Sunday, August 23, 2015

युद्ध सबसे बेहतरीन शिक्षक है (23-Aug-2015) No.5

August 23, 2015


युद्ध सबसे बेहतरीन शिक्षक है।



मेरे विचार में युद्ध सबसे बेहतरीन शिक्षक है। मैं बाजार की मुक्त प्रतिस्पर्धा को दुसरे नंबर का सबसे बेहतर शिक्षक मानता हूँ। किन्तु ऐसे व्यापार में स्वामी द्वारा खुद का रुपया निवेश किया गया हो, न कि बेंक से लिए गए ऋण का ।
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तीसरे नंबर का सबसे बेहतर शिक्षक अदालते है, जहाँ किसी विवाद की दशा में सजा या रिहाई के आदेश दिए जाते है ।
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बेहतर शिक्षको के क्रम में चौथा नंबर खुली प्रतियोगी परीक्षाओं का है, जिनमें कोई भी व्यक्ति हिस्सा ले सके ।
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पांचवे नंबर के शिक्षक के रूप में मैं सीखने की उत्कट इच्छा, जिज्ञासा एवं उन तरीको को शामिल करता हूँ, जिनमे सीखने के लिए किसी अवैयक्तिक स्त्रोत जैसे पुस्तके या एकलव्य द्वारा प्रयुक्त किसी विधि का उपयोग किया गया हो ।
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किसी सजीव व्यक्ति जैसे द्रोणाचार्य या अन्य किसी महान गुरु द्वारा व्यक्तिश: दी गयी शिक्षा सबसे बदतर या सबसे कम बेहतर की श्रेणी में रखी जानी चाहिए ।
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अत: मेरे विचार में बेहतरीन शिक्षको का क्रम इस प्रकार है :
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1. युद्ध
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2. खुद के पैसे से बाजार में की गयी प्रतिस्पर्धा। (बैंक ऋण से नही)
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3. अदालतें जहाँ दंड/कारावास/रिहाई का फैसला होता है।
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4. खुली प्रतियोगी परीक्षाएं
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5. सीखने की जिज्ञासा
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6. किसी शिक्षक द्वारा प्रत्यक्ष शिक्षण
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दुर्भाग्य से युद्ध का सिर्फ अध्ययन या तैयारी ही की जा सकती है। युद्ध सीखने के लिए वास्तविक युद्ध का सामना करना कोई भी नही चाहेगा, इसे बार बार दोहराना तो दूर की बात है। इसलिए युद्ध को टालने के लिए युद्ध की दृष्टी से अपने आप को लगातार मजबूत बनाना ही 'युद्ध से सीखने' का एक मात्र तरीका है ।
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कारोबारियों के बीच ऐसी स्वस्थ प्रतिस्पर्धाएं जिनमें बेंको द्वारा कर्जे नही दिए गए हो, को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक क़ानून लागू किये जा सकते है । इस क्रम में एक क़ानून यह लागू किया जा सकता है कि बैंक सिर्फ धन का संग्रह रखने और मुद्रा स्थानान्तरण का कार्य करेंगे। उन्हें शिक्षा, आवास और दवाइयों आदि मदों के लिए ही कर्जे दिए जाने की छूट होनी चाहिए तथा अन्य सभी प्रकार की व्यावसायिक/औद्योगिक इकाइयों को कर्जे देने पर रोक लगानी चाहिए । बैंको से क़र्ज़ लेकर व्यावसाय करने वाले ज्यादातर व्यापारी इस स्वाभाविक मनोवृति के शिकार होते है कि, 'यदि पैसा डूब जाता है, तो मेरे बाप का क्या जाता है-----यह बैंक का पैसा है, मेरा नही' !! इसलिए ऐसे व्यापारी उन व्यापारियों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन करते है, जिन्होंने व्यवसाय में खुद का पैसा निवेश किया है। लेकिन बैंक से प्राप्त ऋण व्यापारी को पूंजीगत दृष्टी से बढ़त दिला देता है, जिससे वह खुद के पैसे से कारोबार करने वाले व्यापारी को बाजार से बाहर कर देता है, फलस्वरूप व्यापारियों की गुणवत्ता गिर जाती है ।
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जब हर व्यापारी खुद के पैसे से व्यापार करता है तो नुकसान से बचने के लिए उसकी सीखने और और अपने कर्मचारियों को सिखाने की रुचि बढ़ जाती है, जिससे कार्य कुशलता में इजाफा होता है। हालांकि नियोक्ता जानता है कि कर्मचारी को कुशल बनाना उसे दीर्घकाल में नुकसान पहुंचा सकता है !!! क्योंकि कुशल कर्मचारी को कोई दूसरा नियोक्ता बेहतर वेतन पर नौकरी पर रख सकता है या फिर उसका कर्मचारी कल खुद का कारोबार शुरू करके स्वयं उसका प्रतिस्पर्धी भी बन सकता है !!! बावजूद इसके नियोक्ता अंशकालिक लाभ प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों को अधिक से अधिक कार्यकुशल बनाने का प्रयास करता है। इस नजरिये से ऐसा नियोक्ता अपने कर्मचारी के लिए एक बेहतरीन शिक्षक साबित होता है, चाहे नियोक्ता का तरीका कितना ही रूखा क्यों न हो।
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अदालते यह फैसला करती है कि किसी व्यक्ति को रिहा किया जाना चाहिए या कारागार में भेजना चाहिए। इसलिए जब भी कोई व्यक्ति कोई कृत्य करता है, तो सबसे पहले उसके दिमाग में अदालत का ही ख़याल आता है----- अदालते किसी मामले के अंत में नही आती, बल्कि शुरूआत में ही आ जाती है। जब भी कोई व्यापारी किसी व्यावसायिक नीति या अपराध के बारे में योजना बनाता है तो सबसे पहले वह यही सोचता है कि उसकी इस योजना को अदालत किस तरह से लेगी। इसके बाद ही वह उसकी योजना पर बाजार और उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया के बारे में विचार करता है।
