February 17, 2016 No.3
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153291357361922
जेएनयू के बाद अब बंगाल की जाधवपुर यूनिवर्सिटी में भी छात्रों ने जुलुस निकालकर भारत विरोधी नारे लगाए है। इससे पहले हैदराबाद में भी अफजल गुरु के समर्थन में प्रदर्शन हुए। बीजेपी विधायक और वकीलों ने आरोपियों एवं मिडिया कर्मियों के साथ कोर्ट परिसर में मारपीट की और राहुल, करात, केजरीवाल, नितिश समेत अन्य नेता भी अपने अपने तरीके से भारत विरोधी नारे लगाने वाले इन द्रोहियो का समर्थन कर रहे है। पेड मिडिया के हाथ बटेर लग गया है, और वे भी इस मुद्दे को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
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ये घटनाएं भारत की क़ानून व्यवस्था, पुलिस प्रशासन, अदालतों आदि की दयनीय हालत का खुलासा करती है। सरकार का इकबाल ख़त्म हो जाता है तो ऐसे तत्व अपना सिर उठाने लगते है। आंध्र, बंगाल और दिल्ली, तीनो राज्यों में अलग अलग पार्टियो की सरकारे है, और सभी निकम्मी साबित हुयी है। चुस्त पुलिस और त्वरित अदालतों की उपस्थिति में ऐसी हरकत करने का साहस स्वत: ही लुप्त हो जाता है।
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इन सबको ऐसे दुस्साहस का हौसला इसलिए होता है, क्योंकि सभी को पता है क़ानून नाम की चिड़िया देश में नहीं है, और बरसो तक मुकदमा घिसटने के बाद जज घूस खाकर इन्हें रिहा कर देगा। यदि मुकदमें की सुनवाई का अधिकार नागरिको की ज्यूरी के पास होता और किसी भी मामले का फैसला यदि हफ्ते दस दिन में आता तो इतनी हिम्मत दिखाने का इन्हें साहस भी नही होता था।
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समस्या उतनी बड़ी नहीं है जितनी कि अब बढ़ने वाली है। इस पूरे ड्रामे में कश्मीरी अलगाववादियों की भूमिका है, जिन्हे सऊदी अरब/पाकिस्तान का सरंक्षण हासिल है, और उनके तार पेड मिडिया, 'सभी' राजनैतिक पार्टियों, बांग्लादेशी घुसपैठियों, नक्सलवादियो, बुद्धिजीवियों, गैर सरकारी संगठनो, मदरसो के इमामो आदि से जुड़े हुए है।
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मिडिया हमारा विदेशी चला रहे है, 2 करोड़ बांग्लादेशी घुसे हुए है, एक तरफ पाकिस्तान जिसे कश्मीर और दूसरी तरफ चीन बैठा है जिसे अरुणाचल चाहिए, आधा दर्जन राज्य नक्सलवाद से प्रभावित है, अदालतो में केस सिर्फ जाते है फैसले आते नहीं, पुलिस प्रमुख पर राईट टू रिकाल नही है, इस्लामिस्ट्स के नेटवर्क, मदरसो और मिडिया हाउसेस को विदेशियो से पैसा आ रहा है, लेकिन इन समस्याओ के वास्तविक समाधान के लिए आवश्यक कानूनो को लगातार लंबित किया जा रहा है। जाहिर है अंदर ही अंदर समस्या लगातार फ़ैल रही है।
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इस समस्या को बढ़ाने का आसान तरीका यह है कि इस मुद्दे को उछालने के लिए हमारे नेता राष्ट्रवाद के नाम पर उकसाऊ बयान दे, सोशल मिडिया पर इस गद्दारो की लानत मनानत की जाए, टीवी चैनल्स पर उकसाऊ बहस की जाए, इस घटना के विरोध में सड़को पर उतर पर नारे लगाए जाए और वो सभी काम किये जाए जिससे इस घटना पर खूब बहस हो ताकि मामला राजनैतिक बनकर वोट खींचू बन जाए। क्योंकि, भारत में वोट समस्या को उभाड़ने से मिलते है समाधान करने से नहीं।
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समस्या में रोमांच है, सनसनी है, विवाद है, नाटकीयता है, फिजूल की रायशुमारी है और आवेश है, लेकिन समाधान होने से मुद्दा ख़त्म होकर नीरवता छा जाती है। इसलिए राजनैतिक पार्टियो, बुद्धिजीवियों और पेड मिडिया को समस्या से लगाव होता है समाधान से नहीं।
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समाधान ?
