Monday, October 5, 2015

चीन की तुलना में भारत में विदेशी निवेश (एफडीआई) की आवक तेजी से बढ़ रही है क्योंकि सोनिया-मोदी-केजरीवाल ने सोशल मिडिया, टेलीकॉम और रेलवे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रो में भी विदेशी निवेश के द्वार खोल दिए है। (5-Oct-2015) No.5

October 5, 2015 No.5

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चीन की तुलना में भारत में विदेशी निवेश (एफडीआई) की आवक तेजी से बढ़ रही है क्योंकि सोनिया-मोदी-केजरीवाल ने सोशल मिडिया, टेलीकॉम और रेलवे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रो में भी विदेशी निवेश के द्वार खोल दिए है। 

उदाहरण के लिए मोदी साहेब ने फेसबुक और टेल्को से कहा कि 'आप टेलीकॉम इंडस्ट्री में निवेश करिये, और बदले में हम आपको सोशल मिडिया और इनटरनेट का बाजार उपहार स्वरूप दे देंगे'। जबकि चीन ने न सिर्फ फेसबुक पर बेन लगाया बल्कि टेलीकॉम मार्केट में भी विदेशी निवेश की अनुमति नहीं दी !!! जाहिर है अमेरिकी कंपनी टेल्को भारत में ही निवेश करेगी, न कि चीन में। 

सोनिया-मोदी-केजरीवाल ने रेलवे, पुल, सड़के, रक्षा और यहां तक कि शहरो में जल वितरण जैसी आवश्यक सेवाओ में भी विदेशी निवेश की अनुमति दे दी है, वही चीन ने इन क्षेत्रो में ज्यादातर विदेशी निवेश की अनुमति नही दी है।

इसलिए यदि निकट भविष्य में भारत विदेशी निवेश के मामले में चीन को पछाड़ दे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए 

इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रारम्भिक दौर में विदेशी निवेश से समृद्धि दृष्टिगोचर होगी। इसके दूरगामी प्रभाव देश के लिए अनुकूल रहेंगे या घातक, इस बारे में प्रत्येक व्यक्ति का विचार भिन्न हो सकता है। मेरा विचार है कि विदेशी निवेश से हम पर डॉलर के पुनर्भुगतान का भारी दबाव बनेगा और हम बुरी तरह से टूट जाएंगे। इसलिए हमें विदेशी निवेश को सिर्फ इस शर्त पर ही अनुमति देनी चाहिए कि किसी कम्पनी को मूल पूँजी के अलावा कमाए गए मुनाफे के बदले डॉलर का भुगतान सिर्फ उस सीमा तक ही किया जाएगा जिस सीमा तक कंपनी ने निर्यात द्वारा डॉलर का अर्जन किया हो। चीन ने विदेशी कम्पनियो के निवेश पर इन्ही शर्तो को लागू किया था। लेकिन सोनिया-मोदी-केजरीवाल ने इन शर्तो को लागू करने से इंकार कर दिया है, इसलिए भी भारत में विदेशी निवेश रफ़्तार पकड़ रहा है। 

समाधान ?

सोनिया-मोदी-केजरीवाल और संघ के सभी अंध भगत भारत में एफडीआई का समर्थन कर रहे है। असल में उनके संगठनो के नाम से 'बीजेपी फॉर एफडीआई', 'कांग्रेस फॉर एफडीआई', 'आम आदमी पार्टी फॉर ऍफ़डीआई', 'आरएसएस फॉर एफडीआई' का बोध होता है। अत: इन सभी संगठनो और इनके अंध भगतो के लिए अब एफडीआई एजेंडे का मुख्य हिस्सा है। चूंकि वे एफडीआई को समस्या ही मानने को तैयार नहीं है, अत: उनके लिए मेरे पास इस समस्या के लिए कोई समाधान नहीं है।

जिन्हे एफडीआई समस्या नजर आती है, उन्हें निम्न कानूनो का प्रचार, समर्थन और मांग करनी चाहिए। 

१. विदेशी कम्पनियो को डॉलर का पुनर्भुगतान सिर्फ उनके द्वारा लगाईं गयी मूल पूँजी और निर्यात से अर्जित किये गए डॉलर के योगफल के बराबर ही किया जाएगा। 

२. विदेशी निवेशकों को किसी प्रकार की कर राहतें नहीं दी जायेगी। 

३. सम्पूर्ण रूप से भारतीय नागरिको के स्वामित्व वाली कम्पनियों (WOIC) के लिए कानूनी ड्राफ्ट :
https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/809743912477180?pnref=story

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