September 15, 2015 No.4
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153037932466922
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राईट टू रिकॉल पार्टी/प्रजा अधीन राजा पार्टी का घोषणा पत्र
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पुस्तक का मूल्य - 120 रूपये (डाक खर्च अतिरिक्त)
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यह इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण है। इस पुस्तक का पीडीऍफ़ अंग्रेजी भाषा में rahulmehta .com/301.htm पर तथा हिन्दी में rahulmehta .com/301.h.htm पर उपलब्ध है। जिसे आप फ्री डाउनलोड कर सकते है।
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लेखक ने इस पुस्तक का कॉपीराइट नहीं लिया है।
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कुल पृष्ठ संख्या - 540
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पुस्तक के प्रथम संस्करण की कार्यलयी लागत : 100 रू + 170 रू डाक ख़र्च = 270 रू कुल
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इस पुस्तक के पीडीऍफ़ को पढ़ने के बाद यदि आप इस पुस्तक का छपा हुआ संस्करण खरीदना चाहते है, तो अपना पूरा पता, फोन नंबर तथा 270 रू का चेक दिए गए पते पर भेजे :
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राहुल चिमन भाई मेहता
फ्लेट संख्या - F 104, सुपथ-2 फ़्लैट
जूना वदाज स्टेण्ड के पास
अहमदाबाद - 380013
फोन नंबर - 0-90992-77555, 0-98251-27780
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या इस बैंक खाते में 270 रू का चेक जमा करे (with using NEFT)
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नाम - राहुल चिमन भाई मेहता
बैंक खाता संख्या - 372-0020-1061-5131
IFSC कोड - UBIN-053-7209, यूनियन बैंक ऑफ़ इण्डिया, आश्रम रोड, अहमदाबाद।
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कृपया चेक जमा करने के बाद https://facebook. com/mehtarahulc पर सूचना देवे।
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(देश की एक मात्र राजनैतिक पार्टी, जहां किसी भी प्रकार का दान/चंदा/डोनेशन आदि लेना निषिद्ध है)
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यदि हम कार्यकर्ता भारत के नागरिको को यह समझा पाने में सफल हो जाते है कि, 'उन्हें अपने सांसद/विधायक को सरकार चलाने के लिए आवश्यक आदेश SMS द्वारा भेजने चाहिए' तो गरीबी, भ्रष्टाचार, अपराध आदि समस्याओ का समाधान सिर्फ चार महीने में किया जा सकता है।
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(यदि आप राईट टू रिकॉल के बारे में कोई भी प्रश्न पूछना चाहते है, तो कृपया इस पुस्तक का अध्याय 19 पढ़ने के उपरान्त अपने प्रश्न रखे)
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लेखक - राहुल चिमन भाई मेहता, बी. टेक्. , कंप्यूटर साइंस, आईआईटी दिल्ली ; एम. एस. , रटगर्स , न्यू जर्सी स्टेट यूनिवर्सिटी ;
http://facebook. com/mehtarahulc , http://rahulmehta. com , MehtaRahulC@yahoo .com
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मेरे बारे में (लेखक) - मैंने आईआईटी दिल्ली से कंप्यूटर साइंस में बी. टेक. करने के बाद रटगर्स यूनिवर्सिटी, न्यू जर्सी से मास्टर ऑफ़ साइंस की पढ़ाई पूरी की। मेरे माता-पिता की अस्वस्थता के चलते मैं 1999 में पुन: भारत लौट आया। कई वर्षो के अमेरिका प्रवास के दौरान मुझे वहां के पुलिस प्रशासन, न्याय व्यवस्था आदि के अध्ययन का अवसर मिला। मैंने पाया कि अमेरिका तकनीक, विकास और समृद्धि में भारत से इसलिए आगे निकल गया क्योंकि वहाँ राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स आदि बेहतर क़ानून लागू है। तथा 'राजनैतिक अंधविश्वासियों' द्वारा प्रचारित कथित 'राजनैतिक संस्कृति' के सिद्धांत एक ढकोसला है, और इनकी इस सम्बन्ध में कोई भूमिका नहीं है। अक्टूबर 1999 से मैं भारत में टीसीपी, राईट टू रिकॉल प्रधानमन्त्री, राईट टू रिकॉल सुप्रीम कोर्ट जज, राईट टू रिकॉल रिजर्व बैंक गवर्नर, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स आदि व्यवस्थाओ को भारत में लागू करने के लिए कानूनी ड्राफ्ट्स का प्रचार कर रहा हूँ। मैंने राईट टू रिकॉल जनलोकपाल के लिए भी कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तावित किया है।
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राईट टू रिकॉल कानूनो के प्रचार के लिए मैंने मई-2009 में लोकसभा चुनाव, अक्टूबर-2010 में नगर पालिका चुनाव, फरवरी-2011 में विधान सभा उपचुनाव, दिसंबर-2012 में विधान सभा चुनाव, तथा मई-2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा। भारत में व्यवस्था परिवर्तन के लिए मैं कार्यकर्ताओ को यह समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि ; 1) यदि नागरिक नारे लगाने, मोमबत्तिया जलाने आदि अनुपयोगी गतिविधियों में अपना समय तथा ऊर्जा नष्ट करने की जगह भारत के प्रधानमन्त्री तथा सुप्रीम कोर्ट के जजो को सरकार चलाने के लिए एसएमएस द्वारा आवश्यक आदेश भेजना शुरू करे तो जल्दी ही भारत की सभी गंभीर समस्याओ का समाधान किया जा सकता है। 2) कार्यकर्ताओ को अपने नेताओ से राईट टू रिकाल कानूनो के ड्राफ्ट मांगने चाहिए। इससे उन नेताओ की असलियत सामने आएगी, जो भारत में राईट टू रिकॉल कानूनो का विरोध कर रहे है। 3) ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओ को राईट टू रिकॉल कानूनो के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहिए।
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अामुख -1
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0.1. रिकालिस्ट्स …
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हम अपने आप को इसी नाम से पुकारते है --- रिकालिस्ट्स। हम रिकालिस्ट्स है।
