Sunday, August 23, 2015

राईट टू रिकॉल/जूरी सिस्टम कानूनो के प्रचार के तरीको में विज्ञापन देना तथा चुनाव लड़ना सबसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक गतिविधि है (23-Aug-2015) No.6

August 23, 2015

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राईट टू रिकॉल/जूरी सिस्टम कानूनो के प्रचार के तरीको में विज्ञापन देना तथा चुनाव लड़ना सबसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक गतिविधि है। हमें ऐसे तरीको को खोजने की जरुरत है जिससे हम बड़े अखबारों में बड़े पैमाने पर बड़े विज्ञापन दे सके। 
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1. बड़ा विज्ञापन देना क्यों सबसे महत्त्वपूर्ण है ?

चूंकि अखबार/टीवी आदि सूचना देने के केंद्रीय स्त्रोत है अत: बड़े अखबार में लगाया गया बड़ा विज्ञापन लोगो को यह जानकारी दे देता है कि इस बारे में 'सबको जानकारी हो चुकी है'। अखबार और विज्ञापन जितना बड़ा होगा 'सबको जानकारी हो चुकी है' का भाव भी उतना ही गहरा होगा। किसी तथ्य/मांग/सूचना के बारे में A) 'सबको जानकारी होना', तथा यह भी जानकारी होना कि 2) 'सबको जानकारी हो चुकी है', दोनों ही घटनाओ का होना अनिवार्य है। 

उदहारण के लिए मैं यह कह सकता हूँ कि सरकार वन रेंक वन पेंशन लागू नहीं कर रही है। मुझे यह भी लिखने की आवश्यकता नही है कि यह सेना से सम्बंधित है। क्योंकि लगभग सभी को यह जानकारी है कि 1) सरकार वन रेंक वन पेंशन लागू नहीं कर रही है, तथा 2) तथा सभी को यह भी पता है कि सब को पता है सरकार वन रेंक वन पेंशन लागू नहीं कर रही है। हालांकि यह सूचना व्यक्तिगत स्त्रोतों से पिछले 10 वर्ष से फैलाई जा रही है, लेकिन केंद्रीय स्त्रोत मिडिया ने इसे पिछले 4 माह से उठाना शुरू किया।

1. संचार के विभाजित स्त्रोत : पेम्फ्लेट, होर्डिंग, छोटी पत्रिकाओ में लेख या विज्ञापन, होम या गार्डेन मीटिंग्स, व्याख्यान, सभाएं, रैलियां, बैनर, सोशल मिडिया आदि। 
2. संचार के केंद्रीय स्त्रोत : बड़े अखबार और न्यूज चेनल्स। 

केंद्रीय स्त्रोत द्वारा दी गयी जानकारी में एकरूपता होती है। इसे दबाया नहीं जा सकता। तथा सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि केंद्रीय स्त्रोत से दी गयी जानकारी से अनभिग्यता को व्यक्ति का अज्ञान तथा अजागरूकता की संज्ञा दी जाती है। 

यदि मुझे यह जानकारी विभाजित स्त्रोत से मिली है तो मैं यह तो कह सकता हूँ कि सरकार वन रेंक वन पेंशन लागू नहीं कर रही है, किन्तु मैं यह दावा नहीं कर सकता कि 'सबको पता है कि सरकार वन रेंक वन पेंशन लागू नहीं कर रही है'। 'सबको पता है' कहने के लिए यह आवश्यक है कि मुझे यह जानकारी केंद्रीय स्त्रोत से मिली हो। विभाजित स्त्रोत से प्राप्त की गयी सूचना व्यक्तिगत राय बनाती है, जबकि केंद्रीय स्त्रोत द्वारा दी गयी जानकारी सार्वजनिक राय बनाने का कार्य करती है। 
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उदाहरण के लिए यदि लक्षित सूचना क्षेत्र एक स्कूल हो तो कहा जाएगा कि प्रार्थना स्थल जहां सभी बच्चे एकत्र होते है, छात्रों को दी जाने वाली सूचना का केंन्द्रीय स्त्रोत है। जहां प्रिंसिपल द्वारा की गयी घोषणा सभी को जानकारी देती है तथा यह भी जानकारी दे देती है कि शाला में उपस्थित सभी छात्रों को यह जानकारी दी जा चुकी है। अब कोई छात्र यह बहाना नहीं कर सकता कि मैंने घोषणा के समय अपने कान बंद करके रखे थे अत: मुझे इस बारे में पता नहीं। कमाल की बात यह है कि यदि कोई छात्र उस घोषणा के समय वाकई में सो रहा था तब भी सभी छात्र यह मानकर चलेंगे कि उसे जानकारी दी जा चुकी है, और अब वह अपनी सुविधा के लिए अनभिज्ञता का नाटक कर रहा है।