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स्वाभिमान के भाव के कारण प्रतियोगी परीक्षाएं छात्रों को सीखने और परीक्षा में सफल होने के लिए प्रेरित करती है। फलस्वरूप जो छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेते है वे खेलकूद, फिल्मे, संगीत और गप्पेबाजी में कम समय बिताएंगे, जबकि इन परीक्षाओं के अभाव में छात्र इन आमोद प्रमोद की गतिविधियों में अपना अधिकाँश वक़्त खर्च कर देंगे, जिससे उनमें कौशल का स्तर गिरेगा।
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सीखने की जिज्ञासा को कई लोग पहले नंबर पर रखते है, लेकिन मैं ऐसा नही मानता, क्योंकि जिज्ञासा को आधार ऊपर वर्णित 4 स्थितियां ही प्रदान करती है। ज्यादातर मामलो में 6-18 आयुवर्ग के नवयुवको में सीखने की यह इच्छा तब पैदा होती है जब वे यह देखते है कि उनके वरिष्ठ जनों में जिन लोगो ने अध्ययन में ज्यादा समय बिताया वे उन लोगो से अधिक सफल है जिन्होंने ऐसा नही किया !!! यदि वे इसका उलटा देखेंगे तो सीखने की इच्छा में कमी आएगी। सीखने की प्रक्रिया में भाषण, उपदेशो आदि का न्यूनतम योगदान है। व्यक्ति देखने और करने से ज्यादा अच्छे से सीखता है, न कि उन भाषणों से जो उसे सुनाये जा रहे है।
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इसलिए यदि कोई व्यक्ति छात्रों को सिखाना चाहता है तो उसे छात्रों को ज्ञान देने वाले भाषण सुनाने की जगह उन कानूनों में सुधार करने के लिए कार्य करना चाहिए जो क़ानून अकुशल व्यक्ति को गलत फायदा पहुंचा कर कुशल और योग्य लोगो को नुक्सान पहुंचा रहे है।
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मेरे विचार में युद्ध का महत्त्व और युद्ध में हारने की संभावनाओं को कम करने के तरीको को जानना सबसे बड़ा तत्व है, जो कि किसी को सीखने के लिए सबसे अच्छे ढंग से प्रेरित करता है।
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और सबसे निचले पायदान पर मैं व्यक्तिश: शिक्षण को रखूँगा। मेरा मानना है कि कोई भी शिक्षक किसी छात्र को सीखने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता। सीखने की इच्छा ऊपर वर्णित 1-4 बिन्दुओ पर निर्भर करती है। यदि बिंदु 5 अर्थात छात्र में सीखने की इच्छा उपस्थित होगी तो ही शिक्षक द्वारा दी जा रही सूचनाओं और कौशल को छात्र ग्रहण करेगा। इस इच्छा के अभाव में शिक्षक द्वारा किये गए प्रयास बंजर भूमि में बीज बोने के समान निष्फल हो जायेंगे।
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अत: भारत की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने का एक मात्र उपाय जो मैं देखता हूँ, इस प्रकार है :
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1. छात्रों को युद्ध के महत्त्व के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए, तथा यह भी बताना चाहिए कि किस तरह गणित, विज्ञान के शिक्षण तथा अदालती काम-काज का युद्ध की हार-जीत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
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2. ऐसे कानूनों को गेजेट में प्रकाशित किया जाए जिससे मुक्त बाजार की अकुशलता दूर हो। भारत में बाजार को अकार्यकुशल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका बेंको द्वारा दिए जा रहे कर्जो की है। इसके अलावा प्रतिगामी कर जैसे वेट, एक्साइज, जीएसटी, सेल्स टेक्स आदि को हटाकर वेल्थ टेक्स को लागू किया जाना चाहिए। वेल्थ टेक्स की गणना अदा किये गए आयकर तथा नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को भुगतान किये गए वेतन के 15% को घटाकर की जानी चाहिए।
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3. भ्रष्टाचार, भाई-भतीजवाद और नेता-प्रशासन-जज-धनिको के गठजोड़ को तोड़ने के लिए आवश्यक राईट टू रिकाल/जूरी सिस्टम जैसे कानूनों को लागू किया जाना चाहिए।
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4. कक्षा 2 से प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाएँ
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5. ऊपर दिए गए 1-4 बिंदु छात्रों में सीखने की इच्छा को प्रेरित करेंगे।
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6. मासिक परीक्षाओं के नतीजो के आधार पर शिक्षको को वेतन दिया जाना चाहिए। सात्य प्रणाली पर इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए, rahulmehta .com/301.htm पर अध्याय 30 देखें।
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इन कानूनों के बिना, हर साल करोड़ो अरबो रूपये शिक्षा और वेतन पर फूंकने से हमारी शिक्षा में कोई भी बदलाव लाने में हम असफल रहेंगे।
-- राहुल चिमन भाई मेह

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