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हम रिकालिस्ट्स भारत के वे साधारण नागरिक है जो यह मानते है कि देश के सभी नागरिको को अपने प्रधानमन्त्री को एसएमएस द्वारा आदेश भेजना चाहिए कि भारत के गैजेट में राईट टू रिकाल कानूनो के ड्राफ्ट प्रकाशित किये जाए। ताकि नागरिक यदि चाहे तो प्रधानमन्त्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, रिजर्व बैंक के गवर्नर, लोकपाल तथा सरपंच आदि को मताधिकार का उपयोग करके एक महीने के भीतर नौकरी से निकाल सके। भारत में हम रिकालिस्ट्स 1920 से यह मांग कर रहे है। महात्मा चन्द्रशेखर आजाद ने 1925 में अपनी संस्था 'हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोशिएसन' के घोषणा पत्र में कहा था कि 'हम जिस गणराज्य की स्थापना करना चाहते है, उसमे नागरिको के पास आवश्यकतानुसार अपने प्रतिनिधियों को नौकरी से निकालने का अधिकार होगा ....... यदि ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा'। स्पष्ट है कि भारत में राईट टू रिकाल कानूनो की मांग पिछले 85 वर्षो से की जा रही है। (see : shahidbhagatsingh. org/index.asp?link=revolutionary )
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हम रिकालिस्ट्स लम्बे समय से उन लोगो द्वारा दबाये जा रहे है, जो लोग भारत में नागरिको को अपने प्रतिनिधियों को नौकरी से निकाले जाने का अधिकार नहीं देना चाहते, अत: वे संविधान, अस्थिरता तथा वोटो के क्रय विक्रय जैसे झूठे सिद्धांत फैलाकर राईट टू रिकाल कानूनो के बारे में गलत धारणाये फैलाते है। इसी क्रम में हमें अन्ना और अरविंद गांधी जैसे राईट टू रिकाल के छद्म समर्थको ने और भी पीड़ित किया है।
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छद्म रिकालिस्ट्स राईट टू रिकॉल कानूनो का जबानी समर्थन तो करते है, लेकिन जनलोकपाल पद के लिए राईट टू रिकाल प्रक्रिया का ड्राफ्ट देने का विरोध करते है। वे अपने कार्यकर्ताओं से राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाओ का विरोध करने को कहते है और उन्हें सिर्फ राईट टू रिकॉल के नारे लगाने तक ही सिमित रखना चाहते है। छद्म रिकालिस्ट्स ने हमेशा प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जजो आदि पदो के लिए राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाओ का विरोध किया है, वे राईट टू रिकॉल कानूनो को सिर्फ सरपंच और कॉर्पोरेटर तक ही सिमित रखना चाहते है। लेकिन इन पदो के लिए भी उन्होंने सिर्फ जबानी समर्थन करने का फैसला किया, और इनकी प्रक्रिया का ड्राफ्ट देने से इंकार कर दिया। जब इन छद्म रिकालिस्ट्स से राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रिया का ड्राफ्ट माँगा जाता है तो ये ड्राफ्ट की प्रक्रिया अगले जनम में देने की बात कहते है।
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इस प्रकार इन्होने राईट टू रिकॉल आंदोलन को ज्यादा गंंभीर नुकसान पहुंचाया है। छद्म रिकालिस्ट्स ने अपने कार्यकर्ताओ से अपने सांसद को एसएमएस द्रारा आदेश भेजने से भी मना किया तथा वे तब भी खामोश बने रहे जब कई बड़े नेताओ ने राईट टू रिकॉल कानूनो के लागू होने से राजनैतिक अस्थिरता आने के झूठे सिद्धांत फैलाये। अन्ना तथा अरविंद गांधी जैसे छद्म रिकालिस्ट्स का लक्ष्य उन कार्यकर्ताओ को कन्फ्यूज़ करके अपनी और खींचना है, जो कार्यकर्ता राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाओ से भलीभांति परिचित नहीं है। ये छद्म रिकालिस्ट्स राईट टू रिकॉल आंदोलन की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि ये नेता भारत में राईट टू रिकॉल आंदोलन को तोड़ने के लिए सक्रीय रूप से काम कर रहे है। (इस बारे में अध्याय 13.18 में विस्तार से चर्चा की गयी है)
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0.2. क्यों हम साधारण नागरिक रिकालिस्ट्स बनने की और प्रवृत हुए ?
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तो किस प्रेरणा ने हमें रिकालिस्ट्स बना दिया ? मुझे नहीं पता कि, किस प्रेरणा ने मुझे 1998 में रिकालिस्ट्स बना दिया। न ही मैं यह जानता हूँ कि मेरे द्वारा लिखे गए विवरणों को पढ़कर कई कार्यकर्ता क्यों रिकालिस्ट्स बन गए। न ही मुझे इस कारण का कोई अंदाजा कि क्यों 1920 में महात्मा चन्द्रशेखर आजाद रिकालिस्ट्स बन गए। हालांकि इस सम्बन्ध में मेरे पास कोई ठोस कारण नहीं है, कि किस विचार ने हमें रिकालिस्ट्स बनने की प्रेरणा दी। लेकिन जितना मैं देख पाता हूँ, मुझे इसके दो संभावित कारण नज़र आते है ; 1) कॉमन सेन्स। 2) अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान, सऊदी अरब तथा बांग्लादेश आदि से होने वाले युद्ध का भय।
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पहला कारण सीधा सादा कॉमन सेन्स है। सामान्य समझ, जो कि हर मनुष्य में स्वाभाविक तौर पर मौजूद होती है। सबसे पहले मैं आपसे एक सवाल करना चाहूंगा। यदि आप इस सवाल का जवाब देने से इंकार करते है, तो मैं आपको अपनी बात नहीं समझा पाउँगा। इसलिए मेरा आग्रह है कि आप इस सवाल का अपने विवेक से जवाब दें। इसके उपरान्त ही आप आगे पढ़े।
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"मान लीजिये कि आप एक कारखाने के मालिक है, जिसमे 1000 कर्मचारी और प्रबंधक वगेरह कार्य करते है। और अचानक सरकार निम्नांकित क़ानून लागू कर देती है :
1. आप किसी भी प्रबंधक को 60 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पहले, तथा किसी भी कर्मचारी को 5 वर्ष से पहले नौकरी से नहीं निकाल सकेंगे।
2. आपको सभी कर्मचारियों को अगले 5 वर्ष के लिए और प्रबंधको को उनकी 35 वर्षीय सेवाकाल के लिए देय वेतन हेतु अग्रिम भुगतान के चेक देने होंगे।
3. यहां तक कि यदी कोई आपके कारखाने से सामान की चोरी कर रहा है तो, किसी न्यायधीश की अनुमति बिना, न तो आप उसे दंड दे सकेंगे, न ही उसे आपके कारखाने में आने से रोक सकेंगे"।
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मेरा आपसे सवाल है कि ऐसी स्थिति में 'अगले 3 महीनो में क्या आपके कारखाने में अनुशासन का स्तर सुधरेगा या बिगड़ेगा' ?