लेकिन यदि किसी सूचना का लक्षित क्षेत्र पूरा देश हो तो केंद्रीय स्त्रोत के रूप में समाचार पत्र की आवश्यकता है। अखबार जितना बड़ा होगा 'सबको पता है' की धारणा भी उतनी ही गहरी और व्यापक होगी। जनांदोलन खड़ा करने के लिए यह अनिवार्य है कि सबको जानकारी देने के साथ ही यह भी जानकारी दी जाए कि सबको जानकारी हो चुकी है। और इसके लिए समाचार पत्र में विज्ञापन देना एक मात्र विकल्प है।

2. चुनावो में भाग न लेने से सारी मेहनत जाया हो सकती है।

हमारा उद्देश्य नागरिको तक कानूनो की जानकारी पहुंचा कर जनसेवकों पर इन कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने का जनदबाव बनवाना है। किन्तु ऐसा दबाव सिर्फ चुनावी मौसम में ही बनाया जा सकता है। अत:यह अपरिहार्य है कि हम मतदाताओ से तब संपर्क अवश्य करे जब नेता उनसे संपर्क करते है। 
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राजनैतिक पार्टिया और कार्यकर्ता सिर्फ राजनैतिक एजेंडे को ही गंभीरता से लेते है। जब तक जनता की किसी मांग/मुद्दे का सम्बन्ध वोट से स्थापित नहीं होता तब तक राजनैतिक पार्टियों को उससे कोई नुकसान नहीं होता, अत: वे उस और ध्यान नहीं देते। सभी नेता और राजनैतिक पार्टियां चुनाव के दौरान सक्रिय हो जाते है क्योंकि सिर्फ इसी दौरान उन्हें अपने दड़बो से निकलकर जनता के सामने जाना होता है। यही वह समय होता है जब नेता अपने चुनाव क्षेत्र की गलियों की ख़ाक छानता हुआ मतदाताओ की चौखट पर वोट मांगने पहुँचता है। नतीजा आ जाने के बाद जनता और नेता दोनों ही जानते है कि अब मुलाक़ात 5 वर्ष बाद होगी।

यदि कोई मांग पौने पांच साल तक नेताओ के सामने रखी जाती है किन्तु चुनाव के दौरान नहीं रखी जाती है, तो किया गया कार्य शून्य होगा। कोई भी समूह/व्यक्ति अपनी कोई भी मांग यदि इस दौरान नेता और मतदाताओ के सामने रखता है तो उसे सबसे ज्यादा अटेंशन मिलेगा। इस समय सिर्फ नेता ही नहीं बल्कि मतदाता भी इलेक्शन मॉड में होते है। इस दौरान सिर्फ उसी संगठन/व्यक्ति की बात पर ध्यान दिया जाता है जिसके पास कोई राजनैतिक एजेंडा हो। किन्तु चुनावी समर में उतरे बिना राजनैतिक एजेंडा सिर्फ खानापूर्ति है। अत: राईट टू रिकाल/जूरी सिस्टम के एजेंडे पर चुनाव लड़ने से ये विषय चर्चा की मुख्य धारा में आ जाएंगे।

सभी चुनावो में देखा गया है कि कई निर्दलीय उम्मीदवार भाग लेते है। विज्ञापन देने से अधिक से अधिक लोगो तक इन कानूनो की जानकारी पहुंचेगी जिससे ज्यादा लोग इन मुद्दो पर चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित होंगे। क्योंकि जिन मुद्दो के बारे में अधिकतम नागरिको को जानकारी हो चुकी है उन मुद्दो पर चुनाव लड़ने से जनता का समर्थन मिलना स्वाभाविक है। अत: जिलो में इन कानूनो का प्रचार कर रहे कार्यकर्ताओ को चुनाव लड़ने और स्थानीय स्तर पर चंदे जुटाकर विज्ञापन देने पर सबसे अधिक फोकस करना चाहिए। 

विज्ञापन देने के लिए धन जुटाने का कार्य कार्यकर्ता स्थानीय स्तर पर कर सकते है। किसी जिले में कार्य करने वाले कार्यकर्ता स्थानीय नागरिको को इन कानूनो की जानकारी देकर स्थानीय स्तर पर कोष जुटा सकते है। जितने ज़्यादा नागरिको को इन कानूनो के बारे में जानकारी दी जायेगी उतना ही धन जुटाना आसान होता जाएगा, जिससे स्थानीय अखबार में विज्ञापन दिया जा सकता है। किन्तु जहां तक सम्भव हो यह कोशिश की जानी चाहिए कि विज्ञापन जिले के सबसे बड़े अखबार में प्रकाशित हो।

विज्ञापन देने से अधिक से अधिक नागरिको/कार्यकर्ताओ तक इन कानूनो की जानकारी पहुंचेगी जिससे नागरिको द्वारा अन्य बड़ी पार्टियो पर दबाव बना कर राईट टू रिकॉल/ज्यूरी सिस्टम कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाया जा सकेगा।

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