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1. दिल्ली की मतदाता सूची में से 25 से 55 आयुवर्ग के 100 नागरिको की ज्यूरी बुलायी जाए, तथा यह ज्यूरी मामले की सुनवाई करके फैसला दे। मुकदमा किसी भी सूरत में जजो के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। जजो पर मुझे 2 पैसे का भी विश्वास नहीं है। पूरे से भी ज्यादा संभावना है वे घूस खाकर तारीख पर तारीख देंगे और आरोपियों को रिहा कर देंगे।
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2. इस ज्यूरी के पास आरोपियों के सार्वजनिक नार्को टेस्ट का अधिकार भी आवश्यक रूप से होना चाहिए। क्योंकि बिना नार्को टेस्ट के इस तरह के षड्यंत्रकारी मामलो की तह तक पहुंचना मुमकिन नहीं है।
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3. विज्ञान-गणित-तकनीक आदि विषयो के अलावा अन्य सभी विश्वविद्यालयों को सरकार द्वारा दिए जा रहे अनुदानों पर रोक लगाई जानी चाहिए।
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विशेष बात यह है कि मोदी साहेब, परम पूज्य मोहन भागवत और इनके सभी अंध भगत देशद्रोह के इन आरोपियों के सार्वजनिक नार्को टेस्ट का विरोध कर रहे है। मेरे अनुमान में, इन्हे भय है कि आरोपियों का सार्वजनिक नार्को टेस्ट करने से ऐसी कई जानकारियां सामने आ सकती है जिनका खुलासा होना इनके लिए हानिकारक होगा। ये सभी इन आरोपियों के मुकदमे की सुनवाई ज्यूरी द्वारा किये जाने का भी विरोध कर रहे है। क्योंकि पूरी संभावना है कि ज्यूरी देशद्रोहियो के इन आरोपियों को 5-7 साल के लिए कारावास में भेज देगी, वो भी सिर्फ हफ्ते के अंदर। ज्ञातव्य है कि मोदी साहेब-परम पूज्य मोहन भागवत और उनके अंध भगतो ने अकबरूद्दीन ओवैसी, शूर्पणखां गांधी, रॉबर्ट बढेरा और मनमोहन सिंह के सार्वजनिक नार्को टेस्ट करने की मांग करने से भी इंकार कर दिया था। और कांग्रेस, आम आदमी पार्टी आदि तो खैर सार्वजनिक नार्को टेस्ट और ज्यूरी द्वारा सुनवाई के खुले तौर पर खिलाफ है ही।
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जेएनयू के बाद अब बंगाल की जाधवपुर यूनिवर्सिटी में भी छात्रों ने जुलुस निकालकर भारत विरोधी नारे लगाए है। इससे पहले हैदराबाद में भी अफजल गुरु के समर्थन में प्रदर्शन हुए। बीजेपी विधायक और वकीलों ने आरोपियों एवं मिडिया कर्मियों के साथ कोर्ट परिसर में मारपीट की और राहुल, करात, केजरीवाल, नितिश समेत अन्य नेता भी अपने अपने तरीके से भारत विरोधी नारे लगाने वाले इन द्रोहियो का समर्थन कर रहे है। पेड मिडिया के हाथ बटेर लग गया है, और वे भी इस मुद्दे को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
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ये घटनाएं भारत की क़ानून व्यवस्था, पुलिस प्रशासन, अदालतों आदि की दयनीय हालत का खुलासा करती है। सरकार का इकबाल ख़त्म हो जाता है तो ऐसे तत्व अपना सिर उठाने लगते है। आंध्र, बंगाल और दिल्ली, तीनो राज्यों में अलग अलग पार्टियो की सरकारे है, और सभी निकम्मी साबित हुयी है। चुस्त पुलिस और त्वरित अदालतों की उपस्थिति में ऐसी हरकत करने का साहस स्वत: ही लुप्त हो जाता है।
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इन सबको ऐसे दुस्साहस का हौसला इसलिए होता है, क्योंकि सभी को पता है क़ानून नाम की चिड़िया देश में नहीं है, और बरसो तक मुकदमा घिसटने के बाद जज घूस खाकर इन्हें रिहा कर देगा। यदि मुकदमें की सुनवाई का अधिकार नागरिको की ज्यूरी के पास होता और किसी भी मामले का फैसला यदि हफ्ते दस दिन में आता तो इतनी हिम्मत दिखाने का इन्हें साहस भी नही होता था।
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समस्या उतनी बड़ी नहीं है जितनी कि अब बढ़ने वाली है। इस पूरे ड्रामे में कश्मीरी अलगाववादियों की भूमिका है, जिन्हे सऊदी अरब/पाकिस्तान का सरंक्षण हासिल है, और उनके तार पेड मिडिया, 'सभी' राजनैतिक पार्टियों, बांग्लादेशी घुसपैठियों, नक्सलवादियो, बुद्धिजीवियों, गैर सरकारी संगठनो, मदरसो के इमामो आदि से जुड़े हुए है।