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कृपया इस सवाल का जवाब देने के बाद ही आप आगे पढ़े। मैं अपना प्रश्न फिर से दोहराता हूँ : 'क्या इन कानूनो के आने के बाद, अगले 3 महीनो में आपके कारखाने में कर्मचारियों और प्रबंधको के अनुशासन का स्तर सुधरेगा या बिगड़ेगा' ?
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दूसरे शब्दों में, यदि हम नागरिको के पास जजो, सांसदों, विधायको, मंत्रियो, प्रशासनिक अधिकारियों आदि को नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं हुआ तो, ये सभी पदाधिकारी भ्रष्ट और अनुशासनहीन हो जाएंगे। इसीलिए महात्मा चंद्रशेखर आजाद ने 1925 में कहा था कि 'राईट टू रिकॉल कानूनो के अभाव में लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा'। ठीक यही बात महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के छठे अध्याय के प्रथम पृष्ठ में कही थी कि , 'यदि राजा प्रजा अधीन नहीं हुआ तो, वह प्रजा को लूट लेगा और राज्य का विनाश होगा'।
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राईट टू रिकॉल क़ानून प्रक्रियाएं ग्रीस में 600 ईसा पूर्व लागू हुयी थी। जिसके परिणामस्वरूप ग्रीस अपने आप को इतना ताकतवर बना पाया कि उन्होंने सिर्फ 1 लाख सैनिको की मदद से अपने साम्राज्य का विस्तार तुर्की से लेकर यमुना नदी के किनारे तक कर लिया था।अमेरिका में 1750 ईस्वी में राईट टू रिकॉल क़ानून लागू हुए, और यही मुख्य कारण था जिससे अमेरिका इराक़, लीबिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान और लीबिया को कब्जे में कर पाया। अमेरिका की सूची में अगले नाम ईरान और भारत है। लेकिन किसी सामान्य समझ के व्यक्ति को राईट टू रिकॉल कानूनो की उपयोगिता समझने के लिए इतिहास की किताबो के पन्ने पलटने या अमेरिका के उदाहरण को देखने की जरुरत नहीं है------- क्योंकि राईट टू रिकॉल को समझने के लिए जिस चीज की आवश्यकता है, वह सिर्फ 'कॉमन सेन्स' है।
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हमारे देश से जुडी नागरिक समस्याएं किसी भी प्रकार से उस कारखाने की स्थिति से अलग नहीं है, जहां कारखाने के मालिक को अपने कर्मचारियों और प्रबंधको को 5-35 वर्ष तक नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं दिया गया है। हमारे देश की समस्याओ का समाधान भी वही है, जो कि अमुक कारखाने की समस्याओ का समाधान है ---- भ्रष्ट जजो, अधिकारियों और जनप्रतिनिधियो को नौकरी से निकालने का अधिकार नागरिको को दे दिया जाए। यह पुस्तक राईट टू रिकॉल कानूनो की उन प्रक्रियाओ के बारे में है, जिनकी सहायता से भारत के नागरिक भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओ को नौकरी से निकाल सकेंगे। पुस्तक में वे विवरण भी दर्ज किये गए है, जिनका पालन करके इन प्रक्रियाओ को जन साधारण देश में लागू करवा सकते है।
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दूसरा कारण है, 'आने वाले युद्ध का भय', जिसने हमें रिकालिस्ट्स बनने के लिए प्रेरित कर दिया। मेरे विचार में, हमें बेहतर सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था इसलिए चाहिए ताकि हम युद्ध के दौरान टिके रहे। क्या भारत युद्ध का सामना करने में सक्षम है ?
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इसका जवाब किसी रिकालिस्ट्स के पास भी नहीं है कि भारत को निकट भविष्य में कब युद्ध का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि 1989 में भी कोई नहीं जानता था कि अमेरिका ईराक पर हमला करके उसे लूट लेगा, और 2004 में फिर से हमला करेगा। न ही कोई जानता था कि अमेरिका जनवरी 2010 में लीबिया पर हमला करके उसे लूटेगा। हम निश्चित तौर पर नहीं जानते, कब ? लेकिन हमें यह भय है कि भारत को अंततोगत्वा अपने दुश्मन देशो से युद्ध का सामना करना ही पड़ेगा। इसे टाला नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में हमारे पास तीन विकल्प है 1) भारत हथियारों का आयात करे। 2) भारत हथियारों का निर्माण करे। 3) भारत न तो हथियारों का आयात करे न ही निर्माण करे।
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1. यदि न तो हम न तो हथियार बनाएंगे न ही आयात करेंगे, तो यह तय कि हम युद्ध बुरी तरह से हार जाएंगे। युद्ध के दौरान भारत का विशिष्ट वर्ग अपने स्वजनो के साथ अमेरिका के लिए उड़ जाएगा और युद्ध की सारी विभीषिका हम आम नागरिको को भुगतनी पड़ेगी। जैसे कि हमने 1947 में भुगता था। एक अनुमान के मुताबिक़ 1947 में लगभग 10 लाख हिन्दुओ को पाकिस्तान में वीभत्स तरिके से मार दिया गया था। उन्हें जिन्दा जलाया और दफनाया गया, उनके गले काटे गए और जिन्दा लोगो की चमड़ी को नोच कर उतार दिया गया। 20 लाख से ज्यादा अपहरण हुए, 2 करोड़ को अपना घर-बार छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी, और लगभग 1 करोड़ को धर्मांतरण करने के लिए मजबूर किया गया। हमारा मानना है कि यदि भारत ने न तो हथियारो का उत्पादन किया न ही आयात किया, तो आने वाले युद्ध में भारत पर 1947 से भी 10 गुना बदतर हालत गुजरेगी।
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2. यदि भारत हथियार नहीं बनाता लेकिन आयात करता है, तो इस नरसंहार को हम कुछ हद तक कम तो कर सकते है लेकिन रोक नहीं सकते। ऐसी स्थिति में हम हथियार निर्यात करने वाली या भारत में आकर हथियार निर्माण करने वाली कम्पनियो के गुलाम हो जाएंगे। मेरा मानना है कि हथियार निर्मात्री कम्पनिया हथियारों पर हमारी निर्भरता को भुनाएगी और हमारे खनिज, तेल -गैस संसाधनो, स्पेक्ट्रम, बैंक्स आदि को अधिगृहीत कर लेगी, हमारी गणित-विज्ञान की शिक्षा को बर्बाद कर देगी और भारत की सारी आबादी को फिलीपींस की तरह ईसाई धर्म में धर्मान्तरित कर देगी।
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3. अत: मेरा तथा मेरे जैसे अन्य रिकालिस्ट्स का मानना है कि भारत को खुद के आधुनिक हथियारो का उत्पादन करना चाहिए।
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इसलिए भारत के नागरिको को ऐसे शासन की रचना करनी चाहिए जिससे भारत अमेरिका के स्तर के आधुनिक हथियारों का उत्पादन कर सके। हम रिकालिस्ट्स का मानना है कि ऐसे शासन की रचना तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि भारत में राईट टू रिकॉल प्रधानमन्त्री, राईट टू रिकॉल सुप्रीम कोर्ट जज, राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, राईट टू रिकॉल पुलिस प्रमुख, ज्यूरी सिस्टम, टीसीपी, डीडीएमआरसीएम आदि कानूनो को लागू नहीं कर दिया जाता।
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अत: हम इन सब कानूनो के ड्राफ्ट प्रस्तावित करके ऐसे शासन की रचना करने का प्रस्ताव कर रहे है जो शासन भारत में भारतीयों द्वारा बड़े पैमाने पर आधुनिक हथियारों के उत्पादन करने में सक्षम हो। हो सकता है की हमारा भय एक अतिशियोक्ति हो, और हो सकता है कि भारत को कभी भी किसी प्रकार के युद्ध का सामना न करना पड़े। लेकिन हमारा यह मानना है कि अगर भारत को युद्ध करना पड़ सकता है, तो आने वाली तबाही से सिर्फ राईट टू रिकॉल और ज्यूरी सिस्टम कानूनी प्रक्रियाओ को देश में लागू करके ही बचा जा सकता है। सार रूप में यह कहना उचित है कि युद्ध की आशंका ने ही हम रिकालिस्ट्स को रिकालिस्ट्स बनने के लिए प्रेरित किया।
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0.3. यह पुस्तक इतनी लम्बी क्यों है ?
