Tuesday, February 2, 2016

प्रिय कार्यकर्ताओ , क्या आप इस आर्थिक कानूनी ड्राफ्ट से सहमत है ? यदि नहीं, तो इसमें आप क्या कमियां देखते है ? (28-Jan-2016) No.6

January 28, 2016 No.6

https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153256866576922

प्रिय कार्यकर्ताओ , क्या आप इस आर्थिक कानूनी ड्राफ्ट से सहमत है ? यदि नहीं, तो इसमें आप क्या कमियां देखते है ?
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प्रस्ताव इस तरह है कि --- सभी कर हटा दियें जाएँ, और सभी प्रकार की सम्पत्तियों पर 5% (या अन्य कोई निश्चित दर ) संपत्ति कर लगा दिया जाए। इस सम्पत्ति कर की कोई सीमा (जैसे कि 2 करोड़ से अधिक) तय की जा सकती है। इस समान संपत्ति कर से सरकार अपने खर्चे निकाले और बची हुयी राशि का वितरण देश के सभी नागरिको में कर दिया जाए। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार के संपत्ति कर का समान कराधान न सिर्फ सरकार को आमदनी देगा, बल्कि गरीबी को भी दूर करेगा।
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रोशन लाल अग्रवाल, भारत गांधी एवं अन्य द्वारा सुझाए गए 'नागरिक भत्ता' तथा 'इकोनोमिक जस्टिस फॉरम' शीर्षक के इस प्रस्ताव को यहां देखा जा सकता है ---https://web.facebook.com/votership ; 'आर्थिक न्याय मंच', 'भारतीय न्याय मंच' आदि जैसे कई संगठन इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे है।
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हमारे प्रस्ताव और उपरोक्त सुझाव में कुछ समानताएं है और कुछ भिन्नताएं। जहां तक खनिज, स्पेक्ट्रम और सरकारी जमीन का प्रश्न है, हम भी इनका किराया वसूल कर नागरिको के खाते में भेजने का समर्थन करते है। लेकिन 'निजी संपत्ति' के बारे में हमारा प्रस्ताव है की, इस मद से एकत्रित करो का उपयोग सिर्फ सरकार को अपने खर्चे निकालने में ही करना चाहिए, और हम निजी संपत्ति पर वसूले गए कर का वितरण नागरिको को करने का समर्थन नहीं करते। इसके अलावा हमारा यह भी मानना है कि, संपत्ति कर के सटीक संग्रहण के लिए आयकर लगाना आवश्यक है।
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कृपया इस बिंदु को नजर अंदाज करे कि, 'संपत्ति करो की पर्याप्त वसूली के लिए आयकर लगाना आवश्यक है'। क्योंकि यह एक तकनिकी विषय है। लेकिन जिस राजनैतिक बिंदु से हम असहमत है, वह यह है कि --- हम 'निजी संपत्ति' से वसूले गए संपत्ति कर का वितरण नागरिको में करने का समर्थन नहीं करते।
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इस स्थिति में हम रिकालिस्ट्स के सामने प्रश्न यह है कि -- गरीबी कम करने के लिए यदि निजी संपत्तियों पर कर लगा कर वसूले गए रूपयों का वितरण नागरिको में कर दिया जाता है तो इसमें 'गलत' क्या है ?
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कृपया इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश करे। कृपया 'मौलिक अधिकार', 'प्राकृतिक अधिकार' आदि शब्दों का प्रयोग न करे। यदि आप अपना तर्क पूर्ण जवाब 'नैतिक अधिकार' आदि शब्दों का प्रयोग किये बिना रख सके तो और भी बेहतर होगा। कुल मिलाकर क्या आप इस प्रस्ताव के समर्थन या विरोध में कोई ठोस और भौतिक स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर सकते है ?
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मेरा उत्तर
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इस प्रस्ताव का वह बिंदु जिस पर हम राईट टू रिकॉल ग्रुप के कार्यकर्ता सहमत है, वह यह है कि ---- हम खनिज/स्पेक्ट्रम/जल संसाधन की रॉयल्टी तथा सरकारी भूमि के किराए से प्राप्त आय को सभी नागरिको में बराबर वितरण का समर्थन करते है।
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लेकिन जब निजी स्वामित्व की जमीनो की बात आती है तो हमारा प्रस्ताव है कि उन पर लगाए गए संपत्ति कर से प्राप्त धन का इस्तेमाल सिर्फ सरकारी व्ययों को पर ही किया जाना चाहिए। हमने ऐसा कोई प्रस्ताव नही रखा है कि सम्पत्ति कर का वितरण नागरिको में किया जाए।
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हमारे विचार में यदि 'संपत्ति कर लगाकर वसूली गयी राशि को सभी नागरिको में बाँट दिया जाता है' तो निम्नलिखित दुष्परिणाम सामने आयंगे :
