Sunday, August 30, 2015

आरक्षण पर (31-Aug-2015) No.4

August 31, 2015

https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153006270911922

आरक्षण पर :
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1. मैं आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने से सहमत नही हूँ। 

स्पष्टीकरण : १) क्योंकि किसी व्यक्ति की आय का निर्धारण करने की हमारे पास कोई व्यवस्था नही है। ऐसा करने पर अवैतनिक व्यक्ति जो कि लाखों रूपये महीना कमा रहे है, खुद को कागजो में गरीब दिखा देंगे। २) क्योंकि अलगाव अमीर-गरीब के आधार पर रहा ही नहीं है, बल्कि जात-पाँत के आधार पर रहा है। 
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2. मैं जातिय आधार पर आरक्षण का समर्थन करता हूँ।

स्पष्टीकरण : १) हिन्दू धर्म में जातीय आधार पर भेदभाव ऊँच-नीच रही है और कमोबेश आज भी यह व्यवहार में है। २) जिस आधार पर छुआछूत रही उस आधार को ध्वस्त करने के लिए आरक्षण भी उसी आधार पर देना युक्तियुक्त है। इसलिए अन्य किसी मापदंड पर आरक्षण देने की कोई तुक ही नहीं। 
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3. मैं आरक्षण की मौजूदा 49% की सीमा को बढाए जाने का विरोध करता हूँ। 

स्पष्टीकरण : वर्तमान व्यवस्था में सभी दलित/पिछड़ी जातियों को सम्मिलित कर लिया गया है। यदि अन्य जातियों को अतिरिक्त आरक्षण देना जारी रखा गया तो तय 49% की सीमा लगातार बढ़ती रहेगी और सामान्य वर्ग सिकुड़ता चला जाएगा। अत: अब न तो नयी जातियों को शामिल किया जाना चाहिए और न ही मौजूदा सीमा को बढ़ाया जाना चाहिए। 

4. मैं जातियों को अगड़ा और पिछड़ा में विभाजित नही करता। जो भी जाति खुद के पिछड़ा होने का दावा करके आरक्षण की मांग करती है, उसे विशेष परिस्थियियो में अमुक जाति की जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जा सकता है। किन्तु ऐसा अंतिम विकल्प के रूप में ही किया जाना चाहिए। 

स्पष्टीकरण : उदाहरण के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 42 करोड़ है अत: उन्हें 0.64% के अनुपात से 27% आरक्षण दिया गया है। अत: यदि देना तय किया जाता है तो पटेलों को उनकी 20% आबादी के अनुपात में 11% अतिरिक्त आरक्षण दिया जा सकता है। किन्तु यह आरक्षण OBC वर्ग के 27% कोटे में से नहीं दिया जाना चाहिए। 
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4. मैं महिलाओं को आरक्षण दिए जाने का समर्थन नही करता। 

स्पष्टीकरण : क्योंकि महिला अपने आप में कोई जाति नही है। तथा महिला होने के कारण कभी कोई भेदभाव, छुआछूत, ऊंच-नीच व्यवहार में नहीं रहा है। 
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5. मैं मुस्लिम और ईसाईयों को आरक्षण देने के पक्ष में नही हूँ।

स्पष्टीकरण : क्योंकि इन धर्मो में एतिहासिक रूप से किसी प्रकार का जातिय विभाजन और भेदभाव नही रहा है।
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मेरा अस्तित्व भले ही ख़त्म हो जाए, किन्तु राजनैतिक परिचय बना रहेगा -- वीपी सिंह (मंडल सिफारिशें लागू करने के बाद )
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पिछले 25 सालो से आरक्षण बारामासी मुद्दा बना हुआ है। गुर्जर और मराठे जाते है तो पटेल आ जाते है। आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करने वाले भी है, कुछ बनिए-ब्राह्मण भी आरक्षण मांग रहे है। महिलाओं को भी आरक्षण चाहिए। और मुस्लिम भी कतार में है। बौद्ध, सिक्ख, जैन, पारसी और ईसाईयों की संख्या कम होने से उनकी मांग अब तक सिरे नहीं चढ़ी है।
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आरक्षण की शुरुआत ही 1990 में सड़को पर उतरने से हुयी थी, और आज भी इस मुद्दे में इतनी शक्ति है कि बात की बात में लाखो इकट्ठे हो जाते है। आग में तेल डालने के लिए मिडिया तो बैठा ही है। वक़्त के साथ आरक्षण की मांग बढ़ती ही रहेगी, और सरकारों को देना भी पड़ेगा। क्योंकि सभी पार्टियों की नस को वोटो ने दबा के रखा है।
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भारत में SC, ST तथा OBC की आबादी लगभग 65 करोड़ है अत: आरक्षण को लेकर व्यवहारिक सच्चाई यही है कि इसे पूरी तरह से ख़त्म नहीं किया जा सकता। किसी भी सूरत में नहीं। यही कारण है कि पिछले 25 सालो में आज तक किसी भी राजनैतिक पार्टी ने इसे ख़त्म करने के सम्बन्ध में स्पष्ट बयान तक नहीं दिया। जो अपनी पार्टी को गायब करना चाहते है, वो बेशक ऐसा वादा कर सकते है। यदि कोई पार्टी सत्ता में आने के बाद आरक्षण ख़त्म करेगी तो उसे मध्यावधि चुनावो का सामना करना पड़ेगा, पार्टी सिकुड़ जायेगी और वही पार्टी सत्ता में आएगी जो फिर से आरक्षण देने का वादा करे। 

मतलब कहने का यह है कि :

१. किसी भी पार्टी से आरक्षण ख़त्म करने की उम्मीद न करिये। कोई पार्टी कह भी नहीं रही है कि वे आरक्षण ख़त्म कर देंगे, फिर भी खुद ही उम्मीद पाल कर बैठना नादानी है।

