा मुनाफा रुपये में होगा, क्युकि इसका इस्तेमाल हम बाद में करेंगे| जब कंपनी ‘सी’ टाइप यानि मैन्युफैक्चरिंग टाइप कंपनिया अपना प्लांट लगाएंगी तब क्या होगा? मानलीजिये आज कोई विदेशी कंपनी ‘सी' टाइप होकर एक कार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाती है| अब यह कंपनी अपना कार हमारे भारत में तथा विदेशो में बेचेगी| जो कार भारत में बिकेगा उसका मुनाफा रुपये में आएगा और जो विदेश में बिकेगा उसका मुनाफा डॉलर में आएगा| यह बात भी याद रखे कि ‘सी’ टाइप कंपनी के लिए जो कार भारत में बिकेगा उसका मुनाफा रुपये में आएगा और जो विदेश में बिकेगा उसका मुनाफा डॉलर में आएगा, क्युकि हम इसका इस्तेमाल बाद में करने वाले है|
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अब हम समस्या के निकट है| देश में रोजगार पैदा हो गयी, देश उन्नति कर रहा है| पर अब है समस्या का समय| जो है उन विदेशी कंपनियों को मुनाफा देना| भारत सरकार कुछ टैक्स काटेगी मुनाफे पर और तब उसे विदेशी कंपनी को दे देगी, इसमें कोई समस्या नहीं है| समस्या है कि हम उन्हें डॉलर में भुगतान करने वाले है| आईये इस समस्या को करीब से समझते है|
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जैसा कि आप जानते है आर.बी.आई के पास अभी $३बिलियन है जो कि तीनो कंपनी के द्वारा मिला है, $३०० बिलियन का फोरेन एक्सचेंज रिज़र्व है और भारत पर $३५०बिलियन का क़र्ज़ है वो भी आर.बी.आई को ही देना है| अब अगर हम ‘ए' टाइप जो कि बुलेट ट्रेन कि कंपनी है उसका मुनाफा चुकाना शुरू करे तब हमे उनके मुनाफे जो कि रुपये में है उन्हें आर.बी.आई को देकर उसके बराबर का डॉलर ‘ए' टाइप कंपनी को देना पड़ेगा क्यूंकि बुलेट ट्रेन में भारतीय सफ़र करेंगे और सफ़र करने के लिए भारतीय रुपये देंगे इसीलिए कंपनी ‘ए' टाइप का कुल मुनाफा रुपये में होगा और इसका डॉलर में आर.बी.आई को भुगतान करना पड़ेगा| उसी तरह कंपनी ‘सी' टाइप जो कार विदेश में बेचकर मुनाफा कमाएगी वो तो डॉलर में ही होगा, अतः उस मुनाफे को डॉलर में चुकाने पर कोई समस्या नहीं है पर कंपनी ‘सी' टाइप जो कार भारत में बेचकर मुनाफा कमाएगी वो रुपये में होगा और उन रुपयों को भी डॉलर में देना पड़ेगा| पर इतना डॉलर आर.बी.आई लाएगी कहा से? यह सवाल आप उन नेताओ और उनके अंधभक्त से पूछ सकते है, सायद उनके पास इसका जवाब हो|
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अगर आर.बी.आई डॉलर देने में असमर्थ हो गयी तो फिर क्या होगा? आइये एक उदाहरण से समझते है| मानलीजिये आप किसी बैंक से मूलधन के रूप में ₹१लाख लेते है १०% के ब्याज पर| अब हर साल आपको ₹१०,००० उस बैंक को चुकाना पड़ेगा| अगर आप उस बैंक को ब्याज या मूलधन न चूका पाए तो क्या होगा? कुछ नहीं होगा बस वो बैंक आपके जायदाद को हड़प कर लेगी या फिर वो सब हड़प कर लेगी जिसके दस्तावेज़ आपने बैंक से मूलधन लेते वक़्त जमा किया/दिखाया होगा|
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ठीक उसी तरह अगर आर.बी.आई डॉलर देने में असमर्थ हो गया तो फिर हमे इन विदेशी कंपनियों कि सारी शर्ते माननी पड़ेगी| और जाहिर सी बात है कि ये विदेशी कंपनी वोही शर्ते मनवाना चाहेगी जिससे इनको आने वाले १०-२० साल तक भारत से काफी मुनाफा हो, वो भी बिना किसी रुकावट के| लेकिन अब सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति कब आएगी जब, आर.बी.आई डॉलर देने में असमर्थ हो जायेगा|
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यह परिस्थिति तो फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व पर निर्भर है| पर एक और कारण है जिससे यह परिस्थिति पैदा हो सकती है और वो है जब सारी विदेशी कंपनिया भारी संख्या में एक साथ मुनाफे कि मांग करेगी| अब इसपर अंधभक्त और उनके नेता कहते है कि सारी कंपनिया कभी भी एक साथ मांग नहीं करेंगी| यह बात याद रखे “अंधभक्त और उनके नेता कहते है कि सारी कंपनिया कभी भी एक साथ मुनाफे का मांग नहीं करेंगी”, क्यूंकि इसका जवाब हम जल्द ही देने वाले है पर उसके पहले यह जान लेते है कि चाइना में एफ डी आई है फिर भी वहा डॉलर का भुगतान करने में कोई समस्या क्यूँ नहीं है|