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1. मान लीजिये कि यह प्रस्ताव यदि भारत में आज लागू किया जाता है तो, संपत्ति कर की यह दर अमेरिका में लागू संपत्ति कर की दर से काफी ऊँची होगी। इस परिस्थिति में ऐसे व्यक्ति जो अपनी काबलियत से संपत्ति और धन कमा रहे है न कि प्राकृतिक संसाधनो पर अपने मालिकाना हक़ से, वे व्यक्ति भारत छोड़ कर अमेरिका में बस जाएंगे। उनके देश छोड़ने के साथ ही हम हथियारों, चिकित्सा उपकरणों, दवाईंयो आदि को बनाने में सक्षम इंजिनीयरो को खो देंगे, जिससे भारत और अमेरिका के बीच शक्ति अनुपात और भी बदतर हो जाएगा।
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2. अब कई लोगो का दावा है कि -- जब संपत्ति कर से वसूल किये गए रूपये का वितरण नागरिको में किये जाने की यह व्यवस्था भारत में लागू होगी तो, धीरे धीरे अमेरिका, ब्रिटेन समेत दुनिया के बाकी देशो में भी यह व्यवस्था लागू हो जायेगी।
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3. मान लीजिये कि दुनिया के शेष देशो में भी 'आर्थिक न्याय' के सिद्धांत को अपना लिया जाता है। ऐसी स्थिति में भारत के शीर्ष 1% धनिक किसी एक स्थान जैसे की गोवा में एकत्रित हो जाएंगे, और गोवा को अलग देश घोषित करने की मांग करेंगे। अब चूंकि गोआ में संपत्ति कर की दर नीची रहेगी और इस पैसे का इस्तेमाल सिर्फ सरकार चलाने के लिए किया जाएगा अत: देश और दुनिया के अन्य धनिक, जो कि अपनी योग्यता से पैसा कमाकर सम्पत्तियों का सृजन कर रहे है, वे सभी गोआ की और रूख करेंगे। अब क्योंकि इस मुट्ठी भर लोगो के पास ज्यादा सम्पदा और इंजीनियरिंग कौशल होगा अत: जल्दी गोआ में बेहतर आधुनिक हथियारों का उत्पादन करेगा जिससे उनकी ताकत बढ़ेगी और वे शेष भारत तथा विश्व को भी अपने नियंत्रण में लेकर उन्हें गुलाम बना लेंगे।
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3A. दूसरे शब्दों में, यदि दुनिया के सभी देश 'निजी संपत्ति पर कर लगाकर नागरिको में वितरण' के सिद्धांत को लागू कर देते है, तब भी उन 1% काबिल लोगो को अलग देश के निर्माण से नहीं रोका जा सकता जिनके पास इंजीनियरिंग/चिकित्सीय कौशल है। और इस छोटे देश में ज्यादा बेहतर इंजिनियर होने से ज्यादा बेहतर हथियार होंगे, अत: न सिर्फ ये अपने आपको ताकतवर बनाये रखेंगे बल्कि इनकी ताकत बढ़ने के साथ साथ ये अन्य देशो को नियंत्रित भी कर सकेंगे। इस्राएल इसका उदाहरण है, जो छोटा देश होने बावजूद अरब देशो पर काबू बनाये रखता है।
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4. इसलिए, यदि इंजीनियरिंग कौशल से युक्त ऐसे काबिल लोगो को भारत खो देता है तो यह भारत के शेष औसत नागरिको के लिए काफी नुकसानदेह साबित होगा।
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लेकिन पुलिस प्रशासन, न्यायालय और सेना को सुचारू रूप से चलाने के लिए सम्पत्ति कर आवश्यक है। यदि यह संपत्ति कर लागू नहीं किया जाता है तो धनिक वर्ग को शुरूआती लाभ होगा, लेकिन इस कर के अभाव में अपराधियों और दुश्मन देश की सैन्य ताकत बढ़ने से उन पर हमला होने की संभावनाए बढ़ जायेगी अत: दूसरे दौर में उन्हें काफी घाटा उठाना पड़ेगा। इसलिए चाहे धनिक वर्ग इस प्रस्ताव का समर्थन करे या विरोध लेकिन वे इस बात पर राजी अवश्य हो जाएंगे कि उन्हें सेना, पुलिस और अदालतों को सुचारू रखने के लिए भुगतान करना चाहिए। वे इस बात को समझेंगे कि सेना, पुलिस और अदालतों को सक्षम बनाने के लिए कौशल की आवश्यकता होती है, अत: बुनियादी शिक्षा के ढांचें को सुधारने में निवेश किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर धनिक संपत्ति कर की ऐसी सीमा को जरूर बर्दाश्त करेंगे जो उनके व्यवसाय को चलाने और बचाने के लिए खर्च करना आवश्यक है, लेकिन इससे ज्यादा दर वसूलने से वे या तो देश छोड़ देंगे या अलग देश की मांग करेंगे।
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इसलिए, मेरे विचार में निजी सम्पत्तियों पर कर लगाकर वसूली गयी राशि का वितरण नागरिको में करना व्यवहारिक प्रस्ताव नहीं है। 

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