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मिडिया हमारा विदेशी चला रहे है, 2 करोड़ बांग्लादेशी घुसे हुए है, एक तरफ पाकिस्तान जिसे कश्मीर और दूसरी तरफ चीन बैठा है जिसे अरुणाचल चाहिए, आधा दर्जन राज्य नक्सलवाद से प्रभावित है, अदालतो में केस सिर्फ जाते है फैसले आते नहीं, पुलिस प्रमुख पर राईट टू रिकाल नही है, इस्लामिस्ट्स के नेटवर्क, मदरसो और मिडिया हाउसेस को विदेशियो से पैसा आ रहा है, लेकिन इन समस्याओ के वास्तविक समाधान के लिए आवश्यक कानूनो को लगातार लंबित किया जा रहा है। जाहिर है अंदर ही अंदर समस्या लगातार फ़ैल रही है।
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इस समस्या को बढ़ाने का आसान तरीका यह है कि इस मुद्दे को उछालने के लिए हमारे नेता राष्ट्रवाद के नाम पर उकसाऊ बयान दे, सोशल मिडिया पर इस गद्दारो की लानत मनानत की जाए, टीवी चैनल्स पर उकसाऊ बहस की जाए, इस घटना के विरोध में सड़को पर उतर पर नारे लगाए जाए और वो सभी काम किये जाए जिससे इस घटना पर खूब बहस हो ताकि मामला राजनैतिक बनकर वोट खींचू बन जाए। क्योंकि, भारत में वोट समस्या को उभाड़ने से मिलते है समाधान करने से नहीं।
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समस्या में रोमांच है, सनसनी है, विवाद है, नाटकीयता है, फिजूल की रायशुमारी है और आवेश है, लेकिन समाधान होने से मुद्दा ख़त्म होकर नीरवता छा जाती है। इसलिए राजनैतिक पार्टियो, बुद्धिजीवियों और पेड मिडिया को समस्या से लगाव होता है समाधान से नहीं।
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समाधान ?
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1. दिल्ली की मतदाता सूची में से 25 से 55 आयुवर्ग के 100 नागरिको की ज्यूरी बुलायी जाए, तथा यह ज्यूरी मामले की सुनवाई करके फैसला दे। मुकदमा किसी भी सूरत में जजो के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। जजो पर मुझे 2 पैसे का भी विश्वास नहीं है। पूरे से भी ज्यादा संभावना है वे घूस खाकर तारीख पर तारीख देंगे और आरोपियों को रिहा कर देंगे।
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2. इस ज्यूरी के पास आरोपियों के सार्वजनिक नार्को टेस्ट का अधिकार भी आवश्यक रूप से होना चाहिए। क्योंकि बिना नार्को टेस्ट के इस तरह के षड्यंत्रकारी मामलो की तह तक पहुंचना मुमकिन नहीं है।
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3. विज्ञान-गणित-तकनीक आदि विषयो के अलावा अन्य सभी विश्वविद्यालयों को सरकार द्वारा दिए जा रहे अनुदानों पर रोक लगाई जानी चाहिए।
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विशेष बात यह है कि मोदी साहेब, परम पूज्य मोहन भागवत और इनके सभी अंध भगत देशद्रोह के इन आरोपियों के सार्वजनिक नार्को टेस्ट का विरोध कर रहे है। मेरे अनुमान में, इन्हे भय है कि आरोपियों का सार्वजनिक नार्को टेस्ट करने से ऐसी कई जानकारियां सामने आ सकती है जिनका खुलासा होना इनके लिए हानिकारक होगा। ये सभी इन आरोपियों के मुकदमे की सुनवाई ज्यूरी द्वारा किये जाने का भी विरोध कर रहे है। क्योंकि पूरी संभावना है कि ज्यूरी देशद्रोहियो के इन आरोपियों को 5-7 साल के लिए कारावास में भेज देगी, वो भी सिर्फ हफ्ते के अंदर। ज्ञातव्य है कि मोदी साहेब-परम पूज्य मोहन भागवत और उनके अंध भगतो ने अकबरूद्दीन ओवैसी, शूर्पणखां गांधी, रॉबर्ट बढेरा और मनमोहन सिंह के सार्वजनिक नार्को टेस्ट करने की मांग करने से भी इंकार कर दिया था। और कांग्रेस, आम आदमी पार्टी आदि तो खैर सार्वजनिक नार्को टेस्ट और ज्यूरी द्वारा सुनवाई के खुले तौर पर खिलाफ है ही।
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