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आपको राईट टू रिकॉल कानूनो की अवधारणा के लिए पूरे 560 पृष्ठ पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। आप अध्याय -1, 2, 6, तथा अध्याय 13 को पढ़ने के बाद विषय सूची देखिये, और उस सम्बंधित विषय का अध्याय पढ़िए जिसमे आपको रुचि हो। जैसे, यदि आपको गौ-हत्या या पुलिस प्रशासन या अदालतों की दशा सुधारने में रुचि है, तो आप उपरोक्त 4 अध्याय पढ़ने के बाद अपना इच्छित अध्याय पढ़ सकते है।
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यह पुस्तक इतनी लम्बी क्यों है ? ----मेरा लक्ष्य था कि अधिक से अधिक कार्यकर्ता इस आंदोलन से जुड़े। लेकिन विभिन्न कार्यकर्ताओ की रुचि विभिन्न विषयो में होती है। किसी कार्यकर्ता को स्वदेशी का मुद्दा ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगता है, तो कोई कार्यकर्ता शिक्षा के विषय को ज्यादा महत्व देता है। जिस कार्यकर्ता कि जिस विषय में रुचि हो वह उस विषय से सम्बंधित राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाए या अन्य कानूनी ड्राफ्ट इस पुस्तक में देख सकता है। यदि किसी कार्यकर्ता का रूचिगत विषय इस पुस्तक में दर्ज नहीं है, तो यह पुस्तक अमुक कार्यकर्ता के लिए अनुपयोगी सिद्ध होगी। अधिक से अधिक कार्यकर्ताओ के लिए उपयोगी बनाने के लिए, मैंने इस पुस्तक में देश की ज्यादातर समस्याओ के समाधानो के लिए 100 से अधिक आवश्यक कानूनी ड्राफ्ट्स दिए है, अक्षरो का आकार भी सामान्य आकार से बड़ा रखा गया है, ताकि वरिष्ठ नागरिक इसे आसानी से पढ़ सके, अत: पुस्तक लम्बी बन पड़ी है। इसके अलावा दो पेरेग्राफ के मध्य भी सामान्य से अधिक अंतर रखा गया है, ताकि पठनीयता सुबोध हो। पुस्तक में पृष्ठों की संख्या 540 है। इस पुस्तक के दो भाग और भी लिखे जाने है, जिनमे 20 से 25 अध्यायों को शामिल किया जाएगा। प्रत्येक पुस्तक में अनुमानित पृष्ठ संख्या 500 होगी।
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यदि कोई पाठक इस पुस्तक में लिखे गए किसी भी विषय के सम्बन्ध में कोई प्रश्न करना चाहता है, तो वह अपना प्रश्न निसंकोच रूप से forum. righttorecall. info तथा हमारे फेसबुक समुदाय पर रख सकता है। या फोन पर मुझसे संपर्क कर सकता है।
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सम्बंधित महत्त्वपूर्ण वीडियो के लिए यहां देखे : rahulmehta .com\v. htm (see Rajiv Dixitji’s video on Right to Recall)
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पुस्तक का मूल्य - 120 रूपये (डाक खर्च अतिरिक्त)
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यह इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण है। इस पुस्तक का पीडीऍफ़ अंग्रेजी भाषा में rahulmehta .com/301.htm पर तथा हिन्दी में rahulmehta .com/301.h.htm पर उपलब्ध है। जिसे आप फ्री डाउनलोड कर सकते है।
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लेखक ने इस पुस्तक का कॉपीराइट नहीं लिया है।
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कुल पृष्ठ संख्या - 540
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पुस्तक के प्रथम संस्करण की कार्यलयी लागत : 100 रू + 170 रू डाक ख़र्च = 270 रू कुल
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इस पुस्तक के पीडीऍफ़ को पढ़ने के बाद यदि आप इस पुस्तक का छपा हुआ संस्करण खरीदना चाहते है, तो अपना पूरा पता, फोन नंबर तथा 270 रू का चेक दिए गए पते पर भेजे :
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राहुल चिमन भाई मेहता
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जूना वदाज स्टेण्ड के पास
अहमदाबाद - 380013
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(देश की एक मात्र राजनैतिक पार्टी, जहां किसी भी प्रकार का दान/चंदा/डोनेशन आदि लेना निषिद्ध है)
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यदि हम कार्यकर्ता भारत के नागरिको को यह समझा पाने में सफल हो जाते है कि, 'उन्हें अपने सांसद/विधायक को सरकार चलाने के लिए आवश्यक आदेश SMS द्वारा भेजने चाहिए' तो गरीबी, भ्रष्टाचार, अपराध आदि समस्याओ का समाधान सिर्फ चार महीने में किया जा सकता है।
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(यदि आप राईट टू रिकॉल के बारे में कोई भी प्रश्न पूछना चाहते है, तो कृपया इस पुस्तक का अध्याय 19 पढ़ने के उपरान्त अपने प्रश्न रखे)
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लेखक - राहुल चिमन भाई मेहता, बी. टेक्. , कंप्यूटर साइंस, आईआईटी दिल्ली ; एम. एस. , रटगर्स , न्यू जर्सी स्टेट यूनिवर्सिटी ;
http://facebook. com/mehtarahulc , http://rahulmehta. com , MehtaRahulC@yahoo .com
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मेरे बारे में (लेखक) - मैंने आईआईटी दिल्ली से कंप्यूटर साइंस में बी. टेक. करने के बाद रटगर्स यूनिवर्सिटी, न्यू जर्सी से मास्टर ऑफ़ साइंस की पढ़ाई पूरी की। मेरे माता-पिता की अस्वस्थता के चलते मैं 1999 में पुन: भारत लौट आया। कई वर्षो के अमेरिका प्रवास के दौरान मुझे वहां के पुलिस प्रशासन, न्याय व्यवस्था आदि के अध्ययन का अवसर मिला। मैंने पाया कि अमेरिका तकनीक, विकास और समृद्धि में भारत से इसलिए आगे निकल गया क्योंकि वहाँ राईट टू रिकॉल, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स आदि बेहतर क़ानून लागू है। तथा 'राजनैतिक अंधविश्वासियों' द्वारा प्रचारित कथित 'राजनैतिक संस्कृति' के सिद्धांत एक ढकोसला है, और इनकी इस सम्बन्ध में कोई भूमिका नहीं है। अक्टूबर 1999 से मैं भारत में टीसीपी, राईट टू रिकॉल प्रधानमन्त्री, राईट टू रिकॉल सुप्रीम कोर्ट जज, राईट टू रिकॉल रिजर्व बैंक गवर्नर, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टैक्स आदि व्यवस्थाओ को भारत में लागू करने के लिए कानूनी ड्राफ्ट्स का प्रचार कर रहा हूँ। मैंने राईट टू रिकॉल जनलोकपाल के लिए भी कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तावित किया है।