२. ख़त्म करना तो दूर की बात है, आने वाले समय में आरक्षण की सीमा और भी बढ़ानी पड़ सकती है। और कोई भी पार्टी इसे बढ़ाने से परहेज नहीं करेगी। 

३. जिस देश में 60% आबादी किसी मुद्दे के समर्थन में हो उसके खिलाफ कोई जन आंदोलन भी खड़ा नहीं किया जा सकता। 

४. आरक्षण की समस्या का जो भी समाधान निकलेगा वह दलितों की सहमति से ही निकल सकेगा। अत: आरक्षण को ख़त्म करने की मांग करने वालो को ऐसे उपाय की और ध्यान देना चाहिए जिस पर आरक्षण विरोधी और समर्थक दोनों ही सहमत हो जाए। 

चूंकि लोकतंत्र में सही गलत नही होता बल्कि अल्पमत और बहुमत होता है, अत: मैं इस झमेले में नहीं पड़ना चाहूंगा कि नैतिक और न जाने कौन कौन से मापदंडो के हिसाब से आरक्षण उचित है या अनुचित। तर्क शास्त्र बौद्धिक गोष्ठियों का विषय है लोकतांत्रिक राजनीति का नहीं। लोकतंत्र में बहुमत सर्वोपरि होता है, और बहुमत आरक्षण का समर्थन करता है। इसलिए मेरे लिए ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर चर्चा करना फिजूल है जिस प्रस्ताव पर प्रथम दृष्टया ही 65 करोड़ नागरिक सहमत न हो। 

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आरक्षण के समाधान हेतु मैं निम्न लिखित कानूनी ड्राफ्ट्स का समर्थन करता हूँ। मेरा मानना है कि अमुक कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करके आरक्षण की समस्या को लगभग पूरी तरह से हल किया जा सकता है। 
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1. आरक्षित वर्ग के लिए आर्थिक विकल्प चुनने की प्रक्रिया होने से दलितों की सहमति से आरक्षण को ५०% से घटकर ५% तक किया जा सकता है। इसकी प्रक्रिया का प्रस्तावित ड्राफ्ट यहां देखा जा सकता है :
https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=760514727400099&id=100003247365514

2. प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट उन उप जातियों को दिए जा रहे आरक्षण लाभो पर रोक लगाने से सम्बंधित है, जिन उप जातियों को सरकारी नौकरियों में उनकी जनसँख्या अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व मिल चुका है। 
https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/805624222889149
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3. आरक्षण के वर्तमान प्रावधानों से दलित वर्ग के अति पिछड़े वर्ग को प्रयाप्त लाभ नही मिल पा रहा है, जबकि संपन्न वर्ग (क्रीमीलेयर) आरक्षण के लाभों का ज्यादा उपयोग कर रहा है। अत: SC/ST/OBC वर्ग में जो व्यक्ति संपन्न हो चुके है, उनके लाभों को घटाकर उसी वर्ग के शेष पिछड़े हुए व्यक्तियों को आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए ST वर्ग में 10 उप जातियां जैसे भील तथा मीणा शामिल है । यदि ST वर्ग में भीलो की आबादी 50% तथा मीणा की आबादी 30% है तो भीलो को भी इसी अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए । किन्तु यदि ST वर्ग में आरक्षण का लाभ लेकर मीणा जाति ने 60% प्रतिनिधित्व प्राप्त कर लिया है तो इसका दुष्प्रभाव यह होगा कि ST वर्ग की अन्य जातियां पिछड़ी हुयी ही रहेगी, जबकि पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त कर चुकी जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ता जाएगा। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि दशको तक आरक्षण लागू रखने पर भी अधिकतम दलित जातियां पिछड़ी हुयी ही रहेगी, और आरक्षण को जारी रखने की मांग निरंतर बनी रहेगी। 

प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट यहां देखा जा सकता है :
https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=761243917327180&id=100003247365514
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4. प्रस्तावित क़ानून जिन पदों की नियुक्ति लिखित परीक्षा के माध्यम से की जाती है, उनमे SC/ST/OBC वर्ग के लिए अनिवार्य आरक्षण सुनिश्चित करता है । यदि नियुक्ति साक्षात्कार के माध्यम से की जाती है तो प्रधानमन्त्री सरकारी आदेश से ऐसे पदों पर आरक्षण लागू कर सकेंगे। 

प्रस्तावित ड्राफ्ट यहां देखे : 
https://www.facebook.com/pawan.jury/posts/765898486861723
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5. यह क़ानून अहिंदू धर्मावलम्बियों को आरक्षण के लाभो से वंचित करता है।

प्रस्तावित ड्राफ्ट : 
https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=761792913938947&id=100003247365514
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आखिर आरक्षण की इतनी मांग क्यों है ? 

सरकारी नौकरियों पर टूट कर पड़ने का मुख्य कारण 'सेवा सुरक्षा' और घूस खाने के अवसर है। यदि सरकारी नौकरियों से भ्रष्टाचार मिटा दिया जाए और निकम्मापना देखने पर उन्हें नौकरी से निकालने की सहज प्रक्रिया हो तो आरक्षण की मांग स्वत्: ही गिर जायेगी। अत: जो भी आरक्षण की समस्या का स्थायी हल चाहते है, उन्हें अपने सांसदों से राईट टू रिकॉल प्रक्रियाओ एवं जूरी सिस्टम कानूनो को गैजेट में छापने की मांग करनी चाहिए ताकि सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कामचोरी बंद हो। ऐसा होने से आरक्षण मांगने वालो और आरक्षण ख़त्म करने वालो, दोनों की ही संख्या में कमी आयेगी। 

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