August 30, 2015
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153004032026922
बहुत से मोदी भक्तो का खुद से ही यह मानना है कि मोदी साहेब आरक्षण ख़त्म कर देंगे।
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उनके लिए सूचना है कि जब तक मोदी साहेब प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर बैठे है तब तक आरक्षण सिर्फ बढ़ ही सकता है, घट नही सकेगा। लेकिन ऐसा बिलकुल भी नही है कि राहुल या केजरीवाल पीएम बनते ही आरक्षण खत्म कर देंगे। तब भी सिर्फ बढ़ेगा, घटेगा कभी नही।
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इसका खुला हुआ कारण यह है कि इन सभी को यह पता है कि देश में 45 करोड़ OBC, 15 करोड़ SC और 7 करोड़ आबादी ST की है। जिनको जोड़ने से योगफल 67 करोड़ होता है। इसलिए इन सभी के मेनिफेस्टो में आपको आरक्षण का अ भी ढूढने से नही मिलेगा।
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इनको जागो पार्टी नही बनना है।
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इसलिए फायदा इसी में है कि इस अव्यावहारिक सपने से निकल कर यथार्थ की पथरीली जमीन पर लेंड कर जाओ, और आरक्षण के ऐसे व्यावहारिक उपाय पर ध्यान दो जिसका समर्थन दलित भी करे।
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कई में से एक ऐसा व्यावहारिक उपाय इस लिंक पर दर्ज किया गया है। इस क़ानून के गेजेट में प्रकाशित होने से दलितों की सहमती से आरक्षण को 50% से घटाकर 5% तक किया जा सकता है।
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tinyurl. com/AarakshanGhatao (see comment box for link)
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कुछ स्वतंत्र कार्यकर्ता भी तर्क के आधार पर आरक्षण ख़त्म करने की मंशा रखते है। उन्हें भी यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र तर्कों पर नही बल्कि सिरों की गिनती पर चलता है। जिस मांग के साथ अल्पमत होगा, वह लोकतंत्र में सदा अस्वीकार्य ही रहेगा।
https://www.facebook.com/mehtarahulc/posts/10153004032026922
बहुत से मोदी भक्तो का खुद से ही यह मानना है कि मोदी साहेब आरक्षण ख़त्म कर देंगे।
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उनके लिए सूचना है कि जब तक मोदी साहेब प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर बैठे है तब तक आरक्षण सिर्फ बढ़ ही सकता है, घट नही सकेगा। लेकिन ऐसा बिलकुल भी नही है कि राहुल या केजरीवाल पीएम बनते ही आरक्षण खत्म कर देंगे। तब भी सिर्फ बढ़ेगा, घटेगा कभी नही।
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इसका खुला हुआ कारण यह है कि इन सभी को यह पता है कि देश में 45 करोड़ OBC, 15 करोड़ SC और 7 करोड़ आबादी ST की है। जिनको जोड़ने से योगफल 67 करोड़ होता है। इसलिए इन सभी के मेनिफेस्टो में आपको आरक्षण का अ भी ढूढने से नही मिलेगा।
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इनको जागो पार्टी नही बनना है।
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इसलिए फायदा इसी में है कि इस अव्यावहारिक सपने से निकल कर यथार्थ की पथरीली जमीन पर लेंड कर जाओ, और आरक्षण के ऐसे व्यावहारिक उपाय पर ध्यान दो जिसका समर्थन दलित भी करे।
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कई में से एक ऐसा व्यावहारिक उपाय इस लिंक पर दर्ज किया गया है। इस क़ानून के गेजेट में प्रकाशित होने से दलितों की सहमती से आरक्षण को 50% से घटाकर 5% तक किया जा सकता है।
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कुछ स्वतंत्र कार्यकर्ता भी तर्क के आधार पर आरक्षण ख़त्म करने की मंशा रखते है। उन्हें भी यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र तर्कों पर नही बल्कि सिरों की गिनती पर चलता है। जिस मांग के साथ अल्पमत होगा, वह लोकतंत्र में सदा अस्वीकार्य ही रहेगा।
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