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राईट टू रिकॉल कानूनो के प्रचार के लिए मैंने मई-2009 में लोकसभा चुनाव, अक्टूबर-2010 में नगर पालिका चुनाव, फरवरी-2011 में विधान सभा उपचुनाव, दिसंबर-2012 में विधान सभा चुनाव, तथा मई-2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा। भारत में व्यवस्था परिवर्तन के लिए मैं कार्यकर्ताओ को यह समझाने का प्रयास कर रहा हूँ कि ; 1) यदि नागरिक नारे लगाने, मोमबत्तिया जलाने आदि अनुपयोगी गतिविधियों में अपना समय तथा ऊर्जा नष्ट करने की जगह भारत के प्रधानमन्त्री तथा सुप्रीम कोर्ट के जजो को सरकार चलाने के लिए एसएमएस द्वारा आवश्यक आदेश भेजना शुरू करे तो जल्दी ही भारत की सभी गंभीर समस्याओ का समाधान किया जा सकता है। 2) कार्यकर्ताओ को अपने नेताओ से राईट टू रिकाल कानूनो के ड्राफ्ट मांगने चाहिए। इससे उन नेताओ की असलियत सामने आएगी, जो भारत में राईट टू रिकॉल कानूनो का विरोध कर रहे है। 3) ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओ को राईट टू रिकॉल कानूनो के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहिए।
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अामुख -1
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0.1. रिकालिस्ट्स …
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हम अपने आप को इसी नाम से पुकारते है --- रिकालिस्ट्स। हम रिकालिस्ट्स है।
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हम रिकालिस्ट्स भारत के वे साधारण नागरिक है जो यह मानते है कि देश के सभी नागरिको को अपने प्रधानमन्त्री को एसएमएस द्वारा आदेश भेजना चाहिए कि भारत के गैजेट में राईट टू रिकाल कानूनो के ड्राफ्ट प्रकाशित किये जाए। ताकि नागरिक यदि चाहे तो प्रधानमन्त्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, रिजर्व बैंक के गवर्नर, लोकपाल तथा सरपंच आदि को मताधिकार का उपयोग करके एक महीने के भीतर नौकरी से निकाल सके। भारत में हम रिकालिस्ट्स 1920 से यह मांग कर रहे है। महात्मा चन्द्रशेखर आजाद ने 1925 में अपनी संस्था 'हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोशिएसन' के घोषणा पत्र में कहा था कि 'हम जिस गणराज्य की स्थापना करना चाहते है, उसमे नागरिको के पास आवश्यकतानुसार अपने प्रतिनिधियों को नौकरी से निकालने का अधिकार होगा ....... यदि ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा'। स्पष्ट है कि भारत में राईट टू रिकाल कानूनो की मांग पिछले 85 वर्षो से की जा रही है। (see : shahidbhagatsingh. org/index.asp?link=revolutionary )
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हम रिकालिस्ट्स लम्बे समय से उन लोगो द्वारा दबाये जा रहे है, जो लोग भारत में नागरिको को अपने प्रतिनिधियों को नौकरी से निकाले जाने का अधिकार नहीं देना चाहते, अत: वे संविधान, अस्थिरता तथा वोटो के क्रय विक्रय जैसे झूठे सिद्धांत फैलाकर राईट टू रिकाल कानूनो के बारे में गलत धारणाये फैलाते है। इसी क्रम में हमें अन्ना और अरविंद गांधी जैसे राईट टू रिकाल के छद्म समर्थको ने और भी पीड़ित किया है।
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छद्म रिकालिस्ट्स राईट टू रिकॉल कानूनो का जबानी समर्थन तो करते है, लेकिन जनलोकपाल पद के लिए राईट टू रिकाल प्रक्रिया का ड्राफ्ट देने का विरोध करते है। वे अपने कार्यकर्ताओं से राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाओ का विरोध करने को कहते है और उन्हें सिर्फ राईट टू रिकॉल के नारे लगाने तक ही सिमित रखना चाहते है। छद्म रिकालिस्ट्स ने हमेशा प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जजो आदि पदो के लिए राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाओ का विरोध किया है, वे राईट टू रिकॉल कानूनो को सिर्फ सरपंच और कॉर्पोरेटर तक ही सिमित रखना चाहते है। लेकिन इन पदो के लिए भी उन्होंने सिर्फ जबानी समर्थन करने का फैसला किया, और इनकी प्रक्रिया का ड्राफ्ट देने से इंकार कर दिया। जब इन छद्म रिकालिस्ट्स से राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रिया का ड्राफ्ट माँगा जाता है तो ये ड्राफ्ट की प्रक्रिया अगले जनम में देने की बात कहते है।
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इस प्रकार इन्होने राईट टू रिकॉल आंदोलन को ज्यादा गंंभीर नुकसान पहुंचाया है। छद्म रिकालिस्ट्स ने अपने कार्यकर्ताओ से अपने सांसद को एसएमएस द्रारा आदेश भेजने से भी मना किया तथा वे तब भी खामोश बने रहे जब कई बड़े नेताओ ने राईट टू रिकॉल कानूनो के लागू होने से राजनैतिक अस्थिरता आने के झूठे सिद्धांत फैलाये। अन्ना तथा अरविंद गांधी जैसे छद्म रिकालिस्ट्स का लक्ष्य उन कार्यकर्ताओ को कन्फ्यूज़ करके अपनी और खींचना है, जो कार्यकर्ता राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाओ से भलीभांति परिचित नहीं है। ये छद्म रिकालिस्ट्स राईट टू रिकॉल आंदोलन की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि ये नेता भारत में राईट टू रिकॉल आंदोलन को तोड़ने के लिए सक्रीय रूप से काम कर रहे है। (इस बारे में अध्याय 13.18 में विस्तार से चर्चा की गयी है)
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0.2. क्यों हम साधारण नागरिक रिकालिस्ट्स बनने की और प्रवृत हुए ?