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चाइना के एफ डी आई के अनुसार डॉलर में भुगतान केवल एक्सपोर्ट के मामले में किया जाता है| तो फिर इसका मतलब क्या? इसका मतलब यह हुआ कि यदि कोई ‘सी’ टाइप कंपनी चाइना में आये तो वो जो भी मैन्युफैक्चर करेगी उसका मुनाफा डॉलर में तभी दिया जायेगा जब वो मुनाफा एक्सपोर्ट से आया हो| इसका मतलब यदि वो मैन्युफैक्चरिंग कंपनी कार बनाती हो और कार को चाइना में ही बेचे तो फिर यहाँ कोई एक्सपोर्ट नहीं हुआ और उस विदेशी कंपनी को डॉलर में भुगतान नहीं होगा| अब अगर ये तीन कंपनिया जो कि हमने भारत में मानी थी, वो अगर चाइना में जाये तो $३बिलियन चाइना के बैंक में रहेगा और उन तीनो कंपनियों को डॉलर में भुगतान तभी किया जायेगा जब उनका मुनाफा एक्सपोर्ट से हो (यानि डॉलर में हो), इससे चाइना के बैंक पर डॉलर कि कमी का कोई भी दबाव नहीं बनता|
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अब आते है उस वाक्य पर जो हमने अभी याद रखने को कहा था और वो वाक्य यह है कि भारत में “अंधभक्त और उनके नेता कहते है कि सारी कंपनिया कभी भी एक साथ मुनाफे का मांग नहीं करेंगी”| अगर ऐसा सही में मान लिया जाये कि विदेशी कंपनिया भारत का भला चाहती है (जो कि सच है या झूट वो आप पर है) तब इन बातो को मानने में अंधभक्तो और उनके नेताओ को कोई भी समस्या नहीं होनी चाहिए| और बाते कुछ इस तरह है और यह बाते समाधान भी है:
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१) हम विदेशी कंपनियों को उतना ही डॉलर भुगतान करेंगे जितना कि उनलोगों ने पूंजी के रूप में निवेश किया है (यानि इस नोट के अनुसार $१बिलियन तक) और उसके बाद उन्हें रुपये में भुगतान किया जायेगा|
२) विदेशी कंपनियों को सिर्फ एक्सपोर्ट पर ही डॉलर में भुगतान किया जायेगा|
३) किसी भी प्राकृतिक स्रोत में एफ डी आई न हो|
४) टेलिकॉम, डिफेन्स इत्यादि में एफ डी आई न के बराबर हो|
५) रोड बनाने, पानी का सप्लाई करने, ब्रिज बनाने में एफ डी आई न हो, क्यूंकि भारतीय कंपनिया यह सब काम करने में सक्षम है| कहने का मतलब यह है कि जिन-जिन क्षेत्रो में भारत कि योग्यता अभी है वहा एफ डी आई न हो|
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ऊपर के सारे समाधान अभी होने चाहिए| इसके अलावा कुछ अच्छे समाधान है जो कि हमे अपने MLA/MPs से SMS के द्वारा मांग करनी चाहिए| सबसे पहले आप यह किताब डाउनलोड करे ताकि आप आगे के समाधान को पढ़ सके| किताब डाउनलोड करने का लिंक है : http://www.rahulmehta.com/301.htm
आइये अब कुछ अच्छे समाधान के बारे में जानते है|
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१) भारतीयों कंपनियों को बढ़ावा मिले ताकि वो अपना काम तेज़ी से कर सके| मतलब स्वदेशी का प्रचार (चैप्टर नंबर 20)
२) भारतीय कंपनियों का सबसे बड़ा शत्रु टैक्स डिपार्टमेंट है जो कि स्टार्ट-अप कंपनियों को चैन से काम नहीं करने देती| पढ़े Enact Wealth Tax (Chapter 25)
३) भारतीय कपनियो के न बढ़ने का एक बड़ा कारण करप्शन भी है| करप्शन कम करने के लिए पढ़े RTR on PM/CM (Chapter 6)
४) जानिए हम कैसे FDI से डील कर सकते है| पढ़े Dealing with FDI issue (Chapter 68)
५) ऊपर के सारे कानून भारत में कैसे लाना है यह जानने के लिए पढ़े TCP (Chapter 3)
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अगर आपको यह जानकारी सही लगे तो लोगो तक यह समस्या पहुचाये| पर समस्या बताना जितना अवश्यक है, उससे कई ज्यादा अवश्यक समाधान बताना है| इसीलिए समाधान के साथ समस्या का जानकारी दे|
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राईट टू रिकॉल ग्रुप
(महात्मा सचिन्द्रनाथ सान्याल संस्था)

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