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तो किस प्रेरणा ने हमें रिकालिस्ट्स बना दिया ? मुझे नहीं पता कि, किस प्रेरणा ने मुझे 1998 में रिकालिस्ट्स बना दिया। न ही मैं यह जानता हूँ कि मेरे द्वारा लिखे गए विवरणों को पढ़कर कई कार्यकर्ता क्यों रिकालिस्ट्स बन गए। न ही मुझे इस कारण का कोई अंदाजा कि क्यों 1920 में महात्मा चन्द्रशेखर आजाद रिकालिस्ट्स बन गए। हालांकि इस सम्बन्ध में मेरे पास कोई ठोस कारण नहीं है, कि किस विचार ने हमें रिकालिस्ट्स बनने की प्रेरणा दी। लेकिन जितना मैं देख पाता हूँ, मुझे इसके दो संभावित कारण नज़र आते है ; 1) कॉमन सेन्स। 2) अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान, सऊदी अरब तथा बांग्लादेश आदि से होने वाले युद्ध का भय।
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पहला कारण सीधा सादा कॉमन सेन्स है। सामान्य समझ, जो कि हर मनुष्य में स्वाभाविक तौर पर मौजूद होती है। सबसे पहले मैं आपसे एक सवाल करना चाहूंगा। यदि आप इस सवाल का जवाब देने से इंकार करते है, तो मैं आपको अपनी बात नहीं समझा पाउँगा। इसलिए मेरा आग्रह है कि आप इस सवाल का अपने विवेक से जवाब दें। इसके उपरान्त ही आप आगे पढ़े।
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"मान लीजिये कि आप एक कारखाने के मालिक है, जिसमे 1000 कर्मचारी और प्रबंधक वगेरह कार्य करते है। और अचानक सरकार निम्नांकित क़ानून लागू कर देती है :
1. आप किसी भी प्रबंधक को 60 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पहले, तथा किसी भी कर्मचारी को 5 वर्ष से पहले नौकरी से नहीं निकाल सकेंगे।
2. आपको सभी कर्मचारियों को अगले 5 वर्ष के लिए और प्रबंधको को उनकी 35 वर्षीय सेवाकाल के लिए देय वेतन हेतु अग्रिम भुगतान के चेक देने होंगे।
3. यहां तक कि यदी कोई आपके कारखाने से सामान की चोरी कर रहा है तो, किसी न्यायधीश की अनुमति बिना, न तो आप उसे दंड दे सकेंगे, न ही उसे आपके कारखाने में आने से रोक सकेंगे"।
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मेरा आपसे सवाल है कि ऐसी स्थिति में 'अगले 3 महीनो में क्या आपके कारखाने में अनुशासन का स्तर सुधरेगा या बिगड़ेगा' ?
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कृपया इस सवाल का जवाब देने के बाद ही आप आगे पढ़े। मैं अपना प्रश्न फिर से दोहराता हूँ : 'क्या इन कानूनो के आने के बाद, अगले 3 महीनो में आपके कारखाने में कर्मचारियों और प्रबंधको के अनुशासन का स्तर सुधरेगा या बिगड़ेगा' ?
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दूसरे शब्दों में, यदि हम नागरिको के पास जजो, सांसदों, विधायको, मंत्रियो, प्रशासनिक अधिकारियों आदि को नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं हुआ तो, ये सभी पदाधिकारी भ्रष्ट और अनुशासनहीन हो जाएंगे। इसीलिए महात्मा चंद्रशेखर आजाद ने 1925 में कहा था कि 'राईट टू रिकॉल कानूनो के अभाव में लोकतंत्र एक मजाक बन कर रह जाएगा'। ठीक यही बात महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के छठे अध्याय के प्रथम पृष्ठ में कही थी कि , 'यदि राजा प्रजा अधीन नहीं हुआ तो, वह प्रजा को लूट लेगा और राज्य का विनाश होगा'।
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राईट टू रिकॉल क़ानून प्रक्रियाएं ग्रीस में 600 ईसा पूर्व लागू हुयी थी। जिसके परिणामस्वरूप ग्रीस अपने आप को इतना ताकतवर बना पाया कि उन्होंने सिर्फ 1 लाख सैनिको की मदद से अपने साम्राज्य का विस्तार तुर्की से लेकर यमुना नदी के किनारे तक कर लिया था।अमेरिका में 1750 ईस्वी में राईट टू रिकॉल क़ानून लागू हुए, और यही मुख्य कारण था जिससे अमेरिका इराक़, लीबिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान और लीबिया को कब्जे में कर पाया। अमेरिका की सूची में अगले नाम ईरान और भारत है। लेकिन किसी सामान्य समझ के व्यक्ति को राईट टू रिकॉल कानूनो की उपयोगिता समझने के लिए इतिहास की किताबो के पन्ने पलटने या अमेरिका के उदाहरण को देखने की जरुरत नहीं है------- क्योंकि राईट टू रिकॉल को समझने के लिए जिस चीज की आवश्यकता है, वह सिर्फ 'कॉमन सेन्स' है।
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हमारे देश से जुडी नागरिक समस्याएं किसी भी प्रकार से उस कारखाने की स्थिति से अलग नहीं है, जहां कारखाने के मालिक को अपने कर्मचारियों और प्रबंधको को 5-35 वर्ष तक नौकरी से निकालने का अधिकार नहीं दिया गया है। हमारे देश की समस्याओ का समाधान भी वही है, जो कि अमुक कारखाने की समस्याओ का समाधान है ---- भ्रष्ट जजो, अधिकारियों और जनप्रतिनिधियो को नौकरी से निकालने का अधिकार नागरिको को दे दिया जाए। यह पुस्तक राईट टू रिकॉल कानूनो की उन प्रक्रियाओ के बारे में है, जिनकी सहायता से भारत के नागरिक भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओ को नौकरी से निकाल सकेंगे। पुस्तक में वे विवरण भी दर्ज किये गए है, जिनका पालन करके इन प्रक्रियाओ को जन साधारण देश में लागू करवा सकते है।
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दूसरा कारण है, 'आने वाले युद्ध का भय', जिसने हमें रिकालिस्ट्स बनने के लिए प्रेरित कर दिया। मेरे विचार में, हमें बेहतर सरकार और प्रशासनिक व्यवस्था इसलिए चाहिए ताकि हम युद्ध के दौरान टिके रहे। क्या भारत युद्ध का सामना करने में सक्षम है ?
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इसका जवाब किसी रिकालिस्ट्स के पास भी नहीं है कि भारत को निकट भविष्य में कब युद्ध का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि 1989 में भी कोई नहीं जानता था कि अमेरिका ईराक पर हमला करके उसे लूट लेगा, और 2004 में फिर से हमला करेगा। न ही कोई जानता था कि अमेरिका जनवरी 2010 में लीबिया पर हमला करके उसे लूटेगा। हम निश्चित तौर पर नहीं जानते, कब ? लेकिन हमें यह भय है कि भारत को अंततोगत्वा अपने दुश्मन देशो से युद्ध का सामना करना ही पड़ेगा। इसे टाला नहीं जा सकता। ऐसी स्थिति में हमारे पास तीन विकल्प है 1) भारत हथियारों का आयात करे। 2) भारत हथियारों का निर्माण करे। 3) भारत न तो हथियारों का आयात करे न ही निर्माण करे।
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1. यदि न तो हम न तो हथियार बनाएंगे न ही आयात करेंगे, तो यह तय कि हम युद्ध बुरी तरह से हार जाएंगे। युद्ध के दौरान भारत का विशिष्ट वर्ग अपने स्वजनो के साथ अमेरिका के लिए उड़ जाएगा और युद्ध की सारी विभीषिका हम आम नागरिको को भुगतनी पड़ेगी। जैसे कि हमने 1947 में भुगता था। एक अनुमान के मुताबिक़ 1947 में लगभग 10 लाख हिन्दुओ को पाकिस्तान में वीभत्स तरिके से मार दिया गया था। उन्हें जिन्दा जलाया और दफनाया गया, उनके गले काटे गए और जिन्दा लोगो की चमड़ी को नोच कर उतार दिया गया। 20 लाख से ज्यादा अपहरण हुए, 2 करोड़ को अपना घर-बार छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी, और लगभग 1 करोड़ को धर्मांतरण करने के लिए मजबूर किया गया। हमारा मानना है कि यदि भारत ने न तो हथियारो का उत्पादन किया न ही आयात किया, तो आने वाले युद्ध में भारत पर 1947 से भी 10 गुना बदतर हालत गुजरेगी।
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2. यदि भारत हथियार नहीं बनाता लेकिन आयात करता है, तो इस नरसंहार को हम कुछ हद तक कम तो कर सकते है लेकिन रोक नहीं सकते। ऐसी स्थिति में हम हथियार निर्यात करने वाली या भारत में आकर हथियार निर्माण करने वाली कम्पनियो के गुलाम हो जाएंगे। मेरा मानना है कि हथियार निर्मात्री कम्पनिया हथियारों पर हमारी निर्भरता को भुनाएगी और हमारे खनिज, तेल -गैस संसाधनो, स्पेक्ट्रम, बैंक्स आदि को अधिगृहीत कर लेगी, हमारी गणित-विज्ञान की शिक्षा को बर्बाद कर देगी और भारत की सारी आबादी को फिलीपींस की तरह ईसाई धर्म में धर्मान्तरित कर देगी।
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3. अत: मेरा तथा मेरे जैसे अन्य रिकालिस्ट्स का मानना है कि भारत को खुद के आधुनिक हथियारो का उत्पादन करना चाहिए।
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इसलिए भारत के नागरिको को ऐसे शासन की रचना करनी चाहिए जिससे भारत अमेरिका के स्तर के आधुनिक हथियारों का उत्पादन कर सके। हम रिकालिस्ट्स का मानना है कि ऐसे शासन की रचना तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि भारत में राईट टू रिकॉल प्रधानमन्त्री, राईट टू रिकॉल सुप्रीम कोर्ट जज, राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, राईट टू रिकॉल पुलिस प्रमुख, ज्यूरी सिस्टम, टीसीपी, डीडीएमआरसीएम आदि कानूनो को लागू नहीं कर दिया जाता।
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अत: हम इन सब कानूनो के ड्राफ्ट प्रस्तावित करके ऐसे शासन की रचना करने का प्रस्ताव कर रहे है जो शासन भारत में भारतीयों द्वारा बड़े पैमाने पर आधुनिक हथियारों के उत्पादन करने में सक्षम हो। हो सकता है की हमारा भय एक अतिशियोक्ति हो, और हो सकता है कि भारत को कभी भी किसी प्रकार के युद्ध का सामना न करना पड़े। लेकिन हमारा यह मानना है कि अगर भारत को युद्ध करना पड़ सकता है, तो आने वाली तबाही से सिर्फ राईट टू रिकॉल और ज्यूरी सिस्टम कानूनी प्रक्रियाओ को देश में लागू करके ही बचा जा सकता है। सार रूप में यह कहना उचित है कि युद्ध की आशंका ने ही हम रिकालिस्ट्स को रिकालिस्ट्स बनने के लिए प्रेरित किया।
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0.3. यह पुस्तक इतनी लम्बी क्यों है ?
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आपको राईट टू रिकॉल कानूनो की अवधारणा के लिए पूरे 560 पृष्ठ पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। आप अध्याय -1, 2, 6, तथा अध्याय 13 को पढ़ने के बाद विषय सूची देखिये, और उस सम्बंधित विषय का अध्याय पढ़िए जिसमे आपको रुचि हो। जैसे, यदि आपको गौ-हत्या या पुलिस प्रशासन या अदालतों की दशा सुधारने में रुचि है, तो आप उपरोक्त 4 अध्याय पढ़ने के बाद अपना इच्छित अध्याय पढ़ सकते है।
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यह पुस्तक इतनी लम्बी क्यों है ? ----मेरा लक्ष्य था कि अधिक से अधिक कार्यकर्ता इस आंदोलन से जुड़े। लेकिन विभिन्न कार्यकर्ताओ की रुचि विभिन्न विषयो में होती है। किसी कार्यकर्ता को स्वदेशी का मुद्दा ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगता है, तो कोई कार्यकर्ता शिक्षा के विषय को ज्यादा महत्व देता है। जिस कार्यकर्ता कि जिस विषय में रुचि हो वह उस विषय से सम्बंधित राईट टू रिकॉल कानूनो की प्रक्रियाए या अन्य कानूनी ड्राफ्ट इस पुस्तक में देख सकता है। यदि किसी कार्यकर्ता का रूचिगत विषय इस पुस्तक में दर्ज नहीं है, तो यह पुस्तक अमुक कार्यकर्ता के लिए अनुपयोगी सिद्ध होगी। अधिक से अधिक कार्यकर्ताओ के लिए उपयोगी बनाने के लिए, मैंने इस पुस्तक में देश की ज्यादातर समस्याओ के समाधानो के लिए 100 से अधिक आवश्यक कानूनी ड्राफ्ट्स दिए है, अक्षरो का आकार भी सामान्य आकार से बड़ा रखा गया है, ताकि वरिष्ठ नागरिक इसे आसानी से पढ़ सके, अत: पुस्तक लम्बी बन पड़ी है। इसके अलावा दो पेरेग्राफ के मध्य भी सामान्य से अधिक अंतर रखा गया है, ताकि पठनीयता सुबोध हो। पुस्तक में पृष्ठों की संख्या 540 है। इस पुस्तक के दो भाग और भी लिखे जाने है, जिनमे 20 से 25 अध्यायों को शामिल किया जाएगा। प्रत्येक पुस्तक में अनुमानित पृष्ठ संख्या 500 होगी।
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यदि कोई पाठक इस पुस्तक में लिखे गए किसी भी विषय के सम्बन्ध में कोई प्रश्न करना चाहता है, तो वह अपना प्रश्न निसंकोच रूप से forum. righttorecall. info तथा हमारे फेसबुक समुदाय पर रख सकता है। या फोन पर मुझसे संपर्क कर सकता है।
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सम्बंधित महत्त्वपूर्ण वीडियो के लिए यहां देखे : rahulmehta .com\v. htm (see Rajiv Dixitji’s video on Right to Recall)
प्रश्न रखने के लिए फोरम : forum .rightorecall .info , groups .google. com/RightToRecall/
फेसबुक : http://facebook .com/mehtarahulc , राईट टू रिकॉल पार्टी -- facebook .com/groups/rrgindia
ई-मेल : MehtaRahulC@yahoo .com
फोन नंबर : 91-98251-27780 , 91-98252-32754
पता : फ्लेट संख्या - F 104, सुपथ-2 फ़्लैट, जूना वदाज स्टेण्ड के पास, अहमदाबाद - 380013
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यदि आपको लगता है कि भारत में राईट टू रिकॉल कानून प्रक्रियाए आने से भारत की राजनैतिक व्यवस्था में सकारात्मक सुधार आएगा, तो कृपया इन कानूनी प्रक्रियाओ का समर्थन करे तथा अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेज कर इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने की मांग करे। मैं आपसे आग्रह करूँगा कि इस सम्बन्ध में अधिक अद्यतन जानकारी के लिए हमारे फेसबुक समुदाय पर हमसे जुड़े।
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यदि आपको लगता है कि भारत में राईट टू रिकॉल कानून प्रक्रियाए आने से भारत की राजनैतिक व्यवस्था में सकारात्मक सुधार आएगा, तो कृपया इन कानूनी प्रक्रियाओ का समर्थन करे तथा अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेज कर इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने की मांग करे। मैं आपसे आग्रह करूँगा कि इस सम्बन्ध में अधिक अद्यतन जानकारी के लिए हमारे फेसबुक समुदाय पर हमसे जुड़े।
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----------------------- राहुल चिमन भाई मेहता
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मैं इस पुस्तक की कॉपी-राईट (copyright) केवल इतना सुनिश्चित करने के लिए कर रहा हूँ कि कोई भी अन्य व्यक्ति इसकी सामग्री की कॉपी-राईट ना कर सके और इसके वितरण पर नियंत्रण न कर सके। ये कॉपी-राईट कीसी व्यक्ति को इस पुस्तक के किसी अंश के पर्चे बनाने या उसके प्रकाशन से रोकने के लिए नहीं किया गया है। कोई भी व्यक्ति इस पुस्तक या इसके किसी भाग के पर्चे आदि बनाने या इसे किसी भी माध्यम से प्रकाशित करने, वितरण करने के लिए स्वतंत्र है। इसके एवज में किसी भी व्यक्ति को किसी प्रकार का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। न ही ऐसी अपेक्षा ही है।
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नैतिक नियमो के अनुसार यह अपेक्षा की जाती है कि यदि कोई व्यक्ति इस पुस्तक में दिए गए कानूनी ड्राफ्ट्स का प्रकाशन करता है तो, वह मेरा नाम उल्लेखित करे। क्योंकि ये ड्राफ्ट मैंने 1998 में लिखे थे, तथा पिछले 14 वर्षो से मैं इन्हे समय समय पर अद्यतन करता रहा हूँ। किन्तु यदि किसी व्यक्ति को मेरे नाम से एलर्जी है, तथा वह जानबूझकर मेरे नाम का उल्लेख नहीं करना चाहता, तब भी मैं उस पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करूँगा। लेकिन ऐसे व्यक्ति से कहना चाहूंगा कि वह मुझसे किसी प्रकार का कोई संपर्क नहीं करे, तथा मुझे सोशल मिडिया पर ब्लॉक कर दे। मैं भी सोशल मिडिया के सभी प्लेटफॉर्म्स पर उसे ब्लॉक करना पसंद करूँगा। किन्तु यदि कोई व्यक्ति इन ड्राफ्ट्स के लेखक के रूप में किसी अन्य के नाम का उल्लेख करता है तो मैं उस पर समुचित कानूनी कार्यवाही करूँगा। ----------- राहुल चिमन भाई